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Saturday, May 30, 2020

भारत-चीन टकराव भावी शीतयुद्ध का संकेत


पिछले हफ्ते जब भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके ठीक पहले भारत-चीन सीमा पर कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिनसे लगता है सब कुछ अनायास नहीं हुआ है। मई के पहले हफ्ते में दोनों देशों की सेनाओं के बीच पैंगांग त्सो के इलाके में झड़पें हुईं थीं। उसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के स्थानीय कमांडरों के बीच बातचीत के कई दौर हो चुके हैं, पर लगता है कि तनाव खत्म नहीं हो पाया है। सूत्र बता रहे हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए हैं। इतना ही नहीं चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी करीब तैनात की गई हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले साल ही तैयार हुआ दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है। 
गलवान क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा और चीनी दावे की रेखा में कोई बड़ा अंतर नहीं है। मोटे तौर पर यह जमावड़ा चीनी सीमा के भीतर है। पर खबरें हैं कि चीनी सैनिक एलएसी के तीन किलोमीटर भीतर तक आ गए थे। चाइनीज क्लेम लाइन (सीसीएल) को पार करने के पीछे चीन की क्या योजना हो सकती है? शायद चीन को भारतीय सीमा के भीतर हो रहे निर्माण कार्यों पर आपत्ति है। यह भी सच है कि इस क्षेत्र में ज्यादातर टकराव इन्हीं दिनों में होता है, क्योंकि गर्मियाँ शुरू होने के बाद सैनिकों की गतिविधियाँ तेज होती हैं। गलतफहमी में भी गश्ती दल रास्ते से भटक जाते हैं, पर निश्चित रूप से चीन के आक्रामक राजनय का यह समय है। इसलिए सवाल पैदा हो रहा है कि आने वाले समय में कोई बड़ा टकराव होगा? क्या यह एक नए शीतयुद्ध की शुरुआत है?

Monday, May 25, 2020

नेपाल के साथ ‘कालापानी विवाद’ के चीनी निहितार्थ


जिस समय देश कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहा है, उसके सामने आर्थिक मंदी और दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़े कुछ बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। अगले कुछ महीनों में भारत-अमेरिका और चीन के सम्बंधों को लेकर कुछ और विवाद सामने आएं तो विस्मय नहीं होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की भूमिका को लेकर कुछ झगड़े खड़े हो ही चुके हैं। इनके समांतर अफगानिस्तान में तालिबान के साथ हुए समझौते के निहितार्थ भी सामने आएंगे। इसमें भी चीन और रूस की भूमिका है, जो अभी नजर नहीं आ रही है। भारत के संदर्भ में कश्मीर की स्थिति को देखते हुए यह समझौता बेहद महत्वपूर्ण है।

इसी रोशनी में हमें नेपाल के साथ कालापानी को लेकर खड़े हुए झगड़े को भी देखना चाहिए। यह बात इन दिनों नेपाल की राजनीति में जबर्दस्त ऊँचाइयों को छू रही है। भारत की विदेश नीति के लिहाज से मोदी सरकार की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के लिए यह गम्भीर चुनौती है। सन 2015 के बाद से भारत के नेपाल के साथ रिश्ते लगातार डगमग डोल हैं। कोविड-19 की परिघटना ने वैश्विक मंच पर जो धक्का पहुँचाया है, उसके कारण चीन ने हाल में अपनी गतिविधियों को बढ़ा दिया है।

Monday, May 18, 2020

कमजोर विकेट पर खड़े इमरान खान


जिस वक्त हम कोरोना वायरस के वैश्विक हमले को लेकर परेशान हैं, दुनिया में कई तरह की गतिविधियाँ और चल रही हैं, जिनका असर आने वाले वक्त में दिखाई पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, डॉलर को पदच्युत करने की चीनी कोशिशों और दूसरी तरफ चीन पर बढ़ते अमेरिकी हमलों वगैरह के निहितार्थ हमें कुछ दिन बाद सुनाई और दिखाई पड़ेंगे। उधर अफगानिस्तान में अंतिम रूप से शांति समझौते की कोशिशें तेज हो गई हैं। अमेरिका के विशेष दूत ज़लमय खलीलज़ाद दोहा से दिल्ली होते हुए इस्लामाबाद का एक और दौरा करके गए हैं। अमेरिका ने पहली बार औपचारिक रूप से कहा है कि भारत को अब तालिबान से सीधी बात करनी चाहिए और अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराना चाहिए।

मई के दूसरे हफ्ते में एक और बात हुई। भारतीय मौसम विभाग ने अपने मौसम बुलेटिन में पहली बार पाक अधिकृत कश्मीर को शामिल किया। मौसम विभाग ने मौसम सम्बद्ध अपनी सूचनाओं में गिलगित, बल्तिस्तान और मुजफ्फराबाद की सूचनाएं भी शामिल कर लीं। इसके बाद जवाब में रविवार 10 मई से पाकिस्तान के सरकारी चैनलों ने जम्मू-कश्मीर के मौसम का हाल सुनाना शुरू कर दिया है। भारत के मौसम दफ्तर के इस कदम के पहले पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गिलगित और बल्तिस्तान में चुनाव कराने की घोषणा की थी, जिसपर भारत सरकार ने कड़ा विरोध जाहिर किया था।

कश्मीर में मुठभेड़ें
कश्मीर में आतंकवादियों के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ें बढ़ गई हैं, क्योंकि यह समय घुसपैठ का होता है। उधर हिज्बुल मुज़ाहिदीन के कमांडर रियाज़ नायकू की मुठभेड़ के बाद हुई मौत से भी इस इलाके में खलबली है। इसबार सुरक्षाबलों ने नायकू का शव उनके परिवार को नहीं सौंपा। इसके पीछे कोरोना का कारण बताया गया, पर इसका साफ संदेश है कि सरकार अंतिम संस्कार के भारी भीड़ नहीं चाहती। बहरहाल खबरें हैं कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है। हाल में पाकिस्तानी सेना की ग्रीन बुक से लीक होकर जो जानकारियाँ बाहर आईं हैं, उनके मुताबिक पाकिस्तानी सेना अब छाया युद्ध में सूचना तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल और ज्यादा करेगी।

Monday, May 11, 2020

कोरोना की अफरातफरी में करोड़ों शिशु खतरे में


हाल में एक छोटी सी खबर पढ़ने को मिली कि कोविड-19 को देखते हुए 25 मार्च से माताओं और दो साल तक के बच्चों की ठप पड़ी टीकाकरण स्कीम फिर से शुरू हो गई है। पूरे देश में अभी सामान्य व्यवस्था कायम हुई नहीं है, इसलिए कहना मुश्किल है कि देशभर का क्या हाल हैं, पर इतना जाहिर है कि कोरोना वायरस के कारण छोटे बच्चों का टीकाकरण प्रभावित हुआ है। इस दौरान अप्रेल के अंतिम सप्ताह में हमने वैश्विक टीकाकरण सप्ताह भी मनाया, पर टीकाकरण की गाड़ी ठप पड़ी रही। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत का सकारात्मक पहलू है हमारा अनिवार्य टीकाकरण कार्यक्रम। माना जा रहा कि भारत के लोगों में कई प्रकार के रोगों की प्रतिरोधक शक्ति है। कम से कम 20 ऐसे रोग हैं, जिन्हें टीके की मदद से रोका जा सकता है।
इन दिनों हम कोरोना के खिलाफ जिन आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका की प्रशंसा कर रहे हैं, वे हमारे मातृ एवं शिशु कार्यक्रम की ध्वजवाहक हैं। उनकी तारीफ के साथ यह बताना भी जरूरी है कि कोविड-19 की अफरातफरी ने टीकाकरण कार्यक्रम को धक्का पहुँचाया है। केवल टीकाकरण की बात ही नहीं है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई के इस दौर में जल्दबाजी, असावधानी या प्राथमिकताओं के निर्धारण में बरती गई नासमझी में सामान्य स्वास्थ्य की जो अनदेखी हुई है, अब उसकी तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं पर लॉकडाउन
लॉकडाउन के साथ-साथ अचानक दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं की तरफ से हमारा ध्यान हट गया। ऐसे में कैंसर, हृदय, लिवर और किडनी और दूसरी बीमारियों से परेशान रोगियों के लिए आवश्यक सुविधाओं में कमी आ गई। कोविड-19 लिए विशेष अस्पतालों की व्यवस्थाओं को स्थापित करने के कारण अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं बंद हो गईं। डायलिसिस और कीमोथिरैपी जैसी जरूरी चिकित्सा सुविधाएं भी प्रभावित हुईं। केवल स्वास्थ्य सुविधाएं ही नहीं दुनियाभर के बच्चों की पढ़ाई को नुकसान पहुँचा है। इन दिनों बच्चे और किशोर किस मनोदशा से गुजर रहे हैं, इसका अनुमान लगाना काफी मुश्किल है।

Monday, May 4, 2020

कब बनेगी सामाजिक बीमारियों की वैक्सीन?


इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के अंत और तीसरे दशक की शुरुआत में ऐसे दौर में कोरोना वायरस ने दस्तक दी है, जब दुनिया अपनी तकनीकी उपलब्धियों पर इतरा रही है। इतराना शब्द ज्यादा कठोर लगता हो, तो कहा जा सकता है कि वह अपने ऐशो-आराम के चक्कर में प्रकृति की उपेक्षा कर रही है। कोरोना प्रसंग ने मनुष्य जाति के विकास और प्रकृति के साथ उसके अंतर्विरोधों को एकबारगी उघाड़ा है। इस घटनाक्रम में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के संदेश छिपे हैं।
कोरोना के अचानक हुए आक्रमण के करीब साढ़े तीन महीने के भीतर दुनिया के वैज्ञानिकों ने मनुष्य जाति की रक्षा के उपकरणों को खोजना शुरू कर दिया है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है, वहीं वैश्विक सुरक्षाकी एक नई अवधारणा सामने आ रही है, जिसका संदेश है कि इनसान की सुरक्षा के लिए एटम बमों और मिसाइलों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं वैक्सीन और औषधियाँ। और उससे भी ज्यादा जरूरी है प्रकृति के साथ तादात्म्य बनाकर जीने की शैली, जिसे हम भूलते जा रहे हैं।

Monday, April 27, 2020

पेट्रो-डॉलर सिस्टम को ध्वस्त करने पर उतारू कोरोना


कोरोना वायरस अभी उभार पर है। शायद इसका उभार रोकने में हम जल्द कामयाब हो जाएं। पर उसके बाद क्या होगा? इस असर का जायजा लेने के लिए कुछ देर के लिए तेल बाजार की ओर चलें। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने गत 13 अप्रेल को कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद तेल उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों ने प्रति दिन करीब 97 लाख बैरल प्रतिदिन की तेल आपूर्ति कम करने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद हालांकि ब्रेंट क्रूड बाजार में तेल की गिरती कीमतें कुछ देर के लिए सुधरीं, पर  वैश्विक स्तर पर असमंजस कायम है। दो हफ्ते पहले ये कीमतें 22 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुँच गई थीं। इस गिरावट को रूस ने अपना उत्पादन और बढ़ाकर तेजी दी। इस प्रतियोगिता से तेल बाजार में वस्तुतः आग लग गई। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय ब्रेंट क्रूड की कीमत 28 डॉलर के आसपास थी और अमेरिकी बाजारों में तेल 15 डॉलर के आसपास आने की खबरें थीं। इस कीमत पर इस उद्योग की तबाही निश्चित है। इस खेल में वेनेजुएला जैसे देश तबाह हो चुके हैं, जो पेट्रोलियम-सम्पदा के लिहाज से खासे समृद्ध थे।

Monday, April 20, 2020

कैसा होगा उत्तर-कोरोना तकनीकी विश्व?


कोरोना की बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद दुनिया को कई तरह के प्रश्नों पर विचार करना होगा। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि दुनिया का तकनीकी विकास क्या केवल बाजार के सहारे होगा या राज्य की इसमें कोई भूमिका होगी? इन दो के अलावा विश्व संस्थाओं की भी कोई भूमिका होगी? तकनीक के सामाजिक प्रभावों-दुष्प्रभावों पर विचार करने वाली कोई वैश्विक व्यवस्था बनेगी क्या? इससे जुड़ी जिम्मेदारियाँ कौन लेने वाला है?
इस हफ्ते की खबर है कि मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी एपल और गूगल ने नोवेल कोरोनावायरस के विस्तार को ट्रैक करने के लिए आपसी सहयोग से स्मार्टफोन प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया है। ये दोनों कंपनियां मिलकर एक ट्रैकिंग टूल बनाएंगी, जो सभी स्मार्टफोनों में मिलेगा। यह टूल कोरोना वायरस की रोकथाम में सरकार, हैल्थ सेक्टर और आम प्रयोक्ता की मदद करेगा। यह टूल आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग का काम करेगा। यह काम तभी सम्भव है, जब दुनिया के सारे स्मार्टफोन यूजर्स एक ही ग्रिड या ऐप पर हों।

Monday, April 13, 2020

चीन के राजनीतिक नेतृत्व की ‘बड़ी परीक्षा’


बीसवीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत कोरोना वायरस जैसी दुखद घटना के साथ हुई है। जिस देश से इसकी शुरुआत हुई थी, उसने हालांकि बहुत जल्दी इससे छुटकारा पा लिया, पर उसके सामने दो परीक्षाएं हैं। पहली महामारी के आर्थिक परिणामों से जुड़ी है और दूसरी है राजनीतिक नेतृत्व की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस वायरस को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी परीक्षा बताया है। वहाँ उद्योग-व्यापार फिर से चालू हो गए हैं, पर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है, जिसपर चीनी अर्थव्यवस्था टिकी है। सवाल है कि चीनी माल की वैश्विक माँग क्या अब भी वैसी ही रहेगी, जैसी इस संकट के पहले थी?

Sunday, April 5, 2020

कोरोना ‘इंफोडेमिक’ उर्फ नए ज़माने की जंग


दुनियाभर में दहशत का कारण बनी कोविड-19 बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी में एक नए सूचना प्लेटफॉर्म डब्लूएचओ इनफॉर्मेशन नेटवर्क फॉर एपिडेमिक्स (एपी-विन) का उद्घाटन किया। इस मौके पर डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रॉस गैब्रेसस ने कहा, बीमारी के साथ-साथ दुनिया में गलत सूचनाओं की महामारी भी फैल रही है। हम केवल पैंडेमिक (महामारी) से नहीं इंफोडेमिक से भी लड़ रहे हैं। सोशल मीडिया के उदय के बाद दुनिया के हर विषय पर सूचना की बाढ़ है। इस बाढ़ में सच्ची-झूठी हर तरह की जानकारियाँ हैं। इसी बाढ़ में उतरा रही है अगले कुछ महीनों में उपस्थित होने वाली वैश्विक राजनीति की झलकियाँ। इंफोडेमिक से लड़ने का दावा करने वाले टेड्रॉस महाशय खुद विवाद का विषय बने हुए हैं।

Tuesday, March 31, 2020

क्या तालिबानी हौसले फिर बुलंद होंगे?


पिछली 29 फरवरी को दोहा में अमेरिका, अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच हुए क़तर दोहा में हुए समझौते में इतनी सावधानी बरती गई है कि उसे कहीं भी 'शांति समझौता' नहीं लिखा गया है। इसके बावजूद इसे दुनियाभर में शांति समझौता कहा जा रहा है। दूसरी तरफ पर्यवेक्षकों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान अब एक नए अनिश्चित दौर में प्रवेश करने जा रहा है। अमेरिका की दिलचस्पी अपने भार को कम करने की जरूर है, पर उसे इस इलाके के भविष्य की चिंता है या नहीं कहना मुश्किल है।
फिलहाल इस समझौते का एकमात्र उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान में तैनात 12,000 अमेरिकी सैनिकों की वापसी तक सीमित नज़र आता है। यह सच है कि इस समझौते के लागू होने के बाद अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई का अंत हो जाएगा, पर क्या गारंटी है कि एक नई लड़ाई शुरू नहीं होगी? मध्ययुगीन मनोवृत्तियों को फिर से सिर उठाने का मौका नहीं मिलेगा? दोहा में धूमधाम से हुए समझौते ने तालिबान को वैधानिकता प्रदान की है। वे मान रहे हैं कि उनके मक़सद को पूरा करने का यह सबसे अच्छा मौक़ा है। वे इसे अपनी विजय मान रहे हैं।

Monday, February 24, 2020

अफगान समझौते की पृष्ठभूमि में ट्रंप की यात्रा का महत्व


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस सप्ताह होने वाली भारत-यात्रा काफी हद तक केवल चाक्षुष (ऑप्टिकल) महत्व है। चुनाव के साल में ट्रंप अपने देशवासियों को दिखाना चाहते हैं कि मैं देश के बाहर कितना लोकप्रिय हूँ। उनके स्वागत की जैसी व्यवस्था अहमदाबाद में की गई है, वह भी यही बताती है। दोनों नेताओं का यह अब तक का सबसे बड़ा मेगा शो होगा। अमेरिका में हुए 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में जहां 50 हजार लोग शामिल हुए थे वहीं अहमदाबाद में लाखों का दावा किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रंप वहाँ मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन भी करेंगे, जो दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है। अहमदाबाद हवाई अड्डे से साबरमती आश्रम तक 10 किलोमीटर तक के मार्ग पर रोड शो होगा।
इस स्वागत-प्रदर्शन से हटकर भी भारत और अमेरिका के रिश्तों के संदर्भ में इस यात्रा का महत्व है। आमतौर पर ट्रंप द्विपक्षीय यात्राओं पर नहीं जाते। उनकी दिलचस्पी या तो बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों में होती है या ऐसी द्विपक्षीय बैठकों में, जिनमें किसी समस्या बड़े समाधान को हासिल करने की कोशिश हो। पिछले साल के गणतंत्र दिवस पर भारत आने का प्रस्ताव ठुकरा कर वे भारत को हमें एक राजनयिक झटका लगा चुके हैं। बहरहाल नाटकीयता अपनी जगह है, दोनों देशों के रिश्तों का महत्व है। ऐसे मौके पर जब अमेरिका ने तालिबान के साथ समझौता करके अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाने का फैसला कर लिया है, यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।

Thursday, January 30, 2020

वैश्विक-विमर्श का ज़रिया बनेंगे जनांदोलन


नए साल की शुरुआत आंदोलनों से हो रही है। शिक्षा संस्थानों के परिसर आंदोलनों की रणभूमि बने हैं। मोहल्लों और सड़कों में असंतोष और विरोध के स्वर हैं। देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षितिज पर आए बदलावों के अंतर्विरोध मुखर रहे हैं। असंतोष के पीछे व्यवस्था के प्रति नाराजगी है। यह विश्वव्यापी नाराजगी है। वैश्वीकरण केवल आर्थिक अवधारणा नहीं है, वैचारिक भी है।
जनवरी 2011 में हमें मिस्र और ट्यूनीशिया के मध्यवर्ग में असंतोष की खबरें मिलीं थीं। उसी साल गांधी के निर्वाण दिवस यानी 30 जनवरी को भारत में बगैर किसी योजना के अनेक शहरों में भ्रष्टाचार-विरोधी रैलियाँ में भीड़ उमड़ पड़ी। उसी साल सितम्बर में अमेरिका में ऑक्युपाई वॉलस्ट्रीट आंदोलन शुरू हुआ। वह नौजवानों के प्रतिरोध का आंदोलन था। यूरोप के अनेक शहरों में ऐसे आंदोलन खड़े हो गए। चिली, ब्रिटेन, अल्जीरिया, अमेरिका, फ्रांस, कैटालोनिया, इराक, लेबनॉन से लेकर हांगकांग की सड़कों पर आंदोलनकारी नौजवानों के जुलूस निकल रहे हैं।  

आंतरिक उमड़-घुमड़, जो हमारी वैश्विक छवि को बनाती या बिगाड़ती है


अमेरिकी विदेश विभाग ने जम्मू-कश्मीर में 15 देशों के राजदूतों की यात्रा को महत्वपूर्ण कदम बताया है। साथ ही यह भी कहा है कि राज्य के राजनीतिक नेताओं का जेल में रहना और इलाके में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदियाँ परेशान करती हैं। पिछले साल 5 अगस्त के बाद पहली बार 15 देशों के राजनयिकों ने 9 जनवरी को जम्मू-कश्मीर यात्रा की जिसमें अमेरिकी राजदूत कैनेथ आई जस्टर भी शामिल थे। इन राजनयिकों ने कश्मीर में कई राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों, नागरिक संस्थाओं के सदस्यों और सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ मुलाकात की। इस यात्रा को लेकर सरकार पर आरोप लगे हैं कि यह ‘गाइडेड टूर’ है। बहरहाल अमेरिका की दक्षिण एवं मध्य एशिया की कार्यवाहक सहायक सचिव एलिस जी वेल्स ने 11 जनवरी को उम्मीद जताई कि इस क्षेत्र में स्थिति सामान्य होगी।
वेल्स इस हफ्ते 15 से 18 जनवरी तक भारत में थीं और उन्होंने रायसीना संवाद में भी भाग लिया, जो विदेश-नीति के संदर्भ में भारत का सबसे महत्वपूर्ण अनौपचारिक मंच बनता जा रहा है। इस मंच में ईरानी विदेशमंत्री जव्वाद जरीफ भी शामिल हुए। स्वाभाविक है कि इस वक्त दुनिया का ध्यान अमेरिका-ईरान मामलों पर है, पर जम्मू-कश्मीर के बरक्स भी घटनाक्रम बदल रहा है। एलिस वेल्स भारत-यात्रा पूरी करने के बाद पाकिस्तान जाने वाली हैं।

Monday, January 13, 2020

विस्फोटक समय में भारतीय विदेश-नीति के जोखिम


नए साल की शुरुआत बड़ी विस्फोटक हुई है। अमेरिका में यह राष्ट्रपति-चुनाव का साल है। देश की सीनेट को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध लाए गए महाभियोग पर फैसला करना है। अमेरिका और चीन के बीच एक नए आंशिक व्यापार समझौते पर इस महीने की 15 तारीख को दस्तखत होने वाले हैं। बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए ट्रंप इसके बाद चीन की यात्रा भी करेंगे। ब्रिटिश संसद को ब्रेक्जिट से जुड़ा बड़ा फैसला करना है। अचानक पश्चिम एशिया में युद्ध के बादल छाते नजर आ रहे हैं। इन सभी मामलों का असर भारतीय विदेश-नीति पर पड़ेगा। हम क्रॉसफायरिंग के बीच में हैं। पश्चिमी पड़ोसी के साथ हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हैं, जिसमें पश्चिम एशिया में होने वाले हरेक घटनाक्रम की भूमिका होती है। संयोग से इन दिनों इस्लामिक देशों के आपसी रिश्तों पर भी बदलाव के बादल घिर रहे हैं।

Sunday, December 29, 2019

विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में क्यों की प्रमिला जयपाल की अनदेखी?


नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जितनी लहरें देश में उठ रही हैं, तकरीबन उतनी ही विदेश में भी उठी हैं। भारतीय राष्ट्र-राज्य में मुसलमानों की स्थिति को लेकर कई तरह के सवाल हैं। इस सिलसिले में अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी बनाए जाने से लेकर पूरे जम्मू-कश्मीर में संचार-संपर्क पर लगी रोक और अब नागरिकता कानून के विरोध में शिक्षा संस्थानों तथा कई शहरों में हुए विरोध प्रदर्शनों की गूँज विदेश में भी सुनाई पड़ी है। गत 18 से 21 दिसंबर के बीच क्वालालम्पुर में इस्लामिक देशों का शिखर सम्मेलन अपने अंतर्विरोधों का शिकार न हुआ होता, तो शायद भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सुर्खियाँ बन चुकी होतीं।
हुआ क्या था?
सवाल यह है कि भारत अपनी छवि को सुधारने के लिए राजनयिक स्तर पर कर क्या कर रहा है? यह सवाल भारत में नहीं अमेरिका में उठाया गया है। भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू’ श्रृंखला की बातचीत के सिलसिले में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस जयशंकर अमेरिका गए हुए थे। गत 18 अक्तूबर को दोनों देशों ने इसके तहत सामरिक और विदेश-नीति के मुद्दों पर चर्चा की। इसी दौरान जयशंकर ने कई तरह के प्रतिनिधियों से मुलाकातें कीं। इनमें एक मुलाकात संसद की फॉरेन अफेयर्स कमेटी के साथ भी होनी थी, जिसमें डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद प्रमिला जयपाल का नाम भी था।

Monday, December 23, 2019

नागरिकता कानून ने भारत की वैश्विक छवि बिगाड़ी


मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश के कई इलाकों में रोष व्यक्त किया जा रहा है। सामाजिक जीवन में कड़वाहट पैदा हो रही है और कई तरह के अंतर्विरोध जन्म ले रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को लेकर सवाल हैं। इन सबके साथ वैश्विक स्तर पर देश की छवि का सवाल भी जन्म ले रहा है। भारत और भारतीय समाज की उदार, सहिष्णु और बहुलता की संरक्षक छवि को ठेस लगी है। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबे की यात्रा स्थगित होने के बड़े राजनयिक निहितार्थ भले ही न हों, बांग्लादेश और पाकिस्तान की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और पश्चिमी देशों के मीडिया की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। भारत की उदार और प्रबुद्ध लोकतंत्र की छवि को बनाने में इनकी प्रमुख भूमिका है।
नागरिकता कानून में संशोधन के बाद कुछ अमेरिकी सांसदों ने काफी कड़वी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राज्यसभा से कानून पास होने के कुछ समय बाद ही अमेरिकी सांसद आंद्रे कार्सन ने बयान जारी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की और इस कानून को ड्रैकोनियन बताया और कहा कि इसके कारण भारत में मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, ब्रिटेन के अखबार इंडिपेंडेंट और अल जज़ीरा ने आलोचनात्मक टिप्पणियाँ कीं हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के प्रवक्ता ने कहा कि भारत के इस कानून पर संयुक्त राष्ट्र की निगाहें भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के कुछ बुनियादी आदर्श हैं और हम मानते हैं कि मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र से प्रतिपादित उद्देश्यों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।

Sunday, December 15, 2019

महाभियोग के चक्रव्यूह में घिरे ट्रंप क्या अंततः बच निकलेंगे?


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच राजनीतिक संग्राम अब तीखे मोड़ पर पहुँच चुका है। अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में महाभियोग की प्रक्रिया एक कदम आगे बढ़ गई है। इसके पहले शनिवार 7 दिसम्बर को हाउस की एक महाभियोग रिपोर्ट में ट्रंप पर सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। इन पंक्तियों के प्रकाशन तक सदन की न्यायिक समिति में सुनवाई चल रही होगी। इसके बाद सदन इस विषय पर मतदान करेगा। इस प्रकार अमेरिकी इतिहास में ट्रंप तीसरे ऐसे राष्ट्रपति बन जाएंगे, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा। 

अनेक कारणों से ट्रंप यों भी इतिहास के सबसे विवादास्पद राष्ट्रपतियों में से एक साबित हुए हैं, पर देश की राजनीति में इस समय जो हो रहा है, वह ऐतिहासिक है। संभव है कि प्रतिनिधि सदन से यह प्रस्ताव पास हो जाए, पर यह सीनेट से भी पास होगा, इसकी संभावना नहीं लगती है। निश्चित रूप से यह मामला अमेरिकी राष्ट्रपति पद के अगले साल होने वाले चुनाव का प्रस्थान-बिंदु है।

अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (प्रतिनिधि सभा) की स्पीकर नैंसी पेलोसी का कहना है कि हमारा लोकतंत्र दांव पर है, राष्ट्रपति ने हमारे लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा। ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने राष्ट्रपति पद का आगामी चुनाव जीतने के लिए अपने एक प्रतिद्वंदी के ख़िलाफ़ साजिश की है। उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की के साथ फ़ोन पर हुई बातचीत में ज़ेलेंस्की पर दबाव डाला कि वे जो बायडन और उनके बेटे के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के दावों की जाँच करवाएं। जो बायडन अगले साल होने वाले चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के संभावित उम्मीदवार हैं। ट्रंप का कहना है कि यूक्रेन के नए राष्ट्रपति को चुनाव जीतने पर बधाई देने के लिए मैंने फोन किया था। यूक्रेन में अप्रेल में चुनाव हुए थे और एक टीवी स्टार ज़ेलेंस्की जीतकर आए थे। उनके पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है।

यह आखिरी पड़ाव नहीं
सदन में महाभियोग की यह प्रक्रिया 24 सितंबर, 2019 को शुरू हुई थी और इस हफ्ते एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आ पहुँची है, पर यह अंतिम पड़ाव नहीं है। उसके लिए हमें जनवरी में सीनेट की गतिविधियों का इंतजार करना होगा। अगस्त के महीने में एक ह्विसिल ब्लोवर ने आरोप लगाया था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की सैनिक सहायता रोककर अपने पद का दुरुपयोग किया है। उसका आरोप था कि ट्रंप ने 25 जुलाई को फोन करके ज़ेलेंस्की से कहा था कि हम आपके देश को रोकी गई सैनिक सहायता शुरू कर सकते हैं, बशर्ते आप जो बायडन, उनके बेटे हंटर और यूक्रेन की एक नेचुरल गैस कंपनी बुरिस्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच बैठा दें। बुरिस्मा के बोर्ड में हंटर सदस्य रह चुके हैं। यह ह्विसिल ब्लोवर संभवतः सीआईए का कोई अधिकारी है।

ट्रंप चाहते थे कि ज़ेलेंस्की इस बात का समर्थन करें कि 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप का काम यूक्रेन ने किया था, रूस ने नहीं। ज़ेलेंस्की को लगा कि पूर्वी यूक्रेन में रूसी अलगाववादियों के खिलाफ लड़ाई में अमेरिकी सैनिक सहायता फिर से मिलने लगेगी, इसलिए उन्होंने सीएनएन टीवी पर 13 सितंबर को प्रसारित होने वाले पत्रकार फरीद ज़कारिया के एक कार्यक्रम में इस बात की घोषणा करने की तैयारी कर ली थी कि बायडन और उनके बेटे के खिलाफ जाँच कराएंगे।

इधर ह्विसिल ब्लोवर की शिकायत 12 अगस्त को औपचारिक रूप से सामने आई और उधर 11 सितंबर को यूक्रेन की सैनिक सहायता बहाल हो गई, पर 13 सितंबर वाला टीवी कार्यक्रम भी रद्द हो गया। दूसरी तरफ डेमोक्रेटिक पार्टी ने 24 सितंबर को सदन में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दी। उसी रोज ट्रंप ने अपनी टेलीफोन वार्ता के पूरे ट्रांसक्रिप्ट को भी जारी किया। ह्वाइट हाउस ने ह्विसिल ब्लोवर की कुछ बातों को स्वीकार भी किया है, पर उसका मानना है कि यह सब सामान्य बातें हैं। उसके बाद अमेरिकी कांग्रेस की तीन समितियों में सुनवाइयाँ हुईं। और अब न्यायिक समिति के सामने मामला है। उधर ह्वाइट हाउस ने कहा कि हम जाँचों में शामिल नहीं होंगे। सदन की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने जब महाभियोग के आरोप दायर करने की घोषणा की है, तो जवाब में ट्रंप ने कहा है, जरूर दायर करो। अभी तो इस मामले को सीनेट में जाना है।

दो चरणों की प्रक्रिया
अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग दो चरणों में पूरी होने वाली प्रक्रिया है। इसमें संसद के दोनों  सदनों की भूमिका है। पहला चरण महाभियोग का है, जो इस वक्त चल रहा है। राजनीतिक प्रक्रिया​ दूसरा चरण है। पहले चरण में हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स के नेता राष्ट्रपति पर लगे आरोपों पर विचार करते हैं देखते हैं और तय करते हैं कि राष्ट्रपति पर औपचारिक तौर पर आरोप लगाएंगे या नहीं। इसे कहा जाता है, ‘महाभियोग के आरोपों की जांच आगे बढ़ाना। पेलोसी ने इसी चरण को आगे बढ़ाया है। इसके बाद ऊपरी सदन,  यानी सीनेट जांच करता है कि राष्ट्रपति दोषी हैं या नहीं। ट्रंप के खिलाफ हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में महाभियोग पास हो सकता है, लेकिन सीनेट में, जहां रिपब्लिकन का बहुमत है, इसे पास कराने के लिए दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी।

अमेरिका के इतिहास में केवल दो राष्ट्रपतियों, 1886 में एंड्रयू जॉनसन और 1998 में बिल ​क्लिंटन के​ ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया था, लेकिन दोनों राष्ट्रपतियों को पद से हटाया नहीं जा सका। सन 1974 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन पर अपने एक विरोधी की जासूसी करने का आरोप लगा था। इसे वॉटरगेट स्कैंडल का नाम दिया गया था। पर उस मामले में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने के पहले उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्हें पता था कि मामला सीनेट तक पहुंचेगा और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ सकता है।

जोखिम दोनों तरफ
अमेरिकी विशेषज्ञों का एक तबका ट्रंप के आचरण को भ्रष्टाचार मानता है। पर कुछ लोग कहते हैं कि किसी विदेशी नेता को अपने प्रतिद्वंदी को बदनाम करने के लिए कहने भर से महाभियोग नहीं बनता। ट्रंप ने महाभियोग की जांच को दुर्भावना से प्रेरित बताया है। पेलोसी के बयान के कुछ देर बाद उन्होंने ट्वीट किया, अगर आप मुझ पर महाभियोग लगाने जा रहे हैं तो अभी करें, जल्दी, जिससे सीनेट इसकी निष्पक्ष सुनवाई कर सके और देश वापस अपने काम में लगे। सीनेट की 100 में से 53 सीटें रिपब्लिकन के पास हैं। यानी कि क़रीब 20 रिपब्लिकन सदस्य उनका साथ देने से इनकार करें और डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी सदस्य अपनी पार्टी का साथ दें, तभी कुछ हो सकता है, जिसकी उम्मीद नहीं लगती। बहरहाल अभी तक रिपब्लिकन पार्टी ट्रंप के साथ खड़ी है।

13 नवंबर को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ औपचारिक तौर पर महाभियोग की जांच शुरू हुई और 5 दिसंबर को नैंसी पेलोसी की घोषणा के साथ सदन की न्यायिक समिति में इस मामले की सुनवाई शुरू हो गई। समिति के सामने ट्रंप अपनी बात कहने को तैयार नहीं। अपनी घोषणा के एक दिन पहले पेलोसी ने डेमोक्रेट सांसदों की बैठक में सबसे पूछा था, बोलो आपको क्या राय है? सबने कहा, आगे बढ़ो। तलवारें दोनों तरफ से खिंची हुई हैं। लगता है कि इस महीने के अंत तक सदन में इस मामले पर मतदान हो जाएगा। इसमें सामान्य बहुमत से फैसला होगा। उम्मीद है कि यहां डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत होगी, क्योंकि उसके पास बहुमत है। उसके बाद नए साल में सीनेट में इस मामले की सुनवाई होगी।

महाभियोग का यह प्रस्ताव डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए भी जोखिम भरा है। अगर जांच सफल नहीं हो पाई तो इसका असर 2020 में होने वाले चुनावों पर भी पड़ेगा। विपक्ष को उसे इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। यों भी ट्रंप प्रचार यह कर रहे हैं कि ऐसे दौर में जब अमेरिका अपनी आर्थिक समस्याओं का मुकाबला करते हुए फिर से अपने गौरव के उच्च शिखर को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है, हमारे विरोधी दुष्प्रचार कर रहे हैं। यों ट्रंप पहले से कई तरह के विवादों में घिरे हैं। उन पर 2016 के चुनावों में रूसी हस्तक्षेप की जांच को प्रभावित करने, अपने टैक्स संबंधी दस्तावेज़ न दिखाने और यौन हिंसा के आरोप लगने पर दो महिलाओं को पैसे देने के आरोप लगे हुए हैं।






Monday, December 9, 2019

इमरान खान की कुर्सी डोल रही है


पाकिस्तान में जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने के लिए बढ़ा तो दिया है, पर इस प्रकरण ने इमरान खान की सरकार को कमजोर कर दिया है। सरकार को अब संसद के मार्फत देश के सेनाध्यक्ष के कार्यकाल और उनकी सेवा-शर्तों के लिए नियम बनाने होंगे। क्या सरकार ऐसे नियम बनाने में सफल होगी? और क्या यह कार्यकाल अंततः तीन साल के लिए बढ़ेगा? और क्या तीन साल की यह अवधि ही इमरान खान सरकार की जीवन-रेखा बनेगी? इमरान खान को सेना ने ही खड़ा किया है। पर अब सेना विवाद का विषय बन गई है, जिसके पीछे इमरान सरकार की अकुशलता है। तो क्या वह अब भी इस सरकार को बनाए रखना चाहेगी? सेना के भीतर इमरान खान को लेकर दो तरह की राय तो नहीं बन रही है?
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी सुनवाई के दौर यह सवाल किया था कि आखिर तीन साल के पीछे रहस्य क्या है?  देश की सुरक्षा के सामने वे कौन से ऐसे मसले हैं जिन्हें सुलझाने के लिए तीन साल जरूरी हैं? पहले उन परिस्थितियों पर नजर डालें, जिनमें इमरान खान की सरकार ने जनरल बाजवा का कार्यकाल तीन साल बढ़ाने का फैसला किया था। यह फैसला भारत में कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी बनाए जाने के दो हफ्ते बाद किया गया था। संयोग से उन्हीं दिनों मौलाना फज़लुर रहमान के आज़ादी मार्च की खबरें हवा में थीं।

Thursday, December 5, 2019

पश्चिम में खराब क्यों हो रही है भारत की छवि?


जब से जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए निष्प्रभावी हुए हैं, पश्चिमी देशों में भारत की नकारात्मक तस्वीर को उभारने वाली ताकतों को आगे आने का मौका मिला है। ऐसा अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के दूसरे देशों में भी हुआ है। गत 21 नवंबर को अमेरिका की एक सांसद ने प्रतिनिधि सभा में एक प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा करते हुए भारत-पाकिस्तान से विवादित क्षेत्र में विवाद सुलझाने के लिए बल प्रयोग से बचने की मांग की गई है।
कांग्रेस सदस्य रशीदा टलैब (या तालिब) ने यह प्रस्ताव दिया है। इलहान उमर के साथ कांग्रेस के लिए चुनी गई पहली दो मुस्लिम महिला सांसदों में एक वे भी हैं, जो फलस्तीनी मूल की हैं। सदन में गत 21 नवंबर को पेश किए गए प्रस्ताव संख्या 724 में भारत और पाकिस्तान से तनाव कम करने के लिए बातचीत शुरू करने की मांग की गई है। प्रस्ताव का शीर्षक है, ‘जम्मू-कश्मीर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा और कश्मीरियों के स्वयं निर्णय को समर्थन।’
छवि को धक्का
इस प्रस्ताव का विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि इसका कोई सह-प्रायोजक नहीं है। इसे सदन की विदेश मामलों की समिति को आगे की कार्रवाई के लिए भेजा जाएगा, पर अमेरिकी संसद और मीडिया में पिछले तीन महीनों से ऐसा कुछ न कुछ जरूर हो रहा है जिससे भारत की छवि को धक्का लगता है। सामान्यतः पश्चिमी देशों में भारतीय लोकतंत्र की प्रशंसा होती है, पर इन दिनों हमारी व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। गत 19 नवंबर को कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एक विमर्श में कश्मीर के बरक्स भारतीय लोकतंत्र से जुड़े सवालों पर विचार किया गया। उसके एक हफ्ते पहले अमेरिकी कांग्रेस के मानवाधिकार संबंधी एक पैनल ने जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद की स्थिति पर सुनवाई की। अमेरिकी कांग्रेस की गतिविधियों पर निगाह रखने वाले पर्यवेक्षकों का कहना था कि इसके पीछे पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिकों और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के करीबी लोगों हाथ है और उन्होंने इस काम के लिए बड़े पैमाने पर धन मुहैया कराया है।

Thursday, November 28, 2019

भारत के लिए क्या संदेश है श्रीलंका के राजनीतिक बदलाव का?


श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के उम्मीदवार गोटाबेया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनावों में जीत दर्ज की है। सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल गोटाबेया अपने देश में टर्मिनेटर के नाम से मशहूर हैं, क्योंकि लम्बे समय तक चले तमिल आतंकवाद को कुचलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। अब उनके चुनाव के बाद भारत के नजरिए से दो बड़े सवाल हैं। अलबत्ता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिणाम आते ही गोटाबेया राजपक्षे को बधाई दी है, जिसके जवाब में उन्हें शुक्रिया का संदेश भी मिला है।  
पहला सवाल है कि श्रीलंका के तमिल नागरिकों के प्रति उनका नजरिया क्या होगा? उनके नजरिए से साथ-साथ यह भी कि तमिल नागरिक उन्हें किस नजरिए से देखते हैं। इसके साथ ही जुड़ा है वह सवाल कि देश के उत्तरी तमिल इलाके का स्वायत्तता के सवाल पर उनकी भूमिका क्या होगी? इस तमिल-प्रश्न के अलावा दूसरा सवाल है कि चीन के साथ उनके रिश्ते कैसे रहेंगे? भारत सरकार की निगाहें हिंद महासागर में चीन की आवाजाही पर रहती हैं और राजपक्षे परिवार को चीन-समर्थक माना जाता है।