सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.
भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस
दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही
पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर
निशाना लगाते हैं.
यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को
रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का
तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर
कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का
वैश्विक-व्यवस्था पर.
इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की
छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के
राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं
देते थे.
दक्षिण एशिया
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत
के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण
दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने
भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.
इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़
शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन,
तुर्की, सऊदी अरब, क़तर,
अजरबैजान, ईरान, संयुक्त
अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’
को धन्यवाद दिया.
उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और
यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना
चाहते हैं.
उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन
की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई'
का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को
देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’