पिछले साल मध्य प्रदेश के मंदसौर किसानों के
आंदोलन में गोली चलने से छह व्यक्तियों की मौत के बाद देशभर में खेती-किसानी को
लेकर शुरू हुई बहस दिल्ली में कल और आज हो
रही किसान रैली के साथ राष्ट्रीय-पटल पर आ गई है। तीस साल पहले अक्तूबर 1988 में
भारतीय किसान यूनियन के नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने बोट क्लब पर जो विरोध
प्रदर्शन किया था, वह ऐतिहासिक था। दिल्ली वालों को अबतक उसकी याद है। दिल्ली में लम्बे अरसे के बाद इतनी बड़ी तादाद
में किसान अपनी परेशानी बयान करने के लिए जमा हुए हैं। दो महीने पहले 2 अक्तूबर को
उत्तर प्रदेश के रास्ते से हजारों किसानों ने दिल्ली में प्रवेश का प्रयास किया
था, पर दिल्ली पुलिस ने उन्हें रोक दिया। दोनों पक्षों में टकराव हुआ, जिसमें बीस
के आसपास लोग घायल हुए थे।
यह रैली कुछ विडंबनाओं की तरफ ध्यान खींचती है।
हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश में कृषि की विकास दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा
रही है, फिर भी वहाँ आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद बढ़ी है। पिछले साल
रिकॉर्ड फसल के बावजूद किसानों का संकट बढ़ा, क्योंकि दाम गिर गए। खेती अच्छी हो
तब भी किसान रोता है, क्योंकि दाम नहीं मिलता। खराब हो तो रोना ही है। कई बार नौबत
आती है, जब किसान अपने टमाटर, प्याज, मूली, गोभी से लेकर अनार तक नष्ट करने को
मजबूर होते हैं।