यह आलेख मेरे पास अरुण चन्द्र रॉय ने भेजा है। इनकी बातों से असहमत होने का कोई अर्थ नहीं. सवाल है स्थितियों को बेहतर कैसे बनाया जाए। नीचे पढ़ें उनका पत्र और आलेख।
प्रमोद जी नमस्कार ! आपके ब्लॉग से आपका परिचय हुआ. और आपका आमंत्रण भी देखा. बढ़िया तो लिखता नहीं फिर भी आपना एक छोटा सा आलेख आपके ब्लॉग हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं. यदि ठीक लगे तो उपयोग कीजियेगा.यदि कहीं और उपयोग करना चाहें अपने संपर्क से तो कर सकते हैं... अपने सुझाव भी दीजियेगा कि किस तरह अपने लेखन को इम्प्रूव कर सकता हूँ... सम्प्रति अपनी विज्ञापन एजेंसी चलता हूं... कविता लिखता हूं....
अरुण चन्द्र रॉय
संपर्क सूत्र: 9811721147
भारत : भुखमरी
प्रमोद जी नमस्कार ! आपके ब्लॉग से आपका परिचय हुआ. और आपका आमंत्रण भी देखा. बढ़िया तो लिखता नहीं फिर भी आपना एक छोटा सा आलेख आपके ब्लॉग हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं. यदि ठीक लगे तो उपयोग कीजियेगा.यदि कहीं और उपयोग करना चाहें अपने संपर्क से तो कर सकते हैं... अपने सुझाव भी दीजियेगा कि किस तरह अपने लेखन को इम्प्रूव कर सकता हूँ... सम्प्रति अपनी विज्ञापन एजेंसी चलता हूं... कविता लिखता हूं....
अरुण चन्द्र रॉय
संपर्क सूत्र: 9811721147
भारत : भुखमरी
जब आठ साल पहले मनमोहन सिंह जी देश के प्रधानमंत्री बने थे तो पूरी दुनिया में यह पहला वाकया था कि किसी विश्व स्तर के अर्थशास्त्री के हाथों किसी देश की कमान हो. देश को बहुत उम्मीदें थी. जनता को लग रहा था कि महंगाई कम होगी, हर पेट को दाना मिलेगा, जीडीपी घाटा कम होगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जो हुआ उनमें टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला, आदर्श हाउसिंग घोटाला, किसानों की आत्महत्या और बेहिसाब महंगाई प्रमुख हैं. लेकिन इसमें नया कुछ नहीं है. नया यह है कि कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में हाल में भारत में भुखमरी के अध्ययन के अर्थशास्त्रियों ने एक सूचकांक तैयार किया है जिसे इंडिया स्टेट हंगर इंडेक्स नाम दिया है. इस इंडेक्स का उद्देश्य भारत में भुखमरी और कुपोषण की स्टडी करना है. इसे इंटरनेशनल फ़ूड रिसर्च इंस्टिटयूट ने तैयार किया है.
इस संस्थान की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत का स्थान 67वां है जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका सूचकांक में हमसे काफी ऊपर हैं. आर्थिक प्रगति के स्वप्निल पंखों पर सवारी कर रहे भारत के लिए यह शर्मनाक है. देश के 17 राज्यों में किये गए अध्ययन के अनुसार 12 राज्यों में स्थिति बहुत चिंतनीय है जिसमे छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओड़िसा और मध्यप्रदेश प्रमुख हैं.
यदि रिपोर्ट के निष्कर्षों के पीछे जाएँ तो पाएंगे कि ये राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं. आज़ादी के बाद से ही ये राज्य देश की आर्थिक प्रगति में अपने संसाधनों के जरिये महत्वपूर्ण रूप से योगदान कर रहे हैं लेकिन सरकार ने यहाँ के मूल निवासियों की योजनाओं को क्रियान्वित नहीं किया है. इन क्षेत्रो के लाल कारीडोर में बदलने का एक कारण यह भी है जिसे हमारी सरकार बन्दूक और बल से निपटाने का असफल प्रयास कर रही है.
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के कुपोषित बच्चों में 42% बच्चे भारत में हैं. आई ऍफ़ आर आई अपनी रिपोर्ट में कहता है कि "भारत में आर्थिक प्रगति और भूखों की संख्या असमानुपातिक हैं और यह एक चौकानेवाला तथ्य है.
दुनिया भर के राजनेताओं ने फर्स्ट मिलिनियम गोल के तहत विश्व के पटल से भुखमरी और कुपोषण को 2015 तक मिटाने का लक्ष्य वर्ष 1995 में लिया था, आज रिपोर्ट बता रही है कि हम इस लक्ष्य से कोसों दूर हैं और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की स्थिति कई अफ़्रीकी देशों से अधिक ख़राब है.
और तो और भारत में यह स्थिति तब है जब कि सरकार दुनिया की सबसे बड़ी मुफ्त खाद्यान्न योजना, सार्वजानिक वितरण प्रणाली, स्कूली बच्चों के लिए मिड डे मील जैसी महत्वाकांक्षी योजनायें चला रही हैं. लेकिन परिणाम से लगता है कि ये योजनाएं महज कागज़ी हैं.
इस मानसून सत्र में खाद्य सुरक्षा बिल संसद में पेश होने वाला है. इस बिल के पास होने के बाद दो जून की रोटी सबका मौलिक अधिकार होगा लेकिन जब पहले से इतनी योजनाएं चल रही हैं, एक और बिल आने से तस्वीर बदल जाएगी इसमें संशय ही है. जब तक इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर पहुंचाने की इच्छा शक्ति केंद्र और राज्य सरकार में नहीं आती है.
अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री शुरू से ही वर्ल्ड बैंक,I M F को प्रिय रहे हैं ,जाहीर है जो उन्हें चाहते हैं उन्हें ही वह भी चाहते हैं। अपनी जनता से उन्हें क्या लगाव? चापलूसी का जमाना है। अभी से राहुल गांधी को पी एम बनाने की मांग उठ रही है। उन्हें गरीबों का मसीहा बताया जा रहा है। लोग साधारण ही नहीं बड़े दिग्गज विद्वान भी उन पर फिदा हैं। हम और आप गरीबों के हित मे सोचते व लिखते रहें। जब तक गरीबों के रहनुमाओं को सत्ता तक नहीं पहुंचाते ऐसे ही चलता रहेगा।
ReplyDeleteसार्थक रचना .
ReplyDeleteअब एक सवाल हमारा है। जिसे हल करना बिल्कुल भी अनिवार्य नहीं है।
क्या आप जानते हैं कि कोई आया या नहीं आया लेकिन ब्लॉगर्स मीट वीकली का आयोजन बेहद सफल रहा ?
अभी तो आगे आगे देखो होता है क्या?
ReplyDeleteसार्थक आलेख ...लोगों में कुछ जागरूकता आये तो भला हो ...वर्ना 'धीमी गति के समाचार' सी है हमारी दशा ...!!
ReplyDeleteहमारे सिस्टम में ग़रीबी के प्रति सरोकार की भूमिका बहुत कमज़ोर है. आपका आलेख सार्थक है.
ReplyDeletebilkul sach likha hai aapne, situation sayad is se bhi jada kharab ho ye to sirf ak pehlu hai...
ReplyDeleteसटीक और सार्थक लेख
ReplyDeleteसटीक एवं सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeletebahut sahi savaal uthaaye hai..javaab kahaan hai lekin..!!
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लेख है.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
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