Wednesday, April 10, 2024

‘टारगेट किलिंग’ बनाम ‘घर में घुसकर मारा’


पिछले हफ्ते ब्रिटिश अखबार 'द गार्डियन' ने अपनी एक पड़ताल में दावा किया कि 2019 के पुलवामा प्रकरण के बाद से अब तक भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ ने पाकिस्तान में 20 व्यक्तियों की हत्या की है. इस खबर पर भारत सरकार ने दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं दी हैं. विदेश मंत्रालय ने इस खबर को गलत बताया और विदेशमंत्री एस जयशंकर के एक पुराने वक्तव्य का हवाला दिया कि 'टारगेट किलिंग भारत की पॉलिसी नहीं है.

आधिकारिक रूप से भारत सरकार ने इस तरह की बातों को सिरे से खारिज ही किया है. दूसरी तरफ चुनाव सभाओं में भारतीय जमता पार्टी कह रही है घर में घुसकर मारेंगे. इन दोनों बातों का मतलब समझने की जरूरत है.

इसके आधार पर गार्डियन ने मान लिया कि भारत सरकार ने इन हत्याओं की पुष्टि कर दी है, जबकि बीजेपी के नेता इस बात को रेखांकित कर रहे हैं कि भारत के दुश्मन अब घबरा रहे हैं. 

इससे भारत और पश्चिमी देशों के रिश्तों में खटास आएगी भी, तो इसका पता आगामी जनवरी से पहले नहीं लगेगा, जब अमेरिका के नए राष्ट्रपति पदारूढ़ होंगे. अलबत्ता रोचक बात यह है कि जब अमेरिकी सरकार के प्रवक्ता से यह सवाल पूछा गया, तब उन्होंने इसे भारत-पाकिस्तान का मामला मानते हुए कहा कि हम बीच में पड़ना नहीं चाहते.

Tuesday, April 9, 2024

‘जोड़ो-तोड़ो’ राजनीति और कट्टरपंथी ‘ईमानदारों’ की बजती खड़ताल


अठारहवीं लोकसभा के चुनाव का पहला मतदान होने में अभी दो हफ्ते शेष हैं, पर राजनीतिक माहौल तेजी से गरमा गया है। 2014 का चुनाव करीब तीन साल से ज्यादा समय तक चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद हुआ था, फिर भी तब ऐसी लू-लपट नहीं थी, जैसी इसबार है। अनुमान था कि अबके चुनाव में कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो राहुल गांधी अपनी जोड़ो-तोड़ो यात्राओं के रथ पर सवार होकर आएंगे। पर उसके पहले ही आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और उनकी कट्टरपंथी-मंडली ने खड़ताल बजाना शुरू कर दिया। इससे इंडी-गठबंधन की दरारों पर चढ़ी कलई एकबारगी उतर गई।

चुनाव के पहले दौर में जैसा होता है पार्टियों के टिकट नहीं मिलने पर भगदड़ होती है, दल-बदल होते हैं और तीखी बयानबाजियाँ होती हैं। टिकट वितरण अपेक्षाकृत जल्दी होने के कारण यह सब जल्दी निपट गया है। कुछ समय पहले लग रहा था कि विरोधी दलों की एकता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बनकर उभरेगी और बड़ी संख्या में सीटों पर सीधे मुकाबले होंगे। कुल मिलाकर यह संभावना रेत के ढेर की तरह बिखर गई है।

ईडी को धमकी

अभी चुनाव प्रचार पूरे रंग पर नहीं है, पर राहुल गांधी ने सीबीआई और ईडी को देख लेंगे की धमकी देकर कुछ कड़वाहट पैदा कर दी है। इसके अलावा ईवीएम को लेकर जिस तरह की बातें कही जा रही हैं, उनसे लगता है कि राजनीतिक दलों की दिलचस्पी न तो चुनाव-सुधारों में है और न इस मामले में आमराय बनाने में। 

Friday, April 5, 2024

जलेबी जैसी घुमावदार 'पॉलिटिक्स' में दोस्ती और दुश्मनी का मतलब!


शिवसेना (उद्धव) की ओर से एकतरफा प्रत्याशी घोषित करने के बाद महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन में खींचतान है. शरद पवार कांग्रेस और शिवसेना दोनों से नाराज हैं. उनकी शिकायत है कि जब सीटों बँटवारे की बातें चल रही थीं, तो एमवीए के घटक दलों ने अलग-अलग सीटें क्यों घोषित कीं? उधर कांग्रेस के संजय निरुपम शिवसेना से नाराज़ हैं. उद्धव ठाकरे भी नाराज़ है. बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित) की रस्साकशी भी चल रही है. यूपी में रामपुर और मुरादाबाद की सीटों को लेकर समाजवादी पार्टी के भीतर घमासान चला. आजम खां भले ही जेल में हैं, पर मुरादाबाद के मौजूदा सांसद एसटी हसन का टिकट उन्होंने कटवा दिया और रुचिवीरा को दिलवा दिया. पर रामपुर में उनकी नहीं सुनी गई और मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट मिल गया.

भारतीय राजनीति उतनी सीधी सपाट नहीं है, जितनी दिखाई पड़ती है. वह जलेबी जैसी गोल है. विचारधारा, सामाजिक-न्याय, जनता की सेवा और कट्टर ईमानदारी जैसे जुमले अपनी जगह हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी को झटका देते हुए जालंधर के सांसद सुशील कुमार रिंकू बीजेपी में शामिल हो गए. रिंकू 17वीं लोकसभा में आप के एकमात्र सांसद थे. वे सुर्खियों में तब आए थे, जब हंगामे की वजह से पूरे सत्र के लिए निलंबित हुए थे.

चलती का नाम गाड़ी

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. चुनाव के दौरान अंतिम समय की भगदड़, मारामारी और बगावतें कोई नई बात नहीं. इसबार बीजेपी ने चार सौ से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें से 17वीं लोकसभा में 291 पर उसके सांसद थे. इनमें 101 को टिकट नहीं मिला. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 119 सांसदों के टिकट काटे थे. टिकट कटने से बदमज़गी पैदा होती है. गठबंधनों में सीटों के बँटवारे को लेकर भी खेल होते हैं, पर सार्वजनिक रूप से दिखावा किया जाता है कि सब कुछ ठीकठाक है.

Thursday, April 4, 2024

भारत-पाक रिश्तों की व्यापार-बाधा


 
देस-परदेस

भारत-पाकिस्तान व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं को लेकर दो तरह की बातें सुनाई पड़ी हैं. पहले पाकिस्तान के विदेशमंत्री मुहम्मद इशाक डार ने लंदन में कहा कि हम भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. इसके फौरन बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने सफाई दी कि ऐसा कोई औपचारिक-प्रस्ताव नहीं है.

डिप्लोमैटिक-वक्तव्यों में अक्सर उसके अर्थ छिपे होते हैं. सवाल है कि क्या ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं? या यह एक और यू-टर्न है? या इन दोनों बातों का कोई तीसरा मतलब भी संभव है?

जवाब देने के पहले समझना होगा कि रिश्ते सुधारने की ज़रूरत भारत को ज्यादा है या पाकिस्तान को? पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था से भारत की अर्थव्यवस्था दस गुना बड़ी है. सत्तर के दशक में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति औसत आय की दुगनी थी, आज भारतीय औसत आय पाकिस्तानी आय से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है.

भारत को पाकिस्तान से सद्भाव चाहिए. पर, भारत का साफ कहना है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चलेंगे. ऐसा नहीं होने के कारण हम पाकिस्तान के प्रति उदासीन हैं. इस उदासीनता को दूर करने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है.

पाकिस्तानी शासक जब चाहें, जो चाहें फैसले कर लेते हैं. फिर चाहते हैं कि उसकी कीमत भारत अदा करे. व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना ऐसा ही एक फैसला है. इसके पहले भारत को तरज़ीही देश मानने में उनकी हिचकिचाहट इस बात की निशानी है. 

Wednesday, April 3, 2024

जिम्मेदार है पूरी राजनीति

लक्ष्मण का एक पुराना कार्टून, जिसमें केवल राजनेताओं के चेहरे बदलने की जरूरत है

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को हम सामान्य राजनीति, भ्रष्टाचार, न्याय-व्यवस्था और इससे जुड़े तमाम संदर्भों में देख सकते हैं। मेरी नज़र में यह मसला हमारी अधकचरी राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था की कटु-कथा है। इसमें भारत सरकार की संस्थाएं, सत्तारूढ़ और विरोधी दोनों तरह की पार्टियाँ और काफी हद तक देश की जनता जिम्मेदार है, जो धार्मिक, जातीय और क्षेत्रीय भावनाओं के वशीभूत है और सत्ता की राजनीति के हाथों में खेल रही है। भारत की राजनीति का यह महत्वपूर्ण दौर है, जिसमें खुशी की तुलना में नाखुशी के तत्व ज्यादा हैं।

आज सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है, इसलिए आज की परिस्थिति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उसे ही मानना चाहिए, पर यह अधूरा दृष्टिकोण है। इस परिस्थिति के लिए हमारी समूची राजनीति जिम्मेदार है। बेशक इसमें शामिल काफी लोग ईमानदार भी हैं, पर वे इस राजनीति के संचालक नहीं हैं।  

जाँच एजेंसियों की भूमिका

आज के इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि 2014 के बाद से 25 ऐसे राजनेता, जिनपर भ्रष्टाचार के आरोपों में केंद्रीय एजेंसियों की जाँच चल रही थी, अपनी पार्टियाँ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। इनमें दस कांग्रेस से, चार-चार शिवसेना और एनसीपी से, दो तेदेपा से और एक-एक सपा और वाईएसआर कांग्रेस से जुड़े थे। इनमें से 23 के मामलों में नेताओं को राहत मिल गई है। तीन मामले पूरी तरह बंद हो गए हैं और 20 ठप पड़े हैं।

इस सूची में वर्णित छह नेता इसबार के चुनाव के ठीक पहले अपनी पार्टियाँ छोड़कर आए हैं। इसके पहले इंडियन एक्सप्रेस ने 2022 में एक पड़ताल की थी, जिसमें बताया गया था कि 2014 के बाद से केंद्रीय एजेंसियों ने जिन राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई की है, उनमें 95 फीसदी विरोधी दलों से हैं। विरोधी दलों ने अब बीजेपी को वॉशिंग मशीन कहना शुरू कर दिया है। इसके पहले 2009 में एक्सप्रेस की एक पड़ताल से पता लगा था कि कांग्रेस-नीत यूपीए के समय में सीबीआई ने किस तरह से बसपा की नेता मायावती और सपा के नेता मुलायम सिंह के खिलाफ जाँच का रुख बदल दिया था।

आज की एक्सप्रेस-कथा से पता यह भी लग रहा है कि ज्यादा बड़ी संख्या में ऐसे मामले महाराष्ट्र से जुड़े हैं। चूंकि यह खबर 2014 के बाद की कहानी कह रही है, इसलिए इससे पूरा परिदृश्य समझ में नहीं आएगा।