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Sunday, September 11, 2022

‘मिशन 24’ की राजनीतिक यात्राएं


राष्ट्रीय-राजनीति का चुनाव-विमर्श अचानक तेज हो गया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिस दिन शुरू हो रही थी, उसके एक दिन पहले नीतीश कुमार दिल्ली में 2024 के चुनाव की संभावनाओं को लेकर मुलाकातें कर रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी और राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के अलावा शरद पवार, एचडी कुमारस्वामी, ओम प्रकाश चौटाला, सीताराम येचुरी और दूसरे कुछ नेताओं से भी मुलाकात की। पार्टी उन्हें पीएम-उम्मीदवार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं नीतीश कुमार ने दिल्ली में कहा कि मैं दावेदार नहीं बनना चाहता। सिर्फ विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रहा हूँ। 4 सितंबर को रामलीला मैदान में हुई रैली में राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी का मुकाबला सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। यानी कि बीजेपी को हराना है तो उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व में ही आना होगा। पर विरोधी-खिचड़ियाँ अलग-अलग बर्तनों में पक रही हैं। विपक्ष बिखरा हुआ है, लेकिन एकजुटता की कोशिशें जारी है। इस एकता का एक प्रदर्शन 25 सितंबर को हरियाणा में हिसार के नजदीक विपक्ष की रैली में देखने को मिलेगा।

एकता के प्रयास

विरोधी राजनीति के नजरिए से बिहार में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद संभावनाएं बेहतर हुई हैं। इसका संकेत ममता बनर्जी के ताजा बयान से मिलता है। उन्होंने कहा, नीतीश जी, अखिलेश, हेमंत और मेरा वादा है कि ये चार मिलकर बीजेपी को 2024 लोकसभा चुनाव में 100 सीटों पर रोक देंगे। इनमें से पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40, उत्तर प्रदेश में 80 और झारखंड में 14 लोकसभा सीटे हैं। भाजपा कहती है कि उनके पास 300 सीटें हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि राजीव गांधी के पास 400 सीटें थीं लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस हार गई। बीजेपी भी हारेगी। इन राज्यों में उसे 100 सीटों का नुकसान होगा। देश के अन्य हिस्सों की पार्टियां भी जल्द ही हमारे साथ आएंगी। क्या बीजेपी को 100 सीटों पर रोका जा सकता है?

कांग्रेस से परहेज

ध्यान देने वाली बात है कि ममता बनर्जी ने राहुल गांधी, केजरीवाल, शरद पवार और चंद्रशेखर राव के नामों का उल्लेख नहीं किया है। क्या इस बयान को भविष्य के राजनीतिक गठजोड़ का संकेत मानें? या सिर्फ बयान मानें, जो माहौल बनाने के लिए है? सवाल तीन हैं। नंबर एक, क्या राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी एकता है? दो, क्या इस एकता में कांग्रेस भी शामिल है? और तीन, बीजेपी के पास इसकी काट की रणनीति क्या है? इन सवालों के आगे-पीछे अनेक किंतु-परंतु हैं। इंडियन नेशनल लोकदल अपने संस्थापक देवीलाल की जयंती पर 25 सितंबर को रैली का आयोजन कर रहा है। इसमें कांग्रेस को छोड़कर विपक्षी दलों के कई नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। दूसरी तरफ हालांकि ममता बनर्जी विरोधी-एकता की समर्थक हैं, पर उनकी पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के योग्य उम्मीदवार माना है। कोलकाता में आयोजित पार्टी की बैठक के दौरान उन्होंने जिन दलों के नाम लिए उनमें कांग्रेस का नाम गायब था। यह भी साफ है कि बीजेपी को हराने के लिए लेफ्ट के साथ भी उनका गठबंधन नहीं होने वाला है।

भारत जोड़ो यात्रा

राहुल गांधी की यात्रा का उद्देश्य क्या है? कन्याकुमारी से यात्रा शुरू करते हुए राहुल गांधी ने दो तरह की बातें कहीं, यह मार्च राष्ट्रीय ध्वज के मूल्यों के तले सभी भारतीयों को एकजुट करने की कोशिश है, जिसका मूल सिद्धांत विविधता है। साथ ही यह भी कहा कि हिंदुत्व की विचारधारा के साए में ये मूल्य अब खतरे में हैं। ज़ाहिर है कि यह कांग्रेस को बचाने की कोशिश है और 2024 के चुनाव के पहले की राजनीतिक गतिविधि। यह यात्रा पार्टी के झंडे के पीछे नहीं चल रही है, बल्कि तिरंगे के पीछे है, पर संदेश राजनीतिक है और कांग्रेस के नेतृत्व में बनी योजना भी राजनीतिक है। अब इसे विरोधी एकता के लिए किए जा रहे प्रयासों के साथ जोड़कर देखें।

धुरी या परिधि?

विरोधी दलों की एकता में कांग्रेस कहाँ है? धुरी में या परिधि में? कांग्रेस साबित करना चाहती है कि यह एकता उसके नेतृत्व में ही संभव है, जबकि क्षेत्रीय स्तर पर दूसरे नेताओं को लगता है कि कांग्रेस अब नेतृत्व के लायक नहीं रही। डीएमके, राकांपा और शिवसेना जैसे दल कहते रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विरोधी एकता संभव नहीं है, पर जल्द ही होने वाले बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में राकांपा और शिवसेना मिलकर लड़ेंगे। कांग्रेस उसमें शामिल नहीं होगी। महाराष्ट्र में सरकार गिरने के बाद महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की पहली बैठक में तीनों सहयोगी पार्टियों ने फैसला किया कि शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव एक साथ लड़ेंगी, जबकि स्थानीय निकाय चुनावों को साथ लड़ने पर कोई सहमति नहीं बनी।

यात्रा की राजनीति

राहुल गांधी खुद को हिंदुत्व का सबसे मुखर आलोचक, संघवाद और उदारवाद का प्रवर्तक मानते हैं। पर चुनाव परिणामों को देखें, तो लगता है कि वे पर्याप्त जन समर्थन जुटाने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस ने हिंदू-जनाधार को खो दिया है, जबकि बीजेपी ने गहरी जड़ें जमा ली हैं। राहुल गांधी अब यात्रा के फॉर्मूले का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अतीत में महात्मा गांधी, चंद्रशेखर, मुरली मनोहर जोशी से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक ने इसका लाभ लिया है। क्या राहुल गांधी को इसका लाभ मिलेगा? आंशिक-परिणाम सामने आने में कुछ महीने लगेंगे और अंतिम-परिणाम 2024 के चुनाव के बाद आएंगे।  

Thursday, June 30, 2022

लम्बी योजना का हिस्सा है शिंदे का राजतिलक


महाराष्ट्र में सत्ता-परिवर्तन में विस्मय नहीं हुआ, पर मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे की नियुक्ति महत्वपूर्ण है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बात की घोषणा की कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री होंगे। फडणवीस इस सरकार से बाहर रहेंगे। फडणवीस ने कहा, उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी की बात को तवज्जोह दी इसलिए इन विधायकों ने आवाज़ बुलंद की। यह बग़ावत नहीं है।

पहले संभावना जताई जा रही थी कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री होंगे और शिंदे को उप मुख्यमंत्री का पद मिल सकता है। लेकिन फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबको चौंकाते हुए घोषणा की कि एकनाथ शिंदे बनेंगे महाराष्ट्र के सीएम। इस घोषणा के बाद पर्यवेक्षक अपने-अपने अनुमान लगा रहे हैं कि शिंदे को मुख्यमंत्री पद देने का अर्थ क्या है।

फौरी तौर पर माना जा रहा है कि इस फैसले से शिवसेना की बची-खुची ताकत को धक्का लगेगा और शायद कुछ लोग और उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर इधर आएं। उद्धव ठाकरे के अलावा निशाना शरद पवार भी हैं। ठाकरे के पास अब शरद पवार से जुड़े रहने का ही विकल्प है। अक्तूबर में होने वाले बृहन्मुम्बई महानगरपालिका चुनाव में बीजेपी ठाकरे की शिवसेना को हराना चाहती है। ऐसा हुआ, तो ठाकरे परिवार का वर्चस्व काफी कम हो जाएगा। अब अगली कोशिश होगी, चुनाव आयोग से असली शिवसेना का प्रमाणपत्र पाना।   

एकनाथ शिंदे ने आज उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि पचास विधायक एक अलग भूमिका निभाते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। शिंदे और उनके साथी लगातार कह रहे हैं कि हम शिवसेना से बाहर नहीं गए हैं, बल्कि वास्तविक शिवसेना हम ही हैं।

Friday, March 11, 2022

राजनीतिक-व्यवहार के सामाजिक-संदेशों को पढ़िए


चुनाव परिणामों से दो निष्कर्ष आसानी से निकाले जा सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह असाधारण विजय है, जिसकी उम्मीद उसके बहुत से समर्थकों को नहीं रही होगी। साथ ही कांग्रेस की यह असाधारण पराजय है, जिसकी उम्मीद उसके नेतृत्व ने नहीं की होगी। भारतीय जनता पार्टी को चार राज्यों में मिली असाधारण सफलता इस साल होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों को भी प्रभावित करेगी। उत्तर प्रदेश के परिणाम को मध्यावधि राष्ट्रीय जनादेश माना जा सकता है। पंजाब में भारतीय जनता पार्टी का न तो कोई बड़ा दावा था और किसी ने उससे बड़े प्रदर्शन की अपेक्षा भी नहीं की थी। अब सवाल कांग्रेस के भविष्य का है। उसके शासित राज्यों की सूची में एक राज्य और कम हुआ। इन परिणामों में भाजपा-विरोधी राजनीति या महागठबंधन के सूत्रधारों के विचार के लिए कुछ सूत्र भी हैं। 

उत्तर प्रदेश का ध्रुवीकरण

हालांकि पार्टी को चार राज्यों में सफलता मिली है, पर उत्तर प्रदेश की अकेली सफलता इन सब पर भारी है। देश का सबसे बड़ा राज्य होने के कारण इस राज्य का महत्व है। माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश से लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जो कई राज्यों की कुल सीटों से भी ज्यादा बैठती हैं। इसी वजह से भाजपा-विरोधी राजनीति ने इसबार पूरी तरह कमर कस रखी थी। उसकी विफलता, बीजेपी की सफलता है।

भारतीय और विदेशी-मीडिया और विदेशी-विश्वविद्यालयों से जुड़े अध्येताओं का एक बड़ा तबका महीनों पहले से घोषणा कर रहा था, अबकी बार अखिलेश सरकार। अब लगता है कि यह विश्लेषण नहीं, मनोकामना थी। बेशक जमीन पर तमाम परिस्थितियाँ ऐसी थीं, जिनसे एंटी-इनकम्बैंसी सिद्ध हो सकती है, पर भारतीय राजनीति का यह दौर कुछ और भी बता रहा है। आप इसे साम्प्रदायिकता कहें, फासिज्म, हिन्दू-राष्ट्रवाद या सांस्कृतिक-भावनाएं, पिछले 75 वर्ष की राजनीतिक-दिशा पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। केवल हिन्दू-राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को ही नहीं मुस्लिम-दृष्टिकोण और कथित प्रगतिशील-वामपंथी दृष्टिकोण पर नजर डालने की जरूरत है।

इस चुनाव के ठीक पहले कर्नाटक के हिजाब-विवाद के पीछे भारतीय जनता पार्टी की रणनीति सम्भव है, पर जिस तरह से देश के प्रगतिशील-वर्ग ने हिजाब का समर्थन किया, उससे उसके अंतर्विरोध सामने आए। प्रगतिशीलता यदि हिन्दू और मुस्लिम समाज के कोर में नहीं होगी, तब उसका कोई मतलब नहीं है।

इन परिणामों के राजनीतिक संदेशों क पढ़ने के लिए मतदान के रुझान, वोट प्रतिशत और अलग-अलग चुनाव-क्षेत्रों की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना होगा। खासतौर से उत्तर प्रदेश में, जहाँ जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से जुड़े कुछ जटिल सवालों का जवाब इस चुनाव में मिला है। इसके लिए हमें चुनाव के बाद विश्लेषणों के लिए समय देना होगा।

Saturday, November 27, 2021

ममता अब राष्ट्रीय-राजनीति में उतरेंगी, कांग्रेस और बीजेपी दोनों का विकल्प बनेंगी?


ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में जो गतिविधियाँ की उन्हें देखते हुए उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की भनक लगती थी, पर पिछले एक हफ्ते की गतिविधियों से लगता है कि वे अब खुलकर इस मैदान में हैं और भारतीय जनता पार्टी के विकल्प के रूप में कांग्रेस के बजाय खुद को पेश करने जा रही हैं। यह बात उनकी पार्टी के हित में जरूर है, पर कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है।

जानकारों का यह भी कहना है कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस के नेताओं को तोड़ा है, कुछ समय बाद बीजेपी के भी कई क्षुब्ध नेताओं को भी तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का रास्ता नजर आ सकता है। यशवंत सिन्हा पहले ही शामिल हो चुके हैं, जबकि तृणमूल कांग्रेस कई अन्य 'क्षुब्ध' बीजेपी नेताओं से संपर्क बना रही है. हाल में ममता बनर्जी ने अपने दिल्ली दौरे के दौरान भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी से मुलाकात की। टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के दिल्ली आवास पर हुई बैठक के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जाने लगी कि भाजपा नेता स्वामी टीएमसी में शामिल होने वाले हैं। अलबत्ता स्वामी ने इन आरोपों को नकार दिया।

ममता बनर्जी ने भविष्य में मुम्बई यात्रा का कार्यक्रम भी बनाया है। वहाँ शरद पवार और शिवसेना के उद्धव ठाकरे के साथ वे एक लंबे अर्से से संपर्क में हैं। शरद पवार वर्षों से यह बात कह रहे हैं कि कांग्रेस से टूटी पार्टियों को एकसाथ आना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस भी ऐसी ही एक पार्टी है।

मेघालय में बगावत

हाल में अपने दो दिन के दौरे पर आई ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं की, तो पत्रकारों ने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने जो जवाब दिया, उससे लगता है कि वे कांग्रेस से टकराव मोल लेने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी से मुलाकात करने की कोई सांविधानिक जिम्मेदारी नहीं है। मुलाकात न होने की तुलना में दोनों के रिश्तों में कड़वाहट के ज्यादा बड़े कारण मेघालय में पैदा हुए हैं, जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत कांग्रेस पार्टी के 17 में 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।

Monday, October 11, 2021

बिजली-संकट पर क्या राजनीतिक रंग चढ़ेगा?

 


इसमें दो राय नहीं कि देश में कोयले का संकट है, जिसके कारण बिजली संकट पैदा होने का खतरा है, पर क्या यह बात वैसे ही राजनीतिक-विवाद का विषय बनेगी, जैसा इस साल अप्रेल-मई में मेडिकल-ऑक्सीजन की किल्लत के कारण पैदा हुआ था?  शायद उसकी खुशबू आते ही दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी शुरू कर दी है।

ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार दोनों ने सम्भावित संकट को देखते हुए अभी से पेशबन्दी शुरू कर दी है। दिल्ली के उप-मुख्यमन्त्री मनीष सिसौदिया ने ऑक्सीजन का ही हवाला दिया। उसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने फौरन जवाब दिया। सवाल है कि क्या बिजली-संकट पैदा होगा? या केन्द्र सरकार हालात पर काबू पा लेगी?

सारी आशंकाओं को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने 'निराधार' करार दिया है। उन्होंने रविवार को कहा कि संकट न तो कभी था, न आगे होगा। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि 'हमारे पास आज के दिन में कोयले का चार दिन से ज़्यादा का औसतन स्टॉक है, हमारे पास प्रतिदिन स्टॉक आता है। कल जितनी खपत हुई, उतना कोयले का स्टॉक आया।…'हमें कोयले की अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ानी है हम इसके लिए कार्रवाई कर रहे हैं।'

कोयला मंत्रालय ने कहा कि गत 9 अक्तूबर को ताप बिजलीघरों के लिए 19 लाख 20 हजार टन कोयला भेजा गया है, जबकि कुल माँग 18 लाख 70 हजार टन की है। स्थिति बदल रही है और हम अपने भंडारों को फिर से बेहतर बना रहे हैं।

Sunday, August 29, 2021

मुद्रीकरण का राजनीतिकरण!


पिछले सोमवार को केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अस्ति मुद्रीकरण (असेट मॉनिटाइजेशन) के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के तहत केंद्र सरकार की करीब छह लाख करोड़ रुपये की परिसम्‍पत्तियों का अगले चार साल यानी 2024-25 तक मुद्रीकरण किया जाएगा। चालू वित्तवर्ष में इससे करीब 88,000 करोड़ रुपये की आय होगी। कार्यक्रम का मूल-विचार है कि पुरानी चल रही या बंद पड़ी परियोजनाओं (ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट्स) को पट्टे पर देकर पूँजी का सृजन किया जाए और उस पूँजी से नई परियोजनाएं (ग्रीनफील्‍ड प्रोजेक्ट्स) शुरू की जाएं। परियोजनाओं का स्वामित्व केंद्र सरकार के पास ही रहेगा, जबकि उनको चलाने के जोखिम निजी क्षेत्र को उठाने होंगे।

तेज इंफ्रास्ट्रक्चर विकास

इस कार्यक्रम में कुल पूँजी का करीब 65 फीसदी हिस्सा सड़कों, रेलवे और बिजली की परियोजनाओं से प्राप्त होगा। इस योजना के दायरे में 12 मंत्रालयों और विभागों की 20 तरह की संपत्तियां आएंगी, जिनमें मूल्य के हिसाब से सड़क, रेलवे और बिजली क्षेत्र की परियोजनाएं प्रमुख हैं। सूची बहुल बड़ी है, जिसमें टेलीकॉम, उड्डयन, खनन तथा भंडारण जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं। इस कार्यक्रम की जरूरत चार कारणों से है। पहली जरूरत तेज आर्थिक विकास के लिए नई परियोजनाओं को, खासतौर से इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में, शुरू करने की है। तेज गति से आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त पूँजी नहीं है और तीसरे, संसाधन एकत्र करने के लिए सरकार के राजस्व संग्रह में सुस्ती आई है और विनिवेश में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। चौथे, यह विकल्प उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल हुआ नहीं था। 

गति-शक्ति

यह कार्यक्रम अचानक पेश नहीं हुआ है। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने 100 लाख करोड़ के गति-शक्तिकार्यक्रम की घोषणा की। वे 2019 से यह बात कह रहे हैं। वित्तमंत्री ने इस साल के बजट भाषण में इस तरफ इशारा किया था। वित्तमंत्री ने बजट भाषण में कहा था कि राष्‍ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) के लक्ष्य को हासिल करने के लिए तीन कदम प्रस्तावित हैं: 1.संस्‍थागत संरचनाएं बनें, 2.परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण हो और 3. केंद्र तथा राज्यों के बजट में पूंजीगत व्यय बढ़े। इसके पहले दिसंबर 2019 में वित्तमंत्री ने 6,835 परियोजनाओं के साथ एनआईपी को लॉन्च किया था। अब एनआईपी का विस्‍तार कर दिया गया है और इसमें 7,400 परियोजनाएं हो गई हैं। कुछ महत्‍वपूर्ण अवसंरचना मंत्रालयों के अधीन 1.10 लाख करोड़ रुपये की लागत की 217 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं।

Sunday, August 1, 2021

विरोधी-एकता का गुब्बारा


विरोधी-एकता का गुब्बारा फिर से फूल रहा है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सफलता इसका प्रस्थान बिंदु है और ममता बनर्जी, शरद पवार और राहुल गांधी की महत्वाकांक्षाएं बुनियाद में। तीनों को जोड़ रहे हैं प्रशांत किशोर। कांग्रेस पार्टी भी प्रशांत किशोर की सलाह पर नई रणनीति बना रही है। ममता बनर्जी एक्शन पर जोर देती हैं। उनके पास बंगाल में वाममोर्चे को उखाड़ फेंकने का अनुभव है। क्या वह रणनीति पूरे देश में सफल होगी? सवाल है कि रणनीति के केंद्र में कौन है और परिधि में कौन? कौन है इसका सूत्रधार?

मोदी को हटाना है?

विरोधी-एकता का राजनीतिक एजेंडा क्या है? मोदी को हटाना? कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने कहा है कि केवल मोदी-विरोधी एजेंडा कारगर नहीं होगा। व्यक्ति विशेष का विरोध किसी भी राजनीतिक मोर्चे को आगे लेकर नहीं जाएगा। एक जमाने में विरोधी-दलों ने इंदिरा गांधी के खिलाफ यही किया था। वे कामयाब नहीं हुए। मोइली का कहना है कि हमें साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाना होगा। हम चर्चा यह कर रहे हैं कि कौन इसका नेता बनेगा, किस राजनीतिक पार्टी को इसकी अगुवाई करनी चाहिए तो, यह कामयाब नहीं होगा।

मोदी की सफलता व्यक्ति-केंद्रित है या विचार-केंद्रित? कांग्रेस, ममता और शरद पवार का राजनीतिक-नैरेटिव क्या है? व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं या सामूहिक चेतना? बात केवल विरोधी-एकता की नहीं है। यह कितने बड़े आधार वाली एकता होगी? इसमें बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, जेडीएस, बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी, अकाली दल और इनके अलावा तमाम छोटे-बड़े दल दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। क्या वे इसमें शामिल होंगे? जैसे ही आधार व्यापक होगा, क्या आपसी मसले खड़े नहीं होंगे?

अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके बाद गुजरात के चुनाव होंगे। क्या यह विरोधी-एकता इन चुनावों में दिखाई पड़ेगी? यह बहुत मुश्किल सवाल है। केवल मुखिया के नाम का झगड़ा नहीं है। सत्ता-प्राप्ति की मनोकामना केवल राजनीतिक-आदर्श नहीं है, बल्कि आर्थिक-आधार बनाने की कामना है।

नेता ममता बनर्जी?

दिल्ली आकर ममता बनर्जी ने घोषणा की कि अब कोई इस राजनीतिक तूफान को रोक नहीं पाएगा। जब उनसे पूछा गया कि इस तूफान का नेतृत्व कौन करेगा, तो उनका जवाब था, मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ। कांग्रेस और तृणमूल दोनों की तरफ से कहा जा रहा है कि नेतृत्व का मसला महत्वपूर्ण नहीं है, पर यह समझ में आने वाली बात नहीं है। ममता बनर्जी और शरद पवार कांग्रेस से ही टूटकर बाहर गए थे। क्यों गए?

पिछले बुधवार को राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर पहल की। बैठक में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाग लिया, पर तृणमूल के नेता नहीं थे। जब राहुल पैदल मार्च कर रहे थे, लगभग उसी समय, ममता बनर्जी ने अपने सांसदों की बैठक बुलाई थी।

तृणमूल-सांसद कल्याण बनर्जी ने बाद में कहा कि मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व सिर्फ ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। उन्होंने कहा, मोदी का कोई विकल्प है तो वह ममता बनर्जी हैं, क्योंकि ‘वह लीडर नंबर वन’ हैं। ममता बनर्जी की रणनीति में विसंगतियाँ हैं। नरेंद्र मोदी की तरह उन्होंने खुद को राष्ट्रीय नेता बनाने का प्रयास नहीं किया। उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव के दौरान बांग्ला उप-राष्ट्रवाद का जमकर इस्तेमाल किया। उनके कार्यकर्ताओं ने हिंदी और हिंदी-क्षेत्र को लेकर जो बातें कही थीं, वे बाधा बनेंगी।

Friday, June 11, 2021

चुनावी पृष्ठभूमि में पंजाब और उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हुईं


अगले साल के फरवरी-मार्च महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनाव होंगे। उसके पहले इन सभी राज्यों में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली में हैं। गुरुवार को उनकी मुलाकात गृहमंत्री अमित शाह से हुई है और आज वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी उनकी मुलाकात होगी। कयास हैं कि केंद्रीय नेतृत्व के साथ उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार, पंचायत चुनाव समेत कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद से भी उनकी मुलाकात हुई है।

उधर पंजाब में तेज गतिविधियाँ चल रही हैं। कांग्रेस पार्टी घोषणा कर चुकी है कि हम मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे, पर प्रदेश के नेतृत्व में विकल्प की भी तलाश हो रही है। इस तलाश के पीछे कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे टकराव की भूमिका भी है। दोनों नेताओं के बीच राज्य में पोस्टर युद्ध चल रहा है। लगता यह भी है कि सिद्धू को बढ़ावा देने में हाईकमान की भूमिका भी है।

Tuesday, February 23, 2021

किसानों की आड़ में अपने-अपने खेल


देखते ही देखते किसान आंदोलन खेती से जुड़ी माँगों को छोड़कर तीन अलग-अलग रास्तों पर चला गया है। जिस आंदोलन के नेताओं ने शुरू में खुद को गैर-राजनीतिक बताया था और जिसके शुरुआती दिनों में राजनीतिक दलों के नेता उसके पास फटक नहीं रहे थे, वह राजनीतिक शक्ल ले रहा है। दूसरा रास्ता भारतीय किसान यूनियन के टिकैत ग्रुप ने पकड़ा है, जिसने इसे जाट-अस्मिता का रंग देकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में खाप-महापंचायतों और रैलियों की धूम मचा दी है। तीसरे जिस खालिस्तानी साजिश का संदेह शुरू में था, उसकी भी परतें खुल रही हैं।

आंदोलनों की वैश्विक मशीनरी भी इसमें शामिल हो गई है। आमतौर पर यह मशीनरी पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और संधारणीय विकास के सवालों को लेकर चलती है। संयोग से इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में पराली जलाने और उत्तर भारत के पर्यावरण प्रदूषण में खेती की भूमिका से जुड़े सवाल भी थे। वे इस आंदोलन के साथ गड्ड-मड्ड हो गए हैं।

पीछे रह गए खेती के सवाल

इस पूरी बहस में भारतीय कृषि की बदहाली और आर्थिक सुधारों की बात लगभग शून्य है। कोई यह समझने का प्रयास नहीं कर रहा कि भविष्य की अर्थव्यवस्था और खासतौर से रोजगार सृजन में किस किस्म की कृषि-व्यवस्था की हमें जरूरत है। खेती से जुड़े नए कानून कृषि-कारोबार और उसकी बाजार-व्यवस्था के उदारीकरण की दीर्घकालीन प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं और उन आर्थिक सुधारों का हिस्सा हैं, जो पूरे नहीं हो पाए। सन 1950 में हमारी अर्थव्यवस्था में खेती की हिस्सेदारी 55 फीसदी से ज्यादा थी। आज 16 फीसदी से कुछ कम है। खाद्य सुरक्षा के लिए खेती की भूमिका है और हमेशा रहेगी। खासतौर से भारत जैसे देश में जहाँ गरीबी बेइंतहा है।

हमारी खेती की उत्पादकता कम है। कम से कम चीन या दूसरे ऐसे देशों के मुकाबले कम है, जिनकी तुलना हम खुद से करते हैं। खेती में पूँजी निवेश और दलहन, तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है, जिसका हमें आयात करना पड़ता है। यह काम कैसे होगा और उसके लिए किस प्रकार की नीतियाँ अपनानी होंगी, यह समझने के लिए हमें विशेषज्ञों की शरण में जाना होगा।

Wednesday, February 17, 2021

जाट-बेल्ट की 40 लोकसभा सीटों को लेकर बीजेपी की चिंताएं


मंगलवार 16 फरवरी को दो खबरें एक साथ मिलीं। एक थी पुदुच्चेरी की उप-राज्यपाल किरण बेदी का हटाया जाना और दूसरी थी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह की राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट-बेल्ट के सांसदों, विधायकों और स्थानीय नेताओं से मुलाकात। पुदुच्चेरी में स्थानीय स्तर पर किरण बेदी का काफी विरोध हो रहा था, पर वहाँ राजनीतिक तोड़-फोड़ भी चल रही है। वहाँ कांग्रेस के चार विधायक अबतक पार्टी छोड़ चुके हैं और अब जल्द ही कांग्रेस सरकार के अल्पमत में हो जाने का अंदेशा है। यानी वहाँ किसी भी समय राजनीतिक गतिविधियाँ तेज होने वाली हैं। शायद उसी की पेशबंदी में किरण बेदी को हटाकर उनकी जिम्मेदारियाँ फिलहाल तेलंगाना के राज्यपाल के सिपुर्द कर दी गई हैं।

राजनीतिक रूप से बीजेपी की चिंता जाट-बेल्ट को लेकर हैं, जहाँ तीनों राज्यों की 40 लोकसभा सीटें किसान-आंदोलन से प्रभावित हो रही हैं। इस इलाके में इन दिनों महापंचायतें और खाप पंचायतें चल रही हैं, जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार की किसान-आंदोलन को लेकर नीतियों को चुनौती दे रही हैं। जेपी नड्डा और अमित शाह ने यह बैठक एक तो जमीनी हालात की टोह लेने के लिए और अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश देने के लिए बुलाई थी। इस बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और कृषि राज्यमंत्री संजीव बालियान भी उपस्थित थे।

बताया जाता है कि बैठक में अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे किसानों को तीनों कानूनों के लाभ समझाएं और इस बात को सुनिश्चित करें कि जो लोग किसानों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें उचित उत्तर मिले। दूसरी तरफ स्थानीय नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को जानकारी दी कि यदि आंदोलन जारी रहा और सरकार की ओर से उसे खत्म करने के प्रयास नजर नहीं आए, तो चिंता की बात होगी। इस इलाके की 40 लोकसभा सीटें इस आंदोलन से प्रभावित होंगी, इसलिए कोशिश होनी चाहिए कि आंदोलन का विस्तार नहीं होने पाए। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि वामपंथी प्रोफेशनल आंदोलनकारी इस इलाके में आंदोलन को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। उनका शिद्दत से जवाब दिया जाना चाहिए।

Sunday, February 14, 2021

अमर्यादित राजनीतिक कबड्डी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में राज्यसभा में एक नए शब्द का ज़िक्र करते हुए कहा, पिछले कुछ समय से देश में एक नई ‘आंदोलनजीवी’ बिरादरी सामने आई है। यह पूरी टोली आंदोलन के बिना जी नहीं सकती और ये लोग आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं। प्रतिक्रिया में मोदी-विरोधियों ने भी कुछ नए शब्द गढ़े हैं। यह प्रक्रिया अभी चल ही रही है। किसान आंदोलन और दूसरी तरफ पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की उपस्थिति के कारण पिछले कुछ महीनों से देश की राजनीति में तल्खी कुछ ज्यादा ही है।

बजट सत्र का महत्त्व

राजनीतिक कबड्डी इतनी तेज है कि संसद के बजट सत्र पर हमारा ध्यान ही नहीं है। सत्र का पहला चरण कल 15 फरवरी को पूरा होगा। फिर 8 मार्च तक 20 दिन का ब्रेक रहेगा और फिर 8 अप्रैल तक सत्र का महत्वपूर्ण दौर चलेगा, जिसमें गंभीर चर्चा की जरूरत होगी। दोनों चरणों के अंतराल में संसद की स्थायी समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर विचार करेंगी। क्या आपको यकीन है कि इस चर्चा के लिए राजनीतिक दल होमवर्क कर रहे होंगे?

बजट सत्र हमारी संसद का सबसे महत्त्वपूर्ण सत्र होता है और इसीलिए यह सबसे लंबा चलता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और बजट प्रस्तावों के बहाने महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर जन-प्रतिनिधियों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका मिलता है। ऐसे मौके पर जब देश पर महामारी का साया है और अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने की चुनौती है, राजनीति से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह मर्यादा रेखाओं का ध्यान रखे। दुर्भाग्य से मर्यादा-रेखाएं धुँधला रही हैं और संसदीय विमर्श पर शोर हावी हो रहा है।

Sunday, February 7, 2021

ग्रेटा थनबर्ग की ‘टूलकिट’ के निहितार्थ

किसान-आंदोलन को लेकर बातें देश की सीमा से बाहर जा रही हैं। इसके अंतरराष्ट्रीय आयाम को लेकर सचिन, तेन्दुलकर और लता मंगेशकर से लेकर बॉलीवुड के कलाकारों ने आवाज उठाई है। उधर दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को एक एफआईआर दर्ज की है, जिसका दायरा सोशल मीडिया से जुड़ा होने के कारण देश के बाहर तक जाता है। केंद्र में है किसान आंदोलन से जुड़ी एक टूलकिट जिसे ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट में शेयर किया था। बाद में उन्होंने इसे डिलीट करके संशोधित ट्वीट जारी किया, पर उनके पिछले ट्वीट का विवरण छिप नहीं पाया।

बेशक एक ट्वीट से भारतीय राष्ट्र-राज्य टूट नहीं जाएगा, पर उसकी पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश भी की जानी चाहिए। ‘टूलकिट प्रकरण को किसान-आंदोलन से अलग करके देखना चाहिए। किसानों का आंदोलन अपनी कुछ माँगों को लेकर है। टूलकिट के विवरणों को ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि उनमें आंदोलन की माँग का केवल एक जगह जिक्र भर है। दूसरी तरफ इसमें भारत की छवि पर वैश्विक-प्रहार करने की कामना ज्यादा है। देश के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उसपर भी ध्यान देना चाहिए।

विदेशी हस्तियों का प्रवेश

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, मेरा मानना है कि इसने बहुत कुछ सामने ला दिया है। हमें देखना है कि और क्या चीजें बाहर आती हैं। उन्होंने कहा, किसानों के प्रदर्शन पर विदेशी हस्तियों के हस्तक्षेप पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया के पीछे वजह थी। विदेश मंत्रालय ने इन हस्तियों की टिप्पणी को गैर जिम्मेदार और गलत बताया था। जयशंकर ने कहा, ''आप देखिए कि विदेश मंत्रालय ने कुछ हस्तियों की ओर से ऐसे मुद्दे पर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया दी जिसके बारे में वह अधिक नहीं जानते हैं, इसके पीछे कोई वजह है।''

ज्यादातर लोग इस मामले को राजनीतिक नजरिए से ही देख रहे हैं या देखना चाहते हैं। मुझे लगता है कि इन विदेशी सेलिब्रिटियों को यह समझाया गया है कि यह व्यापक सामाजिक आंदोलन है। भारत की सामाजिक समझ बाहरी लोगों को देश के अंग्रेजी मीडिया, अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों और भारतीय सेलेब्रिटियों से बनती है। इस सिलसिले में मेरा ध्यान चेन्नई के मीडिया हाउस द हिंदू की अध्यक्ष मालिनी पार्थसारथी के एक ट्वीट पर गया। उन्होंने अमेरिकी गायिका रिहाना के एक ट्वीट के संदर्भ में लिखा, सेलिब्रिटियों का यह आक्रोश गलत जगह पर है, जिन्हें किसान-आंदोलन और सरकारी जवाब से जुड़े तथ्यों की जानकारी नहीं है। यह अमीर किसानों के नेतृत्व में बगावत है, जो खेती को बाजार की अर्थव्यवस्था से जोड़े जाने के विरुद्ध है। भारतीय लोकतंत्र को झटका नहीं।

मालिनी पार्थसारथी के इस ट्वीट पर काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। कुछ लोगों को लगा कि वे मोदी सरकार का बचाव कर रही हैं। ऐसी बात नहीं थी। 3 फरवरी के उपरोक्त ट्वीट के बाद 4 फरवरी को उन्होंने एक और ट्वीट किया, बेशक पॉप सितारा रिहाना भारत को बदनाम करने की किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा नहीं हैं। समस्या है किसान-आंदोलन का मानवाधिकार-संघर्ष के रूप में अंध-चित्रण. जबकि ऐसा है नहीं।इसके बाद 5 फरवरी के एक तीसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा, सेलिब्रिटी ट्विटर-एक्टिविज्म एक जटिल मसले का सरलीकरण है।

Saturday, January 30, 2021

आम आदमी पार्टी का फिर से विस्तार का इरादा

 


आम आदमी पार्टी ने घोषणा की है कि वह आने वाले समय में छह राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाग लेगी। ये राज्य हैं यूपी, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात। यह घोषणा दिल्‍ली के आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार 28 जनवरी को दिल्‍ली में की। दूसरी तरफ पार्टी ने किसान आंदोलन के दौरान अपनी गतिविधियाँ बढ़ाईं और 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत में रालोद के जयंत चौधरी के अलावा आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी मौजूद थे और दोनों ने सभा को संबोधित किया। इसके पहले हाथरस में एक दलित बालिका से हुए बलात्कार और हत्या के बाद भी संजय सिंह उस इलाके में गए थे।

पार्टी को किसान आंदोलन भी अपने आप को लांच करने का उपयुक्त प्लेटफॉर्म लगता है। उसने किसानों का सड़क से संसद तक समर्थन करने का ऐलान किया है। साथ ही कहा है कि आप कार्यकर्ता बिना पार्टी के झंडे और टोपी के किसानों के साथ खड़े होंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरने में किसानों के लिए दिल्ली से पानी और शौचालय की व्यवस्था कराकर हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया गाजीपुर बार्डर पहुंचकर हालात का जायजा ले चुके हैं।

Tuesday, November 24, 2020

कांग्रेस फिर से सवालों के घेरे में

 कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को लेकर फिर से सवाल उठे हैं। इनके पीछे फौरी कारण है बिहार में पार्टी को मिली विफलता, पर स्थायी कारण है नेतृत्व से जुड़ा सवाल। केवल बिहार की बात ही नहीं है, बल्कि 11 राज्यों में हुए उपचुनाव भी हैं, जहाँ 59 सीटों पर मुकाबला था। बिहार में एक नई बात यह हुई कि उसका मुस्लिम आधार भी आंशिक रूप से खिसक कर असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी मजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लिमीन की तरफ चला गया। इस बीच कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने अपने सवाल फिर से उठाए हैं। वहीं पी चिदंबरम और तारिक अनवर जैसे वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि हमें अंतर्मंथन करना चाहिए। और जैसाकि हमेशा से होता रहा है, कांग्रेस के भीतर से जैसे ही अंतर्मंथन की आवाजें सुनाई पड़ती हैं, तब उन्हें गांधी-नेहरू परिवार के खिलाफ विद्रोह की संज्ञा दे देती जाती है। पार्टी के भीतर से कोई नेता खड़ा होकर ये बातें करता है। इस बार अशोक गहलोत और सलमान खुर्शीद ने कहा है कि इन बातों को पार्टी फोरमों के भीतर उठाना चाहिए। जब यह सवाल राजदीप सरदेसाई ने कपिल सिब्बल से किया, तो उन्होंने कहा किस फोरम में उठाएं? 

Sunday, November 1, 2020

केरल को छोड़ सीपीएम बाकी जगह कांग्रेस के साथ


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने शनिवार 31 अक्तूबर को तय किया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा के आगामी चुनाव में पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होगी। बंगाल में दोनों पार्टियाँ अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं।

इस प्रकार फिलहाल सीपीएम बंगाल में कांग्रेस के साथ दोस्ती और केरल में टकराव की अपनी नीति पर चलेगी। केरल में भी बंगाल के साथ-साथ आगामी मई में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि केरल की जनता इतनी समझदार और प्रौढ़ है कि दोनों पार्टियों की इस जरूरत को अच्छी तरह से महसूस कर सके।

असम में भी, जहाँ विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, सीपीएम सेक्युलर पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव में हिस्सा लेगी। इन पार्टियों कांग्रेस भी शामिल है। तमिलनाडु में पार्टी द्रमुक के साथ उस गठबंधन में शामिल होगी, जिसका एक घटक कांग्रेस भी है।

सीपीएम पोलित ब्यूरो ने पिछले रविवार यानी 25 अक्तूबर को बंगाल में कांग्रेस के साथ सहयोग करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी। पार्टी की केरल शाखा अपने राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होना नहीं चाहती, पर उसने बंगाल में गठबंधन का विरोध नहीं किया।

केरल की राजनीति में दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे की कट्टर दुश्मन हैं। इन दिनों भी वहाँ कई मुद्दों को लेकर टकराव चल रहा है। इनमें एक मुद्दा सीपीएम के राज्य महासचिव कोडियेरी बालकृष्णन के पुत्र बिनीश की ड्रग से जुड़े एक मनी लाउंडरिंग मामले में गिरफ्तारी का है। दूसरा मुद्दा सोने की तस्करी को लेकर है, जिसमें मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के पूर्व प्रमुख सचिव एम शिवशंकर को गिरफ्तार किया गया है।

 

 

 

Thursday, September 24, 2020

पत्रकारिता और राजनीति का द्वंद्व

यह आलेख मैंने अगस्त 2018 में लिखा था, जो गंभीर समाचार के पत्रकारिता से जुड़े विशेषांक में प्रकाशित हुआ था। मैं इसे अपने ब्लॉग में लगा नहीं पाया था। इन दिनों राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के संदर्भ में कुछ बातें उठीं, तो इस आलेख का एक अंश मैंने फेसबुक में लगाया। संभव है, कोई पाठक इसे पूरा पढ़ने चाहें, तो मैं इसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ। इसके संदर्भ 2018 के ही रहेंगे। 

हाल में एबीपी न्यूज चैनल के तीन वरिष्ठ सदस्यों को इस्तीफे देने पड़े। इन तीन में से पुण्य प्रसून वाजपेयी ने बाद में एक वैबसाइट में लेख लिखा, जिसमें उस घटनाक्रम का विस्तार से विवरण दिया, जिसमें उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इस विवरण में एबीपी न्यूज़ के प्रोपराइटर के साथ, जो एडिटर-इन-चीफ भी हैं उनके एक संवाद के कुछ अंश भी थे। संवाद का निष्कर्ष था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत आलोचना से उन्हें बचना चाहिए।

इस सिलसिले में ज्यादातर बातें पुण्य प्रसून की ओर से या उनके पक्षधरों की ओर से सामने आई हैं। चैनल के मालिकों और प्रबंधकों ने कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया। एक और खबर ने हाल में ध्यान खींचा है। जेडीयू के उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह कांग्रेसी उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को हराकर राज्यसभा के उप-सभापति चुन लिए गए।

हरिवंश मूलतः पत्रकार हैं और लम्बे समय तक उन्होंने रांची के अखबार प्रभात खबर का सम्पादन किया। वे जेडीयू प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर राज्यसभा आए थे। संसद के उच्च सदन की परिकल्पना लेखकों, वैज्ञानिकों, पत्रकारों और ललित कलाओं से जुड़े व्यक्तियों को प्रतिनिधित्व देने की भी है, पर उसके लिए मनोनयन की व्यवस्था है।

Sunday, June 28, 2020

सीमा पर चीन और घर में सियासी शोर!

मंगलवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार पर निशाना साधा और सवाल पूछा कि चीन ने जिस जमीन पर कब्जा कर लिया है, उसे वापस कैसे लिया जाएगा? लगता है कि पार्टी ने चीन के साथ वर्तमान तनातनी को लेकर सरकार पर हमले करने की रणनीति तैयार की है। राहुल गांधी ने भी एक वीडियो जारी करके कहा है कि चीन ने लद्दाख के तीन इलाकों में घुसपैठ की है। चीनी घुसपैठ और 20 जवानों की शहादत को लेकर राहुल गांधी लगातार सरकार से तीखे सवाल कर रहे हैं। उन्होंने जापान टाइम्स के एक लेख को ट्वीट कर लिखा है, ‘नरेंद्र मोदी असल में सरेंडर मोदी हैं।’

पार्टी ने शुक्रवार को भारत-चीन सीमा पर शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए ‘शहीदों को सलाम दिवस’ मनाया। इस मौके पर सोनिया गांधी ने वीडियो संदेश के जरिए कहा, देश जानना चाहता है कि अगर चीन ने लद्दाख में हमारी सरजमीन पर कब्जा नहीं किया, तो फिर हमारे 20 सैनिकों की शहादत क्यों और कैसे हुई? मनमोहन सिंह की टिप्पणी भी आई। कुछ फौजी अफसरों की टिप्पणियाँ भी सोशल मीडिया पर प्रकट हुईं, जिनमें सरकार से सवाल पूछे गए हैं। क्या ये टिप्पणियाँ अनायास थीं या किसी ने इशारा करके कराई थीं?

Sunday, June 7, 2020

हथनी की मौत पर राजनीति


केरल में एक गर्भवती हथनी की दर्दनाक मौत की जहाँ देशभर ने भर्त्सना की है, वहीं इस मामले के राजनीतिकरण ने हमारा ध्यान बुनियादी सवालों से हटा दिया है। केरल पुलिस ने इस सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। तीन संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है और दो अन्य की तलाश की जा रही है। जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह शायद पटाखों की आपूर्ति करता है। दूसरे आरोपी बटाई पर केले की खेती करने वाले छोटे किसान हैं। क्या पुलिस की जाँच सही दिशा में है? केरल की राजनीति इन दिनों ध्रुवीकरण का शिकार हो रही है। राज्य विधानसभा चुनाव के लिए अब एक साल से भी कम समय बचा है, इसलिए यह परिघटना राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गई है।

राजनीति के कारण यह परिघटना विवाद का विषय बनी, पर इसके कारण हम मूल मुद्दे से भटक गए हैं। एलीफैंट टास्क फोर्स के चेयरमैन प्रोफेसर महेश रंगराजन ने हाल में एक चैनल से बातचीत में इससे जुड़े कुछ पहलुओं को उठाया है। उन्होंने कहा कि हर साल 100 हाथियों की हत्या कर दी जाती है। हाथी सबसे सीधा जानवर होता है और वह खुद भी इंसानों से दूरी रखता है। लेकिन कभी-कभी भूख प्यास के कारण ये बस्तियों में चले जाते हैं। उनपर सबसे बड़ा खतरा हाथी दांत के तस्करों का है। ये तस्कर हाथियों को मारकर उनके दांतों की तस्करी करते हैं।

Friday, May 29, 2020

उफ भारत माता!

प्रवासी मजदूरों की बदहाली से जुड़ा एक वीडियो इन दिनों वायरल हुआ है, जिसमें एक स्त्री की लाश के पास उसकी छोटी सी बच्ची चादर खींच रही है. यह हृदय विदारक वीडियो किसी के भी मन को विह्वल कर जाएगा. ट्विटर पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं.  ज्यादातर प्रतिक्रियाएं दया और करुणा से भरी हैं. पर यह मामला करुणा से ज्यादा हमारे विवेक को झकझोरने वाला होना चाहिए. ऐसा कैसे हो गया? क्या इनके आासपास लोग नहीं थे? क्या उस महिला को पीने का पानी देने वाला भी कोई नहीं था? 


दया और करुणा से भरी प्रतिक्रियाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं  राजनीतिक नेताओं की हैं. किसी ने बच्चों की मदद की पेशकश की. उन्हें पालने-पोसने की जिम्मेदारी ली. अच्छी बात है, पर सवाल अपनी जगह है. इस मदद को पाने के लिए एक माँ को बदहाली में मरना होता है. क्या आपकी राजनीति इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है? ऐसी मदद का दशमांश भी सामान्य समय में मिल गया होता, तो शायद उसकी मौत नहीं होती. ऐसी परिस्थितियाँ क्यों पैदा हुईं? परिस्थितियों का लाभ उठाने वाले तमाम हाथ हैं, पर बुनियादी सवाल का जवाब देने कोई आगे नहीं आता. क्यों? जो जवाब आएंगे भी वे ज्यादातर राजनीतिक हैं. शायद यही वजह है कि आज तमाम कहानियाँ हमारे सामने हैं, जिनमें ज्योति की कहानी भी एक है, जो पीपली लाइव की याद दिला रही है. हमारी करुणा और दया प्रचार चाहती है. हम बुनियादी सवालों पर जाना ही नहीं चाहते. 

Sunday, April 19, 2020

‘कोरोना-दौर’ की खामोश राजनीति


कोरोना संकट के कारण देश की राजनीति में अचानक ब्रेक लग गए हैं या राजनीतिक दलों को समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है, पर विरोधी दलों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। वे लॉकडाउन का समर्थन करें या विरोध? लॉकडाउन के बाद जब हालात सामान्य होंगे, तब इसका राजनीतिक लाभ किसे मिलेगा? बेशक अलग-अलग राज्य सरकारों की भूमिका इस दौरान महत्वपूर्ण हुई है। साथ ही केंद्र-राज्य समन्वय के मौके भी पैदा हुए हैं।
हाल में दिल्ली की राजनीति में भारी बदलाव आया है और वह ‘कोरोना-दौर’ में भी दिखाई पड़ रहा है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा ने अपनी कार्यकुशलता को व्यक्त करने की पूरी कोशिश की है, साथ ही केंद्र के साथ समन्वय भी किया है। पश्चिम बंगाल और एक सीमा तक महाराष्ट्र की रणनीतियों में अकड़ और ऐंठ है। पर ज्यादातर राज्यों की राजनीति क्षेत्रीय है, जिनका बीजेपी के साथ सीधी टकराव नहीं है। महत्वपूर्ण हैं कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अनुभव।