Tuesday, June 11, 2024

बीजेपी का गठबंधन-चातुर्य, जिसने उसे राष्ट्रीय-विस्तार दिया


जवाहर लाल नेहरू के बाद देश में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है. एनडीए के गठबंधन में बनी यह पाँचवीं सरकार है. यह भी एक कीर्तिमान है.

इसके पहले दो बार यूपीए की, एक बार नेशनल फ्रंट (1989) की और एक बार युनाइटेड फ्रंट (1996) की सरकार बन चुकी है. 1977 की जनता पार्टी भी एक तरह का गठबंधन था, जो देश में पहली गैर-कांग्रेस सरकार थी.

फिराक गोरखपुरी की पंक्ति है, ‘सरज़मीने हिंद पर अक़वामे आलम के फ़िराक़/ काफ़िले बसते गए हिन्दोस्तां बनता गया.’ भारत को उसकी विविधता और विशालता में ही परिभाषित किया जा सकता है.

भारत हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत है, पर लोकतंत्र नई अवधारणा है. इन दोनों का मिलाप इस वक्त हो रहा है. देश के सामाजिक-जीवन में इतनी विविधता है कि दाद देनी पड़ती है, उस धागे को जिसने इसे हजारों साल से बाँधकर रखा है. उसी धागे के तार देश की राजनीति को जोड़ते हैं, जो राजनीतिक गठबंधनों के रूप में हमारे सामने है.

Friday, June 7, 2024

मोदी 3.0 की विदेश और रक्षा-नीति पर वैश्विक-दृष्टि

 


लोकसभा चुनावों के परिणामों पर भारतीय-विशेषज्ञों की तरह विदेशियों की निगाहें भी लगी हुई हैं. वे समझना चाहते हैं कि देश में गठबंधन-सरकार बनने से क्या फर्क पड़ेगा. इससे क्या विदेश-नीति पर कोई असर पड़ेगा? क्या देश के आर्थिक-सुधार कार्यक्रमों में रुकावट आएगी? पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा वगैरह.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, नरेंद्र मोदी के सत्ता के बीते 10 सालों में कई पल हैरत से भरे थे लेकिन जो हैरत मंगलवार की सुबह मिली वो बीते 10 सालों से बिल्कुल अलग थी क्योंकि नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी पार्टी बहुमत नहीं ला पाई. इसके साथ ही 2014 के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वह छवि मिट गई कि 'वे अजेय' हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, भारत के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने ध्वस्त कर दिया है. उनकी अजेय छवि भी ख़त्म की है.

इस तरह की टिप्पणियों की इन अखबारों से उम्मीद भी थी, क्योंकि पिछले दस साल से ये मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं. पर महत्वपूर्ण सवाल दूसरे हैं. सवाल यह है कि चुनाव के बाद हुए राजनीतिक-बदलाव का भविष्य पर असर कैसा होगा. सरकार को किसी नई नीति पर चलने या बनाने की जरूरत नहीं है, पर क्या वह आसानी से फैसले कर पाएगी

Thursday, June 6, 2024

बीजेपी के नाम ‘अमृतकाल’ पहला कटु-संदेश


भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए 400 पारनहीं कर पाई, यह उसकी विफलता है, पर व्यावहारिक सच यह भी है कि उसे सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत मिल गया है. जवाहर लाल नेहरू की तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी.  

दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन ने बीजेपी की अपराजेयता को एक झटके में ध्वस्त किया है. इससे पार्टी और उसके नेतृत्व का रसूख कम होगा. अमृतकाल का यह कड़वा अनुभव है. चुनाव-प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि उन्हें नेपथ्य से आवाजें सुनाई पड़ रही हैं. 

पहली नज़र में जो भी परिणाम आए हैं, उनके अनुसार केंद्र में एनडीए की सरकार बन जाएगी, पर इस जीत में भी कई किस्म की हार छिपी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन अपनी सफलता से खुश भले ही हो ले, पर इसमें उसकी  विफलता छिपी है. 295+ का उनका दावा भी सही साबित नहीं हुआ. और बीजेपी के पास अगले पाँच साल के लिए राजदंड आ गया है.

मतदाता का असमंजस

इस चुनाव में बीजेपी किसी सकारात्मक संदेश को जनता तक पहुँचाने में कामयाब नहीं हुई, पर इंडिया गठबंधन ने जिस नकारात्मक आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई थी, वह भी कामयाब नहीं हुई. उनका अभियान नरेंद्र मोदी हटाओ तक ही सीमित था. उन्होंने खुद जीत हासिल नहीं कि, बस मोदी के नेतृत्व को नुकसान पहुँचाया है.  

खबरें हैं कि वे भी जुगाड़ लगा कर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हं, पर इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी. ये चुनाव-परिणाम मतदाता की उम्मीदों से ज्यादा उसके असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं.

प्रकट होने लगे गठबंधन-राजनीति के शुरुआती लक्षण


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ज्यादातर नेता कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। ऐसी बातों की पुष्टि नहीं हो पाती है, पर ये बातें सहज सी लगती हैं। बहरहाल अंततः समझौते होंगे, क्योंकि गठबंधनों में ऐसा होता ही है। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

दिल्ली में एनडीए और इंडिया की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी?  आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।  

गठबंधन राजनीति का टाइम शुरू होता है अब


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं और उसके साथ ही गठबंधन की राजनीति के लक्षण भी प्रकट होने लगे हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और एकनाथ शिंदे ने सरकार को अपना समर्थन दे दिया है, साथ ही अपनी-अपनी माँगों की सूची भी आगे कर दी है। ज्यादातर कम से कम एक कैबिनेट मंत्री का पद और दूसरी चीजें माँग रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू संभवतः लोकसभा अध्यक्ष का पद भी माँग रहे हैं। अंततः समझौते होंगे। बीजेपी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में ही रखना चाहेगी, क्योंकि इस व्यवस्था में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

दिल्ली में एनडीए और इंडिया की बैठकें हुई हैं। खबरें हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी पर प्रधानमंत्री पद का चारा डाल रही है। बाहर से समर्थन देने के वायदे के साथ, पर ऐसी कौन सी मछली है, जो इस चारे पर मुँह मारेगी?  आप पूछ सकते हैं कि कांग्रेस के पास ही ऐसा कौन सा संख्या बल है, जो बाहर से समर्थन देकर किसी को प्रधानमंत्री बनवा देगा? और कांग्रेस ऐसी कौन सी परोपकारी पार्टी है, जो किसी को निस्वार्थ भाव से प्रधानमंत्री बना देगी? बेशक वजह तो देश बचाने की होगी, पर याद करें अतीत में कांग्रेस पार्टी के इस चारे के चक्कर में चौधरी चरण सिंह, एचडी देवेगौडा, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर जैसे राजनेता आ चुके हैं। उनकी तार्किक-परिणति क्या हुई, यह भी आपको पता है।