अखबार के दफ्तरों में हाल में नए आए पत्रकारों में एक बुनियादी फर्क उनके काम की शैली का है। आज के पत्रकार को जो तकनीक उपलब्ध है वह बीस साल पहले उपलब्ध नहीं थी। बीस साल पहले फोटो टाइप सैटिंग शुरू हो गई थी, पर सम्पादकों ने पेज बनाने शुरू नहीं किए थे। कम से कम हमारे देश में नहीं बनते थे। 1985 में ऑल्डस कॉरपोरेशन ने जब अपने पेजमेकर का पहला वर्ज़न पेश किया तब इरादा किताबों के पेज तैयार करने का था। उन्हीं दिनों पहली एपल मैकिंटॉश मशीनें तैयार हो रहीं थीं। 1987 में माइक्रोसॉफ्ट की विंडोज़ 1.0 आ गई थी। 1987 में ही क्वार्क इनकॉरपोरेटेड ने क्वार्कएक्सप्रेस का मैक और विंडो संस्करण पेश कर दिया। यह पेज बनाने का सॉफ्टवेयर था, पर सूचना और संचार की तकनीक का विस्तार उसके पहले से चल रहा था। टेलीप्रिंटर, लाइनो-मोनो टाइपसैटिंग, फैक्स और जैरॉक्स जैसी तमाम तकनीकों का वैश्विक-संवाद में क्या स्थान है इसे समझने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। आज से तीस साल पहले वेस्ट इंडीज़ में हो रहे क्रिकेट मैच की खबर तीसरे रोज़ अखबारों में पढ़ने को मिलती थी। कुछ समर्थ अखबार ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो भी छापते थे। पर 1996 के एटलांटा ओलिम्पिक के रंगीन टीवी प्रसारण से फोटो ग्रैब करके एक हिन्दी अखबार ने जब छापे तब लगा कि क्रांति तो हो गई। पर इस लेख का उद्देश्य अखबारों की तकनीकी क्रांति पर रोशनी डालना नहीं है।
Tuesday, July 3, 2012
Monday, July 2, 2012
सुधारों के लिए चाहिए साहस
इस हफ्ते शेयर बाज़ार, मुद्रा बाज़ार और विदेश-व्यापार के मोर्चे से कुछ अच्छी खबरें मिल सकती हैं। शायद मॉनसून भी इस हफ्ते तेजी पकड़े, पर बड़े स्तर पर बदलाव के लिए सरकार और मोटे तौर पर पूरी राजनीति को हिम्मत दिखानी होगी।
Sunday, July 1, 2012
Majority of Pakistanis consider India greatest enemy
Pew Research Center is one of the biggest opinion gathering institution in world. It regularly conducts surveys in different parts of world. Here are some results from Pakistan.
Only 22% of Pakistanis have a favorable view of traditional rival India, although this is actually a slight improvement from 14% last year. Moreover, when asked which is the biggest threat to their country, India, the Taliban, or al Qaeda, 59% name India.
Friday, June 29, 2012
कितना वेतन मिलता है प्रधानमंत्री को
यह जानकारी काफी लोगों के लिए रोचक होगी कि प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी का वेतन प्रधानमंत्री को मिलने वाले वेतन से 30 हजार रुपया महीना कम है। इन्हें 1.30 लाख रुपया महीना मिलता है जो प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पुलक चटर्जी के वेतन (90 हजार) से ज्यादा है। उनसे ज्यादा वेतन भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी मुथु कुमार को मिलता है (1.40 लाख रु) जो पिछले सात साल से पीएमओ में हैं। ये जानकारियाँ आरटीआई के तहत हासिल की गईं हैं और इन्हें आज के मेल टुडे ने छापा है।
PRIME MINISTER'S SALARY SLIP
Rs50,000 pay
Rs3,000 sumptuary allowance
Rs62,000 daily allowance (Rs2,000 per day)
Rs45,000 constituency allowance
Rs1.6 lakh - gross pay/month
मेल टुडे के ईपेपर में पढ़ें खबर
मेल ऑनलाइन में पढ़ें पूरी कथा
सरबजीत या सुरजीत, गलती मीडिया की थी !!!
सरबजीत या सुरजीत के नाम को लेकर जो भी भ्रम फैला उसके लिए जिम्मेदारी पाकिस्तान सरकार के ऊपर डाली जा रही है, पर जो बातें सामने आ रहीं हैं इनसे लगता है कि गलती मीडिया से हुई है। दोनों देशों के मीडिया ने इस मामले में जल्दबाज़ी की। पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर ने इस मामले में स्पष्टीकरण देने में आठ घंटे क्यों लगाए यह ज़रूर परेशानी का विषय है।
28 जून के हिन्दू में अनिता जोशुआ की छोटी सी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार ने पहली बार भी सुरजीत सिंह का नाम लिया था, सरबजीत का नहीं। इस रिपोर्ट की निम्न लिखित पंक्तियों पर ध्यान दें-
'Farhatullah Babar, media adviser to President Asif Ali Zardari, can be clearly heard in his interviews to Indian television channels referring to Surjeet Singh as the Indian prisoner Pakistan planned to release. But after a Pakistani news channel referred to the person as Sarabjit, that became the name the media ran away with.'
Wednesday, June 27, 2012
सरबजीतः यह क्या हुआ?
देर रात टीवी की बहस देख और सुनकर जो लोग सोए थे उन्हें सुबह के अखबारों में खबर मिली कि धोखा हो गया, सरबजीत नहीं सुरजीत की रिहाई का आदेश है। दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस या देर से छूटने वाले अखबारों में ही यह खबर थी, पर फेसबुकियों ने सुबह सबको इत्तला कर दी। बहरहाल आज इस बात पर बहस हो सकती है कि धोखा हुआ या नहीं? पाकिस्तान सरकार जो कह रही है वह सही है या नहीं? मीडिया ने जल्दबाज़ी में मामले को उछाल दिया क्या? हो सकता है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर के ही किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति से गलती हो गई हो।
आज के हिन्दी अखबारों का सवाल है कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी क्यों पलट गए? राजस्थान पत्रिका के जालंधर संस्करण का शीर्षक है पाकिस्तान का दगा। कहीं शीर्षक है आधी रात को धोखा। बहरहाल विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सर्बजीत की रिहाई का स्वागत कर चुके हैं। आमतौर पर डिप्लोमेटिक जगत में बगैर पूर्व सूचना के ऐसा नहीं होता। पीटीआई के इस्लामाबाद संवाददाता रियाज उल लश्कर का भी कहना है कि राष्ट्रपति ने शायद फौज के दबाव में आकर पलटी मारी होगी।
पाकिस्तान में मंगलवार शाम से ही मीडिया में खबरें चलने लगीं कि राष्ट्रपति ने फैसला किया है कि सरबजीत सिंह रिहा होंगे। इसे लेकर वहां मीडिया पर बहस भी चलने लगी। भारतीय विदेश मंत्री ने जरदारी को बधाई तक दे दी। तभी रात करीब 12 बजे राष्ट्रपति की ओर से सफाई जारी हुई कि रिहाई सरबजीत की नहीं, सुरजीत की हो रही है।
Tuesday, June 26, 2012
जामे जमशेदः 180 साल पुराना अखबार
जामे जमशेद एशिया का दूसरा सबसे पुराना अखबार है जो आज भी प्रकाशित हो रहा है। विजय दत्त श्रीधर लिखित भारतीय पत्रकारिता कोश के अनुसार 1832 में मुम्बई से पारसी समाज के मुख पत्र के रूप में इसका प्रकाशन शुरू हुआ था। इस हिसाब से इसे इस साल 180 साल हो गए। इसके सम्पादक प्रकाशक पेस्तनजी माणिकजी मोतीवाला थे। यह साप्ताहिक था और 1853 में इसे दैनिक कर दिया गया।
मुंबई से सन 1822 में गुजराती भाषा में समाचार पत्र ' बम्बई समाचार ' का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और वर्तमान में यह भारत में नियमित प्रकाशित होने वाला सबसे पुराना समाचार पत्र है। यह अखबार आज मुम्बई समाचार के नाम से निकल रहा है।
Monday, June 25, 2012
तख्ता पलट बतर्ज पाकिस्तान-पाकिस्तान
सी एक्सप्रेस में प्रकाशित |
पाकिस्तान में इन दिनों अफवाहों का बाज़ार गर्म है। कोई कहता है कि फौज टेक ओवर करेगी। दूसरा कहता है कि कर लिया। युसुफ रज़ा गिलानी से शिकायत बहुत से लोगों को थी, पर जिस तरीके से उन्हें हटाया गया, वह बहुतों को पसंद नहीं आया। कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें हटाने में फौज की भूमिका भी है। भूमिका हो या न हो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सहयोगी दल एमक्यूएम ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि फौज को बुला लेना चाहिए। फिलहाल सवाल यह है कि मुल्क में जम्हूरियत को चलना है या नहीं। बहरहाल राजा परवेज़ अशरफ को चुनकर संसदीय व्यवस्था ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। इसके पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने मख्दूम शहाबुद्दीन को इस पद के लिए प्रत्याशी बनाया था। पर अचानक एक अदालत ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी कर दिया और प्रत्याशी बदल दिया। क्या यह सिर्फ संयोग था? इस विषय पर कुछ देर बाद बात करेंगे।
भारत के हित में है लोकतांत्रिक पाकिस्तान
पाकिस्तानी अखबार डॉन में फेका का कार्टून |
पिछले गुरुवार की रात काबुल के एक होटल पर तालिबान फिदाई दस्ते ने फिर हमला बोला। तकरीबन 12 घंटे तक होटल पर इनका कब्ज़ा रहा। हालांकि संघर्ष में सुरक्षा बलों ने सभी पाँचों हमलावरों को मार गिराया, पर बड़ी संख्या में निर्दोष नागरिक मारे गए। पिछले दो-तीन महीनों में तालिबान हमलों में तेजी आई है। अफगानिस्तान में नेटो सेना के कमांडर जनरल जॉन एलेन का कहना है कि कहा कि इन हमलों के पीछे तालिबान के हक्कानी नेटवर्क का हाथ है जो पाकिस्तान के वजीरिस्तान इलाके में सक्रिय है। इसके पहले अमेरिका के रक्षा सचिव लियोन पेनेटा कह चुके हैं कि पाकिस्तान हमारे सब्र की और परीक्षा न करे। पर क्या पाकिस्तान पर इस किस्म की चेतावनियोँ का असर होता है या हो सकता है?
Sunday, June 24, 2012
Pakistan : Point of views
Editorial By Najam Sethi
Wither vs whether Pakistan
The adage that you can't judge a book by its cover is apparently not true in the case of Pakistan. Consider the following top ten recently published books on Pakistan: (1) Pakistan: Beyond the crisis state; (2) Playing with fire: Pakistan at war with itself. (3) The unraveling: Pakistan in the age of jihad; (4) Pakistan on the brink; (5) Pakistan: Eye of the storm; (6) Deadly Embrace: Pakistan, America and the future of global jihad; (7) Fatal Fault Lines: Pakistan, Islam and the West; (8) Pakistan: the most dangerous place in the world; (9) Pakistan Cauldron: conspiracy, assassination and instability; (9) Pakistan: The scorpion's tail; (10) Pakistan: terrorism ground zero. To top it all, The Future of Pakistan, which is a collection of essays by noted Pakistan-hands, makes bold to provoke the debate of "Whither" vs "Whether" Pakistan.
Wither vs whether Pakistan
The adage that you can't judge a book by its cover is apparently not true in the case of Pakistan. Consider the following top ten recently published books on Pakistan: (1) Pakistan: Beyond the crisis state; (2) Playing with fire: Pakistan at war with itself. (3) The unraveling: Pakistan in the age of jihad; (4) Pakistan on the brink; (5) Pakistan: Eye of the storm; (6) Deadly Embrace: Pakistan, America and the future of global jihad; (7) Fatal Fault Lines: Pakistan, Islam and the West; (8) Pakistan: the most dangerous place in the world; (9) Pakistan Cauldron: conspiracy, assassination and instability; (9) Pakistan: The scorpion's tail; (10) Pakistan: terrorism ground zero. To top it all, The Future of Pakistan, which is a collection of essays by noted Pakistan-hands, makes bold to provoke the debate of "Whither" vs "Whether" Pakistan.
Saturday, June 23, 2012
Prime Ministerial history of Pakistan
Prime Ministers of Pakistan
with tit-bits of history
1951 - Jinnah's successor Liaquat Ali Khan is assassinated.
2.Sir Khawaja Nazimuddin – Pakistan Muslim League (17 October 1951 – 17 April 1953)
One of the notable Bengali Founding Fathers of modern-state of Pakistan, career statesman from East-Pakistan, serving as the second Governor-General of Pakistan from 1948 until the assassination of Prime minister Liaquat Ali Khan in 1951.His government lasted only two years but saw the civil unrest, political differences, foreign challenges, and threat of communism in East Pakistan and socialism in West Pakistan, that led the final dismissal of his government in response to Lahore riots in 1953, Nazimuddin was the first one to have declared the Martial law in Punjab Province under Major-General Azam Khan and Colonel Rahimuddin Khan, initiating a massive repression of the Right-wing sphere in the country.
2.Sir Khawaja Nazimuddin – Pakistan Muslim League (17 October 1951 – 17 April 1953)
One of the notable Bengali Founding Fathers of modern-state of Pakistan, career statesman from East-Pakistan, serving as the second Governor-General of Pakistan from 1948 until the assassination of Prime minister Liaquat Ali Khan in 1951.His government lasted only two years but saw the civil unrest, political differences, foreign challenges, and threat of communism in East Pakistan and socialism in West Pakistan, that led the final dismissal of his government in response to Lahore riots in 1953, Nazimuddin was the first one to have declared the Martial law in Punjab Province under Major-General Azam Khan and Colonel Rahimuddin Khan, initiating a massive repression of the Right-wing sphere in the country.
Friday, June 22, 2012
पाकिस्तान में बिखरता लोकतंत्र
हिन्दू में केशव का कार्टून |
Thursday, June 21, 2012
Tuesday, June 19, 2012
तरुण सहरावत और ब्रेक से ब्रेक के बीच की पत्रकारिता
तरुण सहरावत |
Monday, June 18, 2012
समय से सबक सीखो ममता दी
पिछले बुधवार सोनिया गांधी के साथ मुलाकात करने के बाद ममता बनर्जी जितनी ताकतवर नज़र आ रहीं थीं, उतनी ही कमज़ोर आज लग रहीं हैं। राजनीति में इस किस्म के उतार-चढ़ाव अक्सर आते हैं, पर पिछले एक अरसे से ममता बनर्जी का जो ग्राफ क्रमशः ऊपर जा रहा था, वह ठहर गया है। एक झटके में उनकी सीमाएं भी सामने आ गईं। अभी तक कांग्रेस मुलायम सिंह के मुकाबले ममता को ज्यादा महत्व दे रही थी, क्योंकि उसे पता है कि मुलायम सिंह अपनी कीमत वसूलना जानते हैं। ममता बनर्जी ने जो बाज़ी चली वह कमजोर थी। जिन एपीजे अब्दुल कलाम को वे प्रत्याशी बनाना चाहती थीं उनकी रज़ामंदी उनके पास नहीं थी। बहरहाल वे अब अकेली और मुख्यधारा की राजनीति से कटी नज़र आती हैं। बेशक उनके पास विकल्प खुले हैं। पर एक साल के मुख्यमंत्री पद और पिछले छह महीने में राष्ट्रीय राजनीति से प्राप्त अनुभवों का लाभ उन्हें उठाना चाहिए। वे देश की उन कुछ नेताओं में से एक हैं जो सिर्फ अपने दम पर राजनीति की राह बदल सकते हैं। देखना यह है कि बदलते वक्त से वे कोई सबक सीखती हैं या नहीं।
चुनौतियाँ शुरू होंगी राष्ट्रपति चुनाव के बाद
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
Friday, June 15, 2012
यह राजनीतिक समुद्र मंथन है
हिन्दू सें सुरेन्द्र का कार्टून |
Monday, June 11, 2012
यह अतुल्य भारत का अंत नहीं है
यह भारत की विकास कथा का अंत है। एक वामपंथी पत्रिका की कवर स्टोरी का शीर्षक है। आवरण कथा के लेखक की मान्यता है कि आर्थिक विकास में लगे ब्रेक का कारण यूरोपीय आर्थिक संकट नहीं देश की नीतियाँ हैं। उधर खुले बाजार की समर्थक पत्रिका इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट का शीर्षक है ‘फेयरवैल टु इनक्रेडिबल इंडिया’ अतुल्य भारत को विदा। वामपंथी और दक्षिणपंथी एक साथ मिलकर सरकार को कोस रहे हैं। देश की विकास दर सन 2011-12 की अंतिम तिहाई में 5.3 फीसदी हो गई। पिछले सात साल में ऐसा पहली बार हुआ। पूरे वित्त वर्ष में यह 7 फीसदी से नीचे थी। निर्माण क्षेत्र में यह 3 फीसदी थी जो इसके एक साल पहले 9 फीसदी हुआ करती थी। राष्ट्रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अप्रेल में 10.4 प्रतिशत हो गया, जो मार्च में 8.8 और फरवरी में 7.7 था। विदेश व्यापार में घाटा एक साल में 56 फीसदी बढ़ गया। विदेशी मुद्रा कोष में लगातार गिरावट हो रही है। जो कोष 300 से काफी ऊपर होता था, वह 25 मई को 290 अरब डॉलर रह गया है। रुपए की कीमत लगातार गिर रही है।
अफगानिस्तान को लेकर बढ़ती तल्खियाँ
पिछले हफ्ते भारत-पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संदर्भ में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। पहली थी अमेरिका के रक्षामंत्री लियन पेनेटा का अफगानिस्तान और भारत का दौरा। और दूसरी थी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की पेइचिंग में हुई बैठक। आप चाहें तो दोनों में कोई सूत्र न ढूँढें पर खोजने पर तमाम सूत्र मिलेंगे। वस्तुतः पेनेटा की भारत यात्रा के पीछे इस वक्त कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं था, सिर्फ अमेरिका की नीति में एशिया को लेकर बन रहे ताज़ा मंसूबों से भारत सरकार को वाकिफ कराना था। इन मंसूबों के अनुसार भारत को आने वाले वक्त में न सिर्फ अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका निभानी है, बल्कि हिन्द महासागर से लेकर चीन सागर होते हुए प्रशांत महासागर तक अमेरिकी सुरक्षा के प्रयत्नों में शामिल होना है। अमेरिका की यह सुरक्षा नीति चीन के लिए परेशानी का कारण बन रही है। वह नहीं चाहता कि भारत इतना खुलेआम अमेरिका के खेमे में शामिल हो जाए।
Saturday, June 9, 2012
न इधर और न उधर की राजनीति
मंजुल का कार्टून साभार |
Monday, June 4, 2012
जीवन और समाज से टूटी राजनीति
हिन्दू में केशव का कार्टून |
नेपाल के आकाश पर असमंजस के मेघ
नेपाल के गणतांत्रिक लोकतंत्र का सपना अचानक टूटता नज़र आ रहा है। सारे रास्ते बन्द नहीं हुए हैं, पर मई के पहले हफ्ते में जो उम्मीदें बनी थीं, वे बिखर गई हैं। देश के पाँचवें गणतंत्र दिवस यानी 27 मई को समारोहों की झड़ी लगने के बजाय, असमंजस और अनिश्चय के बादल छाए रहे। उम्मीद थी कि उस रोज नया संविधान लागू हो जाएगा और एक नई अंतरिम सरकार चुनाव की घोषणा करेगी। ऐसा नहीं हुआ, बल्कि संविधान सभा का कार्यकाल खत्म हो गया। और एक अंतरिम प्रधानमंत्री ने नई संविधान सभा के लिए चुनाव की घोषणा कर दी। पिछले चार साल की जद्दो-जेहद और तकरीबन नौ अरब रुपए के खर्च के बाद नतीज़ा सिफर रहा। चार साल के विचार-विमर्श के बावजूद तमाम राजनीतिक शक्तियाँ सर्व-स्वीकृत संविधान बनाने में कामयाब नहीं हो पाईं हैं। यह संविधान दो साल पहले ही बन जाना चाहिए था। दो साल में काम पूरा न हो पाने पर संविधान सभा का कार्यकाल दो साल के लिए और बढ़ाया गया। इन दो साल यानी 730 दिन में संविधान सभा सिर्फ 101 दिन ही बैठक कर पाई। विडंबना यह है कि मसला बेहद मामूली जगह पर जाकर अटका। मसला यह है कि कितने प्रदेश हों और उनके नाम क्या हों, इसे लेकर आम राय नहीं बन पाई।
Friday, June 1, 2012
राजनीति में लू-लपट का दौर
हिन्दू में केशव का कार्टून |
दूसरे मंत्रियों की बात छोड़ दें तो प्रधानमंत्री पर जो आरोप लगाए गए हैं वे सन 2006 से 2009 के बीच कोयला खानों के 155 ब्लॉक्स के बारे में हैं जिन्हें बहुत कम फीस पर दे दिया गया। उस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के अधीन था। पहली नज़र में यह बात महत्वपूर्ण लगती है। खासतौर से कुछ महीने पहले एक अखबार में सीएजी की रपट इस अंदाज़ में प्रकाशित हुई थी कि कोई बहुत बड़ा घोटाला सामने आया है। सीएजी की ड्राफ्ट रपट में 10.67 लाख करोड़ के नुकसान का दावा किया गया था। इस लिहाज से यह टूजी मामले से कहीं बड़ा मामला है। पर क्या यह घोटाला है? क्या इसमें प्रधानमंत्री की भूमिका है? क्या इसके आधार पर कोई अदालती मामला बनाया जा सकता है? इन सब बातों पर विचार करने के बजाय सीधे प्रधानमंत्री को आरोप के घेरे में खड़ा करना उचित नहीं है। इसके साथ ही उनके लिए प्रयुक्त शब्द भी सामान्य मर्यादाओं के खिलाफ हैं।
Friday, May 25, 2012
आग सिर्फ पेट्रोल में नहीं लगी है
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
Monday, May 21, 2012
वैश्विक आर्थिक संकट और अफगानिस्तान
जिस वक्त आप ये पंक्तियाँ पढ़ रहे हैं उस वक्त तक अफगानिस्तान में पाकिस्तान के रास्ते नेटो सेना की रसद सप्लाई पर लगी रोक हट चुकी होगी या हटाने की घोषणा हो चुकी होगी। या उसका रास्ता साफ हो चुका होगा। शिकागो में नेटो का शिखर सम्मेलन शुरू हो गया है जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी शिरकत कर रहे हैं। विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर उनके साथ हैं। पाकिस्तानी राजनीति अमेरिका के साथ रिश्तों को आज भी ठीक से परिभाषित नहीं कर पाई है, पर किसी में हिम्मत नहीं है कि अमेरिका के रिश्ते पूरी तरह तोड़ सके। पिछले साल नवंबर में नेटो सेना के हैलिकॉप्टरों ने कबायली इलाके मोहमंद एजेंसी में पाकिस्तानी फौजी चौकियों पर हमला किया था, जिसमें 24 सैनिक मारे गए थे। पाकिस्तानी सरकार ने उस हमले का कड़ा विरोध किया था और नेटो सेना की सप्लाई पर रोक लगा दी थी। इन दिनों नेटो के सैकड़ों वाहन पाकिस्तान के विभिन्न इलाकों में अफगानिस्तान जाने का इंतजार कर रहे हैं। समझौते की घोषणा होते ही वे चल पड़ेंगे। हालांकि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में पड़ी खटास का यह दौर फिलहाल खत्म हो जाएगा, पर दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास घर कर चुका है और लम्बे समय तक इसके दूर होने की आशा नहीं है।
Sunday, May 20, 2012
जेंटलमैंस गेम से कल्चरल क्राइम तक क्रिकेट
हिन्दू में केशव का कार्टून |
एक ज़माने तक देश के सबसे लोकप्रिय खेल हॉकी और फुटब़ॉल होते थे। आज क्रिकेट है। ठीक है। देश के लोगों को पसंद है तो अच्छी बात है। अब यह सारे मीडिया पर हावी है। क्रिकेट की खबरें, क्रिकेट के विज्ञापन। बॉलीवुड के अभिनेता, अभिनेत्री क्रिकेट में और सारे देश के नेता क्रिकेट में। पिछले हफ्ते की कुछ खबरों को आधार बनाया जाए तो सारे अपराधी क्रिकेट में और सारे अपराध क्रिकेट में। पिछले हफ्ते बुधवार की रात मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम में कोलकाता नाइट रायडर्स टीम के मालिक शाहरुख खान और स्टेडियम के सिक्योरिटी स्टाफ के बीच ऐसी ठनी कि शाहरुख के वानखेड़े स्टेडियम में प्रवेश पर पाँच साल के लिए पाबंदी लगा दी गई। शाहरुख का रुख और बदले में की गई कार्रवाई दोनों के पीछे गुरूर नज़र आता है। लगता है मुफ्त की कमाई ने सबके दिमागों में अहंकार की आग भर दी है।
Friday, May 18, 2012
क्रिकेट को धंधा बनने से रोकिए
आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग की खबरे आने के बाद बीसीसीआई को पारदर्शी बनाने की ज़रूरत है। उसके खाते आरटीआई के लिए खुलने चाहिए और साथ ही आईपीएल के तमाशे को कड़े नियमन के अधीन लाया जाना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो यह मसला तमाम बड़े घोटालों की तरह सरकार के गले की हड्डी बन जाएगा। आईपीएल ने जिस तरह की खेल संस्कृति को जन्म दिया है वह खतरनाक है। उससे ज्यादा खतरनाक है इसकी आड़ में चल रही आपराधिक गतिविधियाँ जिनका अभी अनुमान ही लगया जा सकता है। खेल मंत्री अजय माकन ने ठीक माँग की है कि बीसीसीआई खुद को आईपीएल से अलग करे। अभी जिन पाँच खिलाड़ियों पर कार्रवाई की गई है वह अपर्याप्त है, क्योंकि सम्भव है कि इसमें अनेक मोटी मछलियाँ सामने आएं।
Tuesday, May 15, 2012
पाठ्य पुस्तकों में कार्टून क्या गलत हैं?
कार्टून विवाद हालांकि एक या दो रोज की खबर बनकर रह गया। इसकी बारीकियों पर जाने की कोशिश ज्यादा लोगों ने नहीं की। मुझे इधर-उधर जो भी पढ़ने को मिल रहा है उसके आधार पर कुछ बिन्दु उभरते हैं जो इस प्रकार हैं:-
- दलित राजनीति से जुड़े एक मामूली से संगठन ने इस सवाल को उठाया। महाराष्ट्र के इस संगठन को इसके बहाने अपने आप को आगे लाने का मौका नज़र आया। सुहास पालसीकर के घर पर तोड़फोड़ के पीछे भी इस संगठन की मंशा अपने को बढ़ाने की है।
- संसद में यह सवाल उठने के पहले मानव संसाधन मंत्री के साथ कुछ सांसदों ने चर्चा की थी। कार्टून को हटाने का फैसला भी हो गया।
- यह भी समझ में आता है कि सांसदों का एक ग्रुप बड़े दबाव समूह के रूप में उभर कर आया है। सरकार और विपक्ष से जुड़े बहुसंख्यक सांसद राजनीति लेकर जनता के बढ़ते रोष से परेशान हैं। अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान यह रोष मुखर होकर सामने आया।
- सरकार केवल आम्बेडकर वाले कार्टून को ही नहीं हटा रही है बल्कि किसी भी प्रकार के कार्टून को पाठ्य पुस्तकों से हटाना चाहती है।
- सवाल यह है कि क्या किशोर मन को राजनीति की बारीकियाँ समझ में नहीं आएंगी। या उसे यह सब नही बताया जाना चाहिए। उसके मन में क्या राजनीति के प्रति अनादर का भाव है?
Monday, May 14, 2012
यूरोज़ोन और पूँजीवाद का वैश्विक संकट
यूरोपीय संघ अपने किस्म का सबसे बड़ा राजनीतिक-आर्थिक संगठन है। इरादा यह था कि यूरोप के सभी देश आपसी सहयोग के सहारे आर्थिक विकास करेंगे और एक राजनीतिक व्यवस्था को भी विकसित करेंगे। 27 देशों के इस संगठन की एक संसद है। और एक मुद्रा भी, जिसे 17 देशों ने स्वीकार किया है। दूसरे विवश्वयुद्ध के बाद इन देशों के राजनेताओं ने सपना देखा था कि उनकी मुद्रा यूरो होगी। सन 1992 में मास्ट्रिख्ट संधि के बाद यूरोपीय संघ के भीतर यूरो नाम की मुद्रा पर सहमति हो गई। इसे लागू होते-होते करीब दस साल और लगे। इसमें सारे देश शामिल भी नहीं हैं। यूनाइटेड किंगडम का पाउंड स्टर्लिंग स्वतंत्र मुद्रा बना रहा। मुद्रा की भूमिका केवल विनिमय तक सीमित नहीं है। यह अर्थव्यवस्था को जोड़ती है। अलग-अलग देशों के बजट घाटे, मुद्रास्फीति और ब्याज की दरें इसे प्रभावित करती हैं। समूचे यूरोप की अर्थव्यवस्था एक जैसी नहीं है। दुनिया की अर्थव्यवस्था इन दिनों दो प्रकार के आर्थिक संकटों से घिरी है। एक है आर्थिक मंदी और दूसरा यूरोज़ोन का संकट। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं।
Sunday, May 13, 2012
कार्टून विवाद पर फेसबुक से कुछ पोस्ट
हिमांशु पांड्या की यह पोस्ट मैने उनके फेसबुक नोट्स से ली है। इस चर्चा को आगे बढ़ाने में यह मददगार होगी।
अप्रश्नेय कोई नहीं है - गांधी , नेहरू , अम्बेडकर , मार्क्स....
by Himanshu Pandya on Saturday, May 12, 2012 at 1:17pm ·
जिस किताब में छपे कार्टून पर विवाद हो रहा है, उसमें कुल बत्तीस कार्टून हैं। इसके अतिरिक्त दो एनिमेटेड बाल चरित्र भी हैं - उन्नी और मुन्नी। मैं सबसे पहले बड़े ही मशीनी ढंग से इनमें से कुछ कार्टूनों का कच्चा चिट्ठा आपके सामने प्रस्तुत करूँगा, फिर अंत में थोड़ी सी अपनी बात।
by Himanshu Pandya on Saturday, May 12, 2012 at 1:17pm ·
जिस किताब में छपे कार्टून पर विवाद हो रहा है, उसमें कुल बत्तीस कार्टून हैं। इसके अतिरिक्त दो एनिमेटेड बाल चरित्र भी हैं - उन्नी और मुन्नी। मैं सबसे पहले बड़े ही मशीनी ढंग से इनमें से कुछ कार्टूनों का कच्चा चिट्ठा आपके सामने प्रस्तुत करूँगा, फिर अंत में थोड़ी सी अपनी बात।
इससे बेहतर है कि कार्टून बनाना-छापना बैन कर दीजिए
लगता है कुएं में भाँग पड़ी है। सन 1949 में बना एक कार्टून विवाद का विषय बन गया। संसद में हंगामा हो गया। सरकार ने माफी माँग ली। एनसीईआरटी की किताब बैन कर दी गई। किताब को स्वीकृति देने वाली समिति के विद्वान सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। मानव संसाधन मंत्री ने कहा, '' मैंने एक और फैसला किया है कि जिस पुस्तक में भी इस तरह के कार्टून होंगे, उन्हें आगे वितरित नहीं किया जाएगा।'' बेहतर होता कि भारत सरकार कार्टून बनाने पर स्थायी रूप से रोक लगा दे। साथ ही हर तरह की पाठ्य पुस्तक पर हर तरह की आपत्तिजनक सामग्री हटाने की घोषणा कर दे। उसके बाद किताबों में कुछ पूर्ण विराम, अर्ध विराम, कुछ क्रियाएं और सर्वनाम बचेंगे, उन्हें ही पढ़ाया जाए। इस कार्टून के पहले बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर बने एक कार्टून ने भी देश का ध्यान खींचा था, जिसमें कार्टून का प्रसारण करने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके पहले कपिल सिब्बल ने इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ कार्रवाई करने की बात जब की थी तब भी मामला मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी आदि के कार्टूनों-मॉर्फ्ड पिक्चरों का था।
Friday, May 11, 2012
कितने सच सामने लाएंगे आमिर खान?
सतीश आचार्य का कार्टून साभार |
Monday, May 7, 2012
एक और झंझावात से गुजरता नेपाल
दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर बर्मा तक और मालदीव से नेपाल तक तकरीबन हर देश में राजनीतिक हलचल है। हालांकि बर्मा को भू-राजनीतिक भाषा में दक्षिण पूर्व एशिया का देश माना जाता है, पर वह अनेक कारणों से हमेशा हमारे करीब रहेगा। भारत इन सभी देशों के बीच में पड़ता है और इस इलाके का सबसे बड़ा देश है। पर हमारा महत्व केवल बड़ा देश होने तक सीमित नहीं है। इन सभी देशों की समस्याएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं।
Sunday, May 6, 2012
एनसीटीसी की भैंस चली गई पानी में
सतीश आचार्य का कार्टून |
Thursday, May 3, 2012
हाईस्पीड रेलगाड़ियाँ यानी तेज रफ्तार शहरीकरण
शहरीकरण समस्या है या समस्याओं का समाधान है? पहली बात यह कि आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र शहर हैं, गाँव नहीं हैं। दूसरे खेती में क्रांति के लिए भी औद्योगिक क्रांति की ज़रूरत है। खेती में विकास दर बढ़ भी जाए, पर गाँवों के विकास का रास्ता दिखाई नहीं पड़ता। गाँवों से शहर आए लोग तमाम दिक्कतों से जूझने के बावजूद गाँव वापस नहीं जाना चाहते। पर शहरीकरण विषमता और तमाम समस्याएं लेकर आता है। हमें मानवीय चेहरे वाले शहरीकरण की ज़रूरत है, जो प्रदूषण मुक्त हो और जहाँ गरीबों को सम्मान और सुख से जीने के साधन मुहैया हों।
Wednesday, May 2, 2012
Monday, April 30, 2012
तड़कामार कल्चर में सचिन का सम्मान
मंजुल का कार्टून |
पाकिस्तानी लोकतंत्र की परीक्षा
जिसकी उम्मीद थी वही हुआ। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी पाया। उन्हें कैद की सज़ा नहीं दी गई। पर अदालत उठने तक की सज़ा भी तकनीकी लिहाज से सजा है। पहले अंदेशा यह था कि शायद प्रधानमंत्री को अपना पद और संसद की सदस्यता छोड़नी पड़े, पर अदालत ने इस किस्म के आदेश जारी करने के बजाय कौमी असेम्बली के स्पीकर के पास अपना फैसला भेज दिया है। साथ ही निवेदन किया है कि वे देखें कि क्या गिलानी की सदस्यता खत्म की जा सकती है।
Friday, April 27, 2012
वैचारिक भँवर में फँसी कांग्रेस
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
Tuesday, April 24, 2012
अक्षय तृतीया पर हिन्दू का जैकेट
भारत के अखबारों के पास शानदार अतीत है और आज भी अनेक अखबार अपने पत्रकारीय कर्म का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें मैं हिन्दू को सबसे आगे रखता हूँ। पहले भी और आज भी। अखबार के सम्पादकीय दृष्टिकोण की बात छोड़ दें तो उसकी किसी बात से असहमति मुझे कभी नहीं हुई। हाल के वर्षों में हिन्दू व्यावसायिक दौड़ में भी शामिल हुआ है और बहुत से ऐसे काम कर रहा है, जो उसने दूसरे अखबारों की देखादेखी या व्यावसायिक दबाव में किए होंगे। पर ऐसा मैने नहीं देखा कि सम्पादक अपने अखबार की व्यावसायिक नीतियों और सम्पादकीय नीतियों के बरक्स अपनी राय पाठकों के सामने रखे।
Monday, April 23, 2012
राजनीतिक दलदल में आर्थिक उदारीकऱण
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने भारतीय राजनीति के संदर्भ में जो कुछ कहा वह उनके गले पड़ गया और तकरीबन उन्हीं कारणों से जिनका जिक्र उन्होंने अपने वक्तव्य में किया था उन्हें अपनी बात वापस लेनी पड़ी। सरकार को भी अपनी सफाई में साबित करना पड़ा कि हम कारगर हैं और काम कर रहे हैं। पर क्या किसी को दिखाई नहीं पड़ा कि रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने रेल बजट में जो प्रस्ताव पेश किए थे वे किसी कारण से बदल गए। वे कौन से कारण थे? उसके पहले सरकार को खुदरा बाजार में विदेशी निवेश की अनुमति देने का आदेश वापस लेना पड़ा।
Sunday, April 22, 2012
अग्नि ज़रूरी है उसकी तपिश ज़रूरी नहीं
पिछले बुधवार को भारतीय मीडिया में सुबह से ही अग्नि-5 के परीक्षण की तैयारियों का विवरण जिस तरह आ रहा था उससे लगता है कि किसी स्तर पर इस खबर को सायास ओवरप्ले करने का फैसला किया गया था। पिछले कुछ समय से सेना और रक्षा व्यवस्था को लेकर नकारात्मक बातें मीडिया में आ रही थीं। शायद इस परीक्षण से उनका असर कुछ कम हो। बुधवार की शाम परीक्षण नहीं हो पाया, क्योंकि मौसम साथ नहीं दे रहा था, पर गुरुवार की सुबह परीक्षण सफल हो गया। उसके बाद दिनभर अग्नि की खबरें छाई रहीं।
Friday, April 20, 2012
क्षेत्रीय क्षत्रपों का राष्ट्रीयकरण
ऐसे चित्र आपको कई बार दिखाई पड़ेंगे, सिर्फ चेहरे बदलते रहेंगे |
म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली के हाल में हुए चुनाव में कांग्रेस की पराजय हुई। इसे बीजेपी की जीत भी कह सकते हैं। बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर जितना महत्वपूर्ण हो सकता था, नहीं हुआ। पर क्या नगरपालिका चुनाव को महत्व देना चाहिए? क्या उसका कोई राष्ट्रीय महत्व है? पालिका चुनाव में तो मुद्दे ही कुछ और होते हैं। दिल्ली के पहले मुम्बई नगर निगम के चुनाव में भी कांग्रेस की पराजय हो चुकी है।
Monday, April 16, 2012
राजनीति में उलझी आंतरिक सुरक्षा
हाल में हुए पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के पहले ही तीन-चार सवालों पर यूपीए सरकार घिर चुकी थी। खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मामला सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस ने उठाया और कोई पार्टी यूपीए के समर्थन में नहीं आई। इसके बाद लोकपाल बिल में राज्यों के लिए कानून बनाने की शक्तियों को लेकर बहस शुरू हुई और अंततः बिल राज्यसभा का दरवाजा पार नहीं कर पाया। नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) की स्थापना 1 मार्च को होनी थी और उसके ठीक पहले लगभग सभी पार्टियों ने विरोध का झंडा खड़ा कर दिया। यूपीए सरकार को इस मामले में पीछे हटना पड़ा। हालांकि आतंक विरोधी संगठन का राजनीति से सीधा रिश्ता नहीं है, पर केन्द्र और राज्य की शक्तियों को लेकर जो विवाद शुरू हुआ है उसने इसे राजनीति का विषय बना दिया है।
उत्तर कोरिया के नए शासन को झटका
उत्तर कोरिया के चीन से सटे पश्चिमोत्तर इलाके में पिछले शुक्रवार को विफल हुए रॉकेट टेस्ट के बाद दुनिया की निगाहें सुदूर पूर्व के इस देश की ओर घूम गई हैं। किम वंश के तीसरे शासक की यह पहली परीक्षा थी। इस परीक्षण को उनकी उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा था। सन 2009 में भी इसी किस्म का एक परीक्षण विफल हो चुका है। 17 दिसम्बर 2011 को किम जोंग इल के निधन के बाद उनके सबसे छोटे बेटे किम जोंग-उन को गद्दी मिली है। वे किम वंश के उत्तराधिकारी हैं। क्वांगम्योंगसांग यानी चमकता सितारा नाम के जिस उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा था, उसे तकरीबन 45 करोड़ डॉलर यानी करीब करीब सवा दो हजार करोड़ के खर्च से तैयार किया गया था। खर्चे का विवरण इसलिए ज़रूरी है कि यह देश भयानक गरीबी का सामना कर रहा है। फरवरी में इसे अमेरिका ने 2,40,000 टन की खाद्य सामग्री देने का वादा किया था। इसे बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि यह रॉकेट परीक्षण संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा था।
Sunday, April 15, 2012
भारत-पाक रिश्तों की गर्मी-नर्मी
अब से दो साल पहले इन्हीं दिनों कश्मीर में माहौल काफी खराब हो गया था। एक तरफ जम्मू के इलाके में आंदोलन था तो दूसरी ओर मई-जून में श्रीनगर की घाटी में अचानक तनाव बढ़ गया। अलगाववादियों ने छोटे बच्चों को इस्तेमाल करना शुरू किया। सुरक्षा दस्तों पर पत्थर फेंकने की नई मुहिम शुरू हो गई। उमर अब्दुल्ला की अपेक्षाकृत नई सरकार के सामने परेशानियाँ खड़ी हो गईं। उस मौके पर भारत सरकार ने तीन वार्ताकारों की एक टीम को कश्मीर भेजा। बातचीत को व्यावहारिक बनाने के लिए इस टीम को अनौपचारिक तरीके से हरेक पक्ष से बातचीत करने की सलाह दी गई। इसके बाद एक सर्वदलीय टीम भी श्रीनगर गई, जिसने हुर्रियत से जुड़े नेताओं से भी बात की। हालांकि कश्मीर में खड़ा किया गया बवाल अपने आप धीमा पड़ गया, क्योंकि बच्चों की पढ़ाई का हर्जा हो रहा था और हासिल कुछ हो नहीं रहा था। भारत सरकार के तीनों वार्ताकारों का काम चलता रहा। इस दौरान तीनों के बीच के मतभेद भी उजागर हुए। बहरहाल पिछले साल अक्टूबर में इस दल ने अपनी रपट गृहमंत्री को सौंप दी, जो अब जारी हो रही है।
वार्ताकारों की सिफारिशों से ज्यादा महत्वपूर्ण है इस रपट के जारी होने का समय। पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी को अचानक अजमेर शरीफ यात्रा का विचार क्यों आया? और क्या इस यात्रा से कुछ भी हासिल नहीं हुआ? यह निजी यात्रा थी इस सिलसिले में कोई औपचारिक वक्तव्य जारी नहीं होना था और नीतिगत सवाल इससे जुड़े भी नहीं थे। पर प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के रिश्तों में आ रहे बदलाव का संकेत अपने वक्तव्य में दिया। साथ ही उन्होंने हफीज सईद का मामला भी उठाया। दूसरी ओर विदेश सचिव रंजन मथाई ने स्पष्ट किया कि कश्मीर सहित सभी सवालों पर दोनों देशों के बीच बातचीत होगी। पिछले हफ्ते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी ने कहा कि भारत के साथ बातचीत को एक नई टीम आगे बढ़ाएगी। इस बयान से कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि शायद विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का पत्ता कटने वाला है, पर ऐसा नहीं है।
वार्ताकारों की सिफारिशों से ज्यादा महत्वपूर्ण है इस रपट के जारी होने का समय। पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी को अचानक अजमेर शरीफ यात्रा का विचार क्यों आया? और क्या इस यात्रा से कुछ भी हासिल नहीं हुआ? यह निजी यात्रा थी इस सिलसिले में कोई औपचारिक वक्तव्य जारी नहीं होना था और नीतिगत सवाल इससे जुड़े भी नहीं थे। पर प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के रिश्तों में आ रहे बदलाव का संकेत अपने वक्तव्य में दिया। साथ ही उन्होंने हफीज सईद का मामला भी उठाया। दूसरी ओर विदेश सचिव रंजन मथाई ने स्पष्ट किया कि कश्मीर सहित सभी सवालों पर दोनों देशों के बीच बातचीत होगी। पिछले हफ्ते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी ने कहा कि भारत के साथ बातचीत को एक नई टीम आगे बढ़ाएगी। इस बयान से कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि शायद विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का पत्ता कटने वाला है, पर ऐसा नहीं है।
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