Friday, March 28, 2025

फिर क्यों शुरू हो गया, गज़ा के दुःस्वप्न का दौर?


इस साल की शुरुआत में जब 19 जनवरी को इसराइल और हमास ने तीन चरणों में युद्ध-विराम पर सहमति जताई थी, तभी कुछ पर्यवेक्षकों ने कहा था कि  स्थायी-शांति तो छोड़िए, युद्ध-विराम का पहला चरण ही पूरा हो जाए, इसकी दुआ कीजिए. 

किसी तरह से रोते-बिलखते पहला चरण 1 मार्च को पूरा हो गया, पर उसके पहले दूसरे चरण के लिए जो बातचीत होनी थी, वह नहीं हुई. उस बातचीत का उद्देश्य इसराइली सेना की पूरी तरह वापसी और सभी बंधकों की रिहाई के साथ युद्ध को समाप्त करना था. ऐसा नहीं हुआ और गज़ा-पट्टी पर इसराइली बमबारी फिर शुरू हो गई.

मामला केवल हवाई हमलों तक सीमित नहीं रहा. नेत्ज़ारिम कॉरिडोर तक पहुँचने के लिए इसराइली सेना ने ज़मीनी हमला बोलकर कब्ज़ा कर लिया. यह कॉरिडोर गज़ा के उत्तर और दक्षिण को विभाजित करता है. उधर हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि युद्ध शुरू होने के बाद से गज़ा में मरने वालों की कुल संख्या रविवार को 50,000 को पार कर गई. 

Thursday, March 27, 2025

बेहद ज़रूरी है न्याय-व्यवस्था की साख को बचाना


नेशनल ज्यूडीशियल डेटा ग्रिड के अनुसार इस हफ्ते 26 मार्च तक देश की अदालतों में चार करोड़ 54 लाख से ज्यादा मुकदमे विचाराधीन पड़े थे। इनमें 46.43 लाख से ज्यादा केस 10 साल से ज्यादा पुराने हैं। यह मान लें कि औसतन एक मुकदमे में कम से कम दो या तीन व्यक्ति पक्षकार होते हैं तो देश में करीब 10 से 15 करोड़ लोग मुकदमेबाजी के शिकार हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। सामान्य व्यक्ति के नजरिए से देखें तो अदालती चक्करों से बड़ा चक्रव्यूह कुछ नहीं है। एक बार फँस गए, तो बरसों तक बाहर नहीं निकल सकते। 

सरकार और न्यायपालिका लगातार कोशिश कर रही है कि कम से कम समय में मुकदमों का निपटारा हो जाए। यह तभी संभव है जब प्रक्रियाएं आसान बनाई जाएँ, पर न्याय व्यवस्था का संदर्भ केवल आपराधिक न्याय या दीवानी मुकदमों तक सीमित नहीं है। व्यक्ति को कारोबार का अधिकार देने, मुक्त वातावरण में अपना धंधा चलाने, मानवाधिकारों तथा अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए भी उपयुक्त न्यायिक संरक्षण की जरूरत है। उसके पहले हमें अपनी न्याय-व्यवस्था की सेहत पर भी नज़र डालनी होगी, जिसके उच्च स्तर को लेकर कुछ विवाद खड़े हो रहे हैं। 

इस समय सवाल तीन हैं। न्याय-व्यवस्था को राजनीति और सरकारी दबाव से परे किस तरह रखा जाए? जजों की नियुक्ति को पारदर्शी कैसे बनाया जाए? तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि सामान्य व्यक्ति तक न्याय किस तरह से उपलब्ध कराया जाए? अक्सर कहा जाता है कि देश में न्यायपालिका का ही आखिरी सहारा है। पर पिछले कुछ समय से न्यायपालिका को लेकर उसके भीतर और बाहर से सवाल उठने लगे हैं। उम्मीदों के साथ कई तरह के अंदेशे हैं। कई बार लगता है कि सरकार नहीं सुप्रीम कोर्ट के हाथ में देश की बागडोर है। पर न्यायिक जवाबदेही को लेकर हमारी व्यवस्था पारदर्शी नहीं बन पाई है। 

Friday, March 21, 2025

अपने नागरिक को रिहा कराने अमेरिकी दूत काबुल पहुँचे


अफगानिस्तान में दो साल से अधिक समय तक बंधक रखे जाने के बाद एक अमेरिकी एयरलाइन मिकेनिक को तालिबान ने रिहा कर दिया है। इस सामान्य सी खबर का महत्व इस तथ्य से बढ़ जाता है कि इस रिहाई के लिए बंधक मामलों के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के दूत एडम बोहलर और अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के पूर्व विशेष दूत ज़लमय खलीलज़ाद खासतौर से काबुल गए और उन्होंने तालिबान के विदेशमंत्री से भी मुलाकात की। इस खबर का एक विशेष पहलू यह भी है कि संभवतः अमेरिका ने अपनी इस गतिविधि से पाकिस्तानी सेना को अलग रखा है।  

अमेरिकी नागरिक जॉर्ज ग्लीज़मैन, जिन्हें दिसंबर 2022 में एक पर्यटक के रूप में यात्रा करते समय हिरासत में लिया गया था, अमेरिका वापस जाने से पहले गुरुवार शाम को विमान से कतर पहुँच गए। तालिबान सरकार के विदेशमंत्री ने उनकी रिहाई की पुष्टि की। जनवरी में ट्रंप के पदभार ग्रहण करने से पहले, दो अमेरिकियों, रयान कॉर्बेट और विलियम वालेस मैकेंटी को अमेरिका में कैद एक अफगान के बदले में अफगानिस्तान से रिहा किया गया था।

तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ग्लीज़मैन की रिहाई "मानवीय आधार पर" और "सद्भावनापूर्ण कदम" है, जबकि अमेरिकी विदेशमंत्री मार्को रूबियो ने इस समझौते को "सकारात्मक और रचनात्मक कदम" बताया। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल और तालिबान के बीच यह बैठक जनवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद से दोनों पक्षों के बीच उच्चतम स्तर की प्रत्यक्ष वार्ता थी। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से दोनों सरकारों के बीच संपर्क आमतौर पर अन्य देशों में हुआ है। कतर ने कहा है कि उसने ग्लीज़मैन की रिहाई के लिए समझौते में मदद की।

Wednesday, March 19, 2025

पाकिस्तान के गले की हड्डी बना बलोचिस्तान




बलोचिस्तानी-आंदोलन ने पाकिस्तानी सिस्टम का पर्दाफाश कर दिया है. हाल में हुए ट्रेन अपहरण से जुड़ी ‘आतंकी-गतिविधियों’ को लेकर हालाँकि सरकारी तौर पर दावा किया गया है कि उनका दमन कर दिया गया है, पर इस सरकारी दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता है.  

बलोच आतंकवादी समूहों ने एक ‘राष्ट्रीय सेना’ शुरू करने की घोषणा की है. इनकी मजीद ब्रिगेड आत्मघाती हमले कर रही है. पहले, उनके पास आत्मघाती हमलों की ऐसी क्षमता नहीं थी. 

11 मार्च को अपहरण हुआ और करीब 48 घंटे तक मोर्चाबंदी जारी रही, फिर भी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ट्रेन में कुल कितने यात्री थे और कितने वापस आए. कई संख्याएँ मीडिया में तैर रही हैं. 

सेना कहती है कि सारे बंधक ‘छुड़ा’ लिए गए हैं, वहीं दूसरे सूत्र बता रहे हैं कि बड़ी तादाद में पाकिस्तानी फौजियों को बलोच लिबरेशन आर्मी ने बंधक बना लिया है. या उनकी हत्या कर दी गई है. इन बंधकों की संख्या सौ से ढाई सौ के बीच बताई गई है. बलोच विद्रोहियों का दावा है कि उन्होंने बंधक बनाए गए 200 से ज्यादा जवानों की हत्या कर दी है.

बलोच आंदोलन

बलोच लिबरेशन आर्मी या बीएलए पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूह है, जो एक स्वतंत्र बलोच राज्य की वकालत करता है. बलोच (या बलूच) लोग पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत, दक्षिण-पूर्वी ईरान और दक्षिणी अफ़गानिस्तान में फैले क्षेत्र के मूल निवासी एक जातीय समूह हैं. उनकी एक अलग भाषाई, सांस्कृतिक और जनजातीय पहचान है, उनकी अपनी भाषा बलोची है, जो ईरानी भाषा परिवार से संबंधित है.

Tuesday, March 11, 2025

तमिलनाडु के चुनाव का प्रस्थानबिंदु है 'भाषा' और 'परिसीमन' का मुद्दा


सत्तारूढ़ भाजपा और द्रमुक के बीच चल रहे वाग्युद्ध के कारण सोमवार को लोकसभा में व्यवधान पैदा हुआ और तमिलनाडु के सांसदों के विरोध के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान को अपने बयान से एक शब्द वापस लेना पड़ा। प्रश्नकाल में बहस के दौरान प्रधान ने तमिलनाडु की डीएमके सरकार पर ‘बेईमान’ होने और राज्य के छात्रों के भविष्य के साथ ‘राजनीति’ करने का आरोप लगाया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के प्रति डीएमके सरकार के विरोध की आलोचना करते हुए उन्होंने पीएम-श्री स्कूलों को लेकर ‘यू-टर्न’ लेने का भी आरोप लगाया, जिसके कारण तकरार बढ़ी। लगता है कि यह तकरार अभी बढ़ेगी और ‘भाषा’ और खासतौर से ‘उत्तर-दक्षिण’ के सवालों पर केंद्रित होगी, जो 2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में बड़े मसले बनकर उभरेंगे। 

संसदीय झड़प के तुरंत बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट जारी कर प्रधान पर ‘अहंकार’ का आरोप लगाया। स्टालिन ने लिखा, ‘केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो अहंकार से ऐसे बात करते हैं जैसे कि वे राजा हों, उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है!...’आप तमिलनाडु के उचित फंड को रोक रहे हैं और हमें धोखा दे रहे हैं, फिर भी आप तमिलनाडु के सांसदों को असभ्य कहते हैं?... क्या माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे मंज़ूरी देते हैं?’  स्टालिन ने लिखा कि तमिलनाडु सरकार ने कभी पीएम-श्री (स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को लागू करने पर सहमति नहीं जताई। 

Friday, March 7, 2025

भारत-तालिबान रिश्तों का द्वार खुलने के आसार


वैश्विक-राजनीति में यूक्रेन और पश्चिम एशिया में शांति-प्रयासों ने एक कदम आगे बढ़ाया है वहीं दक्षिण एशिया में भारत और अफ़ग़ान तालिबान के बीच रिश्तों का नया अध्याय शुरू होने की संभावनाएँ दिखाई पड़ रही हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार वैश्विक-वास्तविकताओं को देखते हुए बड़ी तेजी से कदम बढ़ा रही है. अनुमान है कि प्रधानमंत्री मोदी की हाल की वाशिंगटन-यात्रा के दौरान भारत ने अमेरिकी-प्रशासन के सामने भी स्पष्ट किया कि हमारी अफ़ग़ान-नीति राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है.

तथ्य यह है कि चालीस से अधिक देश, तालिबान के साथ किसी न किसी रूप में संपर्क में है या वे काबुल में राजनयिक रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं. इस तथ्य ने भारत के संपर्कों के लिए आधार प्रदान किया. भारत इस इलाके के महत्वपूर्ण शक्ति है और उसे इस मामले में पिछड़ना नहीं चाहिए. 

दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस समेत कम से कम 16 देशों ने तालिबान-नामित व्यक्तियों को अस्वीकार कर दिया है, और उनके यहाँ अब भी पुराने राजदूत काम कर रहे हैं. 

विदेश सचिव की भेंट

गत 8 जनवरी को भारत के विदेश-सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेशमंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक ने एक साथ कई तरह की संभावनाओं ने जन्म दिया था. काबुल में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत सरकार का तालिबान के साथ वह उच्चतम स्तर का आधिकारिक-संपर्क था. 

उसी बातचीत की परिणति है कि अब खबरें हैं कि दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास खुलने वाला है, जिसका परिचालन दिसंबर 2023 से बंद है. मुंबई और हैदराबाद में भी अफ़ग़ान वाणिज्य दूतावास हैं. 

भारत, यदि तालिबान-नामित व्यक्ति को दिल्ली में अफ़ग़ान दूतावास का प्रमुख बनने की अनुमति देगा, तो वह चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान, यूएई, कतर और मध्य एशियाई देशों और कुछ अन्य देशों में सूची में शामिल हो जाएगा. 

साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार ने दिल्ली में अफगान दूतावास का प्रभार संभालने के लिए दो संभावित उम्मीदवारों की पहचान की है. उसके पहले फरवरी के आखिरी हफ्ते में अफ़ग़ान मीडिया अमू टीवी ने खबर दी थी कि तालिबान विदेश मंत्रालय और भारत सरकार एक समझौते के करीब हैं, जिसके तहत नई दिल्ली में अफगानिस्तान के दूतावास का नियंत्रण तालिबान को सौंप दिया जाएगा. 

Wednesday, March 5, 2025

स्टालिन ने कहा परिसीमन को तीस साल के लिए ‘फ़्रीज़’ करो


1965 में केंद्र सरकार ने दक्षिण भारत के राज्यों को आश्वासन दिया था कि अब अंग्रेजी अनंतकाल तक हिंदी के साथ भारत की राजभाषा बनी रहेगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को यदि दक्षिण भारतीय जनमत का प्रतिनिधि माना जाए, तो नई माँग यह है कि 2026 के बाद लोकसभा की सीटों का परिसीमन 30 साल तक के लिए ‘फ़्रीज़’ कर दिया जाए। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आज 5 मार्च को इस विषय पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें 2026 में प्रस्तावित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन प्रक्रिया को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया गया।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस लड़ाई को अन्य दक्षिणी राज्यों तक बढ़ाने की माँग करते हुए कहा कि परिसीमन तमिलनाडु को 'कमजोर' करेगा और 'भारत के और ‘भारत के संघीय ढाँचे के लिए खतरा’ होगा। 

इस बैठक में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, अखिल भारतीय द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, कांग्रेस, विदुथलाई चिरुथिगल काची, तमिलगा वेत्री कषगम और कम्युनिस्ट पार्टियों सहित राजनीतिक दलों ने भाग लिया। भारतीय जनता पार्टी और नाम तमिलार काची और तमिल मानीला कांग्रेस ने इस बैठक का बहिष्कार किया। 

बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार, आगामी जनगणना के आँकड़ों के आधार पर परिसीमन, विशेष रूप से तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व अधिकारों को प्रभावित करेगा।…तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों का संसदीय प्रतिनिधित्व केवल इसलिए कम करना पूरी तरह से अनुचित है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय हित में जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सक्रिय रूप से लागू किया है।

ट्रंप ने कहा, भारत को टैरिफ में कोई रियायत नहीं

अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक बार फिर भारत पर उसके ऊँचे टैरिफ को लेकर निशाना साधा और संकेत दिया कि व्यापार समझौते के लिए बातचीत में पारस्परिक टैरिफ जैसे व्यापक शुल्कों पर नई दिल्ली को रियायतें नहीं मिलेंगी, जो 2 अप्रैल से प्रभावी होने वाले हैं। उन्होंने ऑटो सेक्टर का विशेष उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने कहा कि भारत 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ वसूलता है।

अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, भारत हमसे 100 प्रतिशत टैरिफ वसूलता है; यह व्यवस्था अमेरिका के लिए उचित नहीं है, कभी थी ही नहीं। 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लागू हो जाएंगे। वे हम पर जो भी टैक्स लगाएंगे, हम उन पर लगाएंगे। अगर वे हमें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उन्हें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक बाधाओं का इस्तेमाल करेंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के बाद भारतीय उद्योग जगत में यह उम्मीद जागी थी कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नई दिल्ली को भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुँच के बदले में व्यापक टैरिफ से राहत दिलाने में मदद करेगा। भारत ने बातचीत शुरू होने से पहले ही बोरबॉन ह्विस्की जैसी कई वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती कर दी थी।

संसदीय-सीटों के परिसीमन पर बहस

परिसीमन के बाद संभावित तस्वीर
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से देश के राजनेताओं और विश्लेषकों के एक तबके ने दो-तीन बातों पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है। वे कहते हैं कि भारत में संविधान खतरे में है, लोकतंत्र विफल हो रहा है और यह भी कि लोकतंत्र का मतलब चुनाव जीतना भर नहीं होता। लोकतंत्र ही नहीं संघवाद को भी खतरे में बताया जा रहा है। बीजेपी के हिंदू-राष्ट्रवाद की अतिशय केंद्रीय-सत्ता को लेकर भी उनकी आपत्तियाँ हैं। 

इधर तमिलनाडु से हिंदी-साम्राज्यवाद को लेकर बहस फिर से शुरू हुई है, जिसमें संसदीय-सीटों के परिसीमन को लेकर आपत्तियाँ भी शामिल हैं। दक्षिण के नेताओं का तर्क है कि यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होगा, तब दक्षिण के राज्य नुकसान में रहेंगे, जबकि जनसंख्या-नियंत्रण में उनका योगदान उत्तर के राज्यों से बेहतर रहा है। उनका सुझाव है कि संसदीय परिसीमन में संघवाद के मूल्यों का अनुपालन होना चाहिए।

परिसीमन से जुड़े इन्हीं सवालों को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 5 मार्च को चेन्नई में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा: तमिलनाडु अपने अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। परिसीमन का खतरा दक्षिणी राज्यों पर डैमोक्लीज़ की तलवार की तरह मंडरा रहा है। मानव विकास सूचकांक में अग्रणी तमिलनाडु के सामने गंभीर खतरा खड़ा है। 

Saturday, March 1, 2025

ट्रंप-ज़ेलेंस्की संवाद जो टीवी का तमाशा बन गया


शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति के ओवल ऑफिस में हुई तनावपूर्ण मुलाकात में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर  राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से समर्थन पाने की मिन्नत की, लेकिन उन्हें मुखर गुस्से और प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। यह बैठक अंततः तमाशा साबित हुई, जो इस स्तर के राजनय से मेल नहीं खाता है। दुनिया भर के टीवी पर्दों पर इस मुठभेड़ में संज़ीदगी नज़र ही नहीं आई। इस बैठक ने, जो कभी गरम और कभी नरम में बदलती रही, दोनों के बीच बढ़ती दरार को उजागर कर दिया और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलता को रेखांकित किया।

इस बैठक में ट्रंप ने बार-बार युद्ध को खत्म करने पर जोर दिया और अमेरिकी भागीदारी पर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे त्वरित समाधान चाहते हैं, जबकि ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दी कि अचानक युद्ध विराम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फिर से हथियारबंद होने और संघर्ष को फिर से भड़काने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की इस बात के लिए दबाव डाला कि शांति समझौता अनिवार्य है। वह भी ऐसी शर्तों पर जो मॉस्को के प्रति बहुत नरम होंगी।

शुक्रवार को ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच हुई मुलाक़ात पारंपरिक राजनय से एकदम अलग थी। यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता और रूस के साथ चल रहे युद्ध को लेकर महीनों तक तनाव के बाद, ज़ेलेंस्की आश्वासन पाने के लिए वाशिंगटन गए थे। ट्रंप रूस और यूक्रेन के बीच समझौते पर मध्यस्थता करने पर अड़े रहे, जिसे उन्होंने ‘सदी का सौदा’कहा है। उन्हें उम्मीद थी कि यह उनकी शर्तों पर होगा।

आर्टेमिस कार्यक्रम

बाहरी अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसमें 2027 तक चंद्रमा पर मनुष्य की यात्रा का प्रयास शामिल है। इसके अलावा इसका लक्ष्य मंगल ग्रह और उससे आगे अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार करना है। 21 जनवरी 2025 को इस समझौते में फिनलैंड के प्रवेश के साथ, 53 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें यूरोप के 27, एशिया के नौ, दक्षिण अमेरिका के सात, उत्तरी अमेरिका के  पाँच, अफ्रीका के तीन और ओसनिया के दो देश शामिल हैं। समझौते पर मूल रूप से 13 अक्तूबर 2020 को आठ देशों की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए गए थे। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़ेम्बर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस कार्यक्रम के समांतर चीन और रूस के नेतृत्व में इंटरनेशनल ल्यूनर रिसर्च स्टेशन (आईआरएलएस) नाम से एक और समझौता भी है। इसका इरादा भी चंद्र सतह पर या चंद्र कक्षा में व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण करना है। इसमें 13 सदस्य देश हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 मार्च, 2025 को प्रकाशित