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Sunday, September 11, 2016

‘उड़न-खटोले’ पर कांग्रेस

खटिया खड़ी करना मुहावरा है। कांग्रेस पार्टी ने खटिया पे चर्चा शुरू करके राजनीति में अपनी वापसी की कोशिशें शुरू की हैं। राहुल गांधी अपने जीवन की सबसे लम्बी यात्रा पर निकले हैं। पार्टी के लिए यह दौर बेहद महत्वपूर्ण है। उसे एक तरफ संगठनात्मक पुनर्गठन के काम को पूरा करना है और दूसरी ओर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी मौजूदगी को लगातार बनाए रखना है। कांग्रेस फिलहाल राष्ट्रीय पहचान के लिए संघर्ष कर रही है। पर क्षेत्रीय आधार के बगैर वह अपनी राष्ट्रीय पहचान किस तरह बचाएगी? 

Sunday, August 28, 2016

कश्मीरी अराजकता पर काबू जरूरी

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 22 सांसदों को अपने देश का दूत बनाकर दुनिया के देशों में भेजने का फैसला किया है जो कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का पक्ष रखेंगे। हालांकि चीन को छोड़कर दुनिया में ऐसे देश कम बचे हैं जिन्हें पाकिस्तान पर विश्वास हो, पर मानवाधिकार के सवालों पर दुनिया के अनेक देश ऐसे हैं, जो इस प्रचार से प्रभावित हो सकते हैं। पिछले एक साल से कश्मीर में कुछ न कुछ हो रहा है। हमारी सरकार ने बहुत सी बातों की अनदेखी है। कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी सरकार को इस बीच जो भी मौका मिला उसका फायदा उठाने के बजाए दोनों पार्टियाँ आपसी विवादों में उलझी रहीं। 

जरूरत इस बात की है कश्मीर की अराजकता को जल्द से जल्द काबू में किया जाए। इसके लिए कश्मीरी आंदोलन से जुड़े नेताओं से संवाद की जरूरत भी होगी। यह संवाद अनौपचारिक रूप से ही होगा। सन 2002 में ही स्पष्ट हो गया था कि हुर्रियत के सभी पक्ष एक जैसा नहीं सोचते। जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी ने इस पक्ष की उपेक्षा करके गलती की है, जबकि इन दोनों की पहल से ही अब तक का सबसे गम्भीर संवाद कश्मीर में हुआ था।  

Sunday, August 14, 2016

सवाल उतने नहीं हैं, जवाब जितने हैं

आज़ादी के 69 साल 
बहुत कड़ा है सफर, साथ चलो
जिस समय देश 70 वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, उस समय दिल्ली पर कुछ नापाक इरादों की नजरें गड़ी हैं। हवा में अंदेशा तैर रहा है कि संदिग्ध आतंकी दिल्ली पुलिस और पैरा-मिलिट्री फोर्स को निशाना बना सकते हैं। हमारे स्वतंत्रता दिवस पर कुछ लोग काला दिन मना रहे हैं। उन्हें हमारी आज़ादी से शिकायत है। हमारे संविधान से नाराजगी है। वे भी आज़ादी की माँग कर रहे हैं। यह आज़ादी हमारे खिलाफ है। क्या अन्याय कर दिया हमने उनके साथ? यह बुनियादी मान्यताओं के बीच टकराव है। क्या हम जानते हैं कि हमारी बुनियादी मान्यताएं क्या हैं? और क्या हम उनके प्रतिबद्ध है?

Sunday, August 7, 2016

दिल्ली को लेकर इतना हंगामा क्यों है?

दिल्ली की केजरीवाल सरकार जिस मुद्दे को अपनी राजनीति का केन्द्रीय विषय बनाकर चल रही है उसे तार्किक परिणति तक पहुँचने में अभी कुछ देर है। केन्द्र के साथ उसका टकराव अभी खत्म होने वाला नहीं है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत नहीं मिली तो उनकी राजनीति कुछ कमजोर जरूर पड़ेगी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद आप नेता आशुतोष ने एक वैबसाइट पर लिखा है, हाईकोर्ट के फैसले ने दिल्ली के नागरिकों की उम्मीदों को तोड़ा है, जिन्होंने आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें दीं।...यानी जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री का कोई मतलब नहीं है।...हम दिल्ली में चुनाव कराते ही क्यों हैं? यदि सारी पावर एलजी के पास ही हैं तो चुनाव का तमाशा क्यों?’

Sunday, July 31, 2016

केजरीवाल की बचकाना राजनीति

अरविंद केजरीवाल सायास या अनायास खबरों में रहते हैं। कुछ बोलें तब और खामोश रहें तब भी। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आग लगाने वाले बयान देकर वे दस दिन की खामोशी में चले गए हैं। शनिवार को उन्होंने नागपुर के अध्यात्म केंद्र में 10 दिन की विपश्यना के लिए दाखिला लिया है, जहाँ वे अखबार, टीवी या मीडिया के संपर्क में नहीं रहेंगे। हो सकता है कि वे सम्पर्क में नहीं रहें, पर यकीन नहीं आता कि उनका मन मुख्यधारा की राजनीति से असम्पृक्त होगा।

Sunday, July 24, 2016

कश्मीरी नौजवानों को कोई भड़का भी तो रहा है

कश्मीर मामले को पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय फोरमों पर उठाने की तैयारी कर रहा है। वहाँ 20 जुलाई को जो काला दिवस मनाया गया, जो इस योजना का हिस्सा था। नवाज शरीफ ने पाकिस्तान वापसी के बाद शुक्रवार को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई जिसमें सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ भी शामिल हुए। पिछले दो हफ्तों में पाकिस्तान ने अपने तमाम दूतावासों को सक्रिय कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों के साथ खासतौर से सम्पर्क साधा गया है। यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर घाटी में असाधारण जनांदोलन है।

कश्मीरी नौजवानों को कोई भड़का भी तो रहा है

कश्मीर मामले को पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय फोरमों पर उठाने की तैयारी कर रहा है। वहाँ 20 जुलाई को जो काला दिवस मनाया गया, जो इस योजना का हिस्सा था। नवाज शरीफ ने पाकिस्तान वापसी के बाद शुक्रवार को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई जिसमें सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ भी शामिल हुए। पिछले दो हफ्तों में पाकिस्तान ने अपने तमाम दूतावासों को सक्रिय कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों के साथ खासतौर से सम्पर्क साधा गया है। यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर घाटी में असाधारण जनांदोलन है।

Sunday, July 10, 2016

दक्षिण एशिया में आतंकी ज़हर


जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों ने हिज्बुल मुज़ाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी को मार गिराया। बुरहान कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन का पोस्टर बॉय था। उसकी मौत के साथ आतंकवाद का एक अध्याय खत्म हुआ तो दूसरा शुरू हो गया है। बुरहान को हिज्ब का टॉप कमांडर माना जाता था, जिसने सोशल मीडिया के जरिए आतंकवाद को दक्षिणी कश्मीर में फिर से जिंदा कर दिया है। उसकी मौत के बाद उसे अब शहीद के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। अब तक माना जाता था कि दक्षिण एशिया आतंक से मुक्त है, पर अब लगता है कि यहाँ आतंक का जहर फैलाने की कोशिशें बढ़ रहीं हैं।  

Sunday, July 3, 2016

दक्षिण एशिया में आईएस की दस्तक

ढाका-हत्याकांड में शामिल हमलावर बांग्लादेशी हैं। पर इस कांड की जिम्मेदारी दाएश यानी इस्लामिक स्टेट ने ली है। इसका मतलब है कि कोई स्थानीय संगठन आईएस से जा मिला है। सम्भावना इस बात की भी है कि जोएमबी नाम का स्थानीय गिरोह आईएस के साथ हो। बांग्लादेश सरकार की इस मामले में अभी टिप्पणी नहीं आई है, पर अभी तक वह आईएस की उपस्थिति का खंडन करती रही है। बहरहाल आईएस का इस इलाके में सक्रिय होना भारत के लिए चिंता का विषय है। 

पेरिस, ब्रसेल्स और इस्तानबूल के बाद ढाका। आइसिस ने एक झटके में सारे संदेह दूर कर दिए।  उसकी निगाहें अब दक्षिण एशिया के सॉफ्ट टारगेट पर हैं। पाकिस्तान के मुकाबले बांग्लादेश की स्थिति बेहतर है। उसकी अर्थ-व्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। जनसंख्या में युवाओं का प्रतिशत बेहतर है। जमीन उपजाऊ है। यह 15 करोड़ मुसलमानों का देश भी है। दुनिया में चौथी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी। अभी तक बांग्लादेश सरकार आइसिस को लेकर डिनायल मोड में थी। अब उसे स्वीकार करना चाहिए कि आइसिस और अल-कायदा दोनों ने उसकी जमीन पर अपने तम्बू तान दिए हैं। अब शको-शुब्हा नहीं बचा।

Sunday, June 12, 2016

मोदी के दौरे के बाद का भारत


नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं को भारतीय राजनीति अपने तरीके से देखती है। उनके समर्थक और विरोधी अपने-अपने तरीके से उनका आकलन करते हैं, पर दुनिया के देशों में उन्हें सफल प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है। उन्हें ऊर्जा, गति और भारत की उम्मीदों के साथ जोड़ा जा रहा है। संयोग से वे ऐसे दौर में भारत के प्रधानमंत्री बने हैं जब दुनिया को भारत की जरूरत है। एक तरफ चीन की अर्थ-व्यवस्था की तेजी खत्म हो रही है और यूरोप तथा लैटिन अमेरिकी देश किसी तरह अपना काम चला रहे हैं भारतीय अर्थ-व्यवस्था क्रमशः गति पकड़ रही है।

प्रधानमंत्री का पाँच देशों का दौरा विदेश नीति के निर्णायक मोड़ का संकेत भी कर रहा है।  इस यात्रा के तमाम पहलू दक्षिण एशिया के बाहर रहे, पर केन्द्रीय सूत्र दक्षिण एशिया की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था से ही जुड़ा था। इस यात्रा का हर पड़ाव महत्वपूर्ण था, पर स्वाभाविक रूप से सबसे ज्यादा ध्यान अमेरिका यात्रा ने खींचा। दो साल के अपने कार्यकाल में नरेंद्र मोदी दूसरी  बार अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर यानी ह्वाइट हाउस गए थे। अलबत्ता यह उनकी चौथी अमेरिका यात्रा था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से यह उनकी सातवीं मुलाकात थी। इस दौरे में अमेरिकी संसद में उनका भाषण भी एक महत्वपूर्ण बात थी।

Sunday, June 5, 2016

लोकतंत्र खरीद लो!

एक स्टिंग ऑपरेशन में कर्नाटक के कुछ विधायक राज्यसभा चुनाव में वोट के लिए पैसे माँगते देखे गए हैं। इस मसले पर मीडिया में चर्चा बढ़ती कि तभी मथुरा में जमीन पर कब्जा छुड़ाने की कोशिश में हुआ खून-खराबा खबरों पर छा गया। यह मामला खून-खराबे से ज्यादा खौफनाक है। चुनाव आयोग ने पूरे मामले की जाँच शुरू कर दी है। आयोग क्या फैसला करेगा? और उससे होगा क्या? ज्यादा से ज्यादा चुनाव की प्रक्रिया रद्द हो जाएगी। देश से भ्रष्टाचार दूर करने का संकल्प बगैर राजनीतिक संकल्प के पूरा नहीं होगा। और जब राजनीति इतने खुलेआम तरीके से भ्रष्टाचार का सहारा लेगी तो किसपर भरोसा किया जाए?

Sunday, May 29, 2016

हमारे आर्थिक विकास पर टिका है दुनिया का विकास

जिस समय मोदी सरकार के पहले दो साल का समारोह मनाया जा रहा है दुनिया आर्थिक मंदी के खतरे का सामना कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने और खासतौर से चीन में गाड़ी का पहिया उल्टा चलने के आसार हैं और अब दुनिया हमारी तरफ देख रही है। हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लैगार्ड ने इस दौर में भारत को रोशनी की किरण बताया है। उन्होंने कहा कि यह देश चालू वित्त वर्ष में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करेगा और 2019 तक इसकी जीडीपी जापान और जर्मनी की संयुक्त अर्थव्यवस्था से ज्यादा हो जाएगी।

Monday, May 23, 2016

क्षेत्रीय क्षत्रप क्या बीजेपी के खिलाफ एक होंगे?

इस चुनाव को बंगाल में दीदी और तमिलनाडु में अम्मा की जीत के कारण याद रखा जाएगा। इनके अलावा केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन को उनकी छवि के कारण पहचाना जाएगा। कुछ नाम और हैं जो कल तक राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा जाने-पहचाने नहीं हुए थे। इनमें हिमंत विश्व सरमा, सर्बानंद सोनोवाल, पी विजयन और ओ राजगोपाल शामिल हैं।

Sunday, May 15, 2016

बिहार को लेकर अंदेशा

बिहार में जंगलराज भले न हो, पर वहाँ मंगलराज भी नहीं है। सच बात है कि रोडरेज में दिल्ली में जितनी हत्याएं होती है, उतनी बिहार में नहीं होतीं। पर दिल्ली, दिल्ली है। यहाँ के हालात अलग हैं। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जिस अंदाज में यह बात कही है, उससे अहंकार की बदबू आती है। किशोर आदित्य सचदेव के साथ यह अन्याय है। कार को ओवरटेक करने पर हत्या करने वाले के अहंकार पर गौर करने की जरूरत है। इस हत्या और उसके बाद सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या से जाहिर यह हो रहा है कि अपराधियों के मन में राज-व्यवस्था का खौफ नहीं है। विकास की दौड़ में पिछड़ चुके बिहार को आगे आना है तो इसके लिए ऐसा माहौल बनाना होगा, जिसमें निवेशक बगैर डरे यहाँ प्रवेश करें।

Sunday, May 8, 2016

क्या बीजेपी खोज पाएगी अगस्ता-गंगा का स्रोत?

रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि अगस्ता-वेस्टलैंड मामला बोफोर्स जैसा साबित नहीं होगा। जैसा बोफोर्स प्रसंग में नहीं हो सका वैसा हम इस मामले में करेंगे। उनके अनुसार पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी और गौतम खेतान ‘छोटे नाम’ हैं। उन्होंने तो बहती गंगा में हाथ धोया। हम पता लगा रहे हैं कि इस गंगा का स्रोत कहाँ है। क्या वास्तव में यह पता लगाया जा सकता है कि पैसा किसके पास गया? क्या बीजेपी ने इस मामले को उठाने के पहले इस बात का गणित लगाया है कि इस मामले का अंत कहाँ है? घूम-फिरकर यह मामला फुस्स साबित हुआ तो क्या होगा? क्या सरकार गांधी परिवार पर हाथ डालकर गलती करेगी? क्या सारी बातें सिर्फ माहौल बनाने के लिए की जा रही हैं? ये महत्वपूर्ण सवाल हैं और इनका जवाब समय ही देगा। पर यह तय है कि यह मामला लम्बे समय तक राजनीति में कोलाहल मचाता रहेगा।

Sunday, April 24, 2016

तलवारें अब म्यान से बाहर हैं...

उत्तराखंड को लेकर अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आए, यह मामला खत्म होने वाला नहीं है। बल्कि समर अब तेज होगा। तलवारें खिंच चुकी हैं और पेशबंदियाँ चल रहीं हैं। उत्तराखंड के अलावा मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के भीतर बगावत के स्वर ऊँचे हो रहे हैं। यह सब बीजेपी के कांग्रेस मुक्त अभियान के तहत भी हो रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी अस्तित्व रक्षा के लिए पूरी तरह मैदान में उतरने जा रही है। इसके लिए उसने नीतीश कुमार के संघ मुक्त भारत अभियान में शामिल होने का फैसला किया है। वस्तुतः यह कांग्रेस का हमें बचाओ अभियान भी है। बंगाल में कांग्रेस और वामदलों का गठबंधन यदि सफल हुआ तो राजनीति की दिशा बदल भी सकती है। 

Sunday, April 17, 2016

बाधा दौड़ में मोदी

मोदी सरकार आने के बाद से असहिष्णुता बढ़ी है, अल्पसंख्यकों का जीना हराम है, विश्वविद्यालयों में छात्र परेशान हैं और गाँवों में किसान। यह बात सही है या गलत, विपक्ष ने इस बात को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक अभी तक उनके साथ हैं। उनकी खुशी के लिए पिछले हफ्ते राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मोर्चों से एकसाथ कई खबरें मिलीं हैं, जो सरकार का हौसला भी बढ़ाएंगी। पहली खबर यह कि इस साल मॉनसून सामान्य से बेहतर रहेगा। यह घोषणा मौसम दफ्तर ने की है। दूसरी खबर यह है कि खनन, बिजली तथा उपभोक्ता सामान के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन से औद्योगिक उत्पादन में फरवरी के दौरान 2.0% की वृद्धि हुई है। इससे पिछले तीन महीनों में इसमें गिरावट चल रही थी।

Sunday, April 10, 2016

भारतीय राष्ट्र-राज्य ‘फुटबॉल’ नहीं है

एनआईटी श्रीनगर की घटना सामान्य छात्र की समस्याओं से जुड़ा मामला नहीं है। जैसे जेएनयू, जादवपुर या हैदराबाद की घटनाएं राजनीति से जोड़ी जा सकती हैं, श्रीनगर की नहीं। देश के ज्यादातर दलों के छात्र संगठन भी हैं। जाहिर है कि युवा वर्ग को किसी उम्र में राजनीति के साथ जुड़ना ही होगा, पर किस तरीके से? हाल में केरल के पलक्कड़ के सरकारी कॉलेज के छात्रों ने अपनी प्रधानाचार्या की सेवानिवृत्ति पर उन्हें कब्र खोदकर प्रतीक रूप से उपहार में दी। संयोग से छात्र एक वामपंथी दल से जुड़े थे। सामाजिक जीवन से छात्रों को जोड़ने के सबसे बड़े हामी वामपंथी दल हैं, पर यह क्या है?

संकीर्ण राष्ट्रवाद को उन्मादी विचारधारा साबित किया जा सकता है। खासतौर से तब जब वह समाज के एक ही तबके का प्रतिनिधित्व करे। पर भारतीय राष्ट्र-राज्य राजनीतिक दलों का फुटबॉल नहीं है। वह तमाम विविधताओं के साथ देश का प्रतिनिधित्व करता है। आप कितने ही बड़े अंतरराष्ट्रीयवादी हों, राष्ट्र-राज्य के सवालों का सामना आपको करना होगा। सन 1947 के बाद भारत का गठन-पुनर्गठन सही हुआ या नहीं, इस सवाल बहस कीजिए। पर फैसले मत सुनाइए। जेएनयू प्रकरण में भारतीय राष्ट्र-राज्य पर हुए हमले को सावधानी के साथ दबा देने का दुष्परिणाम श्रीनगर की घटनाओं में सामने आया है। भारत के टुकड़े करने की मनोकामना का आप खुलेआम समर्थन करें और कोई जवाब भी न दे।

चुनावी राजनीति ने हमारे सामाजिक जीवन को पहले ही काफी हद तक तोड़ दिया है। हमारे साम्प्रदायिक, जातीय और क्षेत्रीय अंतर्विरोधों को खुलकर खोला गया है। पर अब भारत की अवधारणा पर हमले के खतरों को भी समझ लेना चाहिए। यह सिर्फ संयोग नहीं था कि जेएनयू का घटनाक्रम असम, बंगाल और केरल के चुनावों से जुड़ गया? और अब कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार की सुगबुगाहट के साथ ही एनआईटी श्रीनगर में आंदोलन खड़ा हो गया। संघ और भाजपा के एकांगी राष्ट्रवाद से असहमत होने का आपको अधिकार है, पर भारतीय राष्ट्र-राज्य किसी एक दल की बपौती नहीं है। वह हमारे सामूहिक सपनों का प्रतीक है। उसे राजनीति का खिलौना मत बनाइए।

Sunday, April 3, 2016

कांग्रेस पर खतरे का निशान

संसद के बजट सत्र का आधिकारिक रूप से सत्रावसान हो गया है। ऐसा उत्तराखंड में पैदा हुई असाधारण स्थितियों के कारण हुआ है। उत्तराखंड में राजनीतिक स्थितियाँ क्या शक्ल लेंगी, यह अगले हफ्ते पता लगेगा। उधर पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कल असम में मतदान के साथ शुरू हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की राजनीति की रीति-नीति को ये चुनाव तय करेंगे। उत्तराखंड के घटनाक्रम और पाँच राज्यों के चुनाव का सबसे बड़ा असर कांग्रेस पार्टी के भविष्य पर पड़ने वाला है। असम और केरल में कांग्रेस की सरकारें हैं। बंगाल में कांग्रेस वामपंथी दलों के साथ गठबंधन करके एक नया प्रयोग कर रही है और तमिलनाडु में वह डीएमके के साथ अपने परम्परागत गठबंधन को आगे बढ़ाना चाहती है, पर उसमें सफलता मिलती नजर नहीं आती।

केरल में मुख्यमंत्री ऊमन चैंडी समेत चार मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के सीधे आरोप हैं। मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बीच चुनाव को लेकर मतभेद हैं। पार्टी की पराजय सिर पर खड़ी नजर आती है। अरुणाचल गया, उत्तराखंड में बगावत हो गई। मणिपुर में पार्टी के 48 में से 25 विधायकों ने मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ बगावत का माहौल बन रहा है।

Sunday, March 20, 2016

पंजाब में पानी की खतरनाक राजनीति

सतलुज-यमुना लिंक नहर के विवाद में पानी सिर के ऊपर जाए इससे पहले ही केंद्र सरकार को अब अपनी भूमिका निभानी चाहिए। पंजाब विधानसभा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करते हुए यह कहते हुए नहर के निर्माण के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है कि उसके पास हरियाणा को देने के लिए पानी नहीं है। पंजाब विधानसभा के चुनाव करीब होने के कारण इसे पंजाब का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है, पर यह बात राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है और इसके दूरगामी दुष्परिणाम होंगे।

पंजाब के तकरीबन सभी राजनीतिक दल इस मामले को चुनाव के नजरिए से देख रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस से यह मुद्दा छीन लिया है। अकाली दल विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कराने में कामयाब हुआ है। उसका सहयोगी दल होने के नाते भारतीय जनता पार्टी ने भी उसका साथ दिया है। पर हरियाणा में भी उसकी सरकार है। उधर आम आदमी पार्टी भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जल्दबाजी में इस विवाद का रुख हरियाणा-दिल्ली के विवाद के रूप में मोड़ दिया था। अलबत्ता उन्होंने फौरन ही अपने रुख को बदला।