Sunday, December 19, 2010

भारत-चीन और पाकिस्तान




आज के इंडियन एक्सप्रेस में सी राजमोहन की खबर टाप बाक्स के रूप में छपी है। इसमें बताया गया है कि चीन अब भारत-चीन सीमा की लम्बाई 3500 किमी के बजाय 2000 किमी मानने लगा है। यानी उसने जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह पाकिस्तान का हिस्सा मान लिया है। चीनी नीतियाँ जल्दबाज़ी में नहीं बनतीं और न उनकी बात में इतनी बड़ी गलती हो सकती है। स्टैपल्ड वीजा जारी करने क पहले उन्होंने कोई न कोई विचार किया ही होगा। इधर आप ध्यान दें कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हर तीन या चार महीने में चीन जा रहे हैं। फौज के अध्यक्ष जनरल कियानी भी चीन का दौरा कर आए हैं। स्टैपल्ड वीजा का मामला उतना सरल नहीं है जितना सामने से नज़र आता है।

हालांकि वेन जियाओबाओ ने अपने तईं इस मामले पर विचार का आश्वासन दिया है, पर उम्मीद नहीं कि चीन आसानी से अपनी किसी नीति को बदलेगा। चीन का थिंक टैंक किस दिशा मे सोच रहा है कहना मुश्किल है, पर भारत को चीन के मामले में अब कठोर बनना चाहिए।

नाथूला सीमा
अब तक का अनुभव है कि भारत किसी वजह से चीन से दबता रहा है। इधर रुख बदला है। एक तो हमने चीन के दबाव में नोबेल शांति पुरस्कार समारोह का बहिष्कार नहीं किया। दूसरे इस बार भारत-चीन संयुक्त घोषणा में तिब्बत के संदर्भ में एक चीन की बात नहीं कही और तीसरे दलाई लामा को तवांग जाने की अनुमति दी। सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ बी रामन ने भी इस बात का उल्लेख किया है। हाल में भारत ने जापान और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ रिश्ते सुधारे हैं। यह ठीक है कि हमें अमेरिका का पिछलग्गू नहीं बनना चाहिए, पर चीन को संतुलित रखने के लिए हमें अमेरिका की और अमेरिका को हमारी जरूरत है। चीन की भावी योजनाओं की ओर हम ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनकी योजना अमेरिका से ज्यादा बड़ी दादागिरी की है। 

वेन जियाओबाओ ने पाकिस्तान जाकर बीस अरब डालर से ज्यादा के समझौते किए हैं। पाक मीडिया ने इस बात को रेखांकित किया है कि वेन जियाओबाओ ने मुम्बई हमले का जिक्र नहीं किया। इस तरह की तमाम बातें हमें सोचने को मजबूर करतीं हैं। 

नीचे मैं इंग्लैंड के अखबार टेलीग्राफ में दो साल पहले प्रकाशित एक लेख उद्धृत कर रहा हूँ। इसके अनुसार चीन के आर्थिक हित महत्वपूर्ण हैं। भारत के हाथ में चीनी सुरक्षा की चाभी है। भारतीय नौसेना चाहे तो चीन को परेशान कर सकती है। 

By David Blair in New Delhi 3:11PM BST 14 Sep 2008
Both countries are increasing their defence budgets, with India's military spending rising by an average of 18 per cent in each of the past three years and now exceeding £15?billion.
If these tensions were ever to boil over into war, India would probably exploit a crucial advantage. Its navy, which eventually plans to deploy three aircraft carriers and two nuclear-powered attack submarines, would probably seek to close the Strait of Malacca to Chinese shipping through an increased presence. By cutting off the supply of oil, this could cripple China and prove the decisive move in any conflict.
"The most likely flashpoint would be along the border, but ultimately the decision in any war would be on the ocean," said Sheru Thapliyal, a retired Indian general in New Delhi who once commanded a division on the frontier with China.
"The Indian Ocean is where we could use our advantage to the maximum. If you want to choke China, the only way you can choke China is by using naval power."
With China's key vulnerability in mind, India has constructed a naval base within striking distance of the Strait of Malacca at Port Blair on the Andaman Islands. China has countered by installing military facilities of its own, complete with electronic monitoring and eavesdropping devices, on the nearby Coco Islands. These specks of land belong to Burma, a long-standing ally of China.
Beijing is now taking other steps to address what President Hu Jintao has called the country's "Malacca dilemma". With hugely ambitious infrastructure projects, China hopes to bypass the Strait of Malacca and eventually end its dependence on this vulnerable waterway for energy supplies.
On India's western flank, China is helping to build a new port in the Pakistani town of Gwadar. Thrust together by their shared rivalry with India, Pakistan and China are old allies.
Gwadar could eventually provide a base for Chinese warships. Or it may be used as the starting point for a pipeline travelling through Pakistan and carrying oil and gas into China itself. If so, Beijing could import energy from the Middle East using this route, bypassing the Strait of Malacca.
The same rationale may explain China's actions on India's eastern flank. A new port and pipeline terminal are being constructed at Kyauk Phyu on Burma's island of Ramree. This will be the starting point for a 900-mile pipeline, able to carry oil directly to Kunming, the capital of Yunnan province in southern China.
"They know that we could attempt to choke them completely and that's why they want these ports," said Vijay Kapoor, a retired general in New Delhi and former commandant of the Indian Army War College. "Their aim in all of this is to prevent us from being able to choke them."
China's moves are being closely watched in India, where the military establishment fears that Beijing's plans in Pakistan and Burma amount to a deliberate strategy of "encirclement". If China's navy acquires permanent bases in the Indian Ocean, tension will grow.
But Indian diplomats tend to believe these fears are exaggerated. They believe that China is motivated by nothing more than securing its economic boom and taking normal precautions against unforeseeable events.




चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स में पाकिस्तानी प्रशंसा में लिखा गया लेख

चीनी मेजर जनरल लुओ युआन के लेख पर एक चीनी वैबसाइट के डिस्कशन फोरम से आपको पता लगेगा कि वहाँ का माहौल क्या है

2 comments:

  1. अब तो यही लगता है कि कमी भारत की ही नीतियों में हैं। भारत के न तो पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, श्रीलंका से अच्छे संबंध हैं, और न ही कोई विश्वसनीय वैश्विक मित्र है। भूटान और म्यामार से भी संबंध खराब ही चल रहे हैं। केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री के रूप में जब तक कोई जन नेता नहीं आता, तब तक शायद यूं ही घरेलू लूट में ही सारा समय बर्बाद होगा। वैश्विक स्तर पर भी किसी देश में भारत की भूमिका खत्म हो चुकी है। ऐसे में अगर चीन लाभ उठाता है तो भारत शायद कुछ करने की स्थिति में नहीं रहेगा।

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  2. .चीनी प्रधान मंत्री तो झूठ बोल गए ,सच्चाई यह है कि,अतीत में भी चीनी शासकों के साथ भारत के सम्बन्ध मधुर नहीं थे.यह तो हिमालय है जिसने तब हमें बचाए रखा.अब तो वह भी बाधा नहीं रहा.जब नेहरु जी ही धोखा खा चुके तो अब के इन लोगों की बिसात ही किया है.अगर फिर विश्व युद्ध हुआ तो चीन ही उसका हेतु होगा ,यह ध्यान रख कर ही विदेश नीति बनानी चाहिए.

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