पाकिस्तानी प्रधानमंत्री राजा परवेज की अजमेर शरीफ की निजी यात्रा
को भारतीय मीडिया ने इस तरीके से कवर किया मानो ओबामा की सरकारी यात्रा हो। प्रायः
हर चैनल में एंकर दिन भर यह सवाल पूछते रहे कि पाकिस्तान हमारे फौजियों की गर्दनें
काट रहा है और हम उनके प्रधानमंत्री को लंच दे रहे हैं। शायद श्रोताओं और दर्शकों को
यह सवाल पसंद आता है। पर पसंद क्यों आता है? इसकी एक वजह यह भी है कि यही मीडिया अपने दर्शकों, पाठकों को चुनींदा जानकारी
देता है। यह बात सरहद के दोनों ओर है। इतिहास के क्रूर हाथों ने दोनों देशों को एक-दूसरे
का दुश्मन क्यों बनाया और क्या यह दुश्मनी अनंतकाल तक चल सकती है? क्या हम एक-दूसरे के अंदेशों, संदेहों और जानकारियों से परिचित हैं? पाकिस्तान क्या वैसा ही है जैसा हम समझते हैं? और क्या
भारत वैसा ही है जैसा पाकिस्तानियों को बताया जाता है?
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में जियारत करके राजा परवेज
वापस चले गए, पर उनके आने और जाने के बीच हम इस सवाल पर ही विचार करते रहे कि उन्हें
दावत देना ठीक था या नहीं। थोड़ी देर के लिए मान लें कि उन्हें दावत न दी जाती, तो
इससे कौन सा देशहित पूरा होता। यह राजनीति का विषय क्यों बना? यदि आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार होती तो वह क्या करती? हमें नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा के सबसे सम्मानित प्रधानमंत्री अटल बिहारी
वाजपेयी को दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य बनाने का काफी श्रेय जाता है। उन्होंने
ही कहा था कि हम सब बदल सकते हैं, पर अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते।
कुछ लोगों की मान्यता है कि सरकार का अशरफ की खातिरदारी करना
शहीदों के परिजनों के जले पर नमक छिड़कना है। पर जैसा कि सलमान खुर्शीद ने कहा अतिथि
सत्कार हमारी परम्परा है। केवल हमारी परम्परा की बात नहीं यह सामान्य शिष्टाचार है।
ऐसा लगता है कि दोनों देशों की सरकारों के बीच एक प्रकार की सहमति बन गई है, जो अतीत
में नहीं थी। इसकी वजह यह है कि यह वहाँ की लोकतांत्रिक सरकार है। यह पहला मौका है
जब पाकिस्तान में पाँच साल तक लगातार एक नागरिक सरकार कायम रही। इसी 16 मार्च को वहाँ
की संसद के पाँच साल पूरे हो रहे हैं। देश के संविधान के अनुसार इसके साठ दिन के भीतर
चुनाव हो जाने चाहिए। भारत के लिए लोकतांत्रिक पाकिस्तान एक भरोसा पैदा करता है। दोनों
देश व्यापारिक रिश्तों को कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। वहाँ के कारोबारी ही जेहादी
मनोवृत्ति के खिलाफ लड़ेंगे। दुनिया में कट्टरपंथ हमेशा नहीं रहेगा। बेहतर है कि हम
भावावेशों में बहने के बजाय शांति और समझदारी से विचार करें।
जिस रोज़ राजा परवेज़ अजमेर शरीफ की यात्रा पर थे, उसी रोज पाकिस्तानी
मीडिया में यह खबर आ रही थी कि कश्मीर की सीमा के खोई रत्ता सेक्टर में भारतीय सेना
ने पाकिस्तान के 22 वर्षीय सिपाही अखलाक की ‘अमानवीय और बर्बर’ हत्या कर दी। पाकिस्तानी मीडिया के
अनुसार यह सिपाही गुरुवार की शाम को गश्त के दौरान रास्ता भटक गया था और भारतीय सेना
के हाथ लग गया। कुछ नागरिकों का हवाला देकर पाक-मीडिया ने खबर दी कि भारतीय सैनिक अखलाक
से पूछताछ करते देखे गए थे। उधर भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट राजेश कालिया ने बताया कि
हमें सीमा पर कुछ संदिग्ध गतिविधियाँ दिखाई दीं, जब हमारी सेना ने ललकारा तो उधर से
गोलियाँ चलाई गईं। जवाबी फायरिंग में वह मारा गया। पाकिस्तानी अखबार ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में प्रकाशित खबर में पाकिस्तानी
वदेश मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि दोनों देशों के बीच समझौता है कि भटक गए फौजियों
को वापस लौटा दिया जाएगा। यह इस समझौते के खिलाफ बात हुई है। पाकिस्तान के फौजी अधिकारी
अक्टूबर 2011 की एक घटना का हवाला देते हैं, जिसमें एक भटके हुए हेलिकॉप्टर को फौरन
वापस जाने दिया गया था। संयोग है कि भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह ने पाकिस्तान
की ओर से होने वाले सीमा उल्लंघनों पर कड़ी चेतावनी दी है।
जनवरी में सीमा पर दो भारतीय सैनिकों की गर्दन काटकर की गई हत्या
के बाद अचानक माहौल खराब हो गया था। भारतीय मीडिया का स्वर ऐसा था मानो अब आखिरी रास्ता
युद्ध का है। हाल में रक्षामंत्री एके एंटनी ने संसद को बताया कि सन 2012 में पाकिस्तान
की ओर से नियंत्रण रेखा के उल्लंघन की 93 घटनाएं हुईं हैं। सन 2010 से इस प्रकार की
188 घटनाएं हुईं हैं। इन घटनाओं में सन 2010 में दो और 2012 में एक भारतीय फौजी की
जान गई। जनवरी में अचानक शुरू हुआ उन्माद अचानक खत्म हो गया, क्योंकि दोनों ओर की सेनाओं
के बीच बातचीत के विवरण मीडिया को मिलने बंद हो गए। इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान
की ओर से घुसपैठ होती रहती है। कश्मीर में दोनों ओर एक-दूसरे के रिश्तेदार रहते हैं।
अक्सर इधर से उधर आना-जाना भी होता रहता है। एक दौर में माहौल बहुत खराब था, पर अब
हालात काफी सामान्य हैं। नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के जिस समझौते के उल्लंघन का
आरोप इस वक्त दोनों देशों की सेनाएं लगा रहीं हैं, वह 2003 में लागू हुआ था। उसके पहले इस इलाके के गाँवों में सीमा के दोनों ओर जीवन
दूभर हो गया था। इस समझौते के कारण दोनों ओर जीवन सामान्य हुआ है। इसे फिर से बिगाड़
कर दोनों देशों को कुछ नहीं मिलने वाला।
आम धारणा है कि भारत को पाकिस्तान अजली दुश्मन मानता है। उसका
जन्म ही दुश्मनी बरतने के लिए हुआ है। इस बात में सत्य का अंश है, पर केवल यही सत्य नहीं है। अंततः पाकिस्तान को भी बने रहना है।
केवल दुश्मनी के सहारे कोई जीवित नहीं रह सकता। सीमा के दोनों ओर ऐसी समझ वाले लोग
हैं जो मानते हैं कि आपस में मिल-जुलकर रहने से दोनों का फायदा है। पाकिस्तान की सेना
के लिए यह युद्ध का उचित समय नहीं है। वह अपने देश के पश्चिमी मोर्चे पर फँसी है। उसे
पूर्व में मोर्चा खोलकर क्या मिलेगा? यह भी कहा जा रहा है कि वहाँ की सेना नागरिक सरकार पर हावी है। यह भी सच होगा, पर सेना और नागरिक सरकार दोनों को अपने देश के हितों की कोई
न कोई समझ होगी। हाल में पाकिस्तानी सेना की नई अवधारणाएं बदलीं हैं। अब वे मानते हैं
कि भारत नम्बर 1 दुश्मन नहीं है। इसलिए सारे अनुमान हवा में नहीं लगाए जाने चाहिए।
पाकिस्तान अपने अंतर्विरोधों से घिरा हुआ है। हमें उसे इन अंतर्विरोधों का समाधान खोजने
में मदद करनी चाहिए।
पिछले हफ्ते एनडीटीवी पर वॉक द टॉक प्रोग्राम में शेखर गुप्ता
ने पाकिस्तान के वॉशिंगटन स्थित पूर्व राजदूत हुसेन हक्कानी से बातचीत की। हुसेन हक्कानी
उदारवादी-आधुनिक पाकिस्तानी हैं। दो साल पहले जब वे राजदूत थे, उनपर आरोप लगा कि उन्होंने
अमेरिकी सेनाओं के अध्यक्ष माइकेल मुलेन को चिट्ठी लिखी थी कि वे पाकिस्तान में हस्तक्षेप
करें, क्योंकि वहाँ सेना सत्ता अपने हाथ में लेना चाहती है। इस चिट्ठी का आरोप लगने
के बाद उन्हें अपने पद को छोड़ना पड़ा। बहरहाल शेखर गुप्ता से हक्कानी ने कहा कि भारत
के लोगों को मैं बताना चाहूँगा कि समूचा पाकिस्तान एक जैसा ही नहीं है। यह जेहादी देश
भी नहीं है। हाँ वहाँ काफी जेहादी हैं, पर वे इसलिए सक्रिय हैं, क्योंकि चुनाव नहीं
जीत पाते हैं। हुसेन हक्कानी मानते हैं कि पाकिस्तानी लोकतंत्र अपनी शक्ल ले रहा है।
उनका यह भी मानना है कि पाकिस्तान को अपने सैद्धांतिक आधार को बदलना होगा। उसे लड़ाइयाँ
लड़ने और जीतने की धारणा त्याग कर अपनी जनता के हितों के बारे में सोचना चाहिए। बहरहाल
जिस रोज राजा परवेज अजमेर शरीफ की यात्रा पर थे उसी रोज लाहौर की एक ईसाई बस्ती में
कट्टरपंथियों ने आग लगा दी। लगभग हर रोज़ देश के किसी न किसी इलाके में धमाके हो रहे
हैं। पर यह आगज़नी और धमाकेबाज़ी आम जनता का काम नहीं है। और न यह बात उसे पसंद है।
इसका पता आपको देश के आम चुनाव में लगेगा। इंतज़ार कीजिए बदलाव का।
सी एक्सप्रेस में प्रकाशित
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