Saturday, November 25, 2017

‘ग्रहण’ से बाहर निकलती कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी के भीतर उत्साह का वातावरण है। एक तरफ राहुल गांधी के पदारोहण की खबरें हैं तो दूसरी ओर गुजरात में सफलता की उम्मीदें हैं। मीडिया की भाषा में राहुल गांधी ने फ्रंटफुट पर खेलना शुरू कर दिया है।  उनके भाषणों को पहले मुक़ाबले ज़्यादा कवरेज मिल रही है। अब वे हँसमुख, तनावमुक्त और तेज-तर्रार नेता के रूप में पेश हो रहे हैं। उनके रोचक ट्वीट आ रहे हैं। उनकी सोशल मीडिया प्रभारी दिव्य स्पंदना के अनुसार कि ये ट्वीट राहुल खुद बनाते हैं।
राहुल के पदारोहण के 14 दिन बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम आएंगे। ये परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गए तो खुशियाँ डबल हो जाएंगी। और नहीं आए तो? कांग्रेस पार्टी हिमाचल में हारने को तैयार है, पर वह गुजरात में सफलता चाहती है। सफलता माने स्पष्ट बहुमत। पर आंशिक सफलता भी मिली तो कांग्रेस उसे सफलता मानेगी। कांग्रेस के लिए ही नहीं बीजेपी के नजरिए से भी गुजरात महत्वपूर्ण है। वह आसानी से इसे हारना नहीं चाहेगी। पर निर्भर करता है कि गुजरात के मतदाता ने किस बात का मन बनाया है। गुजरात के बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण राज्य 2018 की लाइन में हैं। ये सभी चुनाव 2019 के लिए बैरोमीटर का काम करेंगे।

Friday, November 24, 2017

राहुल के आने से क्या बदलेगी कांग्रेस?

अब जब राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष बनना तय हो गया है, पहला सवाल जेहन में आता है कि इससे भारतीय राजनीति में क्या बड़ा बदलाव आएगा? क्या राहुल के पास वह दृष्टि, समझ और चमत्कार है, जो 133 साल पुरानी इस पार्टी को मटियामेट होने से बचा ले? पिछले 13 साल में राहुल की छवि बजाय बनने के बिगड़ी ज्यादा है. क्या वे अपनी छवि को बदल पाएंगे?
सितम्बर 2012 में प्रतिष्ठित ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने द राहुल प्रॉब्लमशीर्षक आलेख में लिखा, उन्होंने नेता के तौर पर कोई योग्यता नहीं दिखाई है. वे मीडिया से बात नहीं करते, संसद में भी अपनी आवाज़ नहीं उठाते हैं. उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी कैसे माना जाए? यह बात आज से पाँच साल पहले लिखी गई थी. इस बीच राहुल की विफलता-सूची और लम्बी हुई है.

Monday, November 20, 2017

खतरनाक हैं अभिव्यक्ति पर हमले

संजय लीला भंसाली की पद्मावती पहली फिल्म नहीं है, जो विवाद का विषय बनी हो. इस फिल्म का राजपूत संगठन विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर फिल्म को बनाया गया है. फिल्मों, साहित्यिक कृतियों, नाटकों और अभिव्यक्ति के दूसरे माध्यमों का विरोध यदि शब्दों और विचारों तक सीमित रहे तो उसे स्वीकार किया जा सकता है. पर यदि विरोध में हिंसा का तत्व शामिल हो जाए, तो सोचना पड़ता है कि हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं या पीछे जा रहे हैं. विरोध के इस तरीके के कारण फिल्म की ऐतिहासिकता का सवाल पीछे चला गया है. चिंता का विषय यह है कि जैसे-जैसे हम आधुनिक होते जा रहे हैं, हमारे तौर-तरीके मध्य युगीन होते जा रहे हैं. फ्रांस की कार्टून पत्रिका 'शार्ली एब्दो' पर हमला गलत था, तो इस हमले की धमकी भी गलत है. 

Sunday, November 19, 2017

मूडीज़ अपग्रेड, बेहतरी का इशारा

नोटबंदी और जीएसटी कदमों के कारण बैकफुट पर आई मोदी सरकार को मूडीज़ अपग्रेड से काफी मदद मिलेगी। इसके पहले विश्व बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत 30 पायदान की लंबी छलांग के साथ 100वें स्थान पर पहुंच गया था। यह पहला मौका था, जब भारत ने इतनी लंबी छलांग लगाई। विशेषज्ञों की मानें तो कारोबार करने के मामले में भारत की रैंकिंग में सुधार से कई क्षेत्र को लाभ होगा। हालांकि मूडीज़ रैंकिंग का कारोबारी सुगमता रैंकिंग से सीधा रिश्ता नहीं है, पर अंतरराष्ट्रीय पूँजी के प्रवाह के नजरिए से रिश्ता है। देश की आंतरिक राजनीति के लिहाज से भी यह खबर महत्वपूर्ण है, क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर सरकार पर हो रहे प्रहार अब हल्के पड़ जाएंगे।
मोदी सरकार आर्थिक नीति के निहायत नाजुक मोड़ पर खड़ी है। अगले हफ्ते अर्थ-व्यवस्था की दूसरी तिमाही की रिपोर्ट आने की आशा है। पिछली तिमाही में आर्थिक संवृद्धि की दर गिरकर 5.7 फीसदी हो जाने पर विरोधियों ने सरकार को घेर लिया था। उम्मीद है कि इस तिमाही से गिरावट का माहौल खत्म होगा और अर्थ-व्यवस्था में उठान आएगा। ये सारे कदम जादू की छड़ी जैसे काम नहीं करेंगे। मूडीज़ ने भी  भारत को ऋण और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ऊंचे अनुपात पर चेताया है। उसने यह भी कहा है कि भूमि और श्रम सुधारों का एजेंडा अभी पूरा नहीं हुआ है।

Saturday, November 18, 2017

चुनाव के अलावा कुछ और भी जुड़ा है अयोध्या-पहल के साथ

अयोध्या मसले पर अचानक चर्चा शुरू होने के पीछे कारण क्या है? पिछले कुछ साल से यह मसला काफी पीछे चला गया था। इस पर बातें केवल औपचारिकता के नाते ही की जाती थीं। सन 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद से न्याय व्यवस्था ने भी इस दिशा में सक्रियता कम कर दी थी। तब यह अचानक सामने क्यों आया?
अयोध्या पर चर्चा की टाइमिंग इसलिए महत्वपूर्ण है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव सामने हैं। गुजरात में कांग्रेस पार्टी ने दलितों, ओबीसी और पाटीदारों यानी हिन्दू जातियों के अंतर्विरोध को हथियार बनाया है, जिसका सहज जवाब है हिन्दू अस्मिता को जगाना। गुजरात में बीजेपी दबाव में आएगी तो वह ध्रुवीकरण के हथियार को जरूर चलाएगी। पर अयोध्या की गतिविधियाँ केवल चुनावी पहल नहीं लगती।
भाजपा का ब्रह्मास्त्र
सन 2018 में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भी होंगे। कर्नाटक में कांग्रेस ने कन्नड़ अस्मिता और लिंगायतों का सहारा लेना शुरू कर दिया है। इसलिए लगता है कि बीजेपी अपने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करने जा रही है। यह बात आंशिक रूप से सच हो सकती है। शायद चुनाव में भाजपा को मंदिर की जरूरत पड़ेगी, पर यह केवल वहीं तक सीमित नहीं लगता। हाँ इतना लगता है कि इस अभियान के पीछे भाजपा का हाथ भी है, भले ही वह इससे इनकार करे।