भारतीय संविधान के अनुसार देश का राष्ट्रपति भारत सरकार का प्रशासनिक
प्रमुख है, पर व्यवहार में वह अपने ज्यादातर काम सत्तारूढ़ सरकार की सलाह पर करता
है। बहुत कम काम ऐसे होते हैं, जिन्हें उनका व्यक्तिगत निर्णय कहा
जाए। हर साल संसद के बजट सत्र की शुरुआत में उनका भाषण एक तरह से सत्तारूढ़ दल की
सरकार लिखती है। सरकारी काम-काज के बाहर की सभाओं, गोष्ठियों में कई बार
राष्ट्रपति अपने निजी विचार व्यक्त करते हैं, जिन्हें बड़े गौर से सुना जाता है। ऐसी टिप्पणियों से, अध्यादेशों को
पुनर्विचार के लिए सरकार के पास वापस भेजने और कैदियों की सज़ा-माफी और कुछ
नियुक्तियों के फैसलों से ही राष्ट्रपतियों के व्यक्तित्व के फर्क का पता लगता है।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ राधाकृष्णन, डॉ ज़ाकिर हुसेन,
ज्ञानी जैल सिंह, केआर नारायण, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी
तक सभी राष्ट्रपतियों की कुछ न कुछ खास बातें याद की जाती हैं, खासतौर से तब जब वे
विदा होते हैं। 24 जुलाई को प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल के पाँच साल पूरे हो रहे
हैं। ऐसे में यह समझना बेहतर होगा कि ऐसी कौन सी बातें हैं, जिनके लिए उन्हें
विशेष रूप से याद किया जाए।
परिपक्व राजपुरुष
जैसा कि अंदेशा था, सन 2014 में त्रिशंकु संसद होती तब शायद प्रणब
मुखर्जी की समझदारी की परीक्षा होती। उन्होंने इसके लिए पहले से विशेषज्ञों से राय
भी ले रखी थी। पर ऐसा मौका आया नहीं। पर इतना जरूर है कि पिछले तीन साल में उन्होंने
कोई ऐसा फैसला नहीं किया, जिससे उन्हें विवादास्पद कहा जाए। जब भी उन्हें मौका
मिला उन्होंने अपनी राय गोष्ठियों और सभाओं में जाहिर कीं। यह एक परिपक्व राजपुरुष
(स्टेट्समैन) का गुण है।