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Wednesday, May 15, 2024

चीन का चांग’ई-6 और तेजी पकड़ती स्पेस-रेस

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

चीन का नवीनतम चंद्रमा-मिशन चांग’ई-6 तीन कारणों से महत्वपूर्ण है. एक तो यह चंद्रमा की अंधेरी सतह यानी दक्षिणी ध्रुव के एटकेन बेसिन से पत्थरों और मिट्टी के दो किलो नमूने जमा करके धरती पर लाएगा. किसी भी देश ने चंद्रमा के इस सुदूर इलाके से नमूने एकत्र नहीं किए हैं. वस्तुतः चांगई मिशन चीन के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष-अभियान का एक शुरूआती कदम है.

इस अभियान में पाकिस्तान का एक नन्हा सा उपग्रह भी शामिल है, जो वैज्ञानिक-दृष्टि से भले ही मामूली हो, पर उससे पाकिस्तानी अंतरिक्ष-विज्ञान पर रोशनी पड़ती है. तीसरे यह अमेरिका और चीन के बीच एक नई अंतरिक्ष-स्पर्धा की शुरुआत है. 

चीनी अंतरिक्ष एजेंसी ने चांग’ई-6 रोबोटिक लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन को वेनचांग अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से शुक्रवार 3 मई की सुबह लॉन्च किया. यह करीब 53 दिन तक काम करेगा. चांग’ई-6 में पाकिस्तान के अलावा फ्रांस, इटली और स्वीडन के भी उपकरण शामिल हैं. पौराणिक आख्यान में चैंगई को चंद्रमा की देवी माना जाता है.

दक्षिणी ध्रुव

पृथ्वी से चंद्रमा का सुदूर भाग कभी दिखाई नहीं देता है. हम हमेशा चंद्रमा के एक ही तरफ के आधे हिस्से को देख पाते हैं. चांग'ई-6 का लक्ष्य दक्षिणी ध्रुव के एटकेन-बेसिन से नमूने एकत्र करना है. भारत का चंद्रयान-3 भी इसी क्षेत्र के पास उतरा था.

Wednesday, May 8, 2024

चीनी इशारों पर किस हद तक चलेगा मालदीव?

 


देस-परदेस

इस हफ्ते 10 मई तक मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी पूरी हो जाएगी. पिछले दो महीनों में मालदीव से भारतीय सैन्यकर्मियों के दो बैच वापस आ चुके हैं और उनकी जगह असैनिक विशेषज्ञों को तैनात कर दिया है. शेष कर्मियों की तैनाती इस हफ्ते हो जाएगी.

बावजूद इसके लगता नहीं है कि दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो जाएगा, बल्कि गिरावट ही आ रही है. इसके पीछे चीन की भूमिका है, जिसने मालदीव के कुछ प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं को लालच में फँसा लिया है और फिलहाल वहाँ की राजनीति ने उसे स्वीकार कर लिया है।

बात केवल चीन तक सीमित नहीं है. मालदीव भारत-विरोधी रास्तों को खोजता दिखाई पड़ रहा है. हाल में उसने तुर्की से कुछ ड्रोन और दूसरे शस्त्रास्त्र की खरीद की है. कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ी नीतियों के कारण तुर्की का भारत-विरोधी नज़रिया साफ है.

भारत-विरोधी प्रतीकों का मालदीव बार-बार इस्तेमाल कर रहा है. हाल में तुर्की कोस्टगार्ड के एक पोत का मालदीव में पोर्ट-विज़िट ऐसी ही एक प्रतीकात्मक-परिघटना है. 

विदेशमंत्री की यात्रा

एक खबर यह भी है कि मालदीव के विदेशमंत्री मूसा ज़मीर इस हफ्ते, 9 मई को भारत का दौरा करने वाले हैं. 9 मई को ही उनकी विदेशमंत्री एस जयशंकर से मुलाकात होगी. तारीख का महत्व केवल इतना है कि 10 मई से मालदीव में सहायता कार्य कर रहे भारतीय विमानों का संचालन सैनिकों की जगह भारत की ही एक असैनिक तकनीकी-टीम करने लगेगी.

Thursday, April 25, 2024

फलस्तीनी-एकता के प्रयास और बाधाएं

इस्माइल हानिये और एर्दोआन

 देस-परदेस

दो लेखों की श्रृंखला का दूसरा भाग। इसका पहला भाग यहाँ पढ़ें

पिछले छह महीने से गज़ा में चल रही लड़ाई में हमास के संगठन और सैनिक-तंत्र को भारी क्षति पहुँची है. वह उसकी भरपाई कर पाएगा या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, पर यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि फलस्तीनी एकता को लेकर हमास की राय क्या है. हमास और फतह गुट की प्रतिद्वंद्विता से एक मायने में इसराइल को राहत मिली है, क्योंकि अब उसपर फतह का दबाव कम है.

हमास की स्थापना हालांकि 1987 में हो गई थी, पर उसे लोकप्रियता तब मिली, जब फतह ग्रुप के अधीन फलस्तीन अथॉरिटी अलोकप्रिय होने लगी. उसकी अलोकप्रियता के तमाम कारण थे. उसे इसराइल के प्रति नरम माना गया. प्राधिकरण, भ्रष्टाचार का शिकार भी था. 2004 में यासर अरफात के निधन के बाद फतह गुट के पास करिश्माई नेतृत्व भी नहीं बचा.

एक जमाने तक अरफात का गुट ही फलस्तीनियों का सर्वमान्य समूह था. उसने ही इसराइलियों के साथ समझौता किया था. पर प्रकारांतर से आक्रामक हमास गुट बड़ी तेजी से उभर कर आया, जिसने फतह पर इसराइल से साठगाँठ का आरोप लगाया.

दोनों का फर्क

दोनों में अंतर क्या है?  यह अंतर वैचारिक है और रणनीतिक भी. फतह एक तरह से पुरानी लीक के सोवियत साम्यवादी संगठन जैसा है और हमास का जन्म मुस्लिम-ब्रदरहुड से हुआ है. फतह ने इसराइल को स्वीकार कर लिया है और इसराइल ने उसे. दूसरी तरफ हमास और इसराइल के बीच कोई रिश्ता नहीं है. दोनों एक-दूसरे को स्वीकार नहीं करते.

अभी तक हमास और इसराइल के बीच आमतौर पर मध्यस्थ की भूमिका क़तर ने निभाई है, पर अब क़तर कह रहा है कि हम अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करेंगे. लगता यह भी है कि तुर्की की इच्छा इस भूमिका को निभाने में है. पर क्या वह फलस्तीनी गुटों के बीच भी मध्यस्थ की भूमिका भी निभा पाएगा?

Wednesday, April 10, 2024

‘टारगेट किलिंग’ बनाम ‘घर में घुसकर मारा’


पिछले हफ्ते ब्रिटिश अखबार 'द गार्डियन' ने अपनी एक पड़ताल में दावा किया कि 2019 के पुलवामा प्रकरण के बाद से अब तक भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ ने पाकिस्तान में 20 व्यक्तियों की हत्या की है. इस खबर पर भारत सरकार ने दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं दी हैं. विदेश मंत्रालय ने इस खबर को गलत बताया और विदेशमंत्री एस जयशंकर के एक पुराने वक्तव्य का हवाला दिया कि 'टारगेट किलिंग भारत की पॉलिसी नहीं है.

आधिकारिक रूप से भारत सरकार ने इस तरह की बातों को सिरे से खारिज ही किया है. दूसरी तरफ चुनाव सभाओं में भारतीय जमता पार्टी कह रही है घर में घुसकर मारेंगे. इन दोनों बातों का मतलब समझने की जरूरत है.

इसके आधार पर गार्डियन ने मान लिया कि भारत सरकार ने इन हत्याओं की पुष्टि कर दी है, जबकि बीजेपी के नेता इस बात को रेखांकित कर रहे हैं कि भारत के दुश्मन अब घबरा रहे हैं. 

इससे भारत और पश्चिमी देशों के रिश्तों में खटास आएगी भी, तो इसका पता आगामी जनवरी से पहले नहीं लगेगा, जब अमेरिका के नए राष्ट्रपति पदारूढ़ होंगे. अलबत्ता रोचक बात यह है कि जब अमेरिकी सरकार के प्रवक्ता से यह सवाल पूछा गया, तब उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान का मामला मानते हुए कहा कि हम बीच में पड़ना नहीं चाहते.

Wednesday, March 20, 2024

नागरिकता कानून पर देशी-विदेशी आपत्तियों के निहितार्थ


भारत के नागरिकता कानून को लेकर देश और विदेश दोनों जगह प्रतिक्रियाएं हुई हैं. हालांकि ये प्रतिक्रियाएं उतनी तीखी नहीं हैं, जितनी 2019 में कानून के संशोधन प्रस्ताव के संसद से पास होने के समय और उसके बाद की थीं, पर उससे जुड़े सवाल तकरीबन वही हैं, जो उस समय थे.

उस समय देश में विरोध प्रदर्शनों का अंत दिल्ली दंगों की शक्ल में हुआ था, जिनमें 53  लोगों की मौत हुई थी. उसके बाद ही उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चलाए गए. तब की तुलना में आज देश के भीतर माहौल अपेक्षाकृत शांत है.

मंगलवार 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई और अदालत ने तत्काल इस कानून के कार्यान्वयन पर स्थगनादेश जारी नहीं किया. उसने सरकार को नोटिस जारी किया है और अब अगली सुनवाई 9 अप्रेल को होगी.

वस्तुतः नागरिकता कानून को लागू करने से जुड़ी व्यवस्थाएं भी अभी पूरी नहीं हुई हैं, इसलिए तत्काल इस दिशा में ज्यादा कुछ होने की संभावना नहीं है. उम्मीद है कि अदालत आम लोगों की चिंताओं का निराकरण करेगी. अलबत्ता कुछ विदेशी-प्रतिक्रियाओं पर भी ध्यान देना चाहिए.  

Wednesday, March 13, 2024

अफ़ग़ान-प्रशासन के साथ जुड़ते भारत के तार

 


देस-परदेस

अरसे से हमारा ध्यान अफ़ग़ानिस्तान की ओर से हट गया है, पर पिछले गुरुवार 7 मार्च को एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की, तो एकबारगी नज़रें उधर गई हैं. चीन, रूस, अमेरिका और पाकिस्तान समेत विश्व समुदाय के साथ तालिबान के संपर्कों को लेकर भी उत्सुकता फिर से जागी है.

तालिबानी सत्ता क़ायम होने के बाद भारत ने अफ़ग़ान नागरिकों को वीज़ा जारी करना बंद कर दिया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में उसने आश्चर्यजनक तरीके से काबुल के साथ संपर्क स्थापित किया है.

अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबानी शासन की स्थापना के बाद पिछले दो-ढाई साल में भारतीय अधिकारियों के दो शिष्टमंडल अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा कर चुके हैं. जून, 2022 में काबुल में भारत का तकनीकी मिशन खोला गया, जो मानवीय कार्यक्रमों का समन्वय करता है.

पिछले गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी जेपी सिंह ने तालिबान के विदेशी मामलों को प्रभारी (वस्तुतः विदेशमंत्री) आमिर खान मुत्तकी तथा अन्य अफ़ग़ान अधिकारियों के साथ बातचीत की. प्रत्यक्षतः यह मुलाकात मानवीय सहायता के साथ-साथ अफ़ग़ान व्यापारियों द्वारा चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल पर भी हुई.

कंधार दफ्तर खुलेगा?

तालिबान-प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि ने अफ़ग़ान व्यापारियों को वीज़ा जारी करने के लिए जरूरी व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है. इससे क़यास लगाया जा रहा है कि कंधार में भारत अपना वाणिज्य दूतावास खोल सकता है. अफ़ग़ानिस्तान ने कारोबारियों, मरीज़ों और छात्रों को भारत का वीज़ा देने का अनुरोध किया है.

Thursday, March 7, 2024

पाकिस्तान-भारत रिश्तों में सुधार की आहट और अंदेशे


पाकिस्तान में नई गठबंधन सरकार बन गई है, जिसके प्रधानमंत्री पद पर पीएमएल (नून) के शहबाज़ शरीफ चुन लिए गए हैं और पूरी संभावना है कि 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में पीपीपी के आसिफ अली ज़रदारी चुन लिए जाएंगे. क्या इस बदलाव से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी बदलाव आएगा?

बाहरी सतह पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिससे कहा जा सके कि अब भारत-पाकिस्तान रिश्ते सुधरेंगे. दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज़ शरीफ ने जो पहला बयान दिया है, उसमें भी ऐसी कोई बात नहीं कही है. अलबत्ता पाकिस्तान की ओर से चीजों को सामान्य बनाने के कुछ संकेत मिले हैं.

इस सरकार को सेना का समर्थन भी हासिल है, इसलिए माना जा रहा है कि भारत के साथ रिश्तों में सरकारी विसंगतियाँ कम होंगी. फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्ते इसलिए सुधर जाएंगे, क्योंकि वहाँ नवाज़ शरीफ फिर से ताकतवर हो गए हैं. रिश्ते तभी सुधरेंगे, जब शांति-स्थापना की समझदारी पक्के तौर पर जन्म ले लेगी. या फिर मजबूरियाँ ऐसे मोड़ पर आ जाएंगी, जहाँ से निकलने का रास्ता ही नहीं बचेगा. 

संबंध-सुधार की धीमी गति

पाकिस्तान में भारत से दोस्ती की बात करना राजनीतिक-दृष्टि से आत्मघाती माना जाता है. नवाज़ शरीफ एकबार इसके शिकार हो चुके हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा उम्मीद यही की जा सकती है कि नई सरकार इस मामले में बड़े जोखिम उठाने के बजाय धीरे-धीरे रिश्ते बेहतर बनाने का प्रयास करेगी. बहुत कुछ दोनों देशों के मीडिया-कवरेज पर भी निर्भर करेगा.

Wednesday, February 21, 2024

मोदी-यात्रा और खाड़ी देशों में भारत की बढ़ती साख


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने भारत और पश्चिम एशिया के परंपरागत रिश्तों को न केवल बरकरार रखा, बल्कि और बेहतर बनाया. पश्चिम एशिया की उनकी ताज़ा यात्रा के ठीक पहले क़तर में भारत के आठ पूर्व नौसैनिक अधिकारियों की रिहाई से इस बात की पुष्टि हुई है कि इन देशों के साथ उनके मजबूत निजी रिश्ते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 फरवरी को अबूधाबी में बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) के मंदिर का उद्घाटन किया. यह मंदिर दुनिया भर में इस संस्था के बनाए एक हज़ार मंदिरों और 3,850 केंद्रों में से एक है.

2015 के बाद से प्रधानमंत्री का यूएई का यह सातवाँ दौरा है. 2015 में भी करीब 34 साल के अंतराल के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की वह पहली यूएई यात्रा थी. मोदी से पहले इंदिरा गांधी 1981 में यूएई गई थीं. यूएई के अलावा भारत के सऊदी अरब, ओमान, क़तर, बहरीन और कुवैत के साथ भी रिश्ते मज़बूत हुए हैं.

Wednesday, February 14, 2024

पाकिस्तान का राजनीतिक-घटनाक्रम और भारत


पाकिस्तान में पिछले हफ्ते हुए चुनाव के बाद आए परिणामों ने किसी एक पार्टी की सरकार का रास्ता नहीं खोला है और घूम-फिरकर गठबंधन सरकार बन रही है, जो सेना के सहारे काम करेगी. इस चुनाव ने इस बात की ओर इशारा किया है कि भले ही इमरान खान को फौरी तौर पर हाशिए पर डाल दिया गया है, पर वे उन्हें हमेशा के लिए राजनीति से बाहर नहीं किया जा सकता. उनकी वापसी भी संभव है. 

बहरहाल अब राष्ट्रपति की जिम्मेदारी है कि मतदान के बाद 21 दिन के भीतर यानी 29 फरवरी तक वे क़ौमी असेंबली का इजलास बुलाएं. पहले भी तीन बार प्रधानमंत्री पद पर काम कर चुके नवाज़ शरीफ ने बजाय खुद प्रधानमंत्री बनने के अपने भाई शहबाज़ शरीफ का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ाया है. शहबाज़ शरीफ अभी तक बहुत प्रभावशाली नहीं रहे हैं. नवाज़ शरीफ भी बने, तो वे उतने प्रभावशाली नहीं होंगे, जितने कभी होते थे.

नवाज़ शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) को चुनाव में वैसी सफलता नहीं मिली, जिसका दावा उनकी तरफ से किया गया था. अलबत्ता उनकी पार्टी संभवतः पंजाब में अपनी सरकार बना लेगी.

इस चुनाव को लेकर कई तरह की शिकायतें हैं. मतदान के दिन इंटरनेट पर रोक लगने से पूरी व्यवस्था ठप हो गई. उसके बाद सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्मों को ठप किए जाने की खबरें मिलीं. कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और बैलट पेपरों के साथ गड़बड़ी की शिकायतें भी हैं.

Wednesday, February 7, 2024

इमरान को सज़ा और पाकिस्तान के खानापूरी चुनाव


मंगलवार 30 जनवरी को पाकिस्तान की एक विशेष अदालत ने साइफर मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को दस साल जेल की सजा सुनाई. उसके अगले ही दिन एक और अदालत ने उन्हें और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को तोशाखाना मामले में 14 साल कैद की सजा सुना दी.

इतना ही काफी नहीं था. शनिवार को एक अदालत ने इमरान और बुशरा बीबी की शादी को गैर इस्लामिक करार दिया. इमरान खान इसके पहले आरोप लगा चुके हैं देश की सेना ने मेरे पास संदेश भेजा था कि तीन साल के लिए राजनीति छोड़ दूँ, तो शादी बच जाएगी. इमरान और बुशरा बीबी को इस मामले में सात साल सजा सुनाई गई है.

इंतक़ाम की आग

इन सज़ाओं के पीछे प्रतिशोध की गंध आती है. साबित यह भी हो रहा है कि पाकिस्तान क एस्टेब्लिशमेंट (यानी सेना) बहुत ताकतवर है. सारी व्यवस्थाएं उसके अधीन हैं. इन बातों के राजनीतिक निहितार्थ अब इसी महीने की 8 तारीख को हो रहे चुनाव में भी देखने को मिलेंगे.

स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान में जो चंद चुनाव हुए हैं, उनकी साख कभी नहीं रही, पर इसबार के चुनाव अबतक के सबसे दाग़दार चुनाव माने जा रहे हैं. बहरहाल अब सवाल दो हैं. इसबार बनी सरकार क्या पाँच साल चलेगी? क्या वह सेना के दबाव और हस्तक्षेप से मुक्त होगी?

Saturday, February 3, 2024

बजट में आर्थिक और राजनीतिक आत्मविश्वास की झलक


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो अंतरिम बजट पेश किया है, उसमें बड़ी रूपांतरकारी और लोकलुभावन घोषणाएं भले ही नहीं है, पर भविष्य की आर्थिक दिशा और सरकार के राजनीतिक आत्मविश्वास का संकेत जरूर मिलता है.

बजट में नए कार्यक्रमों की घोषणाओं के मुकाबले इस बात को रेखांकित करने पर ज्यादा जोर दिया गया है कि पिछले दस वर्ष में अर्थव्यवस्था की दशा किस तरह से बदली है. देश में एफडीआई प्रवाह वर्ष 2014-2023 के दौरान 596 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ जो 2005-2014 के दौरान हुए एफडीआई प्रवाह का दोगुना है.

उन्होंने घोषणा की कि सरकार सदन के पटल पर अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में श्वेत पत्र पेश करेगी, ताकि यह पता चले कि वर्ष 2014 तक हम कहां थे और अब कहां हैं. श्वेत पत्र का मकसद उन वर्षों के कुप्रबंधन से सबक सीखना है.

Thursday, February 1, 2024

गज़ा में लड़ाई भले न रुके, पर इसराइल पर दबाव बढ़ेगा


गज़ा में हमास के खिलाफ चल रही इसराइली सैनिक कार्रवाई को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) का पहला आदेश पहली नज़र में खासा सनसनीख़ेज़ लगता है, पर उसे ध्यान से पढ़ें, तो लगता नहीं कि लड़ाई रोकने में उससे मदद मिलेगी.

बहुत से पर्यवेक्षकों को इस आदेश का मतलब एक राजनीतिक वक्तव्य से ज्यादा नहीं लगता. वस्तुतः अदालत ने इसराइल से लड़ाई रोकने को कहा भी नहीं है, पर जो भी कहा है, उसपर अमल करने के लिए इसराइल के फौजी अभियान की प्रकृति में बदलाव करने होंगे. यकीनन अब इसराइल पर लड़ाई में एहतियात बरतने का दबाव बढ़ेगा.  

अदालत ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका ने इसराइल पर जिन कार्यों को करने और जिनकी अनदेखी करने के आरोप लगाया है, उनमें से कुछ बातें  नरसंहार के दायरे में रखी जा सकती हैं. इसराइल का दावा है कि वह आत्मरक्षा में लड़ रहा है और युद्ध के सभी नियमों का पालन कर रहा है.

यह भी सच है कि आईसीजे के सामने युद्ध-अपराध का मुकदमा नहीं है. उसका रास्ता अलग है, पर इस अदालत ने इसराइल को सैनिक कार्रवाई में सावधानी बरतने के साथ एक महीने के भीतर अपने कदमों की जानकारी देने को भी कहा है.

Monday, January 29, 2024

गणतांत्रिक-व्यवस्था और ‘लोकतंत्र की जननी’ भारत

साँची के स्तूप में अंकित मल्ल महाजनपद की राजधानी कुशीनगर। इतिहासकार मानते हैं कि गौतम बुद्ध के समय में मल्ल क्षेत्र में दुनिया की पहली गणतांत्रिक व्यवस्था थी

इस साल गणतंत्र दिवस परेड में देश की सांस्कृतिक विरासत और विविधता को एक नए रूप में पेश किया गया. परेड की मुख्य थीम थी, विकसित भारतऔर भारत-लोकतंत्र की मातृका. यह परेड महिला केंद्रित भी थी. 

पहली बार इस परेड के आगे सैनिक बैंड के बजाय 100 महिला कलाकार भारतीय वाद्ययंत्रों के संगीत की खुशबू बिखेरती हुई चल रही थीं और शेष परेड उनके पीछे थी. 

इसके पहले सैनिक टुकड़ियों का नेतृत्व करती महिला अधिकारी आपने देखी हैं, पर इसबार तीनों सेनाओं की 144 महिला कर्मियों की मिली जुली टुकड़ी भी इस परेड में थी.

लोकतंत्र की जननी

यह परेड भारत को 'लोकतंत्र की जननी' के रूप में प्रदर्शित करने का प्रतीक बनेगी. लोकतंत्र अपेक्षाकृत आधुनिक विचार है, और उसका काफी श्रेय पश्चिमी समाज के दिया जाता है. हालांकि उसके विकास में उन समाजों की भी भूमिका है, जो अतीत में उन मूल्यों से जुड़े थे, जो आज लोकतंत्र की बुनियाद हैं.

हम गर्व से कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में है. हर पाँच साल में होने वाला आम चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक गतिविधि है. चुनावों की निरंतरता और सत्ता के निर्बाध-हस्तांतरण ने हमारी सफलता की कहानी भी लिखी है.

Saturday, January 27, 2024

असाधारण ऊँचाई पर भारत-फ्रांस रिश्ते


फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की दो दिन की राजकीय-यात्रा को आकस्मिक कहना उचित होगा. ऐसी यात्राओं का कार्यक्रम महीनों पहले बन जाता है, पर इस यात्रा का कार्यक्रम अचानक तब बना, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की भारत-यात्रा रद्द हो गई.

इस यात्रा से बहुत कुछ निकले या नहीं निकले, फ्रांस ने बहुत नाज़ुक मौके पर भारत की लाज बचाई है. इस यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ. अलबत्ता इस दौरान टाटा और एयरबस के बीच हल्के हेलीकॉप्टर के भारत में निर्माण के समझौते की घोषणा जरूर हुई है.

इसके पहले भी फ्रांस ने भारत का साथ दिया है. मैक्रों फ्रांस के छठे ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो भारत में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बने हैं. गणतंत्र परेड में सबसे ज्यादा बार मुख्य अतिथि बनने का गौरव भी फ्रांस के नाम है.

Thursday, January 18, 2024

टूटती मर्यादाओं के बीच एक उम्मीद


दो साल पहले मेरे पूर्व सहयोगी हाशमी जी ने जब आवाज़-द वॉयस के बारे में बताया, तब एकबारगी मुझे समझने में देर लगी. वजह यह थी कि मैं समझता हूँ कि इस दौर के ज्यादातर मीडिया हाउस आत्यंतिक (एक्स्ट्रीम) दृष्टिकोण को अपनाते हैं. वे खुद को तेज़, बहादुर और लड़ाकू साबित करने की होड़ में हैं.

मर्यादा, संज़ीदगी, शालीनता और संतुलित दृष्टिकोण दब्बू-नज़रिया मानने का चलन बढ़ा है. सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में मेल-मिलाप की जगह उत्तेजना और अतिशय सनसनी ने ले ली है. इस लिहाज़ से आवाज़ का यह प्रयोग मेरे लिए नया और स्फूर्ति से भरा था.

Wednesday, January 10, 2024

मालदीव में भारत के प्रति इतनी कड़वाहट क्यों?


मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू की चीन-यात्रा शुरू होने के ठीक एक दिन पहले सोशल मीडिया पर दोनों देशों के रिश्तों में जो कड़वाहट पैदा हुई है, वह चिंताजनक है. सवाल है कि इस शांत पड़ोसी देश में भारत के प्रति नफरत कैसे पैदा हो गई? कौन है, इसके पीछे?  

राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू 8 से 12 जनवरी तक चीन की यात्रा पर हैं. इस खबर का प्रारंभिक निहितार्थ यह है कि भारत की अनदेखी नहीं करने की परंपरा को मालदीव ने एक के बाद एक करके, तोड़ रहा है. पर उसके कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक ट्वीट करके बेवजह भावनाएं भड़काने का काम किया है.

इससे मालदीव के पर्यटन-कारोबार को धक्का लगेगा. मोदी ने अपने लक्षद्वीप की तारीफ की थी, मालदीव की अवमानना नहीं. दूसरी तरफ मालदीव की मंत्री ने उन्हें इज़रायल से जोड़ दिया.

Tuesday, January 2, 2024

जोशो-जुनून और उम्मीदें लेकर आया 2024


2024 का साल देश के राजनीतिक, राजनयिक, सामाजिक-सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और खेल के मैदान से कुछ बड़ी खबरों या दूसरे शब्दों में सफलताओं की उम्मीदें लेकर आ रहा है. साल की शुरुआत जिस माहौल में हो रही है, उससे लगता है कि यह साल जोशो-जुनून से भरा होगा.  

राजनीतिक दृष्टि से बहुत सी बातें इस बात पर निर्भर करेंगी कि इस साल होने वाले चुनाव में किसकी सरकार जीतकर आती है. अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के साथ भारतीय जनता पार्टी अपने विजय-रथ को तार्किक परिणति पर पहुँचाना चाहती है.

नरेंद्र मोदी लगातार तीसरा चुनाव जीतकर जवाहर लाल नेहरू के कीर्तिमान की बराबरी की ओर बढ़ रहे हैं. आर्थिक मोर्चे पर समय उनका साथ दे रहा है. देखना होगा कि चुनाव में इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन कैसा रहता है.

Wednesday, December 20, 2023

अमेरिकी राजनीति की लपेट में रद्द हुई बाइडेन की भारत-यात्रा


अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नहीं आएंगे. पहले यह बात केवल मीडिया रिपोर्टों के माध्यम से सुनाई पड़ी थी, पर अब आधिकारिक रूप से भी बता दिया गया है. यात्रा का इस तरह से रद्द होना, राजनयिक और राजनीतिक दोनों लिहाज से अटपटा है.

बाइडेन की यात्रा की बात औपचारिक रूप से घोषित भी नहीं की गई थी, पर भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने गत 20 सितंबर को उत्साह में आकर इस बात की जानकारी एक पत्रकार को दे दी थी. बहरहाल अब दोनों देशों के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रस्तावित यात्रा नहीं होगी.

गणतंत्र की प्रतिष्ठा

गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनना भारत की ओर से अतिथि को दिया गया बड़ा राजनयिक सम्मान है. भारत की राजनयिक गतिविधियों में अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को उच्चतम स्तर दिया जाता है. ऐसे कार्यक्रमों की घोषणा तभी की जाती है, जब हर तरफ से आश्वस्ति हो, ताकि बाद में शर्मिंदगी न हो.  

बताते हैं कि सितंबर में दिल्ली में जी-20 सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के बीच हुई बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने बाइडेन को भारत-यात्रा की निमंत्रण दिया था. बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में इस निमंत्रण की जानकारी नहीं थी, पर अमेरिकी राजदूत ने एक भारतीय पत्रकार को बता दिया कि बाइडेन को गणतंत्र दिवस-2024 के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है.

रिश्ते बिगड़ेंगे नहीं

अमेरिका के राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने अब कहा है कि जो बाइडेन अब भारत नहीं आ सकेंगे, पर भारत के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करने में उनकी निजी दिलचस्पी बदस्तूर बनी रहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी व्यक्तिगत दोस्ती है, जो आने वाले समय में भी जारी रहेगी.

यात्रा का रद्द होना उतनी बड़ी घटना नहीं है, जितनी उसके साथ जुड़ी दूसरी बातें हैं. भारत-अमेरिका संबंधों को प्रगाढ़ करने में भारत से ज्यादा अमेरिका की दिलचस्पी है. अमेरिका के दोनों राजनीतिक दल चीन के खिलाफ भारत को समर्थन देने के पक्षधर हैं, पर इस समय यात्रा रद्द होने के पीछे भी वहाँ की आंतरिक रस्साकशी की भूमिका है.

Thursday, November 23, 2023

मालदीव का बदला रुख और भारतीय-दृष्टि

मालदीव के राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू के साथ किरन रिजिजू

मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू कार्यकाल शुरू हो गया है और अब देखना होगा कि ऐसे दौर में जब वैश्विक राजनीति लगातार टकरावों की ओर बढ़ रही है, मालदीव का सत्ता-परिवर्तन क्या गुल खिलाएगा. देश में चुनाव प्रचार के दौरान भारत को लेकर कड़वाहट का जो माहौल बना था, उसका व्यावहारिक असर अब देखने को मिलेगा.

भारत को भी सावधानी और समझदारी के साथ इस देश के साथ रिश्तों को संभालने और परिभाषित करने की जरूरत होगी. हालांकि यह बहुत छोटा देश है, पर हिंद महासागर के बेहद संवेदनशील इलाके में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह महत्वपूर्ण है और उसे साधकर रखना जरूरी है. वैश्विक-राजनीति में भूमिका निभाने के साथ-साथ भारत को अपने इलाके में बेहतर संबंध बनाने होंगे. 

मालदीव के नए राष्ट्रपति अपनी संप्रभुता और राष्ट्रवादी जुनून से जुड़े दावे जरूर कर रहे हैं, पर वे डबल गेम नहीं खेल सकते. उन्हें भी भारत के साथ अपने रिश्तों को स्पष्ट परिभाषित करना होगा. भारत छोटा देश नहीं है, बल्कि इस इलाके का सबसे बड़ा देश है.

Tuesday, November 21, 2023

भारत-अमेरिका रिश्तों की अगली पायदान


भारत और अमेरिका के बीच हाल में हुई टू प्लस टू वार्ता आपसी मुद्दों से ज्यादा वैश्विक-घटनाक्रम के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई, फिर भी रक्षा-सहयोग और आतंकवाद से जुड़े कुछ मुद्दों ने खासतौर से ध्यान खींचा है।  कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों को मिल रहे समर्थन के संदर्भ में भारत ने अपना पक्ष दृढ़ता से रखा, वहीं रक्षा-तकनीक में सहयोग को लेकर कुछ संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं।

इन बातों को जून के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के दौरान किए गए फैसलों की रोशनी में भी देखना होगा, क्योंकि ज्यादातर बातें उस दौरान तय किए गए कार्यक्रमों से जुड़ी हैं। गज़ा में चल रहा युद्ध और भारत-कनाडा टकराव अपेक्षाकृत बाद का घटनाक्रम है, पर उनसे दोनों देशों के रिश्तों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है। दोनों परिघटनाएं प्रत्यक्ष नहीं, तो परोक्ष रूप में पहले से चल रही थीं।