संसद के शीत सत्र के पहले दो दिन की
विशेष चर्चा और शुक्रवार की शाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सोनिया गांधी
और मनमोहन सिंह की मुलाकात के बाद दो बातें स्पष्ट हुईं हैं। एक, भारतीय जनता
पार्टी को व्यापक जनाधार बनाने के लिए अपनी रणनीति में सुधार करना होगा। इस रणनीति
का आंशिक असर है कि शीत सत्र से उम्मीदें बढ़ गईं हैं। शुक्रवार को संसद में
नरेन्द्र मोदी ने इस बात का संकेत दिया कि वे आमराय बनाकर काम करना पसंद करेंगे।
उन्होंने देश की बहुल संस्कृति को भी बार-बार याद किया।
देखना होगा कि क्या भारतीय जनता पार्टी
की राजनीति में कोई गुणात्मक बदलाव आने वाला है या नहीं। पार्टी को अटल बिहारी
वाजपेयी के अनुभव का लाभ उठाना चाहिए। संसद में मोदी के अपेक्षाकृत संतुलित बयान
और शाम को सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के साथ विचार-विमर्श से अच्छे संकेत जरूर मिले
हैं, फिर भी कहना मुश्किल है कि संसद का यह सत्र कामयाब होगा। अलबत्ता उम्मीद बँधी
है। देशवासी चाहते हैं कि संसदीय कर्म संजीदगी से सम्पादित किया जाना चाहिए।
मॉनसून सत्र का पूरी तरह धुल जाना अच्छी बात नहीं थी।