Saturday, September 24, 2011

पीएम जी और उनके 2जी !!!

वित्त मंत्रालय का वह नोट किस तरह बना, क्यों बना, किसने उसे माँगा और उसका अभी तक जिक्र क्यों नहीं हुआ, यह बातें अगले जो-एक रोज़ में रोचक मोड़ लेंगी। फिलहाल प्रधानमंत्री जब देश वापस आएंगे तो कुछ नई परेशानियाँ उनके सामने होंगी। पारदर्शिता का ज़माना है। आज हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून जोरदार है।  आनन्द लें


इस मामले पर फर्स्ट पोस्ट में रमन किरपाल ने लिखा है कि यह नोट किसी ह्विसिल ब्लोवर का काम है। जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स की रपट कहती है कि यह सरकार के बचाव के लिए अच्छी तरह विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया नोट है। आप खुद इस नोट को पढ़ कर देखना चाहते हैं तो क्लिक करें

Friday, September 23, 2011

एटमी ऊर्जा की तस्वीर साफ होनी चाहिए

जयललिता के आश्वासन के बाद तमिलनाडु के कूडानकुलम एटमी बिजलीघर के विरोध में चल रहा आमरण अनशन स्थगित हो गया है, पर मामला कुछ और जटिल हो गया है। जयललिता ने कहा है कि प्रदेश विधानसभा प्रस्ताव पास करके केन्द्र से अनुरोध करेगी कि बिजलीघर हटा ले। जापान के फुकुशीमा हादसे के बाद नाभिकीय ऊर्जा विवाद का विषय बन गई है, पर अभी दुनिया भर में एटमी बिजलीघर चल रहे हैं और लग भी रहे हैं। चीन ने नए रिएक्टर स्थापित करने पर रोक लगाई थी, पर अब 25 नए रिएक्टर लगाने की घोषणा की है। केवल विरोध के आधार पर बिजलीघरों के मामले में फैसला नहीं होना चाहिए। हाँ सरकार को यह बताना चाहिए कि ये बिजलीघर किस तरह सुरक्षित हैं।


इस साल मार्च में जापानी सुनामी के बाद जब फुकुशीमा एटमी बिजलीघर में विस्फोट होने लगे तभी समझ में आ गया था कि आने वाले दिनों में नए एटमी बिजलीघर लगाना आसान नहीं होगा। एटमी बिजलीघरों की सुरक्षा को लेकर बहस खत्म होने वाली नहीं। रेडिएशन के खतरों को लेकर दुनिया भर में शोर है। पर सच यह भी है कि आने वाले लम्बे समय तक एटमी बिजली के बराबर साफ और सुरक्षित ऊर्जा का साधन कहीं विकसित नहीं हो पा रहा है। सौर, पवन और हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा विकल्प या तो बेहद छोटे हैं या बेहद महंगे।

Wednesday, September 21, 2011

श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को ज्ञानपीठ पुरस्कार

ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सबसे सम्मानित पुरस्कार है। 1965 में जब यह पुरस्कार शुरू हुआ था तब उसे अंग्रेजी मीडिया में भी तवज्जोह मिल जाती थी। धीरे-धीरे अंग्रेजी मीडिया ने उस तरफ ध्यान देना बंद कर दिया। अब शेष भारतीय भाषाओं का मीडिया भी उस तरफ कम ध्यान देता है। बहरहाल आज लखनऊ के जन संदेश टाइम्स ने इस खबर को लीड की तरह छापा तो मुझे विस्मय हुआ। यह खबर एक रोज पहले जारी हो गई थी, इसलिए इसे इतनी प्रमुखता मिलने की सम्भावना कम थी। पर लखनऊ और इलाहाबाद के लिए यह बड़ी खबर थी ही। इन शहरों के लेखक हैं। क्या इन शहरों के युवा जानते हैं कि ये हमारे लेखक हैं? बहरहाल मीडिया को तय करना होता है कि वह इसे कितना महत्व दे। लेखकों, साहित्यकारों और दूसरे वैचारिक कर्मों से जुड़े विषयों की कवरेज अब अखबारों में कम हो गई है।

1965 से अब तक हिन्दी के सात लेखकों को यह पुरस्कार मिल चुका है। इनके नाम हैं- 1.सुमित्रानंदन पंत(1968), 2.रामधारी सिंह "दिनकर"(1972), 3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय(1978), 4.महादेवी वर्मा(1982), 5.नरेश मेहता(1992), 6.निर्मल वर्मा(1999), 7.कुंवर नारायण।

कोई लेखक, विचारक, कलाकार, रंगकर्मी क्यों महत्वपूर्ण होता है, कितना महत्वपूर्ण होता है, लगता है  इसपर विचार करने की ज़रूरत भी है। फिल्मी कलाकारों, क्रिकेट खिलाड़ियों या किसी दूसरी वजह से सेलेब्रिटी बने लोगों के सामने ये लोग फीके क्यों पड़ते हैं, यह हम सबको सोचना चाहिए। अखबारों में पुरस्कार राशि भी छपी है। यह राशि ऐश्वर्या या करीना कपूर की एक फिल्म या शाहरुख के एक स्टेज शो की राशि के सामने कुछ भी नहीं है। बहरहाल आज के जन संदेश टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़कर भी अच्छा लगा। खुशी इस बात की है कि किसी ने इन बातों पर ध्यान दिया।

वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें

Tuesday, September 20, 2011

राष्ट्रीय पार्टियों के लिए चुनौती होंगे 2012 के चुनाव


उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को नरेन्द्र मोदी की विजय के रूप में भाजपा प्रचारित कर रही है। और लालकृष्ण आडवाणी की और रथयात्रा पर निकलने वाले हैं। अमेरिकी संसद के एक पेपर के निहितार्थ को लेकर विशेषज्ञ प्राइम टाइम को धन्य कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और बसपा की गतिविधियाँ तेज़ हो गईं हैं। इस इतवार को शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक समिति के चुनाव में कांग्रेस और अकाली दल की ताकत का पंजाब में पहला इम्तहान होगा। 2012 के विधान सभा चुनाव पर इसका असर नज़र आएगा। कांग्रेस इस चुनाव में औपचारिक रूप से नहीं उतरी है, पर उसके प्रत्याशी और नेता मैदान में हैं। उत्तर भारत के इन तीन राज्यों के अलावा मणिपुर और गोवा में भी अगले साल चुनाव हैं। इन पाँचों राज्यों से लोकसभा की 100 सीटें है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मसले अलग और वक्त भी अलग है, पर कहीं न कहीं वोटर के मिजाज़ का पता लगने लगता है। अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद पहली बार देश के बड़े हिस्से के लोगों की राजनीतिक राय सामने आएगी। हर लिहाज़ से ये चुनाव महत्वपूर्ण साबित होंगे।

शहरयार की तस्वीर


19 सितम्बर के टाइम्स ऑफ इंडिया में अंदर के पेज पर शहरयार को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की तस्वीर छपी है। 20 के टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले सफे पर लीड खबर के रूप में टाइम्स ऑफ इंडिया के सोशल इम्पैक्ट अवार्ड्स की खबर तमाम तस्वीरों के साथ छपी है। अंदर के पन्नों पर भी अच्छी कवरेज है। दोनों खबरों में कोई टकराव नहीं, पर खबर पेश करने के तरीके में अंतर है। ज्ञानपीठ पुरस्कार देने वाली संस्था भी टाइम्स ग्रुप से सम्बद्ध है। यह देश का सबसे बड़ा पुरस्कार है। एक ज़माने तक इस पुरस्कार की तस्वीरें टाइम्स ग्रुप के अखबारों में पहले सफे पर ही छपती थीं। मुझे लगता है अखबार से ज्यादा पाठकों के मन में अपने साहित्य और संस्कृति से अनुराग कम हुआ है।