Wednesday, March 5, 2025

स्टालिन ने कहा परिसीमन को तीस साल के लिए ‘फ़्रीज़’ करो


1965 में केंद्र सरकार ने दक्षिण भारत के राज्यों को आश्वासन दिया था कि अब अंग्रेजी अनंतकाल तक हिंदी के साथ भारत की राजभाषा बनी रहेगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को यदि दक्षिण भारतीय जनमत का प्रतिनिधि माना जाए, तो नई माँग यह है कि 2026 के बाद लोकसभा की सीटों का परिसीमन 30 साल तक के लिए ‘फ़्रीज़’ कर दिया जाए। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आज 5 मार्च को इस विषय पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें 2026 में प्रस्तावित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन प्रक्रिया को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया गया।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस लड़ाई को अन्य दक्षिणी राज्यों तक बढ़ाने की माँग करते हुए कहा कि परिसीमन तमिलनाडु को 'कमजोर' करेगा और 'भारत के और ‘भारत के संघीय ढाँचे के लिए खतरा’ होगा। 

इस बैठक में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, अखिल भारतीय द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, कांग्रेस, विदुथलाई चिरुथिगल काची, तमिलगा वेत्री कषगम और कम्युनिस्ट पार्टियों सहित राजनीतिक दलों ने भाग लिया। भारतीय जनता पार्टी और नाम तमिलार काची और तमिल मानीला कांग्रेस ने इस बैठक का बहिष्कार किया। 

बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार, आगामी जनगणना के आँकड़ों के आधार पर परिसीमन, विशेष रूप से तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व अधिकारों को प्रभावित करेगा।…तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों का संसदीय प्रतिनिधित्व केवल इसलिए कम करना पूरी तरह से अनुचित है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय हित में जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सक्रिय रूप से लागू किया है।

ट्रंप ने कहा, भारत को टैरिफ में कोई रियायत नहीं

अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक बार फिर भारत पर उसके ऊँचे टैरिफ को लेकर निशाना साधा और संकेत दिया कि व्यापार समझौते के लिए बातचीत में पारस्परिक टैरिफ जैसे व्यापक शुल्कों पर नई दिल्ली को रियायतें नहीं मिलेंगी, जो 2 अप्रैल से प्रभावी होने वाले हैं। उन्होंने ऑटो सेक्टर का विशेष उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने कहा कि भारत 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ वसूलता है।

अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, भारत हमसे 100 प्रतिशत टैरिफ वसूलता है; यह व्यवस्था अमेरिका के लिए उचित नहीं है, कभी थी ही नहीं। 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लागू हो जाएंगे। वे हम पर जो भी टैक्स लगाएंगे, हम उन पर लगाएंगे। अगर वे हमें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उन्हें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक बाधाओं का इस्तेमाल करेंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के बाद भारतीय उद्योग जगत में यह उम्मीद जागी थी कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नई दिल्ली को भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुँच के बदले में व्यापक टैरिफ से राहत दिलाने में मदद करेगा। भारत ने बातचीत शुरू होने से पहले ही बोरबॉन ह्विस्की जैसी कई वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती कर दी थी।

संसदीय-सीटों के परिसीमन पर बहस

परिसीमन के बाद संभावित तस्वीर
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से देश के राजनेताओं और विश्लेषकों के एक तबके ने दो-तीन बातों पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है। वे कहते हैं कि भारत में संविधान खतरे में है, लोकतंत्र विफल हो रहा है और यह भी कि लोकतंत्र का मतलब चुनाव जीतना भर नहीं होता। लोकतंत्र ही नहीं संघवाद को भी खतरे में बताया जा रहा है। बीजेपी के हिंदू-राष्ट्रवाद की अतिशय केंद्रीय-सत्ता को लेकर भी उनकी आपत्तियाँ हैं। 

इधर तमिलनाडु से हिंदी-साम्राज्यवाद को लेकर बहस फिर से शुरू हुई है, जिसमें संसदीय-सीटों के परिसीमन को लेकर आपत्तियाँ भी शामिल हैं। दक्षिण के नेताओं का तर्क है कि यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होगा, तब दक्षिण के राज्य नुकसान में रहेंगे, जबकि जनसंख्या-नियंत्रण में उनका योगदान उत्तर के राज्यों से बेहतर रहा है। उनका सुझाव है कि संसदीय परिसीमन में संघवाद के मूल्यों का अनुपालन होना चाहिए।

परिसीमन से जुड़े इन्हीं सवालों को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 5 मार्च को चेन्नई में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा: तमिलनाडु अपने अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। परिसीमन का खतरा दक्षिणी राज्यों पर डैमोक्लीज़ की तलवार की तरह मंडरा रहा है। मानव विकास सूचकांक में अग्रणी तमिलनाडु के सामने गंभीर खतरा खड़ा है। 

Saturday, March 1, 2025

ट्रंप-ज़ेलेंस्की संवाद जो टीवी का तमाशा बन गया


शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति के ओवल ऑफिस में हुई तनावपूर्ण मुलाकात में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर  राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से समर्थन पाने की मिन्नत की, लेकिन उन्हें मुखर गुस्से और प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। यह बैठक अंततः तमाशा साबित हुई, जो इस स्तर के राजनय से मेल नहीं खाता है। दुनिया भर के टीवी पर्दों पर इस मुठभेड़ में संज़ीदगी नज़र ही नहीं आई। इस बैठक ने, जो कभी गरम और कभी नरम में बदलती रही, दोनों के बीच बढ़ती दरार को उजागर कर दिया और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलता को रेखांकित किया।

इस बैठक में ट्रंप ने बार-बार युद्ध को खत्म करने पर जोर दिया और अमेरिकी भागीदारी पर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे त्वरित समाधान चाहते हैं, जबकि ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दी कि अचानक युद्ध विराम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फिर से हथियारबंद होने और संघर्ष को फिर से भड़काने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की इस बात के लिए दबाव डाला कि शांति समझौता अनिवार्य है। वह भी ऐसी शर्तों पर जो मॉस्को के प्रति बहुत नरम होंगी।

शुक्रवार को ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच हुई मुलाक़ात पारंपरिक राजनय से एकदम अलग थी। यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता और रूस के साथ चल रहे युद्ध को लेकर महीनों तक तनाव के बाद, ज़ेलेंस्की आश्वासन पाने के लिए वाशिंगटन गए थे। ट्रंप रूस और यूक्रेन के बीच समझौते पर मध्यस्थता करने पर अड़े रहे, जिसे उन्होंने ‘सदी का सौदा’कहा है। उन्हें उम्मीद थी कि यह उनकी शर्तों पर होगा।

आर्टेमिस कार्यक्रम

बाहरी अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसमें 2027 तक चंद्रमा पर मनुष्य की यात्रा का प्रयास शामिल है। इसके अलावा इसका लक्ष्य मंगल ग्रह और उससे आगे अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार करना है। 21 जनवरी 2025 को इस समझौते में फिनलैंड के प्रवेश के साथ, 53 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें यूरोप के 27, एशिया के नौ, दक्षिण अमेरिका के सात, उत्तरी अमेरिका के  पाँच, अफ्रीका के तीन और ओसनिया के दो देश शामिल हैं। समझौते पर मूल रूप से 13 अक्तूबर 2020 को आठ देशों की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए गए थे। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़ेम्बर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस कार्यक्रम के समांतर चीन और रूस के नेतृत्व में इंटरनेशनल ल्यूनर रिसर्च स्टेशन (आईआरएलएस) नाम से एक और समझौता भी है। इसका इरादा भी चंद्र सतह पर या चंद्र कक्षा में व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण करना है। इसमें 13 सदस्य देश हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 मार्च, 2025 को प्रकाशित


Thursday, February 27, 2025

भाजपा और ‘फासिज़्म’ को लेकर वामपंथी खेमे में नई बहस


भारत के वामपंथियों और कांग्रेस पार्टी के बीच एक नई बहस शुरू हो गई है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ‘फासिस्ट’ या ‘नव-फासिस्ट’ है या नहीं। अब ‘फासिज्म’ की भारतीय परिभाषा को लेकर भी बहस होगी। इसकी वजह यह है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की अप्रैल में होने वाली 24वीं पार्टी कांग्रेस की बैठक से पहले राज्य इकाइयों को भेजे गए राजनीतिक प्रस्तावों में एक यह भी है कि पार्टी केंद्र सरकार को ‘फासिस्ट’ या ‘नव-फासिस्ट’ क्यों नहीं मानती। 

सीपीआई (एम) ने हाल में 24वीं पार्टी कांग्रेस के लिए अपना मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव जारी किया है-जो 2 से 6 अप्रैल तक मदुरै में आयोजित किया जाना है। इसमें कहा गया है कि (मोदी सरकार का) प्रतिक्रियावादी हिंदुत्व एजेंडा थोपने का प्रयास और विपक्ष और लोकतंत्र को दबाने का सत्तावादी अभियान नव-फासीवादी विशेषताओं को प्रदर्शित करता है...। मोदी सरकार के लगभग ग्यारह वर्षों के शासन के परिणामस्वरूप नव-फासीवादी विशेषताओं के साथ दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक, सत्तावादी ताकतों का एकीकरण हुआ है। 

नव-फासीवाद के लक्षण

गत 17-19 जनवरी के दौरान कोलकाता में आयोजित पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव को अपनाया गया था। इसमें कहा गया है, हालाँकि मोदी सरकार ‘नव-फासीवादी विशेषताओं’ को प्रदर्शित करती है, लेकिन उसे ‘फासीवादी या नव-फासीवादी सरकार’ कहना उचित नहीं।

Wednesday, February 26, 2025

हिंदी का विस्तार और उसकी विसंगतियाँ


हिंदी ।।चार।। संपर्क-भाषा.1

हिंदी के विस्तार, यानी अखिल-भारतीय स्वरूप के साथ, उसकी स्वीकृति और विरोध की दोतरफा प्रवृत्तियाँ एक साथ जन्म ले रही हैं। ये प्रवृत्तियाँ भी भारत में हिंदी के हृदय-क्षेत्र, परिधि-क्षेत्र और परिधि के पार वाले क्षेत्रों में अलग-अलग तरह की हैं। खबरिया और मनोरंजन चैनलों की वजह से हिंदी जानने वालों की तादाद बढ़ी है। हिंदी सिनेमा की वजह से तो वह थी ही। सच यह भी है कि हिंदी की आधी से ज्यादा ताकत गैर-हिंदी भाषी जन के कारण है। गुजराती, मराठी, पंजाबी, बांग्ला और असमिया इलाकों में हिंदी को समझने वाले काफी पहले से हैं। 

हिंदी का यह विस्तार उसे एक धरातल पर ऊपर ले गया है, पर वह बोलने, संपर्क करने, बाजार से सामान या सेवा खरीदने, मनोरंजन करने की भाषा तक सीमित है। विचार-दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति और साहित्यिक हिंदी का बाजार छोटा है। हिंदी-राष्ट्रवाद का भौगोलिक-आधार अब वही नहीं है, जो सौ साल पहले था. तब हिंदी का हृदय-क्षेत्र बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ, आगरा और बरेली जैसे शहर थे।

थरूर का महत्व और सम्मान बढ़ेगा, कम नहीं होगा


शशि थरूर के विचारों को लेकर कांग्रेस के भीतर और बाहर की अटकलों से लगता है कि वे अंततः पार्टी छोड़ देंगे। मुझे नहीं लगता कि वे पार्टी छोड़ेंगे, पर भारतीय-राजनीति में भरोसे के साथ कुछ भी कहना ठीक नहीं। जैसा भी हो, वे पार्टी छोड़ें या नहीं छोड़ें, उनका महत्व कम नहीं होगा, बल्कि बढ़ेगा। अलबत्ता कांग्रेस के आंतरिक-लोकतंत्र को लेकर जो बातें हैं, वे खत्म नहीं होंगी। 2022 में जब मल्लिकार्जुन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे, तब भी दो-तीन बातों की तरफ राजनीतिक-पर्यवेक्षकों का ध्यान गया था। करीब 24 साल बाद कांग्रेस की कमान किसी गैर-गांधी के हाथ में आई थी, पर जिस बदलाव की आशा पार्टी के भीतर और बाहर से की जा रही है, वह केवल इतनी ही नहीं थी। पार्टी के असंतुष्टों की, जिसे जी-23 के नाम से पहचाना गया था, माँग थी कि पार्टी में आंतरिक चुनाव कराए जाएँ। खरगे जी के चुनाव ने एक औपचारिकता को पूरा किया, पर यह सिर्फ औपचारिकता थी। सब जानते थे कि वे ‘परिवार’ के प्रत्याशी हैं। 

खरगे जी के आने के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ कि पार्टी की कमान उनके हाथों में आ गई हो। राहुल गांधी निर्विवाद रूप से पार्टी के नेता हैं। अध्यक्ष पद का चुनाव हो गया, पर कार्यसमिति का नहीं हुआ। अब 14 फरवरी को पार्टी ने एक बड़ा संगठनात्मक फेरबदल फिर किया है, जिसमें वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की छाप देखी जा सकती है। राहुल गांधी इस समय अजा-जजा, ओबीसी और मुसलमानों पर आधारित राजनीति  पर चल रहे हैं। यह राह उन्हें उत्तर भारत में सपा और राजद जैसी पार्टियों की प्रतिस्पर्धा में ले जाएँगी, जो सही राह है। बहरहाल इस आलेख का उद्देश्य पार्टी के आंतरिक-लोकतंत्र पर या पार्टी के राजनीतिक एजेंडा पर विचार करना नहीं है, बल्कि शशि थरूर की वह टिप्पणी है, जो उन्होंने केरल की वाममोर्चा सरकार के बारे में लिखे गए अपने एक लेख में की है। 

इस लेख में उन्होंने राज्य में कारोबारियों को दी जा रही सुविधाओं की तारीफ करते हुए लिखा है कि भारत की, और खासतौर से केरल की अर्थव्यवस्था स्टार्टअप छा गए हैं। 2024 ग्लोबल स्टार्टअप इकोसिस्टम रिपोर्ट के अनुसार, जिसने 300 से ज़्यादा उद्यमी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्रों में 4.5 मिलियन से ज़्यादा कंपनियों के डेटा का विश्लेषण किया, केरल ने एक स्टार्टअप इकोसिस्टम बनाया है, जिसका पिछले साल 18 महीने की अवधि के अंत में मूल्य 1.7 अरब डॉलर था, जो इसी अवधि के दौरान वैश्विक औसत से पाँच गुना ज़्यादा था। 1 जुलाई, 2021 और 31 दिसंबर, 2023 के बीच, जबकि दुनिया भर में औसत वृद्धि 46 प्रतिशत थी, केरल ने 254 प्रतिशत की चौंका देने वाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की: अभूतपूर्व उपलब्धि।

यूक्रेन-वार्ता से आगे जाएँगे दुनिया के ज्वलंत-प्रश्न


उम्मीद पहले से थी कि राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के बाद डॉनल्ड ट्रंप यूक्रेन की लड़ाई को रुकवाने के लिए हस्तक्षेप करेंगे, पर सब कुछ इतनी तेजी से होगा, इसका अनुमान नहीं था. दुनिया ‘मनमौजी’ मानकर उनकी बातों की अनदेखी करती रही है, पर अब सब मज़ाक नहीं लग रहा है.

इस हफ्ते दुनिया यूक्रेन की लड़ाई के तीन साल पूरे हो रहे हैं. इस लड़ाई में करीब दस लाख लोग मारे गए या घायल हुए हैं, जिससे यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे खूनी यूरोपीय युद्ध बन गया है. यह लड़ाई गहरे धार्मिक, जातीय और सांस्कृतिक संबंधों की कहानी कहती है, पर इसने दुनिया की अर्थव्यवस्था को जो घाव लगाए हैं, उन्हें भरने की जरूरत है.  

अगले कुछ दिनों में नज़र आने लगेगा कि वैश्विक-राजनीति में अमेरिका और रूस एक-दूसरे के साथ खड़े हैं. सवाल है कि क्या चीन की भी इसमें कोई भूमिका होगी या चीन का दबदबा रोकने की यह कोशिश है? सामने की बातों में तो चीन ने अमेरिकी पहल की तारीफ की है. 

लगता है कि बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा होने वाला है. भारत को ऐसे में अपने हितों की रक्षा करनी होगी. इस लड़ाई के दौरान भारत ने अपने दीर्घकालिक संबंधों को देखते हुए रूस की निंदा करने से परहेज किया है.  

Sunday, February 23, 2025

दिल्ली में एक सपने का टूटना, और नई सरकार के सामने खड़ी चुनौतियाँ

आम आदमी पार्टी की हार और भाजपा की जीत का असर दिल्ली से बाहर देश के दूसरे इलाकों पर भी होगा। हालाँकि दिल्ली बहुत छोटा बल्कि आधा, राज्य है, फिर भी राष्ट्रीय-राजधानी होने के नाते सबकी निगाहों में चढ़ता है। वहाँ एक ऐसी पार्टी का शासन था, जिसके जन्म और सफलता के साथ पूरे देश के आम आदमी के सपने जुड़े हुए थे। उन सपनों को टूटे कई साल हो गए हैं, पर जिस वाहन पर वे सवार थे, वह अब जाकर ध्वस्त हुआ। बेशक, केंद्र की शक्तिशाली सत्तारूढ़ पार्टी ने उन्हें पराजित कर दिया, लेकिन अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के राजनीतिक पतन के पीछे तमाम कारण ऐसे हैं, जिन्हें उन्होंने खुद जन्म दिया। 

नतीजे भाजपा की विजय के बारे में कम और ‘आप’ के पतन के बारे में ज्यादा हैं। यह बदलाव राजनीतिक परिदृश्य में अचानक नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे 2014 से चल रही कशमकश है। केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल, नगर निगमों, केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के माध्यम से शासन पर नकेल डाल रखी थी। आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी अपने पूरे समय में केंद्र के साथ तकरार जारी रखी। इसके नेता केजरीवाल की राष्ट्रीय-महत्वाकांक्षाएँ कभी छिपी नहीं रहीं। उनकी महत्वाकांक्षाएँ जितनी निजी थीं, उतनी सार्वजनिक नहीं। 

मोदी की सफलता

बीजेपी ने इससे पहले दिल्ली विधानसभा का चुनाव 1993 में जीता था। पिछले दो चुनावों में केंद्र में अपनी सरकार होने के बावजूद वह जीत नहीं पाई। इसका एक बड़ा कारण राज्य स्तर पर कुशल संगठन की कमी थी। इसबार पार्टी ने न केवल पूरी ताकत से यह चुनाव लड़ा, साथ ही संगठन का पूरा इस्तेमाल किया। ऐसा करते हुए उसने किसी नेता को संभावित मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की कोशिश भी नहीं की, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे रखा। प्रधानमंत्री ने भी दिल्ली के प्रचार को पर्याप्त समय दिया और आम आदमी पार्टी को ‘आपदा’ बताकर एक नया रूप भी दिया। उन्होंने जिस तरह से प्रचार किया, उससे समझ में आ गया था कि वे दिल्ली में सत्ता-परिवर्तन को कितना महत्व दे रहे हैं। 

Saturday, February 22, 2025

तमिलनाडु में क्या फिर से शुरू होगा हिंदी-विरोधी आंदोलन?

नई शिक्षा-नीति और केंद्र की तीन-भाषा नीति के खिलाफ सड़कों पर लिखे नारे


हिंदी की पढ़ाई को लेकर तमिलनाडु में एकबार फिर से तलवारें खिंचती दिखाई पड़ रही हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने मंगलवार को एक विशाल विरोध-प्रदर्शन में चेतावनी दी कि हिंदी थोपने वाली केंद्र सरकार के खिलाफ एक और विद्रोह जन्म ले सकता है। उनके पहले मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्यों पर शिक्षा-निधि के मार्फत दबाव बनाने का आरोप लगाया था। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में द्रमुक ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन-भाषा फॉर्मूले की आलोचना करके माहौल को गरमा दिया है। 

तमिलनाडु में भाषा केवल शिक्षा या संस्कृति का विषय नहीं है। द्रविड़-राजनीति ने इसके सहारे ही सफलता हासिल की है। द्रविड़ आंदोलन, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके दोनों को जन्म दिया, भाषाई आत्मनिर्णय के सिद्धांत पर आधारित था। राष्ट्रीय आंदोलन के कारण इस राज्य में भी कांग्रेस, मुख्यधारा की पार्टी थी, पर भाषा पर केंद्रित द्रविड़ आंदोलन ने राज्य से कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और आज तमिलनाडु में कांग्रेस द्रमुक के सहारे है।  

इस राज्य में भाषा-विवाद लगातार उठते रहते हैं। पिछले साल संसदीय शीत-सत्र में 5 दिसंबर को विरोधी दलों के सदस्यों ने ‘भारतीय न्याय संहिता’ के हिंदी और संस्कृत नामों के विरोध में सरकार पर हमला बोला। उन्होंने सरकार पर ‘हिंदी इंपोज़ीशन’ का आरोप लगाया। एक दशक पहले तक ऐसे आरोप आमतौर पर द्रमुक-अद्रमुक और दक्षिण भारतीय सदस्य लगाते थे। अब ऐसे आरोप लगाने वालों में कांग्रेस पार्टी भी शामिल है।

Thursday, February 20, 2025

हिंदी या उर्दू?


हिंदी ।।तीन।।

पिछले कुछ समय से फेसबुक पर मेरी पोस्ट में जब कोई अरबी-फारसी मूल का शब्द आ जाता था, तो एक सज्जन झिड़की भरे अंदाज़ में लिखते थे कि उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल मत कीजिए। एक और सज्जन ने करीब दो-तीन सौ शब्दों की सूची जारी कर दी, जिनके बारे में उनका कहना था कि संस्कृत-मूल के शब्द लिखे जाएँ। मैं ऐसे मित्रों से अनुरोध करूँगा कि पहले तो वे लिपि और भाषा के अंतर को समझें और दूसरे हिंदी के विकास का अध्ययन करें। बहरहाल तंग आकर मैंने उन साहब को अपनी मित्र सूची से हटा दिया। फेसबुक में जिसे मित्र-सूची कहते हैं, वह मित्र-सूची होती भी नहीं है। मित्र होते तो कम से कम कुछ बुनियादी बातें, तो मेरे बारे में समझते होते, ख़ैर। 

उर्दू से कुछ लोगों का आशय होता है, जिस भाषा में अरबी-फारसी के शब्द बहुतायत से हों और जो नस्तालिक लिपि में लिखी जाती हो। उर्दू साहित्य के शीर्ष विद्वानों में से एक शम्सुर्रहमान फारुकी ने लिखा है कि भाषा के नाम की हैसियत से 'उर्दू' शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1780 के आसपास हुआ था। उसके पहले इसके हिंदवी, हिंदी और रेख़्ता नाम प्रचलित थे। आज के दौर में उर्दू और हिंदी, मोटे तौर पर एक ही भाषा के दो नाम हैं। उर्दू में अरबी-फारसी शब्दों को शामिल करने की वज़ह से और नस्तालिक-लिपि के कारण तलफ़्फ़ुज़ का अंतर है, पर बुनियादी वाक्य-विन्यास एक है। 

आधुनिक हिंदी और उर्दू का विकास वस्तुतः हिंदी और उर्दू का विकास है। इन दोनों भाषाओं का विभाजन आज से करीब दो-ढाई सौ साल पहले होना शुरू हुआ था, जो हमारे सामाजिक-विभाजन का भी दौर है। इस विभाजन ने 1947 में राजनीतिक-विभाजन की शक्ल ले ली, तो यह और पक्का हो गया। भाषा की सतह पर भी दोनों के बुनियादी अंतरों को समझे बिना इस विकास को समझना मुश्किल है। 

Wednesday, February 19, 2025

क्या टैरिफ तय करेगा वैश्विक-संबंधों की दिशा?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन-यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ, पर संबंधों का महत्वाकांक्षी एजेंडा ज़रूर तैयार हुआ है. यात्रा के पहले आप्रवासियों के निर्वासन को लेकर जो तल्खी थी, वह इस दौरान व्यक्त नहीं हुई. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जिस ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ के विचार को आगे बढ़ा रहे हैं, वह केवल भारत को ही नहीं, सारी दुनिया को प्रभावित करेगा. यह विचार नब्बे के दशक में शुरू हुए वैश्वीकरण के उलट है. इसके कारण विश्व-व्यापार संगठन जैसी संस्थाएँ अपना उद्देश्य खो बैठेंगी, क्योंकि बहुपक्षीय-समझौते मतलब खो बैठेंगे.  

जहाँ तक भारत का सवाल है, अभी तक ज्यादातर बातें अमेरिका की ओर से कही गई हैं. अलबत्ता यात्रा के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य काफी सकारात्मक है.  इसमें व्यापार समझौते की योजना भी है, जो संभवतः इस साल के अंत तक हो सकता है. 

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को उम्मीद जताई कि अब दोनों पक्ष एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धी सामर्थ्य के साथ मिलकर काम कर सकेंगे. इस दिशा में पहली बार 2020 में चर्चा हुई थी, पर पिछले चार साल में इसे अमेरिका ने ही कम तरज़ीह दी. 

Friday, February 14, 2025

हिंदी के अंतर्विरोध

हिंदी की ताकत है उसका क्रमशः अखिल भारतीय होते जाना, और यही उसकी समस्या भी है। उसकी अखिल भारतीयता के अंतर्विरोध हमारे सामने हैं। जैसे-जैसे उसका विस्तार हो रहा है, उसके शत्रुओं की संख्या भी बढ़ रही है। हम सहज भाव से मान लेते हैं कि हिंदी राष्ट्रभाषा है, पर संवैधानिक-दृष्टि से वह राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा है। यह बात तंज़ में कही जाती है, इस बात पर विचार किए बगैर कि राजभाषा क्यों है, राष्ट्रभाषा क्यों नहीं? दोनों में फर्क क्या है? और जब राजभाषा अंग्रेजी है और मानकर चलिए कि हमेशा के लिए है, तो फिर हिंदी को राजभाषा बनाने की जरूरत ही क्या थी? 

यह राजनीतिक प्रश्न है और इसका उत्तर भी राजनीतिक ही है। हिंदी को राजभाषा बनाने के पीछे संविधान सभा में जो समझौता हुआ था, उसकी प्रकृति पूरी तरह राजनीतिक थी। पिछले कुछ वर्षों से हिंदी के विस्तार को ‘हिंदी-इंपीरियलिज़्म’ या हिंदी-साम्राज्यवाद का नाम भी दिया गया है। यह बात उस कांग्रेस पार्टी के नेता कह रहे हैं, जिसके नेतृत्व में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। 

संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का विकास सहज रूप में हुआ था। उसमें किसी सरकार की भूमिका नहीं थी। अलग-अलग वक्त में उसकी अलग-अलग जरूरतें पैदा होती गईं और जगह बनती गई। चेन्नई में भले ही आपको हिंदी बोलने वाले नहीं मिलें, कन्याकुमारी, मदुरै या रामेश्वरम में मिलेंगे। मानक भाषा के रूप में विकसित होने के पहले से हिंदी साधु-संतों और तीर्थयात्रियों के मार्फत अंतर्देशीय-संपर्क की भाषा के रूप में प्रचलित थी। अब रोजगारों की खोज में चल रहे जबर्दस्त प्रवास के कारण संपर्क भाषा बन रही है। 

Thursday, February 13, 2025

हिंदी की वर्तनी

कुछ साल पहले मुझसे एक मित्र ने कहा, मॉनसून क्यों, मानसून क्यों नहीं? दक्षिण भारतीय भाषाओं में और अंग्रेज़ी सहित अनेक विदेशी भाषाओं में ओ और औ के बीच में एक ध्वनि और होती है। ऐसा ही ए और ऐ के बीच है। Call को देवनागरी में काल लिखना अटपटा है। देवनागरी ध्वन्यात्मक लिपि है तो हमें अधिकाधिक ध्वनियों को उसी रूप में लिखना चाहिए। इसलिए वृत्तमुखी ओ को ऑ लिखते हैं। हिंदी के अलग-अलग क्षेत्रों में औ और ऐ को अलग-अलग ढंग से बोला जाता है। मेरे विचार से बाल और बॉल को अलग-अलग ढंग से लिखना बेहतर होगा।

बात औ या ऑ की नहीं। बात मानकीकरण की है। हिंदी का जहाँ भी प्रयोग है वहाँ की प्रकृति और संदर्भ के साथ कुछ मानक होने ही चाहिए। मीडिया की भाषा को सरल रखने का दबाव है, पर सरलता और मानकीकरण का कोई बैर नहीं है। हिंदी के कुछ अखबार अंग्रेज़ी शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। उनके पाठक को वही अच्छा लगता है, तब ठीक है। पर वे ‘टारगेट’ लिखेंगे या ‘टार्गेट’ यह भी तय करना होगा। प्रफेशनल होगा या प्रोफेशनल? वीकल होगा, वेईकल या ह्वीकल? 

ऐसा मैं हिंदी के एक अखबार में प्रकाशित प्रयोगों को देखने के बाद लिख रहा हूँ। आसान भाषा बाज़ार की ज़रूरत है, सुसंगत भाषा भी उसी बाज़ार की ज़रूरत है। सारी दुनिया की अंग्रेज़ी भी एक सी नहीं है, पर एपी या इकोनॉमिस्ट की स्टाइल शीट से पता लगता है कि संस्थान की शैली क्या है। यह शैली सिर्फ भाषा-विचार नहीं है। इसमें अपने मंतव्य को प्रकट करने के रास्ते भी बताए जाते हैं। 

Wednesday, February 12, 2025

आपका स्वप्न-भंग

देश में ज्यादातर राजनीति ग्राम-केंद्रित है, पर दिल्ली जैसे छोटे प्रदेश से एक आदर्श नगर-केंद्रित राजनीति का मौक़ा आम आदमी पार्टी को मिला। यह अपेक्षाकृत नया विचार था। नगर-केंद्रित राजनीति क्या हो सकती है, उसपर अलग से विचार करने की जरूरत है। यहाँ मेरा इरादा आम आदमी पार्टी को लेकर कुछ बातें लिखने का है। इस पार्टी ने धीरे-धीरे काम किया होता अपने मॉडल को सारे देश में लागू करने की बातें होतीं, तब भी बात थी। पर पार्टी ने एकसाथ सारे देश को जीतने के इरादे घोषित कर दिए। यह भी ठीक था, पर उसके लिए पर्याप्त होमवर्क और परिपक्व-विचार नहीं था। राजनीतिक-विस्तार के लिए जिन संसाधनों की जरूरत होती है, उसे बटोरने के चक्कर में यह उसी वात्याचक्र में घिर गई, जिसे शुरू में इसके नेता राजनीतिक-भ्रष्टाचार कहते थे। उसके नेताओं ने महत्वाकांक्षाओं का कैनवस इतना बड़ा बना लिया कि उसपर कोई तस्वीर बन ही नहीं सकती।

राजनीति के लिए पैसा चाहिए और आम आदमी पार्टी भी सत्ता के उन स्रोतों तक पहुँच गई, जो प्राणवायु प्रदान करते हैं। यह पार्टी इस प्राणवायु के स्रोत बंद करने के नाम पर आई थी और ख़ुद इस 'ऑक्सीजन' की शिकार हो गई। सब कुछ केवल पार्टी के विरोधियों की साज़िश के कारण नहीं हुआ। ‘आप’ का दोष केवल इतना नहीं है कि उसने एक सुंदर सपना देखा और उसे सच करने में वह नाकामयाब हुई। ऐसा होता तब भी गलत नहीं था। अब हालत यह है कि कोई नया सपना देखने वालों पर जनता भरोसा नहीं करेगी। वस्तुतः ‘आप’ यह साबित करने में फेल हुई कि वह आपकी पार्टी है।

Tuesday, February 11, 2025

अमेरिका के साथ सौदेबाज़ी का दौर

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते की अमेरिका-यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से कुछ अलग होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ताबड़तोड़ नीतियों के कारण बदलते वैश्विक-समीकरण. उनके अप्रत्याशित फैसले, तमाम दूसरे देशों के साथ भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं.

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि शायद दोनों के रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने वाला है, पर सामान्य भारतीय मन अमेरिका से निर्वासित लोगों के अपमान को लेकर क्षुब्ध है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसा दोस्ताना व्यवहार है? 

ट्रंप मूलतः कारोबारी सौदेबाज़ हैं और धमकियाँ देकर सामने वाले को अर्दब में लेने की कला उन्हें आती है. शायद वे कुछ बड़े समझौतों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है.

वर्चस्व का स्वप्न

ट्रंप का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका की सदाशयता का बहुत फायदा उठाया, अब हम अपनी सदाशयता वापस ले रहे हैं. असल भावना यह है कि हम बॉस हैं और बॉस रहेंगे. इस बात से उनके गोरे समर्थक खुश हैं, जिन्हें लगता है कि देश के पुराने रसूख को ट्रंप वापस ला रहे हैं.   

Tuesday, February 4, 2025

आक्रामक-ट्रंप और भारत से रिश्तों का नया दौर


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अमेरिका की यात्रा पर आ सकते हैं. उसके बाद से अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः अगले कुछ दिनों में उनकी यात्रा की तिथियाँ घोषित हो सकती हैं.  

यह यात्रा अभी हो या कुछ समय बाद, अमेरिकी-नीतियों में आ रहे बदलाव को देखते हुए यह ज़रूरी है. बेशक, दोनों मित्र देश हैं, पर अब जो पेचीदगियाँ पैदा हो रही हैं, उन्हें देखते हुए भारत को सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे.  

पहला हमला

राष्ट्रपति ट्रंप ने पहला हमला कर भी दिया है, जिसका वैश्विक-व्यापार, विकास और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा. शनिवार को उन्होंने अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैरिफ लगाने वाले कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. 

अमेरिका मंगलवार 4 फरवरी से कनाडा और मैक्सिको से हो रहे आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ और चीन पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा रहा है. इन तीन देशों से अमेरिकी-आयात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा आता है. 

यह फैसला इन देशों को हो रहे अवैध आव्रजन, जहरीले फेंटेनाइल और अन्य नशीले पदार्थों को अमेरिका में आने से रोकने और अपने वादों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए किया गया है. कनाडा और मैक्सिको ने इसपर जवाबी कार्रवाई की घोषणा भी की है, जबकि चीन ने कहा है कि हम विश्व व्यापार संगठन में जाएँगे. 

Wednesday, January 29, 2025

ट्रंप क्या यूक्रेन की लड़ाई भी रुकवा सकेंगे?


अमेरिका में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रंप के बैठने के बाद से दुनियाभर के मीडिया में सवालों की झड़ी लगी है. लगता है कि जियो-पोलिटिकल स्तर पर दुनिया में हाईटेक-दौर की शुरुआत होने जा रही है. 

‘अमेरिकी महानता’ की पुनर्स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उन्होंने दर्जनों आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें आप्रवासियों को हिरासत में लेना भी शामिल है. ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव के अनुसार यह ‘इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान’ है. 

भारत के नज़रिये से हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियाँ महत्वपूर्ण होंगी. इस साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा, जिसमें ट्रंप आएँगे. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होना भी बड़ी घटना है. 

ट्रंप ने रूस से यूक्रेन की लड़ाई रोकने का आग्रह किया है और खनिज तेल उत्पादक ओपेक देशों से कहा है कि वे पेट्रोलियम के दाम कम करें. आंतरिक रूप से वे अमेरिका पर भारी पड़ रहे अवैध आप्रवासियों के बोझ को दूर करना चाहते हैं.  

Tuesday, January 28, 2025

जगाएँ अपने गणतांत्रिक-सपनों को

रघुवीर सहाय की कविता है: 

राष्ट्रगीत में भला कौन वह/ भारत-भाग्य-विधाता है/ फटा सुथन्ना पहने जिसका/ गुन हरचरना गाता है/ मखमल, टमटम, बल्लम, तुरही/ पगड़ी, छत्र-चँवर के साथ/ तोप छुड़ाकर, ढोल बजाकर/ जय-जय कौन कराता है/ पूरब-पश्चिम से आते हैं/ नंगे-बूचे नरकंकाल/ सिंहासन पर बैठा/ उनके तमगे कौन लगाता है।

हमारे यहाँ हर रोज कोई न कोई पर्व होता है, पर तीन राष्ट्रीय पर्व हैं: स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती और ‘गणतंत्र दिवस।’ नागरिकों की दृष्टि से तीनों महत्वपूर्ण हैं, पर तीनों में 26 जनवरी खासतौर से नागरिकों का दिन है। स्वतंत्र नागरिकों की अपनी व्यवस्था का नाम है ‘गणतंत्र’। जिस देश के राष्ट्राध्यक्ष को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से नागरिक चुनते हैं। शासन-प्रणाली वह रूप है, जो ‘सार्वजनिक’ है, किसी की ‘निजी-संपत्ति’ नहीं। 

Wednesday, January 22, 2025

गज़ा में उम्मीदों की वापसी, फिर भी संदेहों के बादल

 

हमास की कैद से मुक्त हुई इसराइली लड़की रोनी गोनेन

पश्चिम एशिया में युद्ध-विराम हो तो गया है, पर इसे स्थायी-शांति नहीं माना जा सकता है. बावज़ूद इसके यह बड़ी सफलता है. पिछले 15 महीने से चली आ रही लड़ाई को रोकने में यह बड़ी कामयाबी है. 

युद्ध-विराम शांति नहीं है, बल्कि ऐसे संघर्ष के बाद ,जिसमें 46,000 से ज्यादा लोग मारे गए, उम्मीद की एक किरण है. सवाल हैं कि क्या यह समझौता इस इलाके में स्थायी-शांति का आधार बन सकेगा? 

अंदेशा है कि इसराइली सेना अभी भले ही हट जाय, पर एक-दो या छह-आठ महीने बाद, वह वापस भी आ सकती है. इसी तरह हमास के हाथ में कुछ ऐसे हथियार रहेंगे, जो भविष्य की सौदेबाज़ी में काम आएँगे.  

Wednesday, January 15, 2025

भारत-अफगान रिश्तों में बड़ा मोड़


एक तरफ भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में कड़वाहट आ रही है, वहीं अफगानिस्तान के साथ रिश्तों में अप्रत्याशित सुधार दिखाई पड़ रहा है. पिछली 8 जनवरी को भारत के विदेश-सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेशमंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक से एक साथ कई तरह के संदेश गए हैं. 

अब तक संयुक्त सचिव स्तर के एक भारतीय अधिकारी मुत्तकी और रक्षामंत्री मोहम्मद याकूब सहित तालिबान के मंत्रियों से मिलते रहे हैं. लेकिन विदेश सचिव की इस मुलाकात से रिश्तों को एक नया आयाम मिला है. भारत के इस कदम को राष्ट्रीय-सुरक्षा की दृष्टि से उठाया गया कदम माना जा रहा है.

इस मुलाकात के पहले भारत ने पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में किए गए हमलों की निंदा करके प्रतीक रूप में संकेत दे दिया था कि वह किसी बड़ी राजनयिक-पहल के लिए तैयार है. 

हाल में पाकिस्तानी वायुसेना के हमले में महिलाओं और बच्चों सहित 46 अफगान नागरिकों की जान गई थी. इससे बिगड़ते पाक-अफगान रिश्तों पर रोशनी पड़ी, वहीं भारत के बयान से इसका दूसरा पहलू भी उजागर हुआ.

स्थिति में सुधार

भारत की दिलचस्पी इस बात में रही है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद का  पनपना बंद हो जाए. सभी अनुमानों के अनुसार, स्थिति में सुधार हुआ है. यह भी सच है कि वहाँ महिलाओं के अधिकारों को कुचला गया है, जो भारत के लिए परेशानी की बात है. 

पर्यवेक्षक मानते हैं कि भारत के इस समय बातचीत करने के पीछे कुछ बड़े कारण इस प्रकार हैं: एक, तालिबान का हितैषी और सहयोगी पाकिस्तान उसका विरोधी बन गया है, ईरान काफ़ी कमज़ोर हो गया है, रूस अपनी लड़ाई में फँसा है और अमेरिका ट्रंप की वापसी देख रहा है. 

Wednesday, January 8, 2025

म्यांमार के फौजी-शासन के खिलाफ बगावत और देश टूटने का खतरा

 

बांग्लादेश के सत्ता-परिवर्तन और मणिपुर तथा पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में चल रही गतिविधियों के बरक्स म्यांमार में चल रहे संघर्ष पर ध्यान देने की जरूरत आन पड़ी है. वहाँ बड़ी तेजी से स्थितियाँ बदल रही हैं. 

गत 9 दिसंबर को, अराकान आर्मी (एए) ने महत्वपूर्ण पश्चिमी शहर माउंगदाव में आखिरी चौकियों पर कब्जा करके बांग्लादेश के साथ 271 किलोमीटर लंबी सीमा पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया. माउंगदाव, म्यांमार के अराकान राज्य का उत्तरी इलाका है और बांग्लादेश के कॉक्स बाजार इलाके से सटा हुआ है. 

रखाइन में अराकान आर्मी की यह जीत म्यांमार से अलग स्वतंत्र देश बनाने की दिशा में भी बढ़ सकती है. इस प्रांत में 17 में से 14 शहरों-कस्बों पर उसका कब्जा हो गया है. देश के लगभग बीस प्रतिशत कस्बों और कस्बों पर उनका नियंत्रण है. 

यह घटनाक्रम भारत को भी प्रभावित करेगा. भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ की देहरी पर म्यांमार पहला देश है. वहाँ की गतिविधियाँ हमारे पूर्वोत्तर को भी प्रभावित करती हैं. इस इलाके पर चीन के प्रभाव को देखते हुए भी वहाँ की आंतरिक गतिविधियों पर निगाहें रखना जरूरी है. 

दुनिया की बेरुखी

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी अब म्यांमार में दिलचस्पी लेना कम कर दिया है. केवल आसियान कोशिश करता है, पर वह भी बहुत सफल नहीं है. कुछ साल पहले तक अमेरिका की सरकार, म्यांमार में लोकतंत्र की प्रबल समर्थक नज़र आती थी. उसने पिछले एक दशक में लोकतंत्र समर्थक समूहों को 1.5 अरब  डॉलर से अधिक दिए हैं. पर अब उसने भी अपने हाथ खींच लिए हैं. 

Sunday, January 5, 2025

2025: दुनिया की गति और हमारी प्रगति

देखते ही देखते इक्कीसवीं सदी का 24वाँ साल गुज़र गया और 25वाँ आ गया। जिस सदी को लेकर बड़े-बड़े सपने थे, उसके एक चौथाई साल 2025 में पूरे हो जाएंगे। किधर जा रही है दुनिया और कहाँ खड़े हैं हम? देश की करीब 145 करोड़ की आबादी में पाँच से दस करोड़ लोगों ने 31 की रात नए साल का जश्न मनाकर स्वागत किया। शायद इतने ही लोगों को नए साल के आगमन की जानकारी थी, पर वे जश्न में शामिल नहीं थे। इतने ही लोगों ने सुना कि नया साल आ गया और उन्होंने यकीन कर लिया। फिर भी 100 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे होंगे, जिन्हें किसी के आने और जाने की खबर नहीं थी। उनकी वह रात भी वैसे ही बीती जैसे हमेशा बीतती है-सर्द और अंधेरी।  

नया साल आपके लिए और मेरे लिए कैसा होगा, इसका पता लगाने के दो तरीके हैं। या तो किसी ज्योतिषी की शरण में जाएँ या वैश्विक घटनाक्रम की जटिल गुत्थियों को समझने की कोशिश करें। समझें ही नहीं, भी देखें कि हमारे ऊपर उनका क्या असर होने वाला है। 2020 में जनवरी के महीने में हमें पता नहीं था कि हम खतरे से घिरने वाले हैं। ज्यादा से ज्यादा कुछ लोगों को खबर थी कि चीन में कोई बीमारी फैली है। फैली है, तो हमारी बला से। दो-तीन महीनों के भीतर हमने उस बीमारी को भारत में, और फिर अपने आसपास प्रवेश करते देख लिया। 

Saturday, January 4, 2025

आंबेडकर की वैचारिक-विरासत पर छीन-झपट्टा

डॉ भीमराव आंबेडकर की विरासत को लेकर इन दिनों भारतीय राजनीति में जो तूफान आया है, उसके पीछे वैचारिक-दृष्टि कम राजनीतिक-मौकापरस्ती ज्यादा लग रही है। अगले साल की पहली तिमाही में ही दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, इसलिए यकीन मानिए कि सभी दल इस मुद्दे को उठाना जारी रखेंगे। कांग्रेस ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक अमित शाह इस्तीफा नहीं दे देते और माफी नहीं माँग लेते, तब तक वह विरोध करना बंद नहीं करेगी। पार्टी कई राज्यों में विरोध-मार्च निकाल रही है। जिला कलेक्टरों के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं, वगैरह। बीजेपी भी पूरी ताकत के साथ इसका विरोध कर रही है। 

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया। बसपा प्रमुख मायावती ने अमित शाह की टिप्पणी को अंबेडकर के अनुयायियों के लिए बेहद दुखद बताया। वहीं, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने प्रदेश के सभी विधानसभा क्षेत्रों में 'पीडीए चर्चा' चला रही है। पार्टी के अनुसार इस पहल का उद्देश्य संविधान की रक्षा करना और आंबेडकर के आदर्शों का प्रचार करना है।

Wednesday, January 1, 2025

2024: नए पावर हाउस के रूप में भारत का उदय

राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से 2024 का साल भारत के लिए घटनाओं और उपलब्धियों से भरा रहा। आर्थिक मोर्चे पर भारत का उदय नए पावर हाउस के रूप में हो रहा है, पर साल की सबसे बड़ी गतिविधि राजनीति से जुड़ी थी। 17वीं लोकसभा का कार्यकाल 16 जून 2024 को पूरा हुआ, पर जो परिणाम आए, उनसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को धक्का लगा। हालांकि नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला, पर अब भारतीय जनता पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है, बल्कि उसे अपने सहयोगी दलों का सहारा लेना पड़ा है। 

बीजेपी को सबसे बड़ा धक्का उत्तर प्रदेश में लगा है, जहाँ के कुल 80 क्षेत्रों में से उसे केवल 33 में विजय मिली। समाजवादी पार्टी ने राज्य में 37 सीटों पर जीत हासिल करके भाजपा को दूसरे स्थान पर धकेल दिया। यह अप्रत्याशित था। राहुल गांधी के लिए भी व्यक्तिगत रूप से इसबार का चुनाव लाभकारी रहा। 2019 में उन्हें अमेठी से हार का सामना करना पड़ा था, वहीं इसबार उन्होंने अमेठी से वापसी की। नेहरू-गांधी परिवार की एक अन्य सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस साल सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। लोकसभा चुनाव में अमेठी और वायनाड दोनों सीटों पर जीत के बाद राहुल गांधी ने वायनाड की सीट को छोड़ दिया, जहाँ से प्रियंका गांधी जीतकर आईं। 

बांग्लादेश में नई ‘क्रांतिकारी’ पार्टी का उदय और बढ़ती पाक-परस्ती

बांग्लादेश का नया राष्ट्रवाद: मुजीबवाद मुर्दाबाद और साड़ी की जगह हिजाब। 

बांग्लादेश में एक तरफ नई राजनीतिक-संविधानिक व्यवस्था बनाने की तैयारियाँ चल रही हैं, वहीं अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों को जोड़ना शुरू कर दिया है, जिसमें कारोबार के अलावा सैनिक-गतिविधियाँ भी शामिल हैं. यह भी साफ होता जा रहा है कि शेख हसीना के तख्ता-पलट के पीछे सामान्य छात्र-आंदोलन नहीं था, बल्कि कोई बड़ी योजना थी.

विद्रोही छात्र-संगठन 31 दिसंबर को अपनी क्रांति की घोषणा का दिन तय किया था, पर लगता है कि सरकार तथा कुछ राजनीतिक दलों के दबाव में वह घोषणा नहीं हुई. इस घोषणा से उनके वैचारिक इरादों का पता लगता. 

आंदोलन के नेताओं ने इसके पहले रविवार 29 दिसंबर को ढाका में एक  संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 31 दिसंबर को देश में मुजीबिस्ट संविधान को दफ़न कर दिया जाएगा और एक पार्टी के रूप में अवामी लीग बांग्लादेश में अप्रासंगिक हो जाएगी. हम शहीद मीनार से अपनी 'जुलाई क्रांति की उद्घोषणा' करेंगे. 

सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा था, 'थर्टी फर्स्ट दिसंबर, अभी या कभी नहीं.' उनका कहना है, 5 अगस्त के बाद क्रांतिकारी सरकार बनी होती तो देश में संकट पैदा नहीं होते. पता नहीं कि ‘क्रांतिकारी सरकार’ से उनका आशय क्या है और अंतरिम सरकार से उन्हें क्या कोई शिकायत है.  

बहरहाल 31 दिसंबर को घोषणा नहीं हुई और अब भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन ने सरकार के लिए 15 जनवरी तक जुलाई तख्तापलट की घोषणा जारी करने की समय सीमा तय की है. संगठन के संयोजक हसनत अब्दुल्ला ने 31 दिसंबर को सेंट्रल शहीद मीनार में 'मार्च फॉर यूनिटी' कार्यक्रम से यह अल्टीमेटम दिया.

उन्होंने 31 दिसम्बर के कार्यक्रम में मुख्य रूप से जुलाई क्रान्ति का घोषणापत्र प्रकाशित करने का आह्वान किया था, लेकिन, तमाम ड्रामे के बाद सोमवार आधी रात को कार्यक्रम का नाम बदलकर 'मार्च फॉर यूनिटी' कर दिया गया.