Saturday, February 20, 2021

चीनी चक्कर यानी भरोसों और अंदेशों की डाड़ा मेड़ी

सन 1962 के युद्ध के बाद से भारत में चीन को लेकर इतना गहरा अविश्वास है कि आम जनता की बात छोड़ दें, बड़े विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि देखिए आगे होता क्या है। संदेह की वजह यह भी है कि सीमाओं की बात तो छोड़िए, वास्तविक नियंत्रण रेखाएं भी अस्पष्ट हैं। लद्दाख का ज्यादातर सीमा-क्षेत्र जनशून्य होने के कारण सैनिकों की गश्त और चौकियों, बैरकों और सड़कों के निर्माण की जानकारी भी काफी देर से मिलती है।  

अब सेना ने कुछ तस्वीरें जारी की हैं। पैंगोंग त्सो इलाके से चीनी सैनिकों की वापसी की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में शेयर किए जा रहे हैं। झील के उत्तरी किनारे पर चीन ने फिंगर 5 पर बनी एक जेटी (घाट) को तोड़ दिया है, जिसे उन्होंने अपनी गश्ती नौकाओं के संचालन के लिए बनाया था। एक हैलिपैड भी खत्म किया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक करीब 150 टैंक और 5000 सैनिक पीछे हट चुके हैं।

समझौते से उम्मीद बँधी है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण की स्थितियाँ स्पष्ट होंगी। ऐसे में प्रेम शंकर झा जैसे आलोचक भी मान रहे हैं कि रिश्ते अब सुधरने लगेंगे। इसके विपरीत कुछ विशेषज्ञ अब भी कह रहे हैं कि फिंगर 3 से 8 के बीच का इलाका पहले पूरी तरह भारतीय गश्त का क्षेत्र था। इसे नो मैंस लैंड बनाकर हम अपने दावे को छोड़ रहे हैं।  

भारत माता का टुकड़ा

कड़वाहट तब बढ़ी, जब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'कायर' करार दिया और कहा कि उन्होंने ‘भारत माता का एक टुकड़ा’ चीन को दे दिया। उन्होंने कहा कि हम फिंगर 4 से फिंगर 3 तक आ गए…हमारी जमीन फिंगर 4 तक है। देपसांग के इलाके में चीन अंदर आया है। रक्षामंत्री ने उसके बारे में एक शब्द नहीं बोला। गोगरा और हॉट स्प्रिंग के बारे में एक शब्द नहीं बोला, जहां चीनी बैठे हुए हैं।’

इसके जवाब में रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि भारत का क्षेत्र मानचित्र में दर्शाया गया है और इसमें 43,000 वर्ग किलोमीटर का वह इलाका भी शामिल है जो 1962 से चीन के अवैध कब्जे में है। भारत के अनुसार एलएसी फिंगर 8 पर है, फिंगर 4 तक नहीं। इसी वजह से भारत लगातार फिंगर 8 तक गश्त का अधिकार जताता है। पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर दोनों पक्षों की स्थायी चौकियाँ काफी पुरानी हैं। भारत की तरफ यह धन सिंह थापा पोस्‍ट है जो फिंगर 3 के पास है। चीन की परमानेंट पोस्‍ट फिंगर 8 के पूर्व में है। वर्तमान समझौते के अनुसार, दोनों तरफ से फॉरवर्ड तैनाती को वापस लिया जाएगा और इन स्थायी चौकियों पर तैनाती रहेगी।

समस्याएं अभी बाकी हैं

आलोचनाओं की प्रकृति राजनीतिक है। आज यह समझने में दिक्कत है कि कौन सा कब्जा पिछले साल का है और कौन सा दस साल पहले का। रक्षामंत्री ने संसद में कहा है कि कुछ समस्याओं को सुलझाना अभी बाकी है। पैंगोंग झील से फौजी वापसी पूरी होने के 48 घंटों के अंदर ही देपसांग मैदानों, गोगरा, हॉट स्प्रिंग और गलवान में वापसी के लिए बातचीत होनी है। यानी प्रक्रिया अभी लम्बी है।

विशेषज्ञ इस बात का उल्लेख करते हैं कि चीन ने फिंगर 5 तक सड़क 1999 में बना ली थी और फिंगर 6 पर उसका रेडार बेस 2006 से काम कर रहा है। हम फिंगर 8 तक चीन द्वारा बनाई गई सड़क पर गश्त लगा रहे थे। ऐसा इसलिए कर पा रहे थे, क्योंकि चीनी हमें रोक नहीं रहे थे। पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है, पर ऐसा है, तो साफ है कि चीन न केवल पीछे हटा है, बल्कि समझौते के लिए तैयार है।

भारतीय सैनिक मुख्यत: फिंगर 2 पर तैनात रहते हैं जबकि एलएसी फिंगर 8 पर है। भारतीय सेना इसके आगे पैदल ही गश्त करती है। आमतौर पर चीनी उसे फिंगर 4 या 5 के पास उन्हें रोकते थे। कारगिल युद्ध के दौरान चीनियों ने फिंगर 5 तक सड़क बना ली। जब उन्हें भारतीय पैदल गश्त का जायजा लेना होता तो वाहनों से वहां तक आ जाते थे। भारतीय सेना फिंगर 3 से आगे वाहन नहीं ले जा सकते क्योंकि फिंगर 4 का मार्ग बहुत संकरा है और केवल पैदल ही तय किया जा सकता है।

सन 1993 में हुए दोनों देशों के समझौते के बाद से चीन लद्दाख-अक्साईचिन क्षेत्र के अपने नक्शे भारत को नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं उसके साथ सीमा को लेकर जो 24 समझौते हुए हैं, उनमें से 15 को लेकर वह चुप्पी साधे हुए है। इससे यह अंदेशा पैदा हुआ कि वह धीरे-धीरे जमीन पर कब्जा करना चाहता है।

चीन दबाव में क्यों आया

पैंगोंग त्सो पर समझौता हुआ है, तो दूसरे इलाकों में भी ऐसा सम्भव है। इस तरह से भले ही सीमा का निर्धारण नहीं हो, पर नियंत्रण रेखा का निर्धारण जरूर हो जाएगा। पर ऐसा केवल सैनिक कमांडरों की बातचीत से नहीं होगा, उच्चतम राजनीतिक स्तर पर संवाद की जरूरत होगी। बहरहाल यह समझना होगा कि चीन पर क्या दबाव थे, जिनके कारण वह समझौते पर राजी हुआ।

·      भारत की रक्षा-सामर्थ्य को लेकर चीनी गलतफहमी दूर हुई। भारत ने जिस तरह सीमा पर न केवल 50 हजार सैनिकों की तैनाती की, बल्कि वायुसेना से लेकर तोपखाने और बख्तरबंद दस्तों को तैनात किया, उससे चीन को भारतीय संकल्प की दृढ़ता समझ में आ गई।

·      दूसरी तरफ शून्य से 40 डिग्री तक के नीचे तापमान पर सेना को तैनात करने की अपनी फौजी सामर्थ्य को लेकर भी चीन का आत्मविश्वास जवाब दे गया। हालांकि उसके पास साइबेरिया में तैनाती का अनुभव है, पर लम्बे अर्से से उसके पास लड़ाई का अनुभव नहीं है।

·      संयोग से जिस वक्त यह समझौता हो रहा था, रूसी समाचार एजेंसी तास ने खबर दी कि पिछले साल जून में गलवान घाटी में हुए संघर्ष में 45 चीनी सैनिक मारे गए थे। भारत ने अपने 20 सैनिकों की सूचना को कभी छिपाया नहीं था, पर चीन ने आधिकारिक रूप से कभी नहीं बताया था कि उसके कितने सैनिक उस टकराव में मरे थे। उस समय भारतीय सूत्रों ने जानकारी दी थी कि चीन के 43 सैनिक मरे हैं। तब चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा था, ‘यह फेक न्यूज़ है।’

·      चीन ने अब तास की खबर का खंडन नहीं किया है। पिछले साल नवंबर में अमेरिकी पत्रिका न्यूज़वीक में लेखक गॉर्डन जी चैंग ने लिखा था कि चीनी सेना भारत में विफल रही है। उन्होंने  एक विशेषज्ञ क्लियो पास्कल का हवाला देते हुए लिखा कि मरने वाले चीनी सैनिकों की संख्या 60 से भी ज्यादा हो सकती है।

·      इतना ही नहीं 30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने जबर्दस्त कार्रवाई करते हुए सामरिक दृष्टि से ऊँची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। पिछले पाँच दशक में भारतीय सेना की चीन के खिलाफ सबसे बड़ी आक्रामक कार्रवाई थी। भारत की सेना ने कैलाश पर्वत के आसपास के ऊँचे पहाड़ी इलाकों पर मोर्चे संभाल लिए हैं।

·      इस इलाके की भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम में अपने सैनिकों को ढालना चीन के लिए मुश्किल हो रहा था। वह बहुत लम्बे अरसे तक इसी तरह जमा नहीं रह सकता था और उसके लिए पीछे हटना मजबूरी थी। न्यूज़वीक के अनुसार चीनी सेना की यह विफलता राष्ट्रपति शी चिनफिंग पर राजनीतिक रूप से भी भारी पड़ेगी।

·      पिछले आठ महीनों से वैश्विक मंच पर चीन भारी दबाव में है। दक्षिण चीन सागर में अमेरिका तथा मित्र देशों की सेनाओं की खुली गश्त और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चतुष्कोणीय सुरक्षा योजना (क्वॉड) का दबाव भी उसपर है। चीन को अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का इंतजार भी था। उसे लगता था कि डोनाल्ड ट्रंप की पराजय हुई, तो अमेरिकी रीति-नीति में बदलाव आएगा। ऐसा हुआ नहीं।

·      पिछले एक साल में कारोबारी रिश्तों में भी गिरावट आई है। भारतीय रेलवे ने एक चीनी कम्पनी को 471 करोड़ का काम देने पर रोक लगा दी। एक सौ से ऊपर चीनी एप पर पाबंदी लग गई और चीनी कम्पनी ह्वावेई के 5-जी समझौतों में भी अड़ंगा लगा।  

चीन विजेता नहीं

इस मामले में लेफ्टिनेंट जनरल एसएस पनाग (सेनि) ने लिखा है कि भारत को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि चीन खुद को विजेता घोषित नहीं कर पाएगा और इस तरह का गतिरोध उसकी छवि पर असर डालेगा। यह एक बड़ी ताकत की हार साबित होगा। भारत खोई प्रतिष्ठा फिर हासिल कर सकेगा। इससे डेमछोक क्षेत्र को छोड़कर, 1959 की क्लेम लाइन के साथ एलएसी के सीमांकन का रास्ता भी खुलेगा। घरेलू स्तर पर इसे जीत के रूप में पेश किया जा सकता है।

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक का कहना है कि झड़पों को रोकने के लिहाज से फिंगर 4 और 8 के बीच गश्त पर अस्थायी रोक खासी 'अहमियत' रखती है। मतलब यह कतई नहीं है कि यह क्षेत्र चीन के हवाले कर दिया गया है। फिर भी शांति और सौहार्द की उम्मीद करना फिलहाल जल्दबाजी होगी। उन्होंने चीन के खिलाफ सामरिक और आर्थिक कदमों को जारी रखने का आह्वान किया है।

दुनिया में सबसे ज्यादा पड़ोसी देश चीन के हैं। भूमि से जुड़े 14 देश और समुद्री सीमा के किनारे छह। ज्यादातर देशों के साथ उसका किसी न किसी किस्म का सीमा विवाद है। चीनी महत्वाकांक्षाएं उसे हजारों साल पीछे तक ले जाती हैं। उसके तमाम दावे सैकड़ों-हजारों साल पुराने हैं। दूसरी तरफ कम्युनिस्ट क्रांति के दौरान हुई हिंसा के कारण तमाम पुराने दस्तावेज नष्ट हो चुके हैं। अब दावे पेश करने के लिए उल्टे-सीधे तरीके अपनाए जाते हैं। भारत से उसके विवाद सीधी सरल रेखा जैसे नहीं हैं। यह नहीं मान लेना चाहिए कि सब ठीक हो गया। उससे निपटने के लिए हमें हर समय और हर तरीके से तैयार रहना चाहिए।

राष्ट्रीय सहारा हस्तक्षेप में प्रकाशित

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ले जन वाईके जोशी का इंटरव्यू भी पढ़ें

https://indianexpress.com/article/india/general-y-k-joshi-interview-indian-army-pla-in-eastern-ladakh-india-china-disengagement-7193282/

 

 

 

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