Thursday, November 16, 2017

क्या अयोध्या विवाद का समाधान करेंगे श्री श्री?

नज़रिया: राम मंदिर पर श्री श्री की पहल के पीछे क्या है?
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
श्री श्री रविशंकर की पहल के कारण मंदिर-मस्जिद मसला एक बार फिर से उभर कर सामने आया है. देखना होगा कि इस पहल के समांतर क्या हो रहा है. और यह भी कि इस पहल को संघ और सरकार के शीर्ष नेतृत्व का समर्थन है या नहीं.
आमतौर पर ऐसी कोशिशों के वक्त चुनाव की कोई तारीख़ क़रीब होती है या फिर 6 दिसम्बर जिसे कुछ लोग 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाते हैं और कुछ 'यौमे ग़म.'
संयोग से इस वक्त एक तीसरी गतिविधि और चलने वाली है.

कई कोशिशें हुईं, लेकिन नतीजा नहीं निकला
पिछले डेढ़ सौ साल से ज़्यादा समय में कम से कम नौ बड़ी कोशिशें मंदिर-मस्जिद मसले के समाधान के लिए हुईं और परिणाम कुछ नहीं निकला. पर इन विफलताओं से कुछ अनुभव भी हासिल हुए हैं.
हल की तलाश में श्री श्री अयोध्या का दौरा कर रहे हैं. उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मुलाक़ात भी की है.
पृष्ठभूमि में इस मसले से जुड़े अलग-अलग पक्षों से उनकी मुलाक़ात हुई है. कहना मुश्किल है कि उनके पीछे कोई राजनीतिक प्रेरणा है या नहीं.

गुजरात चुनाव और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
गुजरात में कांग्रेस पार्टी ने दलितों, ओबीसी और पाटीदारों यानी हिन्दू जातियों के अंतर्विरोध को हथियार बनाया है जिसका सहज जवाब है 'हिन्दू अस्मिता' को जगाना.
गुजरात में बीजेपी दबाव में आएगी तो वह ध्रुवीकरण के हथियार को ज़रूर चलाएगी. पर अयोध्या की गतिविधियाँ केवल चुनावी पहल नहीं लगती.
गुजरात के चुनाव के मुक़ाबले ज़्यादा बड़ी वजह है सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 5 दिसम्बर से शुरू होने वाली सुनवाई. इलाहाबाद हाईकोर्ट के सन् 2010 के फ़ैसले के सिलसिले में 13 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं. अब इन पर सुनवाई होगी.
कुछ पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि पार्टी 2019 के पहले मंदिर बनाना चाहती है. कुछ महीने पहले सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया था, राम मंदिर का हल नहीं निकला तो अगले साल, यानी 2018 में अयोध्या में वैसे ही राम मंदिर बना दिया जाएगा.

Monday, November 13, 2017

‘स्मॉग’ ने रेखांकित किया एनजीटी का महत्व

उत्तर भारत और खासतौर से दिल्ली पर छाए स्मॉग के कारण कई तरह के असमंजस सामने आए हैं. स्मॉग ने प्रशासनिक संस्थाओं की विफलता को साबित किया है, वहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के महत्व को रेखांकित भी किया है.
अफरातफरी में दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों में छुट्टी कर दी गई. फिर दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन स्कीम को फिर से लागू करने की घोषणा कर दी. यह स्कीम भी रद्द हो गई, क्योंकि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने कुछ ऐसी शर्तें रख दीं, जिनका पालन करा पाना मुश्किल होता.  
जल, जंगल और जमीन
सन 2010 में स्थापना के बाद से यह न्यायाधिकरण देश के महत्वपूर्ण पर्यावरण-रक्षक के रूप से उभर कर सामने आया है. इसके हस्तक्षेप के कारण उद्योगों और कॉरपोरेट हाउसों को मिलने वाली त्वरित अनुमतियों पर लगाम लगी है. खनन और प्राकृतिक साधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगी है.

Sunday, November 12, 2017

प्रदूषण से ज्यादा उसकी राजनीति का खतरा


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली में सालाना 10,000 से 30,000 मौतें होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 13 भारत के शहर हैं। इनमें राजधानी दिल्ली सबसे ऊपर है। उस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की हवा में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 की मात्रा प्रति घन मीटर 150 माइक्रोग्राम है। पर पिछले बुधवार को एनवायरनमेंट पल्यूशन बोर्ड के मुताबिक दिल्ली की हवा में प्रति घन मीटर 200 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 प्रदूषक तत्व दर्ज किए गए। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की सेफ लिमिट से 8 गुना ज्यादा है। 25 माइक्रोग्राम को सेफ लिमिट मानते हैं।

सन 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे ने दुनियाभर के 1,600 देशों में से दिल्ली को सबसे ज्यादा दूषित करार दिया था। बार-बार लगातार इन बातों की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही है। सवाल है कि हमने इस सिलसिले में किया क्या है? पिछले कुछ दिन से एक तरफ दिल्ली में प्रदूषण का अंधियारा फैला तो दूसरी तरफ सरकारों और सरकारी संगठनों की बयानबाज़ी होने लगी। समस्या प्रदूषण है या उसकी राजनीति? यह सिर्फ इस साल की समस्या नहीं है और आने वाले दिनों में यह बढ़ती ही जाएगी। क्या हम एक-दूसरे पर दोषारोपण करके इसका समाधान कर लेंगे?

Wednesday, November 8, 2017

नोटबंदी के सभी पहलुओं को पढ़ना चाहिए


करेंट सा झटका 


इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड एच थेलर को दिया गया है. उनका ज्यादातर काम सामान्य लोगों के आर्थिक फैसलों को लेकर है. अक्सर लोगों के फैसले आर्थिक सिद्धांत पर खरे नहीं होते. उन्हें रास्ता बताना पड़ता है. इसे अंग्रेजी में नज कहते हैं. इंगित या आश्वस्त करना. पिछले साल जब नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की, तब प्रो थेलर ने इस कदम का स्वागत किया था. जब उन्हें पता लगा कि 2000 रुपये का नोट शुरू किया जा रहा है, तो उन्होंने कहा, यह गलत है. नोटबंदी को सही या गलत साबित करने वाले लोग इस बात के दोनों मतलब निकाल रहे हैं.


सौ साल पहले हुई बोल्शेविक क्रांति को लेकर आज भी अपने-अपने निष्कर्ष हैं.  वैसे ही निष्कर्ष नोटबंदी को लेकर हैं. वैश्विक इतिहास का यह अपने किस्म का सबसे बड़ा और जोखिमों के कारण सबसे बोल्ड फैसला था. अरुण शौरी कहते हैं कि बोल्ड फैसला आत्महत्या का भी होता है. पर यह आत्महत्या नहीं थी. हमारी अर्थव्यवस्था जीवित है. पचास दिन में हालात काबू में नहीं आए, पर आए. 

Sunday, November 5, 2017

पटेल को क्यों भूली कांग्रेस?

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के कम से कम तीन बड़े नेताओं को खुले तौर पर अंगीकार किया है। ये तीन हैं गांधी, पटेल और लाल बहादुर शास्त्री। मोदी-विरोधी मानते हैं कि इन नेताओं की लोकप्रियता का लाभ उठाने की यह कोशिश है। बीजेपी के नेता कहते हैं कि गांधी ने राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को भंग कर देने की सलाह दी थी। बीजेपी की महत्वाकांक्षा है कांग्रेस की जगह लेना। इसीलिए मोदी बार-बार कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं। आर्थिक नीतियों के स्तर पर दोनों पार्टियों में ज्यादा फर्क भी नहीं है। पिछले साल अरुण शौरी ने कहीं कहा था, बीजेपी माने कांग्रेस+गाय।