Sunday, June 7, 2020

भविष्य का मीडिया

MBA diary: The future of media | Which MBA? | The Economist

अखबारों का रूपांतरण किस तरह किया जा सकता है, इसे देखने के लिए दुनिया के अखबारों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए. एक बात तय है कि कागज के बजाय अब सूचनाएं वैब पर आ रही हैं. भविष्य के माध्यम क्या होंगे, यह बताना मुश्किल है, पर उसकी दिशा देखी जा सकती है. दूसरे सूचना के माध्यमों में अब प्रिंट, टीवी और रेडियो यानी लिखित-पठित और दृश्य-श्रव्य दोनों का समावेश होगा. यही वैब की ताकत है. अब ज्यादातर अखबार वैब पर आ गए हैं और वे वीडियो, वैबकास्ट और लिखित तीनों तरह की सामग्रियाँ पेश कर रहे हैं. तीनों के अलग-अलग प्रभाव हैं और यही समग्रता मीडिया की विशेषता बनेगी. जहाँ तक साख का सवाल है, यह मीडिया संस्थान पर निर्भर करेगा कि उसकी दिलचस्पी किस बात में है. मैं इस पोस्ट के साथ हिन्दू की एक क्लिप शेयर कर रहा हूँ, जिसमें भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि है. ऐसी छोटी क्लिप से लेकर घंटे-दो घंटे की बहसें आने वाले वक्त में अखबारों की वैबसाइटों में मिलेंगी.

https://www.thehindu.com/news/national/india-china-border-standoff/article31755218.ece?homepage=true&fbclid=IwAR2jK-rNsCbxUQ1Nad1BMLgJ38T5T-FYdu-XVaSskm857Fjxib_0VkZ0_qY

Sunday, May 31, 2020

चीन पर कसती वैश्विक नकेल


भारत और चीन के रिश्तों में आई तल्खी को केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रही गतिविधियों तक सीमित करने से हम सही निष्कर्षों पर नहीं पहुँच पाएंगे। इसके लिए हमें पृष्ठभूमि में चल रही दूसरी गतिविधियों पर भी नजर डालनी होगी। पिछले दिनों जब भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके साथ ही लद्दाख और सिक्किम में चीन की सीमा पर भी हरकतें हुईं। यह सब कुछ अनायास नहीं हुआ है। ये बातें जुड़ी हुई हैं।

सूत्र बता रहे हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के भीतर तक आ गए थे। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी चीन ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी करीब तैनात की गई हैं। सामरिक दृष्टि से पिछले साल ही तैयार हुआ भारत का दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है।

Saturday, May 30, 2020

भारत-चीन टकराव भावी शीतयुद्ध का संकेत


पिछले हफ्ते जब भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके ठीक पहले भारत-चीन सीमा पर कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिनसे लगता है सब कुछ अनायास नहीं हुआ है। मई के पहले हफ्ते में दोनों देशों की सेनाओं के बीच पैंगांग त्सो के इलाके में झड़पें हुईं थीं। उसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के स्थानीय कमांडरों के बीच बातचीत के कई दौर हो चुके हैं, पर लगता है कि तनाव खत्म नहीं हो पाया है। सूत्र बता रहे हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए हैं। इतना ही नहीं चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी करीब तैनात की गई हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले साल ही तैयार हुआ दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है। 
गलवान क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा और चीनी दावे की रेखा में कोई बड़ा अंतर नहीं है। मोटे तौर पर यह जमावड़ा चीनी सीमा के भीतर है। पर खबरें हैं कि चीनी सैनिक एलएसी के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए थे। चाइनीज क्लेम लाइन (सीसीएल) को पार करने के पीछे चीन की क्या योजना हो सकती है? शायद चीन को भारतीय सीमा के भीतर हो रहे निर्माण कार्यों पर आपत्ति है। यह भी सच है कि इस क्षेत्र में ज्यादातर टकराव इन्हीं दिनों में होता है, क्योंकि गर्मियाँ शुरू होने के बाद सैनिकों की गतिविधियाँ तेज होती हैं। गलतफहमी में भी गश्ती दल रास्ते से भटक जाते हैं, पर निश्चित रूप से चीन के आक्रामक राजनय का यह समय है। इसलिए सवाल पैदा हो रहा है कि आने वाले समय में कोई बड़ा टकराव होगा? क्या यह एक नए शीतयुद्ध की शुरुआत है?

Friday, May 29, 2020

उफ भारत माता!

प्रवासी मजदूरों की बदहाली से जुड़ा एक वीडियो इन दिनों वायरल हुआ है, जिसमें एक स्त्री की लाश के पास उसकी छोटी सी बच्ची चादर खींच रही है. यह हृदय विदारक वीडियो किसी के भी मन को विह्वल कर जाएगा. ट्विटर पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं.  ज्यादातर प्रतिक्रियाएं दया और करुणा से भरी हैं. पर यह मामला करुणा से ज्यादा हमारे विवेक को झकझोरने वाला होना चाहिए. ऐसा कैसे हो गया? क्या इनके आासपास लोग नहीं थे? क्या उस महिला को पीने का पानी देने वाला भी कोई नहीं था? 


दया और करुणा से भरी प्रतिक्रियाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं  राजनीतिक नेताओं की हैं. किसी ने बच्चों की मदद की पेशकश की. उन्हें पालने-पोसने की जिम्मेदारी ली. अच्छी बात है, पर सवाल अपनी जगह है. इस मदद को पाने के लिए एक माँ को बदहाली में मरना होता है. क्या आपकी राजनीति इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है? ऐसी मदद का दशमांश भी सामान्य समय में मिल गया होता, तो शायद उसकी मौत नहीं होती. ऐसी परिस्थितियाँ क्यों पैदा हुईं? परिस्थितियों का लाभ उठाने वाले तमाम हाथ हैं, पर बुनियादी सवाल का जवाब देने कोई आगे नहीं आता. क्यों? जो जवाब आएंगे भी वे ज्यादातर राजनीतिक हैं. शायद यही वजह है कि आज तमाम कहानियाँ हमारे सामने हैं, जिनमें ज्योति की कहानी भी एक है, जो पीपली लाइव की याद दिला रही है. हमारी करुणा और दया प्रचार चाहती है. हम बुनियादी सवालों पर जाना ही नहीं चाहते. 

Wednesday, May 27, 2020

संदेहों के घेरे में सच!


केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसी हफ्ते एक वेबिनार में बताया कि वकील प्रशांत भूषण ने अहमदाबाद के एक अस्पताल में हिंदू और मुस्लिम मरीज़ों की अलग पहचान करने तथा एक महिला के साथ अन्याय को लेकर दो ट्वीट किए थे। जाँच में दोनों तथ्य ग़लत पाए गए,लेकिन वकील साहब ने ना माफ़ी माँगी ना ट्वीट हटाया। इस वेबिनार में नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया ने फ़ेकन्यूज़ पर केंद्रित एक रिपोर्ट को भी जारी किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण के इस कालखंड में कई तरह से फर्जी खबरें जारी की जा रही हैं। बिना पंजीकरण के हजारों की संख्या में न्यूज वेबसाइट का संचालन किया जा रहा है। स्वतंत्रता की यह अद्भुत मिसाल है। क्या मान लें कि पत्रकारिता की मर्यादाओं की इतिश्री हो चुकी है?
हिन्दी भाषा और व्याकरण की शिक्षा के दौरान संदेह अलंकार का उदाहरण दिया जाता है, सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है/ सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है। समझ में नहीं आता कि सच क्या है। यह सब ऐसे दौर में हो रहा है, जब हम कई तरह के सामाजिक संदेहों से घिरे हैं। जब हम कोरोना से लड़ने में व्यस्त हैं उसी वक्त कश्मीर में घुसपैठ चल रही है। उस घुसपैठ के समांतर साइबर स्पेस में भी जबरदस्त घुसपैठ है। एक तरफ देश के दुश्मनों की घुसपैठ है और दूसरी तरफ देश के भीतर बैठे न्यस्त स्वार्थों की।
संदेहों की भरमार
अजब समय है। तकनीक का विस्तार हो रहा है। दूसरी तरफ सूचना और अभिव्यक्ति की नैतिकता और मर्यादाओं को नए सिरे से परिभाषित करने और उन्हें लागू करने के उपकरणों का विकास नहीं हो पाया है। सवाल है कि फ़ेकन्यूज़ होती ही क्यों हैं? उनका फायदा किसे मिलता है और क्यों? सूचनाएं चाहे वे सांस्कृतिक हों या आर्थिक, खेल की हों या राजनीति की उनके पीछे किसी के हित जुड़े होते हैं। इन हितों की पहचान जरूरी है। पत्रकारिता का उद्देश्य सच को सामने लाना था। यह झूठ फैलाने वाली पत्रकारिता कहाँ से आ गई? पर सवाल है कि सच है क्या? आज के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें, तो रोचक परिणाम सामने आएंगे।