सन 2014 की
ऐतिहासिक पराजय के दो साल अगले हफ्ते पूरे होने जा रहे हैं। इन दो साल में पार्टी
ढलान पर उतरती ही गई है। गुजरे दो साल में एक भी घटना ऐसी नहीं हुई, जिससे पार्टी
की पराजित आँखों में रोशनी दिखाई पड़ी हो। पिछले दो साल में हुए चुनावों
में उसे कहीं सफलता नहीं मिली। बिहार विधानसभा में उसकी स्थिति बेहतर जरूर हुई है,
पर दूसरों के सहारे। उसके पीछे कांग्रेस की रणनीति नहीं थी। फिलहाल अकेले दम पर
जीतने की कोई योजना उसके पास नहीं है। अब वह उत्तर भारत में गठबंधनों के सहारे वैतरणी पार करना चाहती है।
Saturday, May 14, 2016
Tuesday, May 10, 2016
उत्तराखंड में जारी रहेगी अस्थिरता
उत्तराखंड की
सबसे बड़ी त्रासदी है अनिश्चय। नैनीताल हाईकोर्ट ने कांग्रेस के 9 बागी विधायकों
की अर्जी खारिज करके मंगलवार को होने वाले शक्ति परीक्षण को रोचक बना दिया है। विधायकों
को उम्मीद थी कि शायद उनकी सदस्यता बहाल हो जाए। उन्हें वोट का अधिकार मिलता तो मुकाबला
एकतरफा हो जाता। अदालत के इस फैसले के बाद अस्थिरता और ज्यादा गहरी हो जाएगी। हरीश
रावत के पक्ष में यदि बहुमत विधायक वोट डाल भी देंगे तब भी यह कहना मुश्किल है कि अगले
साल चुनाव होने तक वे अपने पद पर बने रहेंगे। कांग्रेस की जिस अंदरूनी कलह के कारण
यह स्थिति पैदा हुई है, वह आसानी से खत्म होने वाली नहीं है। पहले तो शक्ति
परीक्षण में जीतना ही मुश्किल हुआ जा रहा है। पर रावत सरकार जीत भी गई तो नेतृत्व
का बने रहना मुश्किल होगा।
Sunday, May 8, 2016
क्या बीजेपी खोज पाएगी अगस्ता-गंगा का स्रोत?
रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि अगस्ता-वेस्टलैंड मामला बोफोर्स जैसा
साबित नहीं होगा। जैसा बोफोर्स प्रसंग में नहीं हो सका वैसा हम इस मामले में
करेंगे। उनके अनुसार पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी और गौतम खेतान ‘छोटे नाम’
हैं। उन्होंने तो बहती गंगा में हाथ धोया। हम पता लगा रहे हैं कि इस गंगा का स्रोत
कहाँ है। क्या वास्तव में यह पता लगाया जा सकता है कि पैसा किसके पास गया? क्या बीजेपी ने इस मामले को उठाने
के पहले इस बात का गणित लगाया है कि इस मामले का अंत कहाँ है? घूम-फिरकर यह मामला
फुस्स साबित हुआ तो क्या होगा? क्या सरकार गांधी परिवार पर हाथ डालकर गलती करेगी? क्या सारी बातें सिर्फ माहौल बनाने के लिए की जा रही
हैं? ये महत्वपूर्ण सवाल हैं और इनका जवाब समय ही देगा। पर यह तय है कि यह मामला
लम्बे समय तक राजनीति में कोलाहल मचाता रहेगा।
Friday, May 6, 2016
दिल्ली पुलिस के ऑपरेशन की कवरेज
नवभारत टाइम्स |
स्पेशल सेल के स्पेशल सीपी अरविंद दीप के मुताबिक राजधानी क्षेत्र में बहुत दिनों से कोई विस्फोट नहीं हुआ था इसलिए ये भीड़भाड़ वाले इलाके में ये विस्फोट करने वाले थे। समय से ये मॉड्यूल सामने न आता तो दिल्ली में कोई बड़ा धमाका होना पक्का था। पकड़े गए 13 व्यक्तियों में से साजिद को दिल्ली के चांद बाग से, समीर को यूपी के लोनी से और शाकिर को देवबंद से गिरफ्तार किया गया। इन तीनों को पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया जहां से इनको 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया।
पुलिस का दावा है कि साजिद इस स्लीपर सेल का मास्टरमाइंड साजिद है। वह दिल्ली का रहने वाला है। पुलिस का कहना है कि कुछ दिनों पहले घर के बेसमेंट में आईईडी बनाते वक्त धमाका हुआ था। इसमें साजिद के हाथ में चोट लगी थी। इसके बाद से ही वह जांच एजेंसी के रडार पर आ गया था।
पकड़े गए व्यक्तियों के परिवारों और स्थानीय लोगों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। परिवारवालों का कहना है कि उनके बच्चे बेकसूर हैं। वहीं, स्पेशल सेल का कहना है कि दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल आतंकियों के इस नेटवर्क पर करीब छह महीनों से नजर रख रही थी। इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए स्पेशल सेल की 12 टीमें लगाई गईं, जिनमें स्पेशल सेल के 20 टॉप अफसर शामिल हैं।
ज्यादातर अखबारों में यह खबर पुलिस सूत्रों के अनुसार है। कुछ अखबारों ने चांद बाग इलाके में जाकर पकड़े गए व्यक्तियों के परिवारों से भी बात की है। इंटरनेट पर कैचन्यूज ने 5 मई को इस इलाके के लोगों से बात करके भी खबर लगाई है। कैचन्यूज के संवाददाता ने लिखा हैः-
बुधवार की सुबह दिल्ली की तेज गर्मी में एक खबर ने लगभग आग लगा दी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दावा किया है कि दिल्ली के गोकलपुरी, गाज़ियाबाद के लोनी और सहारनपुर के देवबंद इलाक़ों से तीन लड़को को गिरफ्तार किया है जिनके संबंध पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद से हैं.
सेल ने कुल 13 लड़कों को अलग-अलग इलाकों से हिरासत में लिया था. इनमें छह लड़के गोकलपुरी के चांद बाग़ इलाके के रहने वाले हैं.
स्पेशल सेल का दावा है कि इन लड़कों का जैश से संबंध का पता एजेंसी को 18 अप्रैल को चला था. गिरफ्तारी के बाद स्पेशल सेल ने इनसे पूछताछ की है. इसके बाद सेल ने कहा है कि चांद बाग़ के मुहम्मद साजिद ने पूछताछ में जैश-ए मुहम्मद से अपने संबंध कुबूल कर लिए हैं.
स्पेशल सेल साजिद को ही इस मॉड्यूल का मुखिया बता रही है. मुहम्मद साजिद से मिली जानकारी और उसके मोबाइल से मिले नंबरों के आधार पर सेल ने बाद में इलाके के पांच और लड़कों को मंगलवार की रात 11 बजे के आसपास चांद बाग़ इलाके से हिरासत में लिया था.
इस मामले को देख रहे वकील एमएस खान का कहना है कि पुलिस ने सिर्फ तीन युवकों को गिरफ्तार किया है. संभव है कि बाकियों को जल्द ही छोड़ दिया जायेगा.
कैच न्यूज़ ने इलाके का दौरा करके गिरफ्तार युवकों की असलियत जानने की कोशिश की. जिन छह लड़कों को चांद बाग़ से पुलिस ने उठाया है. वे सभी तब्लीगी जमात से जुड़े हुए हैं. सभी पांचों वक़्त की नमाज़ के पाबंद, दीन की शिक्षा फैलाना ही इनका काम था.
जमीयत उलमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कैच न्यूज़ से विशेष बातचीत में कहा है कि वह देवबंद से उठाए गए शाकिर अंसारी और एक अन्य लड़के अजीम को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. पुलिस हमेशा से इसी तरह लड़कों को फ्रेम करती आई है और बाद में कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया. मदनी ने यह घोषणा भी की कि जमीयत गिरफ्तार सभी लड़कों को कानूनी मदद मुहैया करवाएगी.इस खबर पर और ज्यादा पड़ताल करने की कोशिश अभी दिखाई नहीं पड़ी है। हाँ हिन्दी के अखबारों में नवोदय टाइम्स ने भी चाँदबाग इलाके में जाकर बात की है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कवरेज में अभी तक आरोपियों के परिवारों का दृष्टिकोण दिखाई नहीं पड़ा है। हाल में मालेगाँव धमाकों के बाबत हुए फैसले के बाद से इस प्रकार के आरोप लगे हैं कि आतंकी गतिविधियों में मुसलमान नौजवानों को पकड़ा जाता है। इस मामले की तफतीश अभी शुरू ही हुई है, इसलिए मीडिया कवरेज पर ध्यान देना जरूरी होगा कि उसका संतुलन किस प्रकार का है।अभी तक की कवरेज में मीडिया की ओर से पुलिस से प्रति-प्रश्न नहीं किए गए है।
स्पेशल सेल ने अभी तक सिर्फ चांद बाग़ के मुहम्मद साजिद, लोनी के समीर अहमद और देवबंद के शाकिर अंसारी की गिरफ्तारी दिखाई है. दिल्ली की सेशन कोर्ट ने इन तीनों से पूछताछ के लिए स्पेशल सेल को 10 दिन की रिमांड दे दी है.
नवोदय टाइम्स की खबर यहाँ देखें
Wednesday, May 4, 2016
कैसे होगा कांग्रेस का ‘बाउंसबैक?’
कितना कठिन है कांग्रेस की वापसी का रास्ता
प्रमोद जोशीवरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
बीजेपी की विजय के पिछले दो साल कांग्रेस की पराजय के साल भी रहे हैं. अगस्ता वेस्टलैंड मामले को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को अपनी पकड़ में ले रखा है. कांग्रेस पलटवार करती भी है, पर अभी तक उसकी वापसी के आसार नजर नहीं आते हैं.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद कार्यसमिति की बैठक में कहा गया था कि पार्टी के सामने इससे पहले भी चुनौतियाँ आई हैं और उसका पुनरोदय हुआ है. वह ‘बाउंसबैक’ करेगी. पर कैसे और कब?
देखना चाहिए कि पार्टी ने पिछले दो साल में ऐसा क्या किया, जिससे लगे कि उसकी वापसी होगी. या अगले तीन साल में वह ऐसा क्या करेगी, जिससे उसका संकल्प पूरा होता नज़र आए.
इस महीने पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणाम कांग्रेस की दशा और दिशा को जाहिर करेंगे. खासतौर से असम, बंगाल और केरल में उसकी बड़ी परीक्षा है. ये परिणाम भविष्य का संदेश देंगे.
कांग्रेस इतिहास के सबसे नाज़ुक दौर में है. दस से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है. जनता से यह विलगाव कुछ साल और चला तो मुश्किल पैदा हो जाएगी.
तकरीबन आठ साल के बनवास के बाद कांग्रेस की 2004 में सत्ता में वापसी हुई थी. तभी वामपंथी दलों से उसके सहयोग का एक प्रयोग शुरू हुआ था, जो 2008 में टूट गया. उसके बनने और टूटने के पीछे कांग्रेस से ज्यादा सीपीएम के राजनीतिक चिंतन की भूमिका थी.
2004 में सीपीएम के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत थे. अप्रैल 2005 में प्रकाश करात ने इस पद को संभाला और वे अप्रैल 2015 तक अपने पद पर रहे. उनके दौर में कांग्रेस और वामदलों के रिश्तों की गर्माहट कम हो गई थी.
कम्युनिस्ट पार्टियों में व्यक्तिगत नेतृत्व खास मायने नहीं रखता, लेकिन कांग्रेस को लेकर सीपीआई-सीपीएम नेतृत्व की भूमिका की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. इस साल पहली बार कांग्रेस और वाम दल बंगाल में चुनाव-पूर्व गठबंधन के साथ उतरे हैं.
यह गठबंधन केरल में नहीं है, जो अंतर्विरोध को बताता है. लेकिन राजनीतिक धरातल पर कांग्रेस का झुकाव वामदलों की ओर है. बीजेपी की काट उसे वामपंथी नीतियों में दिखाई पड़ती है.
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