Thursday, May 26, 2016

मोदी सरकार @दो साल


 Prime Minister Narendra Modi and Bharatiya Janata Party President Amit Shah. Credit: Reuters.
मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर राजनीति, प्रशासन और अर्थ-व्यवस्था को एकसाथ आँका जाएगा। राजनीति का मतलब केवल चुनावों में प्रदर्शन तक सीमित नहीं है। मोदी सरकार की पिछले दो साल में सबसे बड़ी विफलता है अल्पसंख्यकों के मन में बैठा भय। एक बड़ा तबका मानता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छिपा एजेंडा सामने आ रहा है। मुसलमान वोटर मोदी के नेतृत्व से नाराज है। पार्टी नेतृत्व ने स्थिति को सुधारने की कोशिश भी नहीं की है। बेशक बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़ी पार्टी है। उसे मुसलमानों का एकमुश्त समर्थन मिलने की उम्मीद करनी भी नहीं है, पर देश की प्रशासनिक व्यवस्था हाथ में लेने के बाद उसकी जिम्मेदारी है कि वह मुसलमानों के मन में बैठे डर को दूर करे। 

मोदी सरकार ने 'बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ', 'स्वच्छ भारत', 'मेक इन इंडिया' और 'सबका साथ-सबका विकास' जैसे नारों को लेकप्रिय बनाया। हमें देश को इन भावनाओं से जोड़ने की जरूरत है और इन बातों में नारों की भूमिका होती है। गांधी से लेकर माओ जे दुंग ने अतीत में नारों की मदद से ही अपने सामूहिक अभियान छेड़े थे। पर नारों को जमीन पर व्यावहारिक रूप से उतरना भी चाहिए। वे केवल प्रचारात्मक नारे नहीं हो सकते। जनता की उनमें भागीदारी होनी चाहिए।

मोदी सरकार बनने के बाद केन्द्र सरकार के सचिवालय में काम बढ़ा है। तमाम मंत्री अपना पूरा समय दफ्तरों में लगा रहे हैं। विदेश, बिजली, रेलवे, रक्षा, विदेश व्यापार, उद्योग, परिवहन और इसी तरह के कुछ दूसरे मंत्रालयों में काफी अच्छा काम हुआ है। बड़े नीतिगत बदलाव भी हुए हैं। संयोग से वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के लिए खराब समय चल रहा है। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती वित्त मंत्रालय के सामने है। आर्थिक उदारीकरण का काम धीमी गति से चल रहा है। यह गति यूपीए के शासन में भी धीमी थी। देश की राजनीतिक ताकतें उदारीकरण का मतलब अपने-अपने तरीके से निकाल रही हैं। मोदी सरकार और उससे पहले मनमोहन सरकार की कोशिश देश में पूँजी निवेश के माहौल को बेहतर बनाने की थी। मनमोहन सरकार को भी बीजेपी के अलावा अपनी ही पार्टी के विरोध का सामना करना होता था।

Monday, May 23, 2016

क्षेत्रीय क्षत्रप क्या बीजेपी के खिलाफ एक होंगे?

इस चुनाव को बंगाल में दीदी और तमिलनाडु में अम्मा की जीत के कारण याद रखा जाएगा। इनके अलावा केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन को उनकी छवि के कारण पहचाना जाएगा। कुछ नाम और हैं जो कल तक राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा जाने-पहचाने नहीं हुए थे। इनमें हिमंत विश्व सरमा, सर्बानंद सोनोवाल, पी विजयन और ओ राजगोपाल शामिल हैं।

Sunday, May 22, 2016

और कितनी फज़ीहत लिखी है कांग्रेस की किस्मत में?

पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने एक ट्वीट में कहा कि बड़ी सर्जरी की जरूरत है। उन्होंने कहीं यह भी कहा कि गांधी परिवार की वंशज प्रियंका गांधी के राजनीति में आने से कांग्रेसजन को बेहद खुशी होगी। उनमें जननेता के तौर पर उभरने की क्षमता है। अखबारों में उनका यह बयान भी छपा है कि ये चुनाव परिणाम पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की विफलता को परिलक्षित नहीं करते। तीनों बातें अंतर्विरोधी हैं। तीनों को एकसाथ मिलाकर पढ़ें तो लगता है कि पार्टी के अंतर्विरोधों के खुलने की घड़ी आ रही है। नए और पुराने नेतृत्व का टकराव नजर आने लगा है। समय रहते इसे सँभाला नहीं गया तो असंतोष खुलकर सामने आएगा।

Saturday, May 21, 2016

बीजेपी के प्रभा मंडल का विस्तार

इस चुनाव को बंगाल में ममता दीदी की विस्मयकारी और जयललिताअम्मा की अविश्वसनीय जीत के कारण याद रखा जाएगा। पर इन चुनाव परिणामों की बड़ी तस्वीर है बीजेपी के राष्ट्रीय फुटप्रिंट का विस्तार। उसके लिए पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार खुल गया है। वह असम की जीत को देशभर में प्रचारित करेगी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पूरे परिणाम आने के पहले ही इस बात को जाहिर भी कर दिया। असम के बाद पार्टी ने बंगाल में पहले से ज्यादा मजबूती के साथ पैर जमाए हैं। और केरल में उसने प्रतीकात्मक, पर प्रभावशाली प्रवेश किया है।

Friday, May 20, 2016

असम में कांग्रेस का 'सेल्फ गोल'

केरल में 'एंटी इनकम्बैंसी' थी, पर असम में कांग्रेस का सेल्फ गोल भी था. गुरुवार को चुनाव का ट्रेंड आने के थोड़ी देर बाद ही राहुल गांधी के दफ्तर ने ट्वीट किया, हम विनम्रता के साथ जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं. चुनाव जीतने वाले दलों को मेरी शुभकामनाएं. एक और ट्वीट में उन्होंने कहा, पार्टी लोगों का भरोसा जीतने तक कड़ी मेहनत करती रहेगी. इस औपचारिक सदाशयता को अलग रखते हुए सवाल पूछें कि अब पार्टी के सामने विकल्प क्या हैं? वह ऐसा क्या करेगी, जिससे लोगों का भरोसा दोबारा जीता जा सके. पाँच राज्यों की विधानसभाओं के परिणामों का निहितार्थ अगले साल होने वाले चुनावों में नजर आएगा.