मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू की चीन-यात्रा शुरू होने के ठीक एक दिन पहले सोशल मीडिया पर दोनों देशों के रिश्तों में जो कड़वाहट पैदा हुई है, वह चिंताजनक है. सवाल है कि इस शांत पड़ोसी देश में भारत के प्रति नफरत कैसे पैदा हो गई? कौन है, इसके पीछे?
राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू 8 से
12 जनवरी तक चीन की यात्रा पर हैं. इस खबर का
प्रारंभिक निहितार्थ यह है कि भारत की अनदेखी नहीं करने की परंपरा को मालदीव ने एक
के बाद एक करके, तोड़ रहा है. पर उसके कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक ट्वीट करके बेवजह भावनाएं भड़काने का काम किया है.
इससे मालदीव के पर्यटन-कारोबार को धक्का लगेगा. मोदी ने अपने लक्षद्वीप की तारीफ की थी, मालदीव की अवमानना नहीं. दूसरी तरफ मालदीव की मंत्री ने उन्हें इज़रायल से जोड़ दिया.
मंत्रियों का निलंबन
अपने मंत्रियों पर वहाँ की सरकार ने जो
ताबड़तोड़ कार्रवाई की, वह भी जबर्दस्त
है. सरकार ने उनके बयानों से किनारा किया, और फिर तीन मंत्रियों को इस प्रकरण के
कारण निलंबित कर दिया.
सरकारी बयान में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
का इस्तेमाल लोकतांत्रिक और जिम्मेदार तरीके से किया जाना चाहिए. ऐसे तरीकों का
इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, जिससे मालदीव के अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ
रिश्तों में बाधा न आए.
ट्वीट-प्रकरण के बाद मालदीव के विरोधी नेताओं
ने भी सरकार पर हमले बोले हैं. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने मंत्री की भाषा
को भयावह बताया. सच यह है कि विरोधी नेता ही नहीं, वहाँ की सरकार भी मानती है कि
भारत को खारिज नहीं कर सकते. तब फिर यह सब क्या तमाशा है? दूसरा ,च यह भी है कि तीनों मंत्रियों को निलंबित किया गया है,
बर्खास्त नहीं. उनकी किसी भी समय वापसी हो सकती है.
चीन का असर
अतीत में मालदीव में नए शासनाध्यक्षों की पहली
विदेश-यात्रा भारत की होती रही है. इसबार नए राष्ट्रपति पहली यात्रा पर तुर्की गए
और फिर यूएई. तीसरी यात्रा चीन की है. हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और चीन की
प्रतिस्पर्धा को देखते हुए इस यात्रा के राजनीतिक निहितार्थ हैं.
मालदीव सरकार भारत की अनदेखी नहीं, अनदेखी को स्थापित
करने की कोशिश कर रही है. हालांकि मुइज़्ज़ू कहते हैं कि भारत और चीन की
प्रतिस्पर्धा में हमारी दिलचस्पी नहीं है, पर ज़ाहिर है कि चीन का प्रभाव फिर से
मालदीव पर बढ़ेगा. निवेश का जो सिलसिला अब्दुल्ला यामीन की सरकार हटने के बाद कम
हुआ था, उसमें अब तेज़ी आएगी. पर चीन की उंगली पकड़ कर
मालदीव कितनी दूर चलेगा?
सामरिक-दृष्टि से भारत के लिए मालदीव की अहमियत
बहुत ज्यादा है, पर मालदीव को भी भारत की जरूरत है. मालदीव में जब कोई नई सरकार
आती है तो भारत अपने संपर्कों को बेहतर बनाने का प्रयास करता है, पर सदी के पहले
दशक से चीन के उदय ने इस प्रक्रिया में पेच पैदा कि दिए हैं. मालदीव इच्छा या
अनिच्छा से भारत से पंगा लेने लगा है.
भारत की घेराबंदी
चीन अपना वैश्विक-प्रभाव बढ़ा रहा है और भारत
उसके प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर रहा है. चीन ने भारत से लगे देशों में अपना
प्रभाव बढ़ाया है. इनमें म्यांमार, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका शामिल
हैं. पाकिस्तान के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि मालदीव के राष्ट्रपति की
तुर्की और चीन की यात्रा, भारत के हितों के लिहाज से खराब संकेत
है. चीन और तुर्की, दोनों का भारत के प्रति
नकारात्मक-दृष्टिकोण है.
मोहम्मद मुइज़्ज़ू अपने चुनाव-अभियान के वक़्त
से ही भारतीय-विरोधी रुख अपनाते हैं. चुनाव के पहले ही उन्होंने 'इंडिया आउट' का नारा दिया था. वे बार-बार कहते रहे
हैं कि भारत अपने सैनिकों को वापस बुलाए.
भड़कती भावनाएं
सैनिकों को वापस बुलाने की बात वस्तुतः भावनाओं
को भड़काने का काम है. चुनाव की राजनीति ने इसे राष्ट्रीय-स्वाभिमान से जोड़ दिया.
मालदीव में भारतीय सेना से जुड़े 77 कर्मचारी है, जो भारत से उपहार में मिले विमान
और हेलिकॉप्टर के संचालन में सहायता करते हैं. इनका इस्तेमाल राहत-कार्यों में
होता है.
पिछले तीन दशकों में वैश्विक भू-राजनीति की
दिशा समुद्री अर्थव्यवस्था की ओर तेज़ी से मुड़ी है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र से भारत
के जुड़ाव के और अमेरिकी विदेश-नीति में इस इलाके के महत्व के बढ़ने के कारण इस समुद्री-रणनीति
में भारत की भूमिका बढ़ गई है.
चीन ने अपने प्रभाव के विस्तार के लिए ‘बॉर्डर एंड रोड इनीशिएटिव-बीआरआई’ का
सहारा लिया है. भारत ने भी कुछ देर से दक्षिण चीन सागर, अरब
सागर और हिंद महासागर में अपने सामरिक हितों पर ध्यान देना शुरू किया है.
भारत पर तंज़
पहले से इस बात की सुगबुगाहट थी कि मुइज़्ज़ू भारत
से पहले चीन जाएंगे. राष्ट्रपति शी चिनफिंग के निमंत्रण पर मुइज़्ज़ू चीन की
यात्रा कर रहे हैं. सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने इस मौके पर अलग से संपादकीय भी लिखा है और भारत पर
तंज़ मारा है.
उसने अपने संपादकीय
में इस बात का खासतौर से उल्लेख किया है कि मालदीव ने पहले भारत-यात्रा की परंपरा को तोड़ा है. ‘ग्लोबल टाइम्स’ के अनुसार मुइज़्ज़ू के चीन यात्रा पर पहले आने को लेकर
भारतीय मीडिया में मच रहा शोर वस्तुतः भार के आत्मविश्वास में कमी आने का परिचायक
है.
यह बात छिपी नहीं है कि न केवल मालदीव में,
बल्कि पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और चीन के बीच प्रभाव-क्षेत्र की
प्रतिस्पर्धा है. देखना होगा कि उनकी चीन-यात्रा के दौरान और उसके बाद की दिशा
क्या होगी. इसमें संदेह नहीं कि भारत से दूरी और चीन के साथ नजदीकी मालदीव बनाना
चाहता है.
बात केवल मुइज़्ज़ू की चीन-यात्रा तक सीमित
नहीं है. हाल में चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में हुए 'चाइना-इंडियन ओशन रीजन फ़ोरम ऑन डेवलपमेंट कोऑपरेशन' के दूसरे सम्मेलन में मालदीव के उप-राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़
ने हिस्सा लेकर चीन की भू-राजनीतिक योजनाओं के साथ जाने का इरादा भी व्यक्त कर
दिया है.
पहली बैठक का बहिष्कार
इसके पहले 2022 के नवंबर में चीन ने 19 सदस्य
देशों वाले इस मंच की पहली बैठक बुलाई थी, जिसमें भारत को
छोड़कर आसपास के देश शामिल हुए थे. उस समय निमंत्रण के बावजूद मालदीव और
ऑस्ट्रेलिया ने इसमें भाग नहीं लिया. तब मालदीव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह
राष्ट्रपति थे, जिन्हें भारत का क़रीबी माना जाता है.
फ़ोरम के पहले सम्मेलन में जिन 17 देशों ने
हिस्सा लिया, वे हैं पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका,
बांग्लादेश, इंडोनेशिया, म्यांमार,
अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, ओमान,
दक्षिण अफ़्रीका, केन्या, मोजांबीक,
तंज़ानिया, सेशेल्स, मैडागास्कर,
मॉरिशस, और जिबूती.
उस समय भी मालदीव के कुछ विरोधी राजनेता और
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड ने सम्मेलन में वर्चुअल रूप से भाग
लिया था, पर मालदीव की सरकार ने स्पष्ट किया था कि यदि मालदीव का कोई व्यक्ति वहाँ
उपस्थित है, तो वह देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है. बहरहाल सत्ता-परिवर्तन के
बाद नीतिगत बदलाव साफ नज़र आ रहा है.
‘आयोरा’ का जवाब
चीन का यह कार्यक्रम 2018 में लॉन्च किया गया
था. यह भारत के ‘इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आयोरा)’ की जवाबी मुहिम है. ‘आयोरा’
भारत की पहल है, जिसे 1997 में हिंद महासागर से लगे 23
देशों के साथ मिलकर बनाया गया है.
उसमें चीन भी साझेदार है, जिसे वार्ता में शामिल किया जाता है. चीन
ने इस बात को कभी स्पष्ट नहीं किया कि हिंद महासागर से बहुत दूर होने के बावजूद
उसे ‘आयोरा’ के समांतर एक नए समूह की जरूरत क्यों है. ज़ाहिर है कि वह इस इलाके पर
अपना प्रभाव बनाकर रखना चाहता है. इस इलाके पर ही नहीं, उसकी दिलचस्पी पूरी दुनिया
में है.
इसे भारत की ‘सागर’ (सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ फ़ॉर
ऑल इन द रीजन) पहल के जवाब में भी देखा जा सकता है, जिसे
2015 में नरेंद्र मोदी ने मॉरिशस में लॉन्च किया था. कोविड-19 के दौरान भारत ने
‘पड़ोसी पहले’ सिद्धांत के आधार पर हिंद महासागर से जुड़े देशों तक दवाएं, ऑक्सीजन और वैक्सीन पहुँचाई थी.
इसके अलावा भारत के ‘प्रोजेक्ट मौसम’ और
‘इंटीग्रेटेड कोस्टल सर्विलांस सिस्टम’ जैसे कार्यक्रम भी हैं. ये सभी कार्यक्रम
हिंद महासागर तक सीमित हैं, जबकि चीन लंबी दूरी पार करके इस इलाके
में आना चाहता है. ज़ाहिर है कि उसका उद्देश्य अपना दबदबा कायम करने का है. उसका
बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव पहले से चल ही रहा है.
विकास की आड़
जनवरी, 2022 में
श्रीलंका के दौरे पर आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हिंद महासागर के द्वीपीय
देशों के विकास के लिए इस मंच की स्थापना का प्रस्ताव रखा था. वांग यी ने कहा था
कि इस मंच के ज़रिए ‘साझा विकास को बढ़ावा दिया जाएगा और आम सहमति और तालमेल’ को
बढ़ाया जाएगा. चीन ने स्पष्ट किया था कि कुनमिंग का सम्मेलन इसी योजना का एक अंग
है.
मालदीव के चीन की तरफ झुकाव और भारत से बढ़ती
दूरी के अनेक कारण हैं. एक वजह यह भी है कि उसपर चीन का भारी कर्ज़ है. वह चीन के
लगभग 1.3 अरब डॉलर का कर्ज़दार है, जो उसके कुल सार्वजनिक ऋण का 20 प्रतिशत है.
मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आश्रित है,
पर वह जरूरत की सारी चीजें बाहर से मँगाता है. उसकी अर्थव्यवस्था इतना आंतरिक
राजस्व नहीं जुटा पा रही है, जिससे वह अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर सके. उसके
लिए उसे कर्ज लेना पड़ रहा है.
पूँजी का लालच
चीन के साथ उसके रिश्तों के पीछे इसी पूँजी का
लालच है. हालांकि दोनों देशों के राजनयिक-संबंध 1972 से हैं, पर 2009 में मालदीव
ने चीन में अपना दूतावास खोला. चीन ने 2011 में मालदीव में अपना दूतावास खोला. यह
वह समय है, जब चीन ने पूँजी-डिप्लोमेसी की शुरुआत की थी.
2017 में ही मालदीव ने चीन के साथ मुक्त
व्यापार समझौता किया, जो भारत के साथ आजतक नहीं हुआ है. हालांकि इस समझौते की
मालदीव की संसद से पुष्टि होनी बाकी है, पर यह साफ है कि इससे मालदीव को कुछ नहीं
मिलेगा और चीन को फायदा होगा. मालदीव का कोई उत्पाद ऐसा नहीं है, जिसका आयात चीन
करे. बदले में चीन से जो सामान आएगा, वह टैक्स-फ्री हो जाएगा.
उसके चीन से बढ़ते रिश्तों पर अमेरिका की
नज़रें भी हैं. मुइज़्ज़ू की चीन-यात्रा के ठीक पहले अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी
ब्लिंकन ने मालदीव के विदेशमंत्री मूसा ज़मीर से बात की. मालदीव की ओर से जारी
बयान में कहा गया है, ज़मीर और ब्लिंकन के बीच रक्षा सहयोग,
आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन और लोकतांत्रिक शासन
सहित कई मुद्दों पर चर्चा हुई.
भारत की नीति
मालदीव की तरफ से चिढ़ाने की हरकतों के बावजूद
भारत ने सधे तरीके से प्रतिक्रिया और अपनी निराशा व्यक्त की है. देश के पिछले
राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी गए थे, पर इसबार निमंत्रण के बावजूद नहीं गए.
भारत की दीर्घकालीन-नीति है कि मालदीव ही नहीं,
पड़ोस के उन सभी देशों को चीन के साथ रिश्तों के जोखिम को समझने का समय दिया जाए. इन
देशों पर चीन का कर्ज़ बोझ बन गया है, और उनकी राजनीति में चीन को लेकर तल्ख बातें
होने लगी हैं. सत्ताधीशों को चीनी पूँजी दिखाई पड़ी, उसके खतरों को वे देख नहीं
पाए.
मालदीव की राजनीति में भारत-विरोध लंबे समय तक
नहीं चलेगा, क्योंकि भौगोलिक-निकटता के कारण वह भारत को नाराज़ करके नहीं रह सकता.
पेयजल संकट, सुनामी, कोविड जैसी बीमारी या किसी बगावत की स्थिति में सबसे पहले उसे
भारत ही याद आएगा. भारत ही उसे संकट से बचा सकता है.
पता नहीं पर कड़वाहट यहाँ भी है |
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