Tuesday, February 8, 2011

जीवन शैली के कार्टून

टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कैसे होगा इसे कार्टूनिस्टों से बेहतर और कौन समझता है। आनन्द लें। ये कार्टून जिम बेंटन ने बनाए हैं। किड 3000 उनके 365 कार्टूनों की सीरीज़ है। नीचे पढ़ें विकीपीडिया से लिया गया उनका परिचय

Jim Benton (born October 31, 1960) is an American illustrator and writer. Licensed properties he has created include Dear Dumb Diary, Dog of Glee, Franny K. SteinIt's Happy Bunny, Just Jimmy, Just Plain Mean, Sweetypuss, The Misters, Meany Doodles, Vampy Doodles, Kissy Doodles, and the jOkObo project.

एओएल ने खरीदा हफिंगटन पोस्ट


खबर है कि अमेरिकन ऑनलाइन कम्पनी ने, जो अब एओएल के नाम से जानी जाती है, इंटरनेट के सबसे प्रभावशाली अखबार हफिंगटन पोस्ट को 31.5 करोड़ डॉलर में खरीदने का फैसला किया है। इस खबर के दो अर्थ हैं। एक तो यह कि हफिंगटन पोस्ट की ताकत को कुछ देर से ही सही पहचाना गया है और इंटरनेट के अखबारों की ताकत अब धीरे-धीरे बढ़ेगी। इस खबर के साथ यह खबर भी है कि हफिंगटन पोस्ट की मालकिन एरियाना हफिंगटन इस अखबार की प्रेसीडेंट होंगी, साथ ही वे एओएल की सम्पादकीय प्रमुख भी होंगी। यह खबर एओएल के भविष्य का संकेत भी है। एक साल पहले टाइम वार्नर के साथ आठ साल पुराना रिश्ता टूटने के बाद से एओएल का भविष्य भी डाँवाडोल है। 

Friday, February 4, 2011

क्या यह वैश्वीकरण की पराजय है?

आज एक अखबार में मिस्र के बारे में छपे आलेख को पढ़ते समय मेरी निगाहें इस बात पर रुकीं कि मिस्र का यह जनाक्रोश भूमंडलीकरण की पराजय का प्रारम्भ है। मुझे ऐसा नहीं लगता। मैं जनाक्रोश और उसके पीछे की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं से सहमत हूँ और मानता हूँ कि ऐसे जनांदोलन अभी तमाम देशों में होंगे। भारत में भी किसी न किसी रूप में होंगे। बुनियादी फर्क सिर्फ वैश्वीकरण की मूल अवधारणा को लेकर है।

आलेख के लेखक की निगाह में वैश्वीकरण अपने आप में समस्या है। मेरी निगाह में वैश्वीकरण समस्या नहीं एक अनिवार्य प्रक्रिया है। और उसमें ही अनेक समस्याओं के समाधान छिपे हैं। इससे तो गुज़रना ही है। वैश्वीकरण के बगैर तो समाजवाद भी नहीं आएगा। कार्ल मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद के लिए भी वैश्वीकरण अनिवार्य है। इस वैश्वीकरण को पूँजीवादी विकास और पूँजी का वैश्वीकरण लीड कर रहा है। पूँजीवाद और पूँजी के वैश्विक विस्तार पर आपत्ति समझ में आती है, पर संयोग से दुनिया में इस समय आर्थिक गतिविधियाँ पूँजी के मार्फत ही चल रहीं हैं। मिस्र में हुस्नी मुबारक की तानाशाही सरकार हटी भी तो जो व्यवस्था आएगी वह वर्तमान वैश्विक संरचना से अलग होगी यह मानने की बड़ी वजह दिखाई नहीं पड़ती।

Wednesday, February 2, 2011

क्या पाठक विचार पढ़ना नहीं चाहते?


सम्पादकीय पेज खत्म करने के बाद आज के डीएनए में उसके पाठकों की चिट्ठियाँ छपीं हैं। कुछ ने समर्थन किया है और कुछ ने असहमति जताई है। बेशक पाठक पसंद करें तो सब ठीक है, पर क्या अखबार ने सम्पादकीय पेज खत्म करने के पहले पाठकों से पूछा था?

कुछ लोग मानते हैं कि बाज़ार तय करता है कि सही क्या है और गलत क्या है। पर बाज़ार क्या सोचता है इसका पता कैसे लगता है? मुम्बई में बाज़ार का लीडर तो टाइम्स ऑफ इंडिया है। करीब दसेक साल पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के लखनऊ संस्करण में सम्पादकीय पेज खत्म कर दिया गया था। सिर्फ पेज खत्म किया था। सम्पादकीय किसी पेज में छपते थे, मुख्य लेख किसी और पेज में पाठकों के पत्र किसी और पेज में। खैर टाइम्स ने बाद में सम्पादकीय पेज अपनी जगह वापस कर दिया। टाइम्स के सम्पादकीय पेज आज भी श्रेष्ठ है।

Tuesday, February 1, 2011

सम्पादकीय पेज विहीन डीएनए


डीएनए ने हिम्मत दिखाई और घोषणा करके एडिट पेज बन्द कर दिया। साथ में यह कहा कि इसे बहुत कम लोग पढ़ते हैं, बोरिंग होता है, अपनी ज़रूरत खो चुका है, सिर्फ जगह भरने का काम हो रहा था।