मई
की महीना वैश्विक और हिन्दी-पत्रकारिता की दो तारीखों के लिए याद किया जाता है. हर
साल 3 मई को दुनिया ‘प्रेस-फ्रीडम
डे’ मनाती है. और 30 मई को हम ‘हिन्दी पत्रकारिता दिवस’ मनाते हैं. मौका है कि
हम अपने बारे में बात करें. वैश्विक-पत्रकारिता विसंगतियों से गुज़र रही है. संचार-तकनीक
में क्रांतिकारी बदलाव आया है. सोशल मीडिया ने सबको अपनी बात कहने का मौका दिया
है. वहीं ‘फेक-न्यूज़’ ने मीडिया के नकारात्मक पहलू को उजागर किया
है. हाल में टाइम्स ऑफ इंडिया एमडी विनीत जैन ने ‘फेक-न्यूज़’ को लेकर कई ट्वीट किए.
‘फेक-न्यूज़’ पर चर्चा चल ही रही थी कि किसी ने टाइम्स
ऑफ इंडिया की एक खबर की हैडलाइन को नकारात्मक अर्थों में बदल कर सोशल मीडिया पर
चला दिया. विनीत जैन ने इस छेड़छाड़ के मास्टर-माइंड को खोज निकालने की घोषणा की
है. शायद वे सफल हो जाएं, पर इससे ‘फेक-न्यूज़’ का खतरा खत्म नहीं होगा. पिछले चार सौ साल
में पत्रकारिता और लोकतंत्र का साथ-साथ विकास हुआ है. दोनों एक-दूसरे पूरक हैं.