Friday, February 14, 2025

हिंदी के अंतर्विरोध

हिंदी की ताकत है उसका क्रमशः अखिल भारतीय होते जाना, और यही उसकी समस्या भी है। उसकी अखिल भारतीयता के अंतर्विरोध हमारे सामने हैं। जैसे-जैसे उसका विस्तार हो रहा है, उसके शत्रुओं की संख्या भी बढ़ रही है। हम सहज भाव से मान लेते हैं कि हिंदी राष्ट्रभाषा है, पर संवैधानिक-दृष्टि से वह राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा है। यह बात तंज़ में कही जाती है, इस बात पर विचार किए बगैर कि राजभाषा क्यों है, राष्ट्रभाषा क्यों नहीं? दोनों में फर्क क्या है? और जब राजभाषा अंग्रेजी है और मानकर चलिए कि हमेशा के लिए है, तो फिर हिंदी को राजभाषा बनाने की जरूरत ही क्या थी? 

यह राजनीतिक प्रश्न है और इसका उत्तर भी राजनीतिक ही है। हिंदी को राजभाषा बनाने के पीछे संविधान सभा में जो समझौता हुआ था, उसकी प्रकृति पूरी तरह राजनीतिक थी। पिछले कुछ वर्षों से हिंदी के विस्तार को ‘हिंदी-इंपीरियलिज़्म’ या हिंदी-साम्राज्यवाद का नाम भी दिया गया है। यह बात उस कांग्रेस पार्टी के नेता कह रहे हैं, जिसके नेतृत्व में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। 

संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का विकास सहज रूप में हुआ था। उसमें किसी सरकार की भूमिका नहीं थी। अलग-अलग वक्त में उसकी अलग-अलग जरूरतें पैदा होती गईं और जगह बनती गई। चेन्नई में भले ही आपको हिंदी बोलने वाले नहीं मिलें, कन्याकुमारी, मदुरै या रामेश्वरम में मिलेंगे। मानक भाषा के रूप में विकसित होने के पहले से हिंदी साधु-संतों और तीर्थयात्रियों के मार्फत अंतर्देशीय-संपर्क की भाषा के रूप में प्रचलित थी। अब रोजगारों की खोज में चल रहे जबर्दस्त प्रवास के कारण संपर्क भाषा बन रही है। 

Thursday, February 13, 2025

हिंदी की वर्तनी

कुछ साल पहले मुझसे एक मित्र ने कहा, मॉनसून क्यों, मानसून क्यों नहीं? दक्षिण भारतीय भाषाओं में और अंग्रेज़ी सहित अनेक विदेशी भाषाओं में ओ और औ के बीच में एक ध्वनि और होती है। ऐसा ही ए और ऐ के बीच है। Call को देवनागरी में काल लिखना अटपटा है। देवनागरी ध्वन्यात्मक लिपि है तो हमें अधिकाधिक ध्वनियों को उसी रूप में लिखना चाहिए। इसलिए वृत्तमुखी ओ को ऑ लिखते हैं। हिंदी के अलग-अलग क्षेत्रों में औ और ऐ को अलग-अलग ढंग से बोला जाता है। मेरे विचार से बाल और बॉल को अलग-अलग ढंग से लिखना बेहतर होगा।

बात औ या ऑ की नहीं। बात मानकीकरण की है। हिंदी का जहाँ भी प्रयोग है वहाँ की प्रकृति और संदर्भ के साथ कुछ मानक होने ही चाहिए। मीडिया की भाषा को सरल रखने का दबाव है, पर सरलता और मानकीकरण का कोई बैर नहीं है। हिंदी के कुछ अखबार अंग्रेज़ी शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। उनके पाठक को वही अच्छा लगता है, तब ठीक है। पर वे ‘टारगेट’ लिखेंगे या ‘टार्गेट’ यह भी तय करना होगा। प्रफेशनल होगा या प्रोफेशनल? वीकल होगा, वेईकल या ह्वीकल? 

ऐसा मैं हिंदी के एक अखबार में प्रकाशित प्रयोगों को देखने के बाद लिख रहा हूँ। आसान भाषा बाज़ार की ज़रूरत है, सुसंगत भाषा भी उसी बाज़ार की ज़रूरत है। सारी दुनिया की अंग्रेज़ी भी एक सी नहीं है, पर एपी या इकोनॉमिस्ट की स्टाइल शीट से पता लगता है कि संस्थान की शैली क्या है। यह शैली सिर्फ भाषा-विचार नहीं है। इसमें अपने मंतव्य को प्रकट करने के रास्ते भी बताए जाते हैं। 

Wednesday, February 12, 2025

आपका स्वप्न-भंग

देश में ज्यादातर राजनीति ग्राम-केंद्रित है, पर दिल्ली जैसे छोटे प्रदेश से एक आदर्श नगर-केंद्रित राजनीति का मौक़ा आम आदमी पार्टी को मिला। यह अपेक्षाकृत नया विचार था। नगर-केंद्रित राजनीति क्या हो सकती है, उसपर अलग से विचार करने की जरूरत है। यहाँ मेरा इरादा आम आदमी पार्टी को लेकर कुछ बातें लिखने का है। इस पार्टी ने धीरे-धीरे काम किया होता अपने मॉडल को सारे देश में लागू करने की बातें होतीं, तब भी बात थी। पर पार्टी ने एकसाथ सारे देश को जीतने के इरादे घोषित कर दिए। यह भी ठीक था, पर उसके लिए पर्याप्त होमवर्क और परिपक्व-विचार नहीं था। राजनीतिक-विस्तार के लिए जिन संसाधनों की जरूरत होती है, उसे बटोरने के चक्कर में यह उसी वात्याचक्र में घिर गई, जिसे शुरू में इसके नेता राजनीतिक-भ्रष्टाचार कहते थे। उसके नेताओं ने महत्वाकांक्षाओं का कैनवस इतना बड़ा बना लिया कि उसपर कोई तस्वीर बन ही नहीं सकती।

राजनीति के लिए पैसा चाहिए और आम आदमी पार्टी भी सत्ता के उन स्रोतों तक पहुँच गई, जो प्राणवायु प्रदान करते हैं। यह पार्टी इस प्राणवायु के स्रोत बंद करने के नाम पर आई थी और ख़ुद इस 'ऑक्सीजन' की शिकार हो गई। सब कुछ केवल पार्टी के विरोधियों की साज़िश के कारण नहीं हुआ। ‘आप’ का दोष केवल इतना नहीं है कि उसने एक सुंदर सपना देखा और उसे सच करने में वह नाकामयाब हुई। ऐसा होता तब भी गलत नहीं था। अब हालत यह है कि कोई नया सपना देखने वालों पर जनता भरोसा नहीं करेगी। वस्तुतः ‘आप’ यह साबित करने में फेल हुई कि वह आपकी पार्टी है।

Tuesday, February 11, 2025

अमेरिका के साथ सौदेबाज़ी का दौर

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते की अमेरिका-यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से कुछ अलग होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ताबड़तोड़ नीतियों के कारण बदलते वैश्विक-समीकरण. उनके अप्रत्याशित फैसले, तमाम दूसरे देशों के साथ भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं.

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि शायद दोनों के रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने वाला है, पर सामान्य भारतीय मन अमेरिका से निर्वासित लोगों के अपमान को लेकर क्षुब्ध है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसा दोस्ताना व्यवहार है? 

ट्रंप मूलतः कारोबारी सौदेबाज़ हैं और धमकियाँ देकर सामने वाले को अर्दब में लेने की कला उन्हें आती है. शायद वे कुछ बड़े समझौतों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है.

वर्चस्व का स्वप्न

ट्रंप का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका की सदाशयता का बहुत फायदा उठाया, अब हम अपनी सदाशयता वापस ले रहे हैं. असल भावना यह है कि हम बॉस हैं और बॉस रहेंगे. इस बात से उनके गोरे समर्थक खुश हैं, जिन्हें लगता है कि देश के पुराने रसूख को ट्रंप वापस ला रहे हैं.   

Tuesday, February 4, 2025

आक्रामक-ट्रंप और भारत से रिश्तों का नया दौर


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अमेरिका की यात्रा पर आ सकते हैं. उसके बाद से अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः अगले कुछ दिनों में उनकी यात्रा की तिथियाँ घोषित हो सकती हैं.  

यह यात्रा अभी हो या कुछ समय बाद, अमेरिकी-नीतियों में आ रहे बदलाव को देखते हुए यह ज़रूरी है. बेशक, दोनों मित्र देश हैं, पर अब जो पेचीदगियाँ पैदा हो रही हैं, उन्हें देखते हुए भारत को सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे.  

पहला हमला

राष्ट्रपति ट्रंप ने पहला हमला कर भी दिया है, जिसका वैश्विक-व्यापार, विकास और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा. शनिवार को उन्होंने अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैरिफ लगाने वाले कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. 

अमेरिका मंगलवार 4 फरवरी से कनाडा और मैक्सिको से हो रहे आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ और चीन पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा रहा है. इन तीन देशों से अमेरिकी-आयात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा आता है. 

यह फैसला इन देशों को हो रहे अवैध आव्रजन, जहरीले फेंटेनाइल और अन्य नशीले पदार्थों को अमेरिका में आने से रोकने और अपने वादों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए किया गया है. कनाडा और मैक्सिको ने इसपर जवाबी कार्रवाई की घोषणा भी की है, जबकि चीन ने कहा है कि हम विश्व व्यापार संगठन में जाएँगे.