Sunday, June 8, 2014

अब मोदी सरकार की परीक्षा


 

सोलहवीं लोकसभा के पहले सत्र का उद्देश्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण के मार्फत नई सरकार की प्राथमिकताओं पर चर्चा करना है। एक प्रकार से यह नई सरकार के कामकाज पर बहस का आग़ाज़ होगा। कल 9 जून को राष्ट्रपति का अभिभाषण होगा। और उसके बाद एक या दो दिन उस भाषण पर चर्चा होगी। चर्चा पर का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री जो कुछ बोलेंगे वही नई सरकार का एजेंडा होगा। एक माने में यह औपचारिकताओं और दूसरे माने में सैद्धांतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण सत्र है। इस संसदीय बहस की छाप हमें अगेले महीने पेश होने वाले बजट में दिखाई पड़ेगी। इस हफ्ते रिजर्व बैंक की ऋण एवं मौद्रिक नीति की दूसरी द्विमासिक समीक्षा में हालांकि ब्याज की दरें कम नहीं की गईं हैं, पर वैधानिक तरलता अनुपात को 0.50 प्रतिशत कम कर 22.50 प्रतिशत कर दिया है जिससे लगभग 50 हजार करोड़ की नकदी बाजार में आ जाएगी।


रिज़र्व बैंक और सरकार दोनों की प्राथमिकता और चुनौती सबसे पहले महंगाई को काबू में करने की हैं। एक ओर मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाना है, वहीं आर्थिक संवृद्धि के लिए साधनों की व्यवस्था करनी है। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि खुदरा महंगाई में नरमी आ सकती है, पर मॉनसून के दौरान औसत से कम बारिश होने के अनुमान से इसमें बढ़ोतरी का जोखिम है। इस साल मॉनसून तकरीबन एक हफते की देरी से आया है। रिज़र्व बैंक का लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई को जनवरी 2015 तक आठ प्रतिशत तथा जनवरी 2016 तक छह प्रतिशत तक के स्तर पर लाने का है। सरकार किस प्रकार से सप्लाई बढ़ाकर खाद्य वस्तुओं की कीमतों को गिराएगी, इसकी जानकारी इस हफ्ते मिलेगी। वास्तविक संसदीय राजनीति इसके बाद अगले महीने होने वाले बजट सत्र में दिखाई पड़ेगी।


सरकार के सामने फिलहाल तीन बड़े लक्ष्य दिखाई पड़ते हैं। पहला है अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर वापस लाना। दूसरा काम है विदेशों में अपनी साख वापस लाना। खासतौर से जी निवेश के संदर्भ में। और तीसरा काम है अंदरूनी राजनीति को सुलझाना। सरकार गवर्नेंस को लेकर संवेदनशील है। उसके सभी मंत्री इसलिए अपना सारा समय नीतियों और परिस्थितियों को समझने में लगा रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण काम वित्त मंत्रालय का है, जिसे जुलाई में बजट पेश करना है। सबसे मुश्किल काम फिलहाल वही है।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में युवा वर्ग पर खासतौर से जोर होगा। दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी भारत में है। यह हमारी ताकत है। इसके लिए शिक्षा, ट्रेनिंग और रोजगार का उचित प्रबंध होने पर देश की शक्ल अपने आप बदल जाएगी। अगले दस साल भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव के हैं। इस बदलाव की झाँकी राष्ट्रपति के अभिभाषण में दिखाई पडेगी।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बात पर ज़ोर होगा कि सरकार निर्माण क्षेत्र के पुनरोद्धार के लिए क्या करने जा रही है। यही क्षेत्र सबसे ज्यादा रोजगार पैदा कर सकता है। खासतौर से श्रम आधारित रोजगार। भारत ने कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर र सेवा क्षेत्र में सफलता हासिल की है, पर इस क्षेत्र में स्किल्ड और पढ़े-लिखे लोगों के लिए रोजगार तैयार हुए हैं। हमें भारी संख्या में देहात से शहर आने वाले लोगों के लिए रोजगार का इंतज़ाम करना है, जो शुद्ध शारीरिक श्रम के सहारे हैं। इसके साथ ही गाँव और खेती को आकर्षक बनाने की कोशिश भी होगी। सम्भवतः मोदी सरकार खेती के लिए सिंचाई की कोई आकर्षक योजना सामने लाने वाली है। खेती को लाभकारी बनाने, खेती के बीमा और माइक्रोफाइनेंस की योजनाएं भी लाई जा सकती हैं। इसके अलावा सरकार तकनीकी-वैज्ञानिक प्रगति, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई योजनाएं तैयार कर रही है। लगभग दस करोड़ नए रोजगार तैयार करने की योजना है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बात की ओर इशारा होगा।

इस दौरान प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं की योजना सामने आने लगी है। खासतौर से उनकी अमेरिका यात्रा सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान हो सकती है। राष्ट्रपति ओबामा से उनकी मुलाकात संरा महासभा के साइड लाइंस पर न होकर पूर्ण शिखर सम्मेलन के रूप में होगी। मोदी की चीनी नेताओं के साथ भी बातचीत हुई है। उन्हें जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने भी देश आने का निमंत्रण दिया है। जापान अकेला ऐसा देश है, जिसने उनका तब स्वागत किया था, जब अमेरिका ने उनका बहिष्कार कर रखा था। बहरहाल नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि व्यक्तिगत बातों का राष्ट्रीय नीतियों से सम्बंध नहीं होता। उनकी विदेश यात्राओं का रिश्ता विदेशी पूँजी निवेश से है। वैश्विक अर्थ-व्यवस्था एक बार फिर से सुधार की ओर बढ़ रही है। यदि हमारी ओर से ठीक संदेश जाएगा तो भारतीय अर्थ-व्यवस्था एक बार फिर से गति पकड़ सकेगी।


हालांकि लोकसभा में विपक्ष काफी कमजोर है, फिर भी पार्टी अद्रमुक, तृणमूल और बीजू जनता दल के साथ अपने रिश्ते कायम करना चाहती है। राज्यसभा में एनडीए की स्थिति कमजोर है। 30 मई तक ऊपरी सदन की क्षमता 231 सदस्यों की थी। सात से नौ स्थानों के लिए चुनाव होने हैं, क्योंकि लोकसभा के लिए चुने गए राज्य सभा सदस्यों को इस्तीफा देना होगा। राज्य सभा में भाजपा के 42 सदस्य और सहयोगियों के साथ एनडीए के 57 सदस्य हैं। इंडियन नैशनल लोक दल के दो, बोडो पीपुल्स फ्रंट (1) और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (1) जैसे कुछ अन्य दल भी राजग को समर्थन दे सकते हैं। इस प्रकार एनडीए के 61 सदस्यों के विपरीत कांग्रेस के 67 सदस्य हैं। फिर भी 231 सदस्यों के सदन में एनडीए 116 की आधी संख्या से काफी पीछे है। राज्यसभा में 10 मनोनीत सदस्य हैं। इनमें से मणि शंकर अय्यर और भालचंद्र मुंगनेकर कांग्रेस में हैं। सदन में नौ निर्दलीय सदस्य हैं। इनमें राजीव चंद्रशेखर, राम जेठलमानी, विजय माल्या और प्यारी मोहन महापात्र शामिल हैं। एनडीए को अन्नाद्रमुक (10) और बीजद (4) के साथ ही इन सभी की जरूरत होगी। उसे बसपा और तृणमूल कांग्रेस (12) को समर्थन देने या मतदान में शामिल नहीं होने के लिए मनाना होगा। अगले दो साल तक भाजपा को इस गणित को सुलझाना होगा। इसीलिए अभी नरेंद्र मोदी काफी सावधानी से कदम रखते दिखाई पड़ते हैं। 
हरिभूमि में प्रकाशित

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