Monday, June 30, 2014

मुँह में ‘कड़वी गोली’, मन में सुंदर सपने

गेहूँ या चावल के एक या दो दाने देखकर पहचान हो सकती है, पर क्या सरकार के काम की पहचान एक महीने में हो सकती है? सन 2004 के मई में जब यूपीए-1 की सरकार बनी तो पहला महीना विचार-विमर्श में निकल गया. तब भी सरकार के सामने पहली चुनौती थी महंगाई को रोकना और रोजगार को बढ़ावा देना. इस सरकार के सामने भी वही चुनौती है. मनमोहन सिंह सरकार के सामने भी पेट्रोलियम की कीमतों को बढ़ाने की चुनौती थी. उसके पहले वाजपेयी सरकार ने पेट्रोलियम की कीमतों से बाजार के उतार-चढ़ाव से सीधा जोड़ दिया था, पर चुनाव के ठीक पहले कीमतों को बढ़ने से रोक लिया. वैसे ही जैसे इस बार यूपीए सरकार ने रेल किराया बढ़ाने से रोका. इसे राजनीति कहते हैं.

Sunday, June 29, 2014

पहला महीना और उम्मीदों के पहाड़

मोदी सरकार का पहला महीना उस गर्द-गुबार से मुक्त रहा, जिसका अंदेशा सरकार बनने के पहले देश-विदेश के मीडिया में व्यक्त किया गया था। कहा जा रहा था कि मोदी आए तो अल्पसंख्यकों का जीना हराम हो जाएगा वगैरह। मोदी के आलोचक आज भी असंतुष्ट हैं। वे मानते हैं कि मोदी ने व्यावहारिक कारणों से अपने चोले को बदला है, खुद बदले नहीं हैं। बहरहाल सरकार के सामने पाँच साल हैं और एक महीने के काम को देखकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

मोदी सरकार के पहले महीने के बारे में विचार करने के पहले ही हनीमून पीरियड, कड़वी गोली और अच्छे दिनके जुम्ले हवा में थे और अभी हैं। मोदी के समर्थकों से ज्यादा विरोधियों को उनसे अपेक्षाएं ज्यादा हैं। पर वे आलोचना के किसी भी मौके पर चूकेंगे नहीं। खाद्य सामग्री की मुद्रास्फीति के आंकड़े जैसे ही जारी हुए, आलोचना की झड़ी लग गई। इसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि ये आँकड़े मई के महीने के हैं, जब यूपीए सरकार थी। महंगाई अभी बढ़ेगी। सरकारी प्रयासों से सुधार भी हुआ तो उसमें समय लगेगा। हो सकता है कि सरकार विफल हो, पर उसे विफल होने के लिए भी समय चाहिए। पिछली सरकार के मुकाबले एक अंतर साफ दिखाई पड़ रहा है। वह है फैसले करना।

Thursday, June 26, 2014

पत्रकारों को निशाना बनाना खतरनाक है

बेहद खतरनाक है पत्रकारों को सजा देना, पढें वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का विश्लेषण...

पश्चिम एशिया में लोकप्रिय अंग्रेजी चैनल अल-जजीरा के पत्रकारों को मिस्र में सजा सुनाए जाने के बाद दुनिया भर के पत्रकारों की पहली प्रतिक्रिया सदमे और सन्नाटे की है। इतने बड़े स्तर पर पत्रकारों को सजा देने का यह पहला मामला है।  बावजूद इसके हमारे देश में इस खबर पर ज्यादा चर्चा नहीं है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह बात है कि हाल में भारतीय मीडिया के राजनीतिक झुकाव को लेकर उस पर हमले होने लगे हैं। उसकी साख को कायम रखने का सवाल है। दूसरी ओर पिछले तीन-चार साल में पत्रकारों की राजनीतिक और व्यावसायिक भूमिका को लेकर हमारे यहां ही नहीं दुनिया भर में जबर्दस्त टिप्पणियाँ हुईं हैं।

Tuesday, June 24, 2014

भाषाओं को लेकर टकराव का ज़माना गया

मनमोहन सिंह अंग्रेजी में बोलते थे और नरेंद्र मोदी हिदी में बोलते हैं। मनमोहन सिंह की विद्वत्ता को लेकर संदेह नहीं, पर जनता को अपनी भाषा में बात समझ में आती है। गृह मंत्रालय के एक अनौपचारिक निर्देश को लेकर जो बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है उसके पीछे वह साहबी मनोदशा है, जो अंग्रेजी के सिंहासन को डोलता हुआ नहीं देख सकती। हाल में बीबीसी हिंदी की वैबसाइट पर एक आलेख में कहा गया था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के समय की एक तस्वीर में प्रधानमंत्री के साथ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक एक साथ एक गोल मेज़ के इर्द-गिर्द बैठे हैं।

आलेख में लेखक ने पूछा है, वे आपस में किस भाषा में बात कर रहे थे? अंग्रेज़ी में नहीं बल्कि हिंदी में। अगर मोदी की जगह मनमोहन सिंह होते तो ये लोग किस भाषा में बातें कर रहे होते? किसी और भाषा में नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी में। मोदी अब तक प्रधानमंत्री की हैसियत से विदेशी नेताओं से जितनी बार मिले हैं उन्होंने हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया है।

Monday, June 23, 2014

राज्यपालों को लेकर राजनीति न हो तो बेहतर

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के पहले से ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई थी कि सबसे पहले वे राज्यपाल हटाए जाएंगे, जो कांग्रेस पार्टी से सीधे जुड़े हुए हैं. इसके बाद खबर आई कि केंद्रीय गृहसचिव अनिल गोस्वामी ने छह राज्यपालों को सलाह दी है कि वे अपने इस्तीफे दे दें. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने इस्तीफा दे भी दिया. कुछ राज्यपालों ने आना-कानी की है. इन पंक्तियों के छपने तक कुछ और राज्यपालों के इस्तीफे हो सकते हैं. नहीं तो उनकी बर्खास्तगी सम्भव है. सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ की व्यवस्था के बावजूद लगता है केंद्र सरकार ने इन राज्यपालों को हटाने का मन बना लिया है. कांग्रेस पार्टी ने इसे बदले की कार्रवाई बताया है और इस के सांविधानिक पद की गरिमा बनाए रखने का सुझाव दिया है. सच यह है कि इस पद की फजीहत में सबसे बड़ा हाथ उसका ही है. बेहतर होगा कि कांग्रेस और भाजपा इसे संग्राम की शक्ल देने के बजाय स्वस्थ राजनीतिक परम्पराओं को कायम करें.

Sunday, June 22, 2014

इराक में गहराती घटाएं

इराक में पिछले कुछ महीनों से हलचल है। कुछ महीनों क्या कुछ साल से इराक और सीरिया की सीमा पर जबर्दस्त जद्दो-जेहद चल रही है। इस खूंरेजी में अमेरिका, इस्रायल, सऊदी अरब, तुर्की और इराक के साथ ईरान की भूमिका भी है। इसके अलावा अल-कायदा या उसके जैसी कट्टरपंथी ताकतों के उभरने का खतरा हो, जो अफ्रीका में बोको हराम या ऐसे ही कुछ दूसरे संगठनों की शक्ल में सामने आ रही है। इस पूरी समस्या के कई आयाम हैं। हमने इसकी ओर अभी तक ध्यान नहीं दिया तो इसकी वजह सिर्फ इतनी थी कि इसमें हम सीध् नहीं लिपटे थे। पर अब बड़ी संख्या में भारतीयों के वहाँ फँस जाने के कारण हम उधर निगाहें फेर रहे हैं। गौर से देखें तो हमारे लिए यह समस्या केवल अपने लोगों के फँसे होने की नहीं है।

Saturday, June 21, 2014

GYAN DARSHAN DIES SILENTLY


यह पोस्ट मैने अपने मित्र आलोक वर्मा के लिंक्डइन अकाउंट से हासिल की है। ज्ञान दर्शन जैसे चैनलों का बंद होना हमारे सामाजिक पतन की निशानी है। केवल ज्ञान दर्शन ही नहीं एकलव्य और व्यास चैनल भी खत्म हो रहे हैं।

Gyan Darshan, a knowledge dissemination television channel under IGNOU, breathed its last without anyone knowing about it. Instead of ratifying the legality of the channel by the I and B Ministry, which initiated the 'must carry' provision for cable operators, refused to allow the channel to function from a new transponder allotted by ISRO. Also dead are Eklavya channel operated by IITs and Vyas channel operated by the UGC.

Dr R Sreedher, a wellknown academician and media practitioner, who was responsible for setting up these channels to offer educational support to the disadvantaged rural India, has been waging a lone battle to revive these channels by convincing the Ministries of I & B and HRD to reconsider their decision.

If any of journalist friends want to to do this story can contact Dr R Sreedher at his mobile no +91 9810778459

The following is a version of events from Dr sreedher who have shape it these channels .

1. When we started transmission on 26th january 2000 we used the transponder on the ageing satellite INSAT 1B which was at the disposal of Doordarshan

2. Later in 2002, at the initiative of Mr Kasturi Rangan, Mr Abdul Kalam and others, a new full transponder was allotted to Gyan Darshan on Insat 3c. In fact Gyan Darshan was the first to dock with the satellite

3. Mr Kalam and Mr Kasturi rangan insisted on going digital in 2002 itself so Gyan Darshan became simulcast , analog and digital.

4. One analog transponder can be used to transmit 6 digital tv channels in those days and today i hear that due to compression technologies we can go upto 12

5. Hence Gyan Darshan transponder's capacity was augmented for 6 digital channels in 2002

6. 2003 Jan 26 -Eklvaya - the GD3 channel- technology - was launched with IITs providing the infrastructure and contents but uplinked form IGNOU

7. Jan 26, 2004 Gyan Darshan 4 - Vyas Channel - Higher education channel - was launched with UGC taking the resposiility through conosrtiumof educational communciation

8. 2004 - Govt declares Gyan Darsan channel - a must carry for cable operators along with Lok Sabha and Rajya sabha channels

9. It was never the intentin of the Govt to run these chanels through IGNOU. The first order in Jan 2000 itself said that it was only an interim arrangement till a separate entitity for Educational media transission was established

10. Educational Brodcasting coroporation of India ( Gyan Bharati) was also proposed

11.Since it was found that IGNOU is not the right place to run these channels due to change of Vice chanellor and his way of working on Septemer 30th 2003 Government issued an extra ordinary gazette to take away the role of IGNOU in managing these channels

12. IGNOU was asked to submit a report to the new committee which was to meet in Jan 2004 and the VC was just one of the members of the same.

13. IGNOU VC used his clout and postponed the meeting

14.February 2004 - Loksabha was dissolved and country went it for elections

15. UPA Government thought that these were NDA's babies and gave lukewarm response

16. 2012 - Government proposes to start 40 DTH channels for education while the 4 earlier channels were languishing


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Friday, June 20, 2014

होलसेल नियुक्तियों की राजनीतिक संस्कृति

 शुक्रवार, 20 जून, 2014 को 16:20 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे अपने साथ ऐसे मंत्रालयी कर्मचारियों को ‘किसी भी रूप में’ न रखें जो यूपीए सरकार के मंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं. यह निर्देश अपने ढंग का अनोखा है और नौकरशाही के राजनीतिकरण को रेखांकित करता है.
नई सरकार बनने के साथ नियुक्तियां और इस्तीफे चर्चा का विषय बन रहे हैं.
शुरुआत प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र की नियुक्ति से हुई थी, जिसके लिए सरकार ने एनडीए सरकार के बनाए एक नियम को बदलने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया था.
राज्यपालों, अटॉर्नी और एडवोकेट जनरलों, महिला आयोग और अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग या योजना आयोग के अध्यक्षों तक मामला समझ में आता है.
हम मानकर चल रहे हैं कि ऐसे पदों पर नियुक्तियाँ राजनीतिक आधार पर होती हैं लेकिन इस निर्देश का मतलब क्या है? क्या यह नौकरशाही की राजनीतिक प्रतिबद्धता का संकेत नहीं है?
नियुक्तियों का दौर शुरू हुआ है तो अभी यह चलेगा. मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव होगा. फिर दूसरे पदों पर. यह क्रम नीचे तक जाएगा. ऊँचा अधिकारी नीचे की नियुक्तियाँ करेगा. पर कुछ सवाल खड़े होंगे, जैसे इस बार राज्यपालों के मामले पर हो रहे हैं.

Tuesday, June 17, 2014

राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियाँ

शनिवार को भारतीय नौसेना के सबसे बड़े विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्‍य से नरेंद्र मोदी ने क्या संदेश दिया? उनकी सरकार बने अभी तीन सप्ताह हुए हैं और उसने एक से ज्यादा बार इस बात की ओर इशारा किया है कि हमारा ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर है। क्या यह सिर्फ प्रचारात्मक है या इसके पीछे छिपी कोई रणनीति है? विक्रमादित्य का मुआयना करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना के अधिकारियों और नाविकों को संबोधन में कहा, 'न हम आँख दिखाएंगे और न आँख झुकाएंगे। हम आँख से आँख मिलाकर बात करेंगे।' मोदी ने एक मजबूत नौसेना की जरूरत को रेखांकित करते हुए छत्रपति शिवाजी का उल्लेख किया। शिवाजी जानते थे कि नागरिक व्यापार के लिए ताकतवर नौसेना भी जरूरी होती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा और विक्रमादित्य की सवारी

देश की सुरक्षा से जुड़ी तीन-चार खबरें एक साथ सामने आईं हैं. इस हफ्ते जम्मू-कश्मीर सीमा पर फिर से गोलाबारी हुई है. तीन हफ्ते पहले ही नई सरकार ने अपना काम शुरू किया है. शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का आगमन खास खबर थी. ऐसे में गोलाबारी का मतलब क्या है? क्या यह संयोग रक्षामंत्री अरुण जेटली की जम्मू-कश्मीर यात्रा से जुड़ा हुआ था? हालंकि अरुण जेटली ने इस गोलाबारी को ज्यादा महत्व नहीं दिया, पर तमाम पहेलियाँ अनबुझी हैं.

Monday, June 16, 2014

लोकतंत्र तभी सफल होगा जब दबाव नागरिक का होगा

नई सरकार के लिए राष्ट्रपति के पहले अभिभाषण की उन बातों ने देश का ध्यान खींचा है, जो आर्थिक और तकनीकी विकास से जुड़ी हैं. तमाम बातों की सफलता या विफलता उनके कार्यान्वयन पर निर्भर करती है, इसलिए उनके बारे में कहने से कोई लाभ नहीं है. बेहतर होगा कि हम अगले महीने आने वाले बजट का इंतज़ार करें, जिसमें कुछ ठोस कार्यक्रम होंगे. जनता का मसला है महंगाई. इस बार बारिश कम होने का अंदेशा सबसे बड़ा खतरा है. कैबिनेट सचिव अजित सेठ पिछले कुछ दिनों से केवल इसी विषय पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि अनाज और अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों को बढ़ने से किस तरह रोका जाए. प्याज, आलू, गैर-बासमती चावल, दालों और दूध की कीमतों पर सरकार की निगाहें हैं. अगले छह महीनों की अशंकाओं को सामने रखकर सरकार काम कर रही है. पर सरकार उस खतरे से निपटने की कोशिश करे उसके पहले ही दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ शहरों में पड़ रही गरमी ने उसके सामने संकट खड़ा कर दिया है. यह संकट बिजली की कटौती का है. बिजली और पानी के संकट ने जीना हराम कर दिया है. संकट की गहराई से ज्यादा सरकार मीडिया में इसकी चर्चा से घबराती है. सही या गलत इस चुनाव के बाद से मीडिया और शहरी नागरिक राजनीति के केंद्र में हैं. उनके सभी मसले सार्थक नहीं होते. पर इनके तेज स्वर इनकी महत्ता स्थापित करने में सफल हुए हैं.

Sunday, June 15, 2014

राष्ट्रीय सुरक्षा और पाकिस्तान का सवाल

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से यह सप्ताह खासा सरगर्म रहा और उम्मीद है कि यह सरगर्मी कायम रहेगी। पिछले रविवार को भारत आए चीनी विदेश मंत्री यांग यी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की। चीनी राष्ट्रपति के विशेष दूत बन आए यांग के साथ सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन घटाने समेत द्विपक्षीय संबंधों के हर मुद्दे पर बात हुई। इस बात से अभी कोई बड़ा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता, पर स्टैपल्ड वीज़ा के मामले में चीन का अपने रुख पर कायम रहना भारत के लिए चिंता का विषय है। शायद इसीलिए विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने चीनी विदेशमंत्री से साफ स्वरों में कहा कि हम एक चीन को स्वीकार करते हैं तो चीन को भी एक भारत की मर्यादा को स्वीकार करना चाहिए। वस्तुतः चीन के साथ भारत के रिश्ते दो धरातलों पर हैं। एक द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्ते हैं और दूसरे पाकिस्तान, खासकर कश्मीर से जुड़े मामले। स्टैपल्ड वीज़ा का मसला कश्मीर-मुखी है।

Saturday, June 14, 2014

संघीय व्यवस्था पर विमर्श की घड़ी

मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह और एचडी देवेगौडा को छोड़ दें तो देश के प्रधानमंत्रियों में से अधिकतर के पास राज्य सरकार का नेतृत्व करने का अनुभव नहीं रहा। राज्य का मुख्यमंत्री होना भले ही प्रधानमंत्री पद के लिए महत्वपूर्ण न होता हो, पर राज्य का नेतृत्व करना एक खास तरह का अनुभव दे जाता है, खासकर तब जब केंद्र और राज्य की सरकारें अलग-अलग मिजाज की हों। इस बात को हाल में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने हाल में रेखांकित किया। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप जो समय बिताया उसका काफी हिस्सा केंद्र-राज्य रिश्तों से जुड़े टकरावों को समर्पित था।

संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब देते हुए मोदी ने जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया वह यह थी कि इस देश को केवल दिल्ली के हुक्म से नहीं चलाया जा सकता। सारे देश को चलाने का एक फॉर्मूला नहीं हो सकता। पहाड़ी राज्यों की अपनी समस्याएं हैं और मैदानी राज्यों की दूसरी। तटवर्ती राज्यों का एक मिजाज है और रेगिस्तानी राज्यों का दूसरा। क्या बात है कि देश का पश्चिमी इलाका विकसित है और पूर्वी इलाका अपेक्षाकृत कम विकसित? लम्बे समय से देश मजबूत केंद्र और सत्ता के विकेंद्रीकरण की बहस में संलग्न रहा है। पर विशाल बहुविध, बहुभाषी, बहुरंगी देश को एकसाथ लेकर चलने का फॉर्मूला सामने नहीं आ पाया है। केंद्र की नई सरकार देश को नया शासन देने के साथ इस विमर्श को बढ़ाना चाहती है, तो यह शुभ लक्षण है।  
केंद्र-राज्य मंचों में राजनीति
राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा, राज्यों और केंद्र को सामंजस्यपूर्ण टीम इंडिया के रूप में काम करना चाहिए। सरकार, राष्ट्रीय विकास परिषद, अंतर्राज्यीय परिषद जैसे मंचों को पुन: सशक्त बनाएगी। अब तक का अनुभव है कि इन मंचों पर मुख्यमंत्री अनमने होकर आते हैं। अक्सर आते ही नहीं। राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धा राष्ट्रीय विकास पर हावी रहती है। हाल के वर्षों में योजना आयोग के आँकड़ों को इस प्रकार घुमा-फिराकर पेश करने की कोशिश की जाती थी, जिससे लगे कि विकास का गुजरात मॉडल विफल है। पिछले दो साल में जबसे तृणमूल कांग्रेस ने यूपीए से हाथ खींचा है बंगाल को 22 हजार करोड़ रुपए के ब्याज की माफी का मसला राष्ट्रीय चर्चा का विषय रहा है। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार और यूपीए के बीच विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने की बात राजनीतिक गलियारों में गूँजती रही।

Tuesday, June 10, 2014

कांग्रेस क्या करने वाली है?

कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने हमारे एजेंडा को चुरा लिया है. इस बात में काफी सचाई सम्भव है, पर राजनीति में किसका एजेंडा स्थायी है? कांग्रेस को अब मोदी के एजेंडा की नहीं अपने एजेंडा की चिंता करनी चाहिए. अभी चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव आने वाले हैं. क्या वह उनके लिए तैयार है?

संसद के वर्तमान सत्र का उद्देश्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण सुनना है. 9 जून को राष्ट्रपति का अभिभाषण और उसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव ही इस सत्र की महत्वपूर्ण गतिविधि है. इस माने में यह औपचारिकताओं का सत्र है. इसमें ज्यादा से ज्यादा सरकार की दशा-दिशा का पता लगेगा, पर वास्तविक संसदीय राजनीति इसके बाद अगले महीने होने वाले बजट सत्र में दिखाई पड़ेगी.

असम्भव तो नहीं, पर है यह अविश्वसनीय-स्वप्न


संसद के दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में केंद्र की नई सरकार का आत्मविश्वास बोलता है। पिछली सरकार के भाषणों के मुकाबले इस सरकार के भाषण में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण एक सचाई के रूप में सामने आता है, मजबूरी के रूप में नहीं। उसमें बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा है। फिर भी इस भाषण को अभी एक राजनेता का सपना ही कह सकते हैं। इसमें एक विशाल परिकल्पना है, पर उसे पूरा करने की तज़बीज़ नजर नहीं आती। बेशक कुछ करने के लिए सपने भी देखने होते हैं। मोदी ने यह सपना देखा है तो सम्भव है वे अपने पुरुषार्थ से इसे पूरा करके भी दिखाएं। सम्भव है कि सारी कायनात इस सपने को पूरा करने में जुट जाएं। असम्भव तो कुछ भी नहीं है।

नरेंद्र मोदी जनता की कल्पनाओं को उभारने वाले नेता हैं। उनकी सरकार अपने हर कदम को रखने के पहले उसके असर को भी भाँप कर चलती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नज़र डालें तो उसमें देश के टेक्नोट्रॉनिक बदलाव की आहट है तो सामाजिक क्षेत्र में बदलाव का वादा भी है। महिलाओं के आरक्षण को प्रतीक बनाकर आधी आबादी की आकांक्षाओं को रेखांकित किया है तो हर हाथ को हुनर और हर खेत को पानी का भरोसा दिलाया गया है। यह भाषण मध्यवर्गीय भारत की महत्वाकांक्षाओं को भी परिलक्षित करता। देश में एक सौ नए शहरों का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, गाँव-गाँव तक ब्रॉडबैंड पहुँचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का वादा किया है। न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन के मंत्र जैसी शब्दावली से भरे इस भाषण पर नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत मुहर साफ दिखाई पड़ती है। ट्रेडीशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलॉजी के 5-टी के सहारे ब्रांड-इंडिया को कायम करने की मनोकामना इसके पहले नरेंद्र मोदी किसी न किसी रूप में व्यक्त करते रहे हैं।

भारत के भव्य विकास का मोदी-स्वप्न

 सोमवार, 9 जून, 2014 को 21:11 IST तक के समाचार
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
संसद के दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में केंद्र की नई सरकार का आत्मविश्वास बोलता है. पिछली सरकार के भाषणों के मुकाबले इस सरकार के भाषण में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण एक सच्चाई के रूप में सामने आती है, मजबूरी के रूप में नहीं. उसमें बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा है.
‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन’ के मंत्र जैसी शब्दावली से भरे इस भाषण पर नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत मुहर साफ़ दिखाई पड़ती है. ट्रेडीशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलॉजी के 5-टी के सहारे ब्रांड-इंडिया को कायम करने की मनोकामना इसके पहले नरेंद्र मोदी किसी न किसी रूप में व्यक्त करते रहे हैं.
भाषण में कई जगह महात्मा गांधी का उल्लेख है- 1915 में भारत के महानतम प्रवासी भारतीय महात्मा गांधी भारत लौटे थे और उन्होंने भारत की नियति को ही बदल डाला. अगले वर्ष हम गांधी के भारत लौटने की शतवार्षिकी मनाएंगे और साथ ही ऐसे कदम भी उठाएंगे जिनसे प्रत्येक प्रवासी भारतीय का भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ हो और वे भारत के विकास में भागीदार बने.

सुनने में अच्छे लगते हैं

नरेंद्र मोदी का नारा है, 'पहले शौचालय, फिर देवालय'. राष्ट्रपति ने इसी तर्ज पर कहा, देश भर मे ‘स्वच्छ भारत मिशन’ चलाया जाएगा और ऐसा करना महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती पर हमारी श्रद्धांजलि होगी जो वर्ष 2019 में मनाई जाएगी.
भविष्य में सॉफ़्टवेयर के अलावा भारत को रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में एक विश्वव्यापी प्लेटफॉर्म के रूप में उभारने की सम्भावना को भी इस भाषण में रेखांकित किया है. भारत अभी तक रक्षा सामग्री के निर्यात से बचता रहा है.

Sunday, June 8, 2014

कैसे थामेगी महंगाई के तूफान को सरकार?

संसद के चालू सत्र में सरकार के सामने मुश्किलें नहीं है, पर कुछ समय बाद ही उसके सामने महंगाई को नाथने की जिम्मेदारी आएगी। इस साल मॉनसून देर से आया है और उसके कमज़ोर होने का खतरा भी है। सरकार किस तरह महंगाई का सामना करेगी? आज के अखबारों में कैबिनेट सचिव की बैठकों का जिक्र है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी लोकतांत्रिक झंझावात से गुजर रही है। उसके भीतर संकटं का सामना करने की कितनी सामर्थ्य है यह भी दिखाई पड़ रहा है। पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन का विवकण भी आज की सुर्खियों में है। आज के भास्कर ने विवेकानंद फाउंडेशन पर अच्छी रिपोर्ट दी है। वहीं टेलीग्राफ ने भारत-चीन रिश्तों में तिब्बत की प्रवासी सरकार की कसक पर अच्छी रपट दी है। हिंदू की वैबसाइट पर चंद्रबाबू नायडू का इंटरव्यू पढ़ने को मिला, जिसमें उन्होंने कहा है कि आंध्र की राजधानी विजयवाड़ा-गुंटूर के बीच कहीं बनेगी। यह दुनिया का सबसे अच्छा नियोजित नगर होगा और यह चेन्नई और हैदराबाद के साथ बुलेट ट्रेन से जुड़ेगा। दिल्ली में मोदी सरकार भी बुलेट ट्रेन को आने वाले समय का प्रतीक बनाकर चल रही है। 








We have to build from scrtach : Naidu


I have to fight for funds for Capital, special status’
“We will have our capital on the Vijayawada-Guntur stretch that will be the world’s best planned city, fully loaded with ultra modern facilities. I have even plans for introducing a bullet train to Chennai and Hyderabad.”
That is “hi-tech” N. Chandrababu Naidu, sharing his vision for the new capital of Andhra Pradesh, exclusively with The Hindu on the eve of his swearing-in as the first Chief Minister of a State which he insists “has to start from scratch.”
“Nothing is impossible if you have a clear vision of how you want your city to be. I have done it in Hyderabad and I will do it here. It will be much more than Singapore. It will be a hub of economic activities and a most favoured destination for investments, having the best connectivity. There will be no dearth of avenues for entertainment and social life,” he said.
Brimming with confidence, Mr. Naidu was unstoppable during a chat with this correspondent in his bullet- proof SUV as he travelled from Raj Bhavan to his home on Friday. “Having gained experience from the Hyderabad example, we will opt for dispersed development, transforming the upcoming capital region, Visakhapatnam and Tirupati into three mega cities and turn major corporations into hubs of investments giving a choice to investors. That is why I have invited top industrialists across the country for my swearing-in.”
पूरी खबर पढ़ें यहाँ

अब मोदी सरकार की परीक्षा


 

सोलहवीं लोकसभा के पहले सत्र का उद्देश्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण के मार्फत नई सरकार की प्राथमिकताओं पर चर्चा करना है। एक प्रकार से यह नई सरकार के कामकाज पर बहस का आग़ाज़ होगा। कल 9 जून को राष्ट्रपति का अभिभाषण होगा। और उसके बाद एक या दो दिन उस भाषण पर चर्चा होगी। चर्चा पर का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री जो कुछ बोलेंगे वही नई सरकार का एजेंडा होगा। एक माने में यह औपचारिकताओं और दूसरे माने में सैद्धांतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण सत्र है। इस संसदीय बहस की छाप हमें अगेले महीने पेश होने वाले बजट में दिखाई पड़ेगी। इस हफ्ते रिजर्व बैंक की ऋण एवं मौद्रिक नीति की दूसरी द्विमासिक समीक्षा में हालांकि ब्याज की दरें कम नहीं की गईं हैं, पर वैधानिक तरलता अनुपात को 0.50 प्रतिशत कम कर 22.50 प्रतिशत कर दिया है जिससे लगभग 50 हजार करोड़ की नकदी बाजार में आ जाएगी।

Saturday, June 7, 2014

आप का पत्र संग्राम

नरेंद्र मोदी की अपने सांसदों को सलाह, मोदी की विदेश यात्राओं का कार्यक्रम, शशि थरूर के मोदी को लेकर बयान पर कांग्रेस के भीतर की चर्चा के साथ-साथ आज के अखबारों में अरविंद केजरीवाल और नितिन गडकरी के केस की कवरेज भी है। इधर बंगाल में सीपीएम की कलह भी सामने आ रही है। आम आदमी पार्टी नकारात्मक या सकारात्मक दोनों कारणों से मीडिया में रहती है। इधर मनीष सिसोदिया की योगेंद्र यादव के नाम चिट्ठी सुर्खियों में है। इन चिट्ठियों को पढ़ने से इस बात का पता लगता है कि इस संगठन के भीतर लोकतंत्र की दशा क्या है और इसके फैसले किस तरह हुए होंगे। नीचे आप उस चिट्ठी का पूरा पाठ और योगेंद्र यादव की चिट्ठी को पढ़ें ताकि सनद रहेः-







योगेंद्र यादव के नाम मनीष सिसोदिया की चिट्ठी

Respected Yogendra Bhai!

Over the last 15 days, an ugly spat has developed between you and Naveen Jai Hind. The unfortunate part is that the two of you have been fighting your personal battles in public and through media forums. This is continuously damaging the party. What is even more unfortunate and sad is that you wanted disciplinary action taken against Naveen Jai Hind, and when you could not have your way, you dragged Arvind (Kejriwal) into the fight.

You have alleged that Arvind does not listen to the advice of the PAC. It is surprising to read this allegation in your email because Arvind has always supported you. Indeed, so long he was listening to you, you were full of praise for him. For example, your decision to contest from Gurgaon was opposed by many members of PAC. But Arvind not only supported you, he got everybody on board on your candidature. Arvind was democratic then. Even before that, when you wanted to be in-charge of Haryana and the party's chief ministerial candidate, several PAC members opposed it. Even then, Arvind had supported you, and in your eyes Arvind was democratic.

Thursday, June 5, 2014

अब संसद में होगा कांग्रेसी सेहत का पहला टेस्ट

 गुरुवार, 5 जून, 2014 को 08:09 IST तक के समाचार
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह
पिछले साल जून में भाजपा के चुनाव अभियान का जिम्मा सम्हालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से 'कांग्रेस मुक्त भारत निर्माण' के लिए जुट जाने का आह्वान किया था.
उस समय तक वे अपनी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नहीं बने थे. उन्होंने इस बात को कई बार कहा था.
सोलहवीं क्लिक करेंसंसद के पहले सत्र में मोदी सरकार की नीतियों पर रोशनी पड़ेगी. संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार का पहला नीतिपत्र होगा. इसके बाद बजट सत्र में सरकार की असली परीक्षा होगी.
एक परीक्षा कांग्रेस पार्टी की भी होगी. उसके अस्तित्व का दारोमदार भी इस सत्र से जुड़ा है. आने वाले कुछ समय में कुछ बातें कांग्रेस का भविष्य तय करेंगी. इनसे तय होगा कि कांग्रेस मज़बूत विपक्ष के रूप में उभर भी सकती है या नहीं.

सबसे कमज़ोर प्रतिनिधित्व

मोदी की बात शब्दशः सही साबित नहीं हुई लेकिन सोलहवीं लोकसभा में बिलकुल बदली रंगत दिखाई दे रही है. कांग्रेस के पास कुल 44 सदस्य हैं. पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की उम्र से एक ज्यादा. लोकसभा के इतिहास में पहली बार कांग्रेस इतनी क्षीणकाय है.