Wednesday, May 7, 2025

पाकिस्तान ने अब भी समझदारी नहीं दिखाई, तो तबाह हो जाएगा


भारत के इस तीसरे ‘सर्जिकल-स्ट्राइक’ का सबूत कोई नहीं माँगेगा, क्योंकि इसे पाकिस्तान ने खुद स्वीकार किया है. इसबार की स्ट्राइक का लेवल 2016 और 2019 के मुकाबले ज्यादा बड़ा है, जिसकी उम्मीद थी. अब ज्यादा बड़ा सवाल है कि बात कितनी बढ़ेगी? 

कार्रवाई क्या यहीं तक सीमित रहेगी, या आगे बढ़ेगी? बहुत कुछ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा. सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ की एक बात तैर रही है कि भारत यदि और हमले न करे, तो हम भी जवाबी हमला न करने पर विचार कर सकते हैं, पर इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है. 

प्रेस ब्रीफिंग

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ सेना की ओर से कर्नल सोफिया कुरैशी और वायुसेना की ओर से स्क्वॉड्रन लीडर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन की जानकारी दी. प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले एयर स्ट्राइक का दो मिनट का वीडियो प्ले किया गया. इसके साथ ही आज के ऑपरेशन से जुड़े वीडियो प्रमाण भी दिखाए गे. 

विक्रम मिस्री ने इसे आतंक के खिलाफ नपी-तुली कार्रवाई बताया. उन्होंने कहा, पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी टीआरएफ ने ली है. इस संगठन के बारे में हमने पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी दी थी. सुरक्षा परिषद के वक्तव्य से इस संगठन के नाम को हटाए जाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. 

उन्होंने कहा कि हमलावरों की पहचान भी हुई है. हमारी इंटेलिजेंस ने हमले में शामिल लोगों से जुड़ी जानकारी जुटा ली है. इस हमले का कनेक्शन पाकिस्तान से है.

ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर के लक्ष्यों के बारे में केंद्र सरकार द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, निम्नलिखित स्थानों पर हमला किया गया: 

सियालकोट में सरजाल कैंप-मार्च 2025 में चार जम्मू-कश्मीर पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले आतंकवादियों ने इसी कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। सियालकोट-पठानकोट वायुसेना बेस कैंप पर हमले की योजना इसी आतंकवादी शिविर में बनाई गई थी और उसे अंजाम दिया गया था।

मुरीद्के में मरकज तैयबा कैंप-2008 के मुंबई आतंकी हमलों में भाग लेने वाले आतंकवादियों को यहीं प्रशिक्षण दिया गया था। अजमल कसाब और डेविड हेडली ने यहीं प्रशिक्षण प्राप्त किया था। 

बहावलपुर में मरकज़ सुभानअल्लाह-यह जैश-ए-मुहम्मद का मुख्यालय है। यहाँ भर्ती, प्रशिक्षण और विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया जाता था।

ज़ीरो टॉलरेंस

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, दुनिया को आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस दिखाना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर लगातार नज़र रखी. 

भारत ने इसके माध्यम से संदेश दिया है कि आतंकवादी गतिविधियाँ जारी रहीं, तो हमारी ओर से कार्रवाइयों की कठोरता बढ़ती जाएगी. भारत ने इसबार जो भी कार्रवाई की है, उसे काफी होमवर्क के साथ तैयार किया है, जिसमें प्लान ‘बी’ और ‘सी’ जैसे विचार शामिल हैं. 

पाकिस्तान को समझना चाहिए कि उसका खेल खत्म हो रहा है. भारत की कार्रवाइयाँ तब तक जारी रहेंगी, जब तक हालात किसी निर्णायक मुकाम तक नहीं पहुँचेंगे. खूंरेज़ी और पड़ोस के रिश्ते साथ-साथ नहीं चलेंगे. 

भारत को उकसाया

इसबार की कार्रवाई की तीव्रता बहुत कठोर होने के बजाय कम भी हो सकती थी, पर पाकिस्तानी नेतृत्व ने भड़काऊ बातें करके भारत को उकसाया और एटम बम का इस्तेमाल करने की धमकी तक दे डाली. 

पाकिस्तान के नेतृत्व ने समझदारी का परिचय दिया होता, तो सिंधु जल-संधि के स्थगित होने की नौबत नहीं आती. पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को प्रवासी पाकिस्तानियों की सभा में ज़हरीली बातें करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. 

ऑपरेशन का नाम रखने और सर्जिकल स्ट्राइक के ठिकानों को तय करने में भारत ने बहुत सावधानी बरती है और उसे पहलगाम हमले पर केंद्रित रखा है. सेना ने पाकिस्तान के किसी भी आधिकारिक सैनिक ठिकाने पर हमला नहीं बोला है, बल्कि जैशे मुहम्मद, लश्करे तैयबा और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंपों को निशाना बनाया है, जो दहशतगर्दी के अड्डे हैं. 

यह अभियान ‘फोकस्ड और सटीक’ था. हमारे पास पहलगाम हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों की संलिप्तता की ओर इशारा करने वाले विश्वसनीय सुराग और सबूत हैं. सटीक हमलों के बाद, भारत ने विश्व के कई देशों से संपर्क किया और वरिष्ठ अधिकारियों को पाकिस्तान के खिलाफ अपनी आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के बारे में जानकारी दी. 

इन हमलों में नागरिकों को या दूसरे प्रतिष्ठानों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा है. अभी तक सेना ने सीमा पार नहीं की है, बल्कि अपनी सीमा के भीतर रहते हुए गाइडेड मिसाइलों, प्रिसीशन बमों और लॉइटरिंग म्यूनिशंस की मदद से हमला किया है. इसका उद्देश्य कार्रवाई को सीमित दायरे में रखना है.   

पाकिस्तान इस समय सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है, जिससे उसकी जिम्मेदारी बढ़ती है. वह जुलाई में एक महीने के लिए परिषद की अध्यक्षता भी उसे मिलेगी. इसका मतलब यह नहीं है कि वह जो चाहे कर लेगा. 

सबूत चाहिए

पाकिस्तान ने भारत से पहलगाम से जुड़े सबूत पेश करने को और इस प्रकरण की निष्पक्ष जाँच करने को कहा है. वस्तुतः सबूत उसे पेश करने हैं कि जिस टीआरएफ ने पहलगाम हिंसा की जिम्मेदारी ली है, उसका लश्करे तैयबा के साथ कोई रिश्ता नहीं है. और यह भी साबित करना है कि लश्कर के अलावा जैशे मुहम्मद और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंप नहीं हैं. 

पहलगाम की हिंसा के फौरन बाद लश्करे तैयबा के पिट्ठू संगठन रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने उसकी ज़िम्मेदारी खुद ली थी. पाकिस्तानी नेतृत्व को जब इस बात की गंभीरता का पता लगा, तो उन्होंने कहना शुरू किया कि यह भारत का ‘फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन’ है. 

पाकिस्तान की ओर से इस किस्म का बयान आने के अगले ही दिन टीआरएफ ने अपनी बात वापस ले ली और कहा कि हमारे सोशल मीडिया हैंडल को किसी ने हैक कर लिया था. 

राजनयिक खेल

इसके बाद पाकिस्तान ने चीन की सहायता से 25 अप्रैल को सुरक्षा परिषद का बयान जारी करवाया, जिसमें पहलगाम के आतंकवादी हमले की ‘कड़े शब्दों में’ निंदा ज़रूर थी, पर (टीआरएफ) का नाम नहीं लिया, जिसने हमले की जिम्मेदारी ली थी. 

सुरक्षा परिषद ने इस संगठन का नाम नहीं लिया, तो लश्कर-ए-तैयबा के साथ उसके संबंधों का उल्लेख भी नहीं हुआ, जो संरा द्वारा नामित आतंकवादी संगठन है. उसने भारत सरकार के साथ सहयोग की बात भी नहीं की, जैसा कि अतीत में होता रहा है. गैर-मुसलमानों को निशाना बनाए जाने का उल्लेख भी नहीं. 

सुरक्षा परिषद ने पहलगाम के बाद की परिस्थिति पर सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. इस बैठक का आग्रह पाकिस्तान ने ही किया था, पर इसका कोई लाभ उसे नहीं नहीं मिला. 

कठोर सवाल

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने कुछ ‘कठोर सवाल’ रखे. क्या थे ‘कठोर सवाल’? पहला सवाल यही है कि पहलगाम की हिंसा के पीछे कौन है? 

इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

बंद कमरे में हुई यूएनएससी की बैठक उनके सामान्य बैठने के कमरे में नहीं हुई, बल्कि उसके बगल में बने परामर्श कक्ष में हुई. इससे इस बैठक की अनौपचारिकता ही साबित होती है. कहा जा सकता है कि स्थिति का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की पाकिस्तान की कोशिशें सफल नहीं हुईं. 

अगस्त 2019 में जब भारत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया था, तब भी पाकिस्तान ने चीन की सहायता से सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने का प्रयास किया था. तब भी इसी किस्म की अनौपचारिक बैठक हुई थी और परिषद ने तब भी कोई बयान जारी नहीं किया था.

आर्थिक-दबाव

यह मामला केवल सैनिक (काइनेटिक) कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राजनयिक और राजनीतिक-कार्रवाइयाँ भी इसमें शामिल हैं. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने कहा है कि लड़ाई से पाकिस्तान की आर्थिक गतिविधियों पर जैसा विपरीत प्रभाव पड़ेगा, वैसा भारत की अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा. 

पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पहले से डगमगा रही है, जिसे थामना अब और मुश्किल होगा. उसे चीन का समर्थन हासिल है, पर उसे आर्थिक सहायता के लिए विश्व बैंक और आईएमएफ के पास ही जाना होता है, जिनकी चाभी अमेरिका के पास है.  

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित




वैश्विक-मंच पर होगी कश्मीर की लड़ाई


पहलगाम-हमले ने एक तरफ कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचा है, वहीं वैश्विक-दृष्टिकोण को भी समझने का मौका दिया है. कौन हमारा साथ देगा, अमेरिका या ब्रिटेन? यूरोप क्या सोचता है या रूसी नज़रिया क्या है वगैरह.  

आतंकवादियों के हमले का जवाब देने के अलावा वैश्विक राजनीति को अपने पक्ष में लाने का प्रयास भी भारत को करना है. साथ ही कश्मीर को लेकर अपने दृष्टिकोण को वैश्विक-मंच पर ज्यादा दृढ़ता से उठाना होगा. 

सवाल केवल प्रतिशोध का नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन रणनीति पर चलने का है. एक बड़ा सवाल चीन की भूमिका को लेकर भी है. लड़ाई हुई, तो शायद चीन सीधे उसमें शामिल नहीं होगा, पर परोक्षतः वह पाकिस्तान का साथ देगा. खासतौर से सुरक्षा परिषद की गतिविधियों में. 

वैश्विक-उलझाव

भारत के विभाजन की सबसे बड़ी अनसुलझी समस्या है, कश्मीर. शीतयुद्ध और राजनीतिक गणित के कारण यह मसला उलझा रहा. भारत का नेतृत्व इस समय संज़ीदगी से बर्ताव कर रहा है, वहीं पाकिस्तानी नेतृत्व बदहवास है और एटमी धमकी दे रहा है. 

हमारा विदेश मंत्रालय सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों सहित दुनिया के सभी प्रमुख देशों से संपर्क कर रहा है. सुरक्षा परिषद ने सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. 

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने ‘कठोर सवाल’ रखे. इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

Monday, May 5, 2025

अमेरिका और ब्रिटेन ने उलझाया कश्मीर का सवाल

पहलगाम पर हुए आतंकी हमले ने कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान फिर से खींचा है। भारत के विभाजन की यह सबसे बड़ी देन है, जिसके कारण दक्षिण एशिया अशांत है और आज दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में उसका शुमार होता है। प्रश्न है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस समस्या का समाधान करने में विफल क्यों रही? 

समस्या का जन्म

अविभाजित भारत में 562 देशी रजवाड़े थे। कश्मीर भी अंग्रेजी राज के अधीन था, पर उसकी स्थिति एक प्रत्यक्ष उपनिवेश जैसी थी और 15 अगस्त 1947 को वह भी स्वतंत्र हो गया। जम्मू-कश्मीर महाराजा हरिसिंह के नेतृत्व में देशी रियासत थी। देशी रजवाड़ों के सामने विकल्प था कि वे भारत को चुनें या पाकिस्तान को। देश को जिस भारत अधिनियम के तहत स्वतंत्रता मिली थी, उसकी मंशा थी कि कोई भी रियासत स्वतंत्र देश के रूप में न रहे। बहरहाल कश्मीर राज के मन में असमंजस था।

इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के तहत 15 अगस्त 1947 को जम्मू कश्मीर पर भी अंग्रेज सरकार का आधिपत्य (सुज़रेंटी) समाप्त हो गया। महाराजा के मन में संशय था कि भारत में शामिल हुए, तो राज्य की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी को यह बात पसंद नहीं आएगी और पाकिस्तान में विलय करेंगे, तो हिंदू और सिख नागरिकों को दिक्कत होगी। 

स्टैंडस्टिल समझौता

पाकिस्तान ने कश्मीर के महाराजा को कई तरह से मनाने का प्रयास किया कि वे पकिस्तान में विलय को स्वीकार कर लें। स्वतंत्रता के ठीक पहले जुलाई 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने महाराजा को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाएगी। महाराजा ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ की पेशकश की। यानी यथास्थिति बनी रहे। भारत ने इस पेशकश पर कोई फैसला नहीं किया, पर पाकिस्तान ने ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ कर लिया। 

Saturday, May 3, 2025

वक़्फ़ कानून का राजनीतिक-माइलेज और अदालती सुनवाई

भारत सरकार की ओर से जवाब मिल जाने के बाद अब 5 मई को सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ कानून से जुड़ी याचिकाओं पर फिर से सुनवाई होगी। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने लगातार वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ 5 मई को पाँच याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। 

इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि 70 से ज्यादा याचिकाओं में से केवल पाँच पर सुनवाई होगी। गत 2 मई को फिर कहा कि इस मुद्दे पर कोई और नई याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता मोहम्मद सुल्तान के वकील से कहा, 'यदि आपके पास कुछ अतिरिक्त आधार हैं, तो आप हस्तक्षेप आवेदन दायर कर सकते हैं।' इससे पहले 29 अप्रैल को पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 13 याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

पीठ ने कहा, 'हम अब याचिकाओं की संख्या नहीं बढ़ाने जा रहे हैं। यह बढ़ती रहेंगी और इन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा।' 17 अप्रैल को पीठ ने अपने समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं में से केवल पाँच पर सुनवाई करने का फैसला किया और मामले का टाइटल रखा 'वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के संबंध में।'

तब केंद्र ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह 5 मई तक 'वक्फ के यूजर्स सहित वक्फ संपत्तियों को न तो गैर-अधिसूचित करेगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा। कानून के खिलाफ 72 याचिकाएँ दायर की गईं। इनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाएं शामिल थीं। तीन वकीलों को नोडल वकील नियुक्त करते हुए पीठ ने वकीलों से कहा कि वे आपस में तय करें कि कौन बहस करने जा रहा है। पीठ ने कहा, 'हम स्पष्ट करते हैं कि अगली सुनवाई (5 मई) प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी।'

Friday, May 2, 2025

मानसिक-युद्धों के दौर में खामोशी भी हथियार है



पुलवामा हमला 14 फरवरी को हुआ था और भारत ने बालाकोट पर हमला उसके 12 दिन बाद 26 फरवरी को किया। इसबार कार्रवाई क्या और कब होगी, इसे लेकर अटकलें हैं। ऐसी कार्रवाई किसी भी वक्त हो सकती है, पर ज़रूरी नहीं कि बहुत जल्दी हो। रक्षा-प्रतिष्ठान समय और उसके तरीके पर काफी सोच-विचारकर ही फैसला करेगा। कार्रवाई के संभावित परिणामों पर भी विचार करने की जरूरत होती है। 

हमारा सत्ता-प्रतिष्ठान किसी किस्म की बदहवासी व्यक्त नहीं कर रहा है, जैसी पाकिस्तान से दिखाई और सुनाई पड़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में युद्ध के दो नए पक्ष और जुड़े हैं। एक है साइबर-युद्ध और दूसरा हाइब्रिड-युद्ध। दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। 12 नवंबर, 2021 को हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 'नागरिक समाज को युद्ध का नया मोर्चा' कहा था। उनके इस बयान पर काफी हंगामा हुआ। 

वस्तुतः अजित डोभाल ने चेतावनी दी थी कि युद्ध की अवधारणा बदल रही है। ‘राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाने के लिए सिविल सोसाइटी को भ्रष्ट किया जा सकता है, अधीन बनाया जा सकता है, बाँटा जा सकता है, उसे अपने फायदे में इस्तेमाल किया जा सकता है।’ इस बयान से यह अर्थ नहीं निकलता कि समूची सिविल-सोसायटी दुश्मन है। ‘सिविल-सोसायटी मोर्चा है’ कहने का तात्पर्य है कि उसकी आड़ ली जा सकती है। युद्ध के नए हथियार के रूप में सिविल-सोसायटी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।