ब्रिटेन के कॉर्नवाल में हुए शिखर सम्मेलन में जी-7 देशों ने घोषणा की है कि हम गरीब देशों के 100 करोड़ वैक्सीन देंगे। यह घोषणा उत्साहवर्धक है, पर 100 करोड़ वैक्सीन ‘ऊँट में मुँह में जीरा’ जैसी बात है। दूसरी तरफ खबर यह है कि दक्षिण अफ्रीका में आधिकारिक रूप से कोविड-19 की तीसरी लहर चल रही है। वहाँ अब एक्टिव केसों की संख्या एक महीने के भीतर दुगनी हो रही है और पॉज़िटिविटी रेट 16 प्रतिशत के आसपास पहुँच गया है, जो कुछ दिन पहले तक 9 प्रतिशत था। सारी दुनिया में तीसरी लहर को डर पैदा हो गया है। ब्रिटेन में भी तीसरी लहर के शुरूआती संकेत हैं।
इतिहास बताता है कि
महामारियों की लहरें आती हैं। आमतौर पर पहली के बाद दूसरी लहर के आने तक लोगों का
इम्यूनिटी स्तर बढ़ जाता है। पर दक्षिण अफ्रीका और भारत में यह बात गलत साबित हुई।
चूंकि अब दुनिया के पास कई तरह की वैक्सीनें भी हैं, इसलिए भावी लहरों को रोकने
में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया की बड़ी आबादी को समय रहते टीके लगा दिए
जाएं, तो सम्भव है कि वायरस के संक्रमण क्रमशः कम करने में सफलता मिल जाए, पर ऐसा
तभी होगा, जब वैक्सीनेशन समरूप होगा।
टीकाकरण
की विसंगतियाँ
दुनिया में टीकाकरण इस साल जनवरी से शुरू हुआ है। इसकी प्रगति पर नजर डालें, तो वैश्विक-असमानता साफ नजर आएगी। दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में इस हफ्ते तक 2.34 अरब से ज्यादा टीके लग चुके हैं। वैश्विक आबादी को करीब 7.7 अरब मानें तो इसका मतलब है कि करीब एक तिहाई आबादी को टीके लगे हैं। पर जब इस डेटा को ठीक से पढ़ें, तो पता लगेगा कि टीकाकरण विसंगतियों से भरा है।