Tuesday, September 1, 2020

राजनेता नहीं, श्रेष्ठ राजपुरुष


प्रणब मुखर्जी के बारे में निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता के बाद वे देश के सर्वश्रेष्ठ राजपुरुषों (स्टेट्समैन) में एक थे। विलक्षण राजनेता, योग्य प्रशासक, संविधान के ज्ञाता और श्रेष्ठ अध्येता के रूप में उनकी गिनती की जाएगी। उनका कद किसी भी राजनेता से ज्यादा बड़ा था, और उन्होंने बार-बार इस बात को रेखांकित किया कि राजनीति को संकीर्ण दायरे के बाहर निकल कर आना चाहिए।

बेशक उन्हें वह नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। व्यावहारिक राजनीति और सांविधानिक मर्यादाओं का उच्चतम समन्वय उनके व्यक्तित्व में देखा जा सकता है। विसंगतियों से मेल बैठाना व्यवहारिक राजनीति है। प्रणब मुखर्जी को इस बात का श्रेय मिलना ही चाहिए कि वे राजनीतिक दृष्टि में सबसे विकट वक्त के राष्ट्रपति बने। वे बुनियादी तौर पर कांग्रेसी थे, पर कांग्रेस की कठोरतम प्रतिस्पर्धी बीजेपी की मोदी सरकार के साथ उन्होंने काम किया और टकराव की नौबत कभी नहीं आने दी।

देश ने उन्हें राष्ट्रपति बनाया और भारत रत्न से सम्मानित भी किया, पर वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, जिसके वे अधिकारी थे। सामान्य परिस्थितियाँ होती, तो शायद सन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ही उन्हें देश की बागडोर मिल जाती, पर कांग्रेस पार्टी ‘परिवार’ को अपनी नियति मान चुकी थी। उस वक्त उन्हें न केवल एक संभावना से वंचित रहना पड़ा हाशिए पर जाना पड़ा और कुछ समय के लिए पार्टी से बाहर भी रहे। सन 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद भी वे इस पद को पाने में वंचित रहे। तीसरा मौका सन 2004 में आया, जब परिवार से बाहर के व्यक्ति को यह पद मिला। तब भी उन्हें वंचित रहना पड़ा।

Monday, August 31, 2020

क्या अब कोरोना के अंत का प्रारम्भ है?


विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कोरोनावायरस महामारी 1918 के स्पेनिश फ्लू की तुलना में कम समय तक रहेगी। संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने गत 21 अगस्त को कहा कि यह महामारी दो साल से कम समय में  खत्म हो सकती है। इसके लिए दुनियाभर के देशों के एकजुट होने और एक सर्वमान्य वैक्सीन बनाने में सफल होने की जरूरत है। जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार जो पाँच छह उल्लेखनीय वैक्सीन परीक्षणों के अंतिम दौर से गुजर रही हैं, उनमें से दो-तीन जरूर सफल साबित होंगी। कहना मुश्किल है कि सारी दुनिया को स्वीकार्य वैक्सीन कौन सी होगी, पर डब्लूएचओ के प्रमुख का बयान हौसला बढ़ाने वाला है।

इतिहास लिखने वाले कहते हैं कि महामारियों के अंत दो तरह के होते हैं। एक, चिकित्सकीय अंत। जब चिकित्सक मान लेते हैं कि बीमारी गई। और दूसरा सामाजिक अंत। जब समाज के मन से बीमारी का डर खत्म हो जाता है। कोविड-19 का इन दोनों में से कोई अंत अभी नहीं हुआ है, पर समाज के मन से उसका भय कम जरूर होता जा रहा है। यानी कि ऐसी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं कि इसका अंत अब जल्द होगा। डब्लूएचओ का यह बयान इस लिहाज से उत्साहवर्धक है।

Sunday, August 30, 2020

नहीं बदलेगी कांग्रेस


पिछले दो-तीन हफ्ते के घटनाक्रम से लगता है कि कांग्रेस पार्टी के भीतर गम्भीर अंतर्मंथन चल रहा है। यह अंतर्मंथन सायास नहीं है। पार्टी हाल में राजस्थान के संकट से बाहर आई है। राजस्थान में कांग्रेस को विजयी मानें भी, तो यह भी मानना होगा कि सचिन पायलट के रूप में एक रुष्ट युवा राजनेता पार्टी के भीतर बैठा है। ऐसे नाराज नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। 23 वरिष्ठ नेताओं का पत्र भी यही बता रहा है। इनमें से कुछ और ज्यादा नाराज होंगे और कुछ अपनी नाराजगी को छोड़कर जैकारा लगाने लगेंगे। इधर कपिल सिब्बल ने कहा है कि हमने क्या गलत बात की? हम एक प्रक्रिया की बात कर रहे हैं। बीजेपी पर हम आरोप लगाते हैं कि वह संविधान का पालन नहीं करती है। पर हम क्या करते हैं? हमने जो बातें कहीं, उनका जवाब नहीं दिया गया, बल्कि हमारी आलोचना की गई और किसी ने हमारे पक्ष में नहीं बोला।  

अब सवाल तीन हैं। क्या कांग्रेस सन 1969 के आसपास के दौर में आ गई है, जब पार्टी के भीतर दो साफ धड़े बन गए थे? क्या यह दौर भी गांधी परिवार के पक्ष में गया है? तीसरा सवाल है कि यदि धड़ेबाज़ी चलने वाली नहीं है और पार्टी एक ही रहेगी, तो वर्तमान असंतोष की तार्किक परिणति क्या है?  कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के पास अब क्या बचा है? उसे कौन बचाने वाला है?

Friday, August 28, 2020

केवल अभिनय

बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह यानी बर्लिनेल ने फैसला किया है कि अगले साल के संस्करण के अभिनय वर्ग के इसके पुरस्कार लिंग-निरपेक्ष होंगे। यानी महिला और पुरुष वर्ग के अलग-अलग पुरस्कार नहीं होंगे। सर्वश्रेष्ठ लीड अभिनय का एक पुरस्कार होगा। भले ही वह महिला को मिले या पुरुष को। इसी तरह सहायक अभिनय का पुरस्कार भी होगा। ये दोनों पुरस्कार अभी तक लिंग-सापेक्ष थे। यह घोषणा लैंगिक समानता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। अभिनय को महिला और पुरुष वर्ग में बाँटने की प्रवृत्ति खत्म होगी, तो हम लैंगिक संवेदनशीलता के दूसरे महत्वपूर्ण सवालों की तरफ देख पाएंगे।

बर्लिनेल दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म समारोह माना जाता है और सबसे प्रगतिशील भी। जीवन के दूसरे क्षेत्रों की तरह संस्कृति में भी विभाजन या वर्गीकरण के साथ कई किस्म की असमानताएं शुरू होती हैं। यों एक दृष्टि यह भी है कि हाशिए के वर्गों के लिए अलग पुरस्कारों का वर्ग भी होना चाहिए। मसलन वैश्विक स्तर पर अश्वेत फिल्मकारों के अलग पुरस्कार वगैरह, पर अंततः हमें लैंगिक-सापेक्षता को छोड़ना चाहिए। आखिरकार महाश्वेता देवी, निर्मल वर्मा, केदारनाथ सिंह और कृष्णा सोबती को उनके लेखन के आधार पर ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। पुरुष लेखक या महिला लेखक के रूप में नहीं। पत्रकारिता के पुलिट्जर पुरस्कार लिंग-निरपेक्ष होते हैं। अच्छे रिपोर्टर या फोटोग्राफर का फैसला लैंगिक आधार पर करने से गुणात्मक पैमाने बदल जाते हैं। इस लिहाज से यह अच्छा फैसला है।

Thursday, August 27, 2020

खुद से लड़ती कांग्रेस


कांग्रेस पार्टी के आंतरिक विवाद का रोचक पहलू सोमवार 24 अगस्त को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सामने आया। सुधार की माँग करने वालों की बात सुनने के बजाय, उल्टे उनपर ही आरोप लगने लगे। हरियाणा के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा उन 23 लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखा था कि ‘फुलटाइम और प्रभावशाली नेतृत्व’ होना चाहिए। बैठक के बाद उन्होंने सोनिया गांधी का इस बात के लिए शुक्रिया अदा किया कि वे अध्यक्ष पद पर बने रहने को तैयार हो गईं हैं। फौरी तौर पर नजर आता है कि पार्टी में अब केवल एक मसला है, आप गांधी परिवार के साथ हैं या नहीं? पर ज्यादा गहराई से देखें, तो इस चिट्ठी ने तमाम परतें खोल दी हैं। पार्टी के भविष्य के लिए यह परिघटना काफी महत्वपूर्ण साबित होगी।  

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि इस मौके पर पार्टी की ओवरहॉलिंग की बात करना पार्टी और देश दोनों के खिलाफ है। राहुल गांधी ने इस पत्र के समय पर सवाल उठाया और पत्र लिखने वालों की मंशा पर खुलकर प्रहार किया। साफ है कि अंतर्मंथन की माँग करने वालों के लिए पार्टी में जगह नहीं है। दूसरे ‘गांधी परिवार’ से हटकर पार्टी नेतृत्व की कल्पना भी संभव नहीं। इस पत्र पर विचार के लिए हुई बैठक में सारी बातें पीछे रह गईं, केवल पत्र की आलोचना होती रही। पत्र लिखने की मंशा पर वार होते रहे।

Tuesday, August 25, 2020

कोरोना-संहारक रामबाण की प्रतीक्षा

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गत 11 अगस्त को घोषणा की कि उनके देश की स्वास्थ्य विनियामक संस्था ने दुनिया की पहली कोरोना वायरस वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। यह खबर बेहद सनसनीखेज है। इसलिए नहीं कि बहुत बड़ी चीज दुनिया के हाथ लग गई है, बल्कि इसलिए कि ज्यादातर विज्ञानियों ने इस फैसले को खतरनाक बताया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि अभी यह सवाल नहीं है कि यह वैक्सीन कारगर होगी या नहीं, बल्कि चिंता इस बात पर है कि इसके परीक्षण का एक महत्वपूर्ण चरण छोड़ दिया गया है।

विश्व के तमाम देशों को रूसी वैक्सीन से उम्मीदें और आशंकाएं हैं। आखिर रूस इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रहा है? ऐसी ही जल्दबाजी चीन भी दिखा रहा है? ऐसा नहीं कि जल्दी बाजार में आने से किसी देश को ज्यादा आर्थिक लाभ मिल जाएगा। अंततः सफल वही वैक्सीन होगी, जिसकी साख सबसे ज्यादा होगी। और लगता है कि अब वह समय आ रहा है, जब तीसरे चरण को पार करके सफल होने वैक्सीन की घोषणा भी हो जाए। अगले दो-तीन महीने इस लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

Sunday, August 23, 2020

फेसबुक के पीछे क्या है?

भारत में अपनी भूमिका को लेकर फेसबुक ने औपचारिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि सामग्री को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, उसका निर्वाह सही तरीके से किया जा रहा है और वह एक खुला, पारदर्शी और पक्षपात- रहित मंच है। फेसबुक के भारत-प्रमुख अजित मोहन ने जो नोट लिखा है, उसके नीचे पाठकों की प्रतिक्रियाएं पढ़ें, तो लगेगा कि फेसबुक पर कम्युनिस्टों और इस्लामिक विचारों के प्रसार का आरोप लगाने वालों की संख्या भी कम नहीं है। फेसबुक ही नहीं ट्विटर, वॉट्सएप और सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर इन दिनों उन्मादी टिप्पणियों की बहुतायत है। क्यों हैं ये टिप्पणियाँ? क्या ये वे दबी बातें हैं, जिन्हें खुलकर बाहर आने का मौका सोशल मीडिया के कारण मिला है?  

ऐसे में सवाल दो हैं। क्या फेसबुक ने अपने आर्थिक हितों के लिए भारत में सत्ताधारी राजनीतिक दल से कोई गठजोड़ किया है या जो कुछ सामाजिक विमर्श में चलता है, वही सामने आ रहा है? सोशल मीडिया के सामने मॉडरेशन एक बड़ी समस्या है। एक तरफ सामाजिक ताकतें हैं, दूसरी तरफ राजनीतिक शक्तियाँ। कोई भी कारोबारी सरकार से रिश्ते बिगाड़ भी नहीं सकता। आज बीजेपी की सरकार है। जब कांग्रेस की सरकार थी, तब भी फेसबुक ने सरकार के साथ मिलकर काम किया ही था।

Tuesday, August 18, 2020

श्रीलंका के बदलते हालात में भारत की भूमिका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को चुनाव में उनकी पार्टी की शानदार जीत के लिए बधाई दी है। इसी के साथ उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को और अधिक मजबूत होने का भी भरोसा जताया। मोदी ने राजपक्षे बंधुओं को एक पत्र अलग से लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा कि हम आपके साथ सहयोग के इच्छुक हैं। यह एक सामान्य शिष्टाचार भी है और भारत-श्रीलंका के बीच की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए बहुत आवश्यक भी।

Monday, August 17, 2020

बेरूत विस्फोट : लालफीताशाही की देन

मंगलवार 4 अगस्त को लेबनॉन के बेरूत शहर के बंदरगाह में हुए विस्फोट ने दुनियाभर को हिला दिया है। देश में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू हो गया है। पूरे देश में राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। नागरिकों के मन में अपनी परेशानियों को लेकर जो गुस्सा भरा है, वह एकबारगी फूट पड़ा है। यह नाराजगी अब शायद राजनीतिक बदलाव के बाद ही खत्म हो पाएगी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वहाँ की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा है। प्रधानमंत्री हसन दीब ने कहा है कि समय से पहले चुनाव कराए बगैर हम इस संकट से बाहर नहीं निकल पाएंगे। पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़पों के कारण अराजकता का माहौल बन गया है।

Saturday, August 15, 2020

आशंकाएं और उम्मीदें

स्वतंत्रता दिवस की 73 वीं वर्षगाँठ के मौके पर देश तीन तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है। सीमा पर चीन ने चुनौती दी है। दूसरी तरफ कोरोना वायरस की महामारी से भारत ही नहीं पूरी दुनिया परेशान है। तीसरी चुनौती है अर्थव्यवस्था की। भारत वैश्विक महाशक्तियों की कतार में शामिल जरूर हो चुका है, पर हम अभी संधिकाल में है। इस संधिकाल को पूरा करने के बाद ही खुशहाली की राह खुलेगी। आशंका है कि इस साल हमारी अर्थव्यवस्था की विकास-गति शून्य से भी नीचे चली जाएगी।

इन सब चुनौतियों के अलावा स्वतंत्रता दिवस के ठीक दस दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के साथ एक नए युग की शुरुआत हुई है। पर इसके साथ ही कुछ सवाल भी खड़े हुए हैं। क्या यह राष्ट्र निर्माण का मंदिर बन पाएगा? क्या यह एक नए युग की शुरुआत है? ये बड़े जटिल प्रश्न हैं। मंदिर का भूमि पूजन होने के एक दिन पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक लम्बे प्रेस नोट के साथ ट्वीट किया कि ‘बाबरी मस्जिद थी और हमेशा ही मस्जिद रहेगी। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक और बहुसंख्यक तुष्टीकरण के आधार पर किया गया फैसला इसे नहीं बदल सकता।’

Monday, August 10, 2020

बांग्लादेश पर भी चीन का सम्मोहिनी जादू!

 

नवम्बर 2014 में काठमांडू में दक्षेस शिखर सम्मेलन जब हुआ था, एक खबर हवा में थी कि नेपाल सरकार चीन को भी इस संगठन का सदस्य बनाना चाहती है। सम्मेलन के दौरान यह बात भारतीय मीडिया में भी चर्चा का विषय बनी थी। यों चीन 2005 से दक्षेस का पर्यवेक्षक देश है, और शायद वह भी इस इलाके में अपनी ज्यादा बड़ी भूमिका चाहता है। काठमांडू के बाद दक्षेस का शिखर सम्मेलन पाकिस्तान में होना था, वह नहीं हुआ और फिलहाल यह संगठन एकदम खामोश है। भारत-पाकिस्तान रिश्तों की कड़वाहट इस खामोशी को बढ़ा रही है।

इस दौरान भारत ने बिम्स्टेक जैसे वैकल्पिक क्षेत्रीय संगठनों में अपनी भागीदारी बढ़ाई और ‘माइनस पाकिस्तान’ नीति की दिशा में कदम बढ़ाए। पर चीन के साथ अपने रिश्ते बनाकर रखे थे। लद्दाख में घुसपैठ की घटनाओं के बाद हालात तेजी से बदले हैं। पाकिस्तान तो पहले से था ही अब नेपाल भी खुलकर बोल रहा है। पिछले पखवाडे की कुछ घटनाओं से लगता है कि बांग्लादेश को भी भारत-विरोधी मोर्चे का हिस्सा बनाने की कोशिशें हो रही हैं। बावजूद इसके कि डिप्लोमैटिक गणित बांग्लादेश को पूरी तरह चीनी खेमे में जाने से रोकता है। पर यह भी लगता है कि बांग्लादेश सरकार ने भारत से सायास दूरी बनाई है।

Sunday, August 9, 2020

मंदिर से आगे की राजनीति

गत 5 अगस्त को शिलान्यास के फौरन बाद सोशल मीडिया पर यों तो कई तरह के प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, पर दो ट्वीट का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। भूमि पूजन के पहले पर्सनल लॉ बोर्ड के अकाउंट से अंग्रेजी में ट्वीट किया गया कि बाबरी मस्जिद थी और हमेशा ही मस्जिद रहेगी। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक और बहुसंख्यक तुष्टीकरण के आधार पर किया गया फैसला इसे नहीं बदल सकता। इस ट्वीट को लेकर आपत्तियाँ उठाई गईं, तो इसे हटाकर 6 अगस्त को उर्दू में एक ट्वीट किया गया, जिसकी भाषा में कानूनी सावधानियाँ बरती गईं हैं, पर आशय वही है कि मस्जिद थी और रहेगी। अदालत ने फैसला किया है, पर न्याय को ठेस पहुँचाई गई है। पहले वाले ट्वीट में तुर्की की हागिया सोफिया मस्जिद का हवाला दिया गया था।

Friday, August 7, 2020

बेरूत के धमाकों से दहल उठी दुनिया


पिछले मंगलवार यानी 4 अगस्त को लेबनॉन के बेरूत शहर के बंदरगाह में हुए विस्फोट ने दुनियाभर को हिला दिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस विस्फोट से मरने वालों की संख्या 137 हो चुकी थी। कहने वालों का तो कहना है कि पाँच हजार से ज्यादा लोग मरे हैं। अब भी मलबे के नीचे से लाशें निकाली जा रही हैं और कहना मुश्किल है कि संख्या कितनी होगी। घायलों की संख्या भी हजारों में है। कम से कम तीन लाख परिवार इस हादसे में बेघरबार हो गए हैं। अभी तक यही लग रहा है कि यह विस्फोट बंदरगाह के भंडारागारों में रखे बड़ी मात्रा में रसायनों के कारण हुआ है, पर कई तरह की अटकलें और कयास अब भी लगाए जा रहे हैं।

बेरूत शहर अतीत में कई तरह की साम्प्रदायिक और आतंकवादी हिंसा का शिकार होता रहा है। इसीलिए इसे लेकर इतने कयास हैं। धमाका उस जगह के काफ़ी पास हुआ है, जहाँ 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री रफ़ीक हरीरी कार बम धमाके में मारे गए थे। इस मामले में चार अभियुक्तों के ख़िलाफ़ नीदरलैंड्स की विशेष अदालत मुकदमा चल रहा था, जिसका फैसला पिछले शुक्रवार यानी 7 अगस्त को आना था। अब इसे 18 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया है। पहली नजर में लगता नहीं कि इस मामले से विस्फोट का कोई संबंध है, पर जाँच में सभी संभावनाओं पर विचार किया जाएगा।

ढाई सौ किमी दूर तक धमाके

विस्फोट इतना भयानक था कि यह ढाई सौ किलोमीटर दूर सायप्रस तक सुनाई पड़ा। विस्फोट के बाद धुएं का गुबार उसी तरह उठा जैसा अणु विस्फोट के बाद उठने वाला मशरूम होता है। धमाके के बाद जबर्दस्त ऊँचाई तक धुआँ उठा और नौ किलोमीटर दूर बेरूत अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पैसेंजर टर्मिनल में शीशे टूट गए, उससे इसकी तीव्रता का अंदाज़ा होता है। बेरूत से 250 किलोमीटर दूर साइप्रस तक में धमाके की आवाज़ सुनाई पड़ी। अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे के भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक़ धमाका 3.3 तीव्रता के भूकंप जैसा था।

Monday, August 3, 2020

पीछे क्यों नहीं हट रही चीनी सेना?

प्रधानमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक ने कहा है कि देश की एक इंच जमीन पर भी कब्जा होने नहीं दिया जाएगा, पर तीन महीने से ज्यादा लम्बी कशमकश के बाद कोई नहीं कह सकता कि चीनी सेना की वापसी हो चुकी है। जो बातें सामने आ रही हैं, उनसे लगता है कि चीन ने लम्बा जाल फेंका है। भारत सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। इस घुसपैठ के समांतर कई परिघटनाएं हुई हैं, जिनका राजनयिक महत्व है। नेपाल तो था ही अब भूटान और बांग्लादेश के साथ रिश्तों में खलिश पैदा करने की कोशिश भी हुई है।

Monday, July 27, 2020

चीन-ईरान समझौते से चोट लगेगी भारत को

ईरान और चीन एक लम्बा सहयोग समझौता करने जा रहे हैं, जिससे वैश्विक समीकरण बदल जाने की संभावना है। चीन और ईरान की योजना के बरक्स यदि यूरोपीय देश निकट या सुदूर भविष्य में अमेरिकी प्रभा-मंडल से बाहर निकल गए, तो दुनिया की सूरत बदल जाएगी। साथ ही पश्चिम एशिया में चीन एक जबर्दस्त ताकत बनकर उभरेगा। ईरान को सऊदी अरब के वर्चस्व को समाप्त करने का मौका मिलेगा। पर ये सब संभावनाएं हैं और इस किस्म की हरेक अटकल के साथ उसके अंतर्विरोध भी जुड़े हैं। यह दो समान वजन वाली ताकतों का समझौता नहीं है। चीन विचारधारा से प्रेरित मूल्यबद्ध देश नहीं है। उसके पीछे अपनी महानता की जुनूनी मनोकामना है।

इलाके में ईरान अकेला ऐसा महत्वपूर्ण देश है, जो अमेरिका के खिलाफ खुलकर खड़ा हो सकता है। ऐसे देश की चीन को जरूरत है। चीन और ईरान दोनों को इस साल डोनाल्ड ट्रंप की पराजय का इंतजार भी है। जो बायडन का संभावित नया निजाम शायद ईरान को भटकने से रोके। ईरान के भीतर एक तत्व ऐसा भी है, जो चीन के दुर्धर्ष ‘आर्थिक अश्वमेध’ को समझता है। समझौते के दायरे में आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक हर तरह का सहयोग शामिल होगा और यह कम से कम 25 साल के लिए किया जाएगा। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह खबर इसी अंदाज में लिखी है कि यह समझौता हो गया है। सबूत के तौर पर एक दस्तावेज भी प्रकाशित किया गया है, जो समझौते का प्रारूप है।

Sunday, July 26, 2020

कांग्रेसी नेतृत्व का रसूख दाँव पर

राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का जो संकट खड़ा हुआ है, वह है क्या? क्या यह कि अशोक गहलोत की सरकार बचे? या यह कि कांग्रेस बचे? अशोक गहलोत इसे अपने ऊपर आए संकट के रूप में भले ही देख रहे हों, पर यह संकट कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व और खासतौर से गांधी-नेहरू परिवार पर है। गहलोत सरकार बच भी गई, तो इस बात की गारंटी नहीं कि कांग्रेस का पराभव रुक जाएगा। पार्टी संकट में है। वह फिर से खड़ी होने की कोशिश में डगमगा रही है। और यह संकट केवल कांग्रेस पार्टी पर ही नहीं है, बल्कि यूपीए के गठबंधन पर भी है।

राजस्थान का विवाद जम्मू-कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार के साथ किस तरह जुड़ गया, क्या हमने इसके बारे में सोचा है? महाराष्ट्र में एनसीपी कांग्रेस के साथ हैं, पर वह कब धोखा दे दे, इसका ठिकाना नहीं। हाल में चीन के संदर्भ में शरद पवार ने राहुल गांधी को सचेत किया कि मोदी की आलोचना ठीक नहीं। ये बातें संगठनात्मक कौशल के साथ-साथ वैचारिक भटकाव की ओर भी इशारा कर रही हैं। इनका दूरगामी असर यूपीए के स्वास्थ्य पर पड़ेगा।

Monday, July 20, 2020

पायलटों पर लगी वैश्विक पाबंदियों से गिरी पाकिस्तान की साख

गरीबी, अशिक्षा और कोरोना जैसी महामारी के दुष्प्रभाव से लड़ते जूझते दक्षिण एशिया में जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर नजर डालते हैं, तो बेहद निराशाजनक तस्वीर उभर कर आती है। हाल में खबरें हैं कि पाकिस्तान ने कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए अपने प्रयास बढ़ा दिए हैं। दूसरी तरफ वह एफएटीएफ की काली सूची में जाने से वह इसलिए बच गया, क्योंकि कोरोना के कारण दुनिया के पास इन बातों के लिए वक्त नहीं है। भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की बात करने का मतलब पाकिस्तान में पाप माना जाता है, जबकि जरूरत इस बात की है कि दोनों देश मिलकर आर्थिक-सामाजिक बदहाली से लड़ाई लड़ें।

कुछ समय पहले इमरान खान ने ट्वीट किया कि हमने कोरोना महामारी के दौर में नौ हफ्तों में देश के एक करोड़ परिवारों को 120 अरब रुपये की सहायता पहुँचाई है। भारत चाहे, तो हम उसे मदद पहुँचाने का तरीका बता सकते हैं और पैसे से मदद भी कर सकते हैं। उनके इस ट्वीट का पाकिस्तान में ही काफी मजाक बना। दूसरी तरफ खबरें हैं कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था नीचे गिरने के नए प्रतिमान स्थापित कर रही है। वहाँ से सत्ता परिवर्तन की अफवाहें भी आती रहती हैं। खासतौर से इमरान खान के नेतृत्व को लेकर सवाल हैं। इसी संदर्भ में ‘माइनस वन’ फॉर्मूला भी चर्चित हुआ है। इसका मतलब है इमरान खान को हटाकर सरकार के वर्तमान स्वरूप को बनाए रखना।

गिरती साख

हाल में देश का बजट पेश हुआ। उसके पहले पेश की गई आर्थिक समीक्षा में चेतावनी दी गई कि नैया डूब रही है। विदेशी कर्जा जीडीपी का 88 फीसदी हो गया है। करीब 60 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जाने का अंदेशा है। अर्थव्यवस्था लगातार विदेशी कर्ज के सहारे है। कब तक कर्ज मिलेगा? देश की साख वैश्विक मंच पर लगातार गिर रही है। ऐसे में एक खराब खबर नागरिक उड्डयन के क्षेत्र से मिली है। पाकिस्तानी पायलटों के विमान संचालन पर तकरीबन पूरी दुनिया में रोक लग गई है।

Sunday, July 19, 2020

कांग्रेसी कश्ती में फिर दरार

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की एक बैठक में दिए गए राहुल गांधी के बयान को दो तरह से पढ़ा गया है। एक यह कि जो जाना चाहता है, वह जा सकता है। दूसरा यह कि जिसे पार्टी छोड़कर जाना है वह जाएगा ही, आप लोगों को घबराना नहीं है। जब कोई बड़ा नेता पार्टी छोड़कर जाता है तो आप जैसे लोगों के लिए रास्ते खुलते हैं। बाद में कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा गया कि बैठक में ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, पर खबर तो पार्टी के भीतर से ही आई थी। राहुल गांधी की बात में विसंगति है। युवाओं के लिए रास्ते तभी खुलते हैं, जब बुजुर्ग लोग उनके लिए रास्ते खोलते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का प्रसंग बता रहा है कि पार्टी के युवा नेता नाराज हैं। यह पार्टी इतनी दुविधा और संशय में इसके पहले कभी नहीं रही। दूसरी तरफ उसके विरोधी खंडहर की ईंटें हिलाने का मौका छोड़ नहीं रहे हैं।

Monday, July 13, 2020

संकट में ओली और असमंजस में नेपाल


नेपाल का राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले तीन महीने का असमंजस निर्णायक मोड़ पर आता दिखाई पड़ रहा है, पर यह मोड़ क्या होगा, यह साफ नहीं है। तीन-चार संभावित रास्ते दिखाई पड़ रहे हैं। एक, ओली अध्यक्ष पद छोड़ दें और प्रधानमंत्री बने रहें। दूसरे वे अध्यक्ष बने रहें और प्रधानमंत्री पद छोड़ें। तीसरा रास्ता है, पार्टी का विभाजन। पार्टी में विभाजन हुआ, तब देश फिर से बहुदलीय असमंजस का शिकार हो जाएगा और नेपाली कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। इन सब बातों की पृष्ठभूमि में नेपाल पर भारत और चीन के राजनीतिक प्रभाव की भी परीक्षा है। फिलहाल तो यही लगता है कि नेपाल पर चीन का प्रभाव है। इस हफ्ते भारत के निजी समाचार चैनलों पर रोक लगना भी इस बात की गवाही दे रहा है।

विदेश-नीति के मोर्चे पर प्रधानमंत्री केपीएस ओली की सरपट चाल के उलट परिणाम अब सामने आ रहे हैं। पुष्प दहल के साथ समझौता करके क्या वे अपनी सरकार बचा लेंगे? हालांकि यह बात मुश्किल लगती है, पर ऐसा हुआ भी तो यह स्थायी हल नहीं है। ओली साहब के सामने विसंगतियाँ कतार लगाए खड़ी हैं। संकट को टालने में चीनी राजदूत होऊ यांछी के हड़बड़ प्रयास भी चर्चा का विषय बने हैं। उन्होंने दोनों खेमों के नेताओं से मुलाकात करके समाधान की जो कोशिशें कीं, उससे इतना साफ हुआ कि चीन खुलकर नेपाली राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है। उन्होंने 3 जुलाई को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी मुलाकात की, जो खुद इस टकराव में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

चीन-मुखी नीति को लेकर सवाल

औपचारिक शिष्टाचार के अनुसार ऐसी मुलाकातों के समय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को भी उपस्थित रहना चाहिए, पर ऐसा हुआ नहीं। पता नहीं उन्हें जानकारी थी भी या नहीं। इसके पहले होऊ ने अप्रेल और मई में भी हस्तक्षेप करके पार्टी को विभाजन के रास्ते पर जाने से बचाया था। चीन ने भारत के विरुद्ध नेपाली राष्ट्रवाद के उभार का भी लाभ उठाया। नक्शा प्रकरण इसका उदाहरण है। ओली की चीन-मुखी विदेश नीति को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं। मंगलवार को नेपाली कांग्रेस और जसपा की बैठक शेर बहादुर देउबा के निवास पर हुई, जिसमें विदेश नीति के झुकाव और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण पर नाराजगी व्यक्त की गई।

Sunday, July 12, 2020

जनता के रोष को पढ़िए

विकास दुबे की मौत की खबर आने के फौरन बाद एक पत्रकार ने ट्वीट किया, विकास दुबे नहीं मरता तो शायद ये होता, 1.डर के मारे कोई उसके खिलाफ गवाही नहीं देता, 2.अपने समाज का बड़ा नेता बन जाता, 3.सन 2022 में विधायक/मंत्री होता, 4.जो पुलिस उसे पकड़ के ला रही थी, वो उसकी सुरक्षा में होती, 5.और हमलोग उसके बंगले के गेट पर उसकी बाइट लेने खड़े होते इस ट्वीट का जवाब एक और पत्रकार ने दिया, प्रक्रिया हमें थकाती है, फ्रस्ट्रेट करती है, निराश भी करती है लेकिन किसी नागरिक को हमेशा क़ानूनी प्रक्रिया के साथ ही होना चाहिए क्योंकि वही प्रक्रिया उसकी सुरक्षा भी करती है…।
दोनों बातों में ज्यादा बड़ा सच क्या है? किसी ने लिखा, पकड़ा जाता तो कुछ लोगों के नाम बताता। इसके जवाब में किसी ने लिखा, सैयद शहाबुद्दीन, गाजी फकीर, मुन्ना बजरंगी और अतीक अहमद ने किसका नाम बताया? सच तो यह भी है कि विकास दुबे ने थाने में घुस कर एक राज्यमंत्री की सरेआम हत्या कर दी थी। तीस पुलिस वालों में से एक ने भी गवाही नहीं दी। जमानत पर छूटकर बाहर आ गया।
यूपी के इस डॉन की मौत किन परिस्थितियों में हुई, यह विचार का अलग विषय है। सच यह है कि बड़ी संख्या में लोग इस कार्रवाई से खुश हैं। उन्हें लगता है कि जब कुछ नहीं हो सकता, तो यही रास्ता है। पिछले साल के अंत में जब हैदराबाद में चार बलात्कारियों की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई, तब जनता ने पुलिस वालों का फूल मालाओं से स्वागत किया था। क्यों किया था? ऐसा नहीं कि लोग फर्जी मुठभेड़ों को सही मानते हैं। सब मानते हैं कि कानून का राज हो, पर कैसे? न्याय-व्यवस्था की सुस्ती और उसके भीतर के छिद्र उसे नाकारा बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारें पुलिस सुधार से बच रही हैं। राजनीतिक कारणों से मुकदमे वापस लिए जाते हैं और राजनीतिक कारणों से मुकदमे चलाए भी जाते हैं। सिर्फ न्यायपालिका को दोष देना भी गलत है। सरकार समझती है कि अपराधियों को ठोकने से काम चल जाएगा, तो वह गलत सोचती है।

Saturday, July 11, 2020

चीन का खुफिया हथियार, सायबर तलवार

जून के आखिरी हफ्ते में सायबर इंटेलिजेंस फर्म सायफर्मा के हवाले से खबर थी कि पिछले एक महीने में चीन से होने वाले सायबर हमलों में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। आमतौर पर चीनी हमलों के निशाने पर अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया होते हैं, पर गलवान के टकराव के बाद चीनी हमलों का निशाना भारत के सार्वजनिक रक्षा उपक्रम और कुछ संवेदनशील ठिकाने हैं। जून के आखिरी हफ्ते की खबर थी कि चीनी हैकरों ने पाँच दिन में भारत पर 40,000 सायबर हमले किए। चीनी हैकर विदेश और रक्षा जैसे संवेदनशील मंत्रालयों, बड़े उद्योगों के आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को टार्गेट कर रहे हैं। बैंकों, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन और एचएएल जैसी संस्थाओं के डेटा में सेंध लगाने का प्रयास भी।

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के इस दौर में चीनी हैकर वैक्सीन रिसर्च की चोरी भी कर रहे हैं। अमेरिका ने इस सिलसिले में अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया है। हाल में ऑस्ट्रेलिया में हुए सायबर हमलों का आरोप भी अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पॉम्पियो ने चीन पर लगाया है। अमेरिका के संघीय जाँच ब्यूरो ने भी चीन का नाम लेकर आलोचना की है। भारत में चीन के 59 एप पर पाबंदियाँ लगने के पीछे के कारण आर्थिक से ज्यादा सुरक्षा-सम्बद्ध हैं और अमेरिका भी चीनी एप पर पाबंदियाँ लगाने पर विचार कर रहा है।

भारतीय चेतावनी

भारतीय कंप्यूटर इमर्जेंसी रेस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) ने गत 21 जून को एडवाइज़री जारी की कि देश के लाखों व्यक्ति सायबर हमले के शिकार हो सकते हैं। पिछले साल हमारी थलसेना, वायुसेना और नौसेना के साथ नई सायबर और स्पेस कमांड जोड़ी गई हैं। पिछले साल अगस्त में सेना की नॉर्दर्न कमांड के एक वरिष्ठ ऑफिसर के कंप्यूटर में सायबर घुसपैठ हुई थी। इसका पता इसलिए लग पाया, क्योंकि अब सेना सायबर हमलों की निगहबानी कर रही है।

Thursday, July 9, 2020

अपने ही बुने जाल में फँसे नेपाली प्रधानमंत्री ओली

China's Desperate Efforts To Save Nepal PM Oli May Bear Fruit, But ...

पिछले साल नवम्बर में जब सीमा के नक्शे को लेकर नेपाल में आक्रोश पैदा हुआ था, तब काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल तो हमारा मित्र देश है, वहाँ से ऐसी प्रतिक्रिया का आना विस्मयजनक था। वह बात आई-गई हो पाती, उसके पहले ही लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबरें आने लगीं। उन खबरों के साथ ही नेपाल सरकार ने फिर से सीमा विवाद को उठाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते वहाँ की संसद ने संविधान संशोधन पास करके नया नेपाली नक्शा जारी कर दिया। इस घटनाक्रम से यह जरूर स्पष्ट हुआ कि नेपाल की पीठ पर चीन का हाथ है। यह भी कि किसी योजना के तहत नेपाल सरकार ऐसी हरकतें कर रही है। प्रकारांतर से देश के सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे ने इशारों-इशारों में यह बात कही भी कि नेपाल किसी के इशारे पर यह सब कर रहा है।

नक्शा प्रकरण ठंडा पड़ भी नहीं पाया था कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध उनकी ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगीं। उनके प्रतिस्पर्धी पुष्प दहल कमल इस अभियान में सबसे आगे हैं, जो ओली के साथ पार्टी अध्यक्ष भी हैं। यानी ओली के पास दो पद हैं। एक प्रधानमंत्री का और दूसरे पार्टी अध्यक्ष का। उनके व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के भीतर हस्ताक्षर अभियान चल रहा था। संभवतः इस अभियान से जनता का ध्यान हटाने के लिए ओली ने भारत के साथ सीमा का विवाद उठाया था।

Monday, July 6, 2020

भारत क्या नए शीतयुद्ध का केंद्र बनेगा?


लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात हुए हिंसक संघर्ष के बाद दुबारा कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, पर समाधान के लक्षण भी नजर नहीं आ रहे हैं। सन 1962 के बाद पहली बार लग रहा है कि टकराव रोकने का कोई रास्ता नहीं निकला, तो वह बड़ी लड़ाई में तब्दील हो सकता है। दोनों पक्ष मान रहे हैं कि सेनाओं को एक-दूसरे से दूर जाना चाहिए, पर कैसे? अब जो खबरें मिली हैं, उनके अनुसार टकराव की शुरूआत पिछले साल सितंबर में ही हो गई थी, जब पैंगांग झील के पास दोनों देशों के सैनिकों की भिड़ंत हुई थी, जिसमें भारत के दस सैनिक घायल हुए थे।

शुरूआती चुप्पी के बाद भारत सरकार ने औपचारिक रूप से 25 जून को स्वीकार किया कि मई के महीने से चीनी सेना ने घुसपैठ बढ़ाई है। गलवान घाटी में पेट्रोलिंग पॉइंट-14 (पीपी-14) के पास हुई झड़प के बाद यह टकराव शुरू हुआ है। लगभग उसी समय पैंगांग झील के पास भी टकराव हुआ। दोनों घटनाएं 5-6 मई की हैं। उसी दौरान हॉट स्प्रिंग क्षेत्र से भी घुसपैठ की खबरें आईं। देपसांग इलाके में भी चीनी सैनिक जमावड़ा है।

Sunday, July 5, 2020

लद्दाख से मोदी की गंभीर चेतावनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा जितनी सांकेतिक है, उससे ज्यादा सांकेतिक है उनका वक्तव्य। यदि हम ठीक से पढ़ पा रहे हैं, तो यह क्षण भारतीय विदेश-नीति के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। मोदी के प्रतिस्पर्धियों को भी उनके वक्तव्य को ठीक से पढ़ना चाहिए। यदि वे इसे समझना नहीं चाहते, तो उन्हें कुछ समय बाद आत्ममंथन का मौका भी नहीं मिलेगा। बहरहाल पहले देखिए कि यह लद्दाख यात्रा महत्वपूर्ण क्यों है और मोदी के वक्तव्य की ध्वनि क्या है।

प्रधानमंत्री की इस यात्रा के एक दिन पहले रक्षामंत्री लद्दाख जाने वाले थे। वह यात्रा अचानक स्थगित कर दी गई और उनकी जगह अगले रोज प्रधानमंत्री खुद गए। सवाल केवल सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने का ही नहीं है, बल्कि देश की विदेश-नीति में एक बुनियादी मोड़ का संकेतक भी है। अप्रेल के महीने से लद्दाख में शुरू हुई चीनी घुसपैठ के बाद से अब तक भारत सरकार और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी के बयानों में तल्खी नहीं रही। ऐसा लगता रहा है कि भारत की दिलचस्पी चीन के साथ संबंधों को एक धरातल तक बनाए रखने की है। भारत चाहता था कि किसी तरह से यह मसला सुलझ जाए।

Friday, July 3, 2020

चीन-पाकिस्तान पर नकेल डालने की जरूरत

21 नवंबर 2011 के टाइम का कवर
भारत-चीन सीमा पर गत 16 जून को हुए हिंसक संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत का दौर इन पंक्तियों के प्रकाशन तक किसी न किसी रूप में चल रहा है, पर किसी स्थायी हल के आसार नहीं हैं। वर्तमान घटनाक्रम से हमें दो सबक जरूर सीखने चाहिए। चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। दूसरे घुसपैठ की किसी भी हरकत का उसी समय करारा जवाब देना चाहिए। इसके पहले 1967 में नाथूला और 1986-87 में सुमदोरोंग में करारी कार्रवाइयों के कारण चीन की हिम्मत नहीं पड़ी। लद्दाख में इसबार की घुसपैठ के बाद भारत ने शुरूआती चुप्पी के बाद तीन स्तर पर जवाबी कार्रवाई की है। एक, बड़े स्तर पर सेना की सीमा पर तैनाती। दूसरे, कारोबारी स्तर पर कुछ बड़े फैसले किए, जिनसे चीन को हमारे इरादों का संकेत मिले। तीसरे राजनयिक स्तर पर अपनी बात को दुनिया के सामने रखा और अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया है। इस तीसरे कदम का दीर्घकालीन प्रभाव भारत-चीन रिश्तों पर पड़ेगा।


अभी तक का अनुभव है कि चीन के बरक्स भारत की नीति अपेक्षाकृत नरम रही है। बावजूद इसके कि चीन ने भारत में पाक-समर्थित आतंकवाद को खुला समर्थन दिया है। जैशे मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने को प्रस्ताव को पास होने से अंतिम क्षण तक चीन ने रोक कर रखा। एनएसजी की सदस्यता और संरा सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में अड़ंगे लगाए। अब जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन पर भारतीय संसद के प्रस्ताव पर चीनी प्रतिक्रिया हमारी संप्रभुता पर खुला हमला है। इसे सहन नहीं किया जाना चाहिए। लगता है कि अब हमारी नीति में बदलाव आ रहा है। लद्दाख पर चल रही बातचीत पर काफी कुछ निर्भर करेगा कि हमारी नीति की दिशा क्या होगी। चीनी सेना यदि अप्रेल में हथियाई जमीन छोड़ेगी, तो संभव है कि कड़वाहट ज्यादा न बढ़े। पर चीन यदि अपनी सी पर अड़ा रहा, तो भारत को अपनी नीति में आधारभूत बदलाव करना होगा।


भारतीय विदेश-नीति के बुनियादी तत्वों को स्पष्ट करने की घड़ी भी अब आ रही है। गुट निरपेक्षता की अवधारणा ने लम्बे अरसे तक हमारा साथ दिया, पर आज वह व्यावहारिक नहीं है। आज शीतयुद्ध की स्थिति भी नहीं है और दो वैश्विक गुट भी नहीं है। इसके बावजूद हमें अपने मित्र और शत्रु देशों की दो श्रेणियाँ बनानी ही होंगी। ऑस्ट्रेलिया, जापान, वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देश हैं, जो चीनी उभार की तपिश महसूस कर रहे हैं। हमें उन्हें साथ लेना चाहिए। बेशक हम अमेरिका के हाथ की कठपुतली न बनें, पर चीन को काबू में करने के लिए हमें अमेरिका का साथ लेना चाहिए। इस सवाल को न तो हमें अपने देश की आंतरिक राजनीति की नजर से देखना चाहिए और न अमेरिकी राजनीति के नजरिए से। अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी भी चीन की उतनी ही आलोचक है, जितनी ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी। चीनी अहंकार बढ़ता ही जा रहा है। उसे रोकने के लिए वैश्विक गठबंधन तैयार करने में कोई हमें हिचक नहीं होनी चाहिए। यह नकेल अकेले चीन पर नहीं होगी, बल्कि उसके साथ पाकिस्तान पर भी डालनी होगी। 

Thursday, July 2, 2020

दिव्यांगों और वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा योजनाएं


देश के कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिकों के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है| इस पैकेज के माध्यम से सरकार ने समाज के अलग-अलग वर्गों की सहायता का प्रयास किया है। उद्यमियों, कारोबारियों, श्रमिकों और विभिन्न सामाजिक वर्गों की सहायता करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन का सभी वर्गों पर प्रभाव पड़ा था। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की, उसमें गरीबों, मजदूरी करने वाली महिलाओं, शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्तियों और वृद्धों के लिए अलग से व्यवस्थाएं की गई हैं। ये योजनाएं विभिन्न कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। इनमें केंद्र और राज्यों की योजनाएं भी शामिल हैं।


कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत असहाय व्यक्तियों का सहारा भी राज्य है। बेशक उन्हें सामाजिक संस्थाएं और निजी तौर पर अपेक्षाकृत सबल व्यक्ति कमजोरों, वंचितों और हाशिए पर जा चुके लोगों की सहायता के लिए आगे आते हैं, पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य की होती है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 41 कहता है, राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा। इसके साथ अनुच्छेद 42 और 43 भी सामाजिक वर्गों की सहायता के लिए राज्य की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।

Tuesday, June 30, 2020

चीन का सिरदर्द हांगकांग


China Threatens to Retaliate If U.S. Enacts Hong Kong Bill - Bloombergऔपचारिक रूप से हांगकांग अब चीन का हिस्सा है, पर एक संधि के कारण उसकी प्रशासनिक व्यवस्था अलग है, जो सन 2047 तक रहेगी। पिछले कुछ समय से हांगकांग में चल रहे आंदोलनों ने चीन की नाक में दम कर दिया है। उधर अमेरिकी सीनेट ने 25 जून 2020 को हांगकांग की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए दो प्रस्तावों को पास किया है, जिससे और कुछ हो या न हो, हांगकांग की स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को धक्का लगेगा।
चीन के नए सुरक्षा कानून के विरोध में अमेरिका ने यह कदम उठाया है। इस प्रस्ताव में उन बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की बात है जो हांगकांग की स्वायत्तता के खिलाफ चीन का समर्थन करने वालों के साथ कारोबार करते हैं। ऐसे बैंकों को अमेरिकी देशों से अलग-थलग करने और अमेरिकी डॉलर में लेनदेन की सीमा तय करने का प्रस्ताव है।
हांगकांग ऑटोनॉमी एक्ट नाम से एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसका उद्देश्य उन व्यक्तियों और संस्थाओं पर पाबंदियाँ लगाना है, जो हांगकांग की स्वायत्तता को नष्ट करने की दिशा में चीनी प्रयासों के मददगार हैं। कानून बनाने के लिए अभी इसे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स से पास कराना होगा और फिर इस पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्ताक्षर होंगे।

Monday, June 29, 2020

सिर्फ फौज काफी नहीं चीन से मुकाबले के लिए

लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ के बाद देश के रक्षा विभाग ने एलएसी पर तैनात सैनिकों के लिए कुछ व्यवस्थाओं में परिवर्तन किए हैं। सेना को निर्देश दिए गए हैं कि असाधारण स्थितियों में अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का इस्तेमाल करें। खबर यह भी है कि रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों के लिए सुरक्षा उपकरण तथा बुलेटप्रूफ जैकेट बनाने वाली कंपनियों से संपर्क किया है और करीब दो लाख यूनिटों का आदेश दिया है। इस बीच पता लगा कि ऐसे उपकरण बनाने वाली बहुसंख्यक भारतीय कंपनियाँ इनमें लगने वाली सामग्री चीन से मँगाती हैं।

क्या हम चीनी सैनिकों से रक्षा के लिए उनके ही माल का सहारा लेंगे? हम यहाँ भी आत्मनिर्भर नहीं हैं? नीति आयोग के सदस्य और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व प्रमुख वीके सारस्वत ने चीन से आयात की नीति पर पुनर्विचार करने की सलाह दी है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने भी रक्षा सचिव को इस आशय का पत्र लिखा है। बात पहले से भी उठती रही है, पर अब ज्यादा जोरदार तरीके से उठी है।

स्वदेशी कवच

इस सिलसिले में आर्मी डिजाइन ब्यूरो ने ‘सर्वत्र कवच’ नाम से एक आर्मर सूट विकसित किया गया है, जो पूरी तरह स्वदेशी है। उसमें चीनी सामान नहीं लगा है। गत 23 दिसंबर को तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने इसे विकसित करने पर मेजर अनूप मिश्रा को उत्कृष्टता सम्मान भी प्रदान किया था। इस कवच के फील्ड ट्रायल चल रहे हैं, इसलिए फिलहाल हमें चीनी सामग्री वाले कवच भी पहनने होंगे। साथ ही अमेरिका और यूरोप से सामग्री मँगानी होगी, जिसकी कीमत ज्यादा होगी।

Sunday, June 28, 2020

सीमा पर चीन और घर में सियासी शोर!

मंगलवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार पर निशाना साधा और सवाल पूछा कि चीन ने जिस जमीन पर कब्जा कर लिया है, उसे वापस कैसे लिया जाएगा? लगता है कि पार्टी ने चीन के साथ वर्तमान तनातनी को लेकर सरकार पर हमले करने की रणनीति तैयार की है। राहुल गांधी ने भी एक वीडियो जारी करके कहा है कि चीन ने लद्दाख के तीन इलाकों में घुसपैठ की है। चीनी घुसपैठ और 20 जवानों की शहादत को लेकर राहुल गांधी लगातार सरकार से तीखे सवाल कर रहे हैं। उन्होंने जापान टाइम्स के एक लेख को ट्वीट कर लिखा है, ‘नरेंद्र मोदी असल में सरेंडर मोदी हैं।’

पार्टी ने शुक्रवार को भारत-चीन सीमा पर शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए ‘शहीदों को सलाम दिवस’ मनाया। इस मौके पर सोनिया गांधी ने वीडियो संदेश के जरिए कहा, देश जानना चाहता है कि अगर चीन ने लद्दाख में हमारी सरजमीन पर कब्जा नहीं किया, तो फिर हमारे 20 सैनिकों की शहादत क्यों और कैसे हुई? मनमोहन सिंह की टिप्पणी भी आई। कुछ फौजी अफसरों की टिप्पणियाँ भी सोशल मीडिया पर प्रकट हुईं, जिनमें सरकार से सवाल पूछे गए हैं। क्या ये टिप्पणियाँ अनायास थीं या किसी ने इशारा करके कराई थीं?

Saturday, June 27, 2020

चीन का धन-बल और छल-बल


इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने हाल में लिखा है कि चीन शायद काफी समृद्ध और ताकतवर हो जाए, पर उस तरह से दोस्तों और प्रशंसकों को आकर्षित नहीं कर पाएगा, जिस तरह से अमेरिका ने किया है। उन्होंने हारवर्ड के विद्वान जोसफ नाय का हवाला देते हुए लिखा कि चीन के पास 'हार्ड पावर' तो है, लेकिन 'सॉफ्ट पावर' नहीं है। अपने वर्चस्व को कायम करने के लिए वह संकीर्ण तरीकों का इस्तेमाल करता है। इसीलिए उससे मुकाबला काफी जटिल है।

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक अमेरिकी पत्रकार जोशुआ फिलिप का वीडियो वायरल हुआ है। उन्होंने बताया है कि चीन तीन रणनीतियों का सहारा लेता है। मनोवैज्ञानिक, मीडिया और सांविधानिक व्यवस्था की यह ‘तीन युद्ध’ रणनीति है। वह अपने प्रतिस्पर्धी देशों को उनके ही आदर्शों की रस्सी से बाँध देता है। उसके नागरिकों के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। प्रतिस्पर्धी देशों में है। वह इसके सहारे लोकतांत्रिक देशों में अराजकता पैदा करना चाहता है। अमेरिका के ‘एंटीफा’ आंदोलन के पीछे कौन है? दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता, पर किसी रोज परोक्ष रूप से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े किसी समूह का हाथ दिखाई पड़े, तो विस्मय नहीं होना चाहिए। यों भी चीन को हांगकांग के आंदोलन में अमेरिकी हाथ नजर आता है, इसलिए बदला तो बनता है।