Wednesday, March 20, 2024

नागरिकता कानून पर देशी-विदेशी आपत्तियों के निहितार्थ


भारत के नागरिकता कानून को लेकर देश और विदेश दोनों जगह प्रतिक्रियाएं हुई हैं. हालांकि ये प्रतिक्रियाएं उतनी तीखी नहीं हैं, जितनी 2019 में कानून के संशोधन प्रस्ताव के संसद से पास होने के समय और उसके बाद की थीं, पर उससे जुड़े सवाल तकरीबन वही हैं, जो उस समय थे.

उस समय देश में विरोध प्रदर्शनों का अंत दिल्ली दंगों की शक्ल में हुआ था, जिनमें 53  लोगों की मौत हुई थी. उसके बाद ही उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चलाए गए. तब की तुलना में आज देश के भीतर माहौल अपेक्षाकृत शांत है.

मंगलवार 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई और अदालत ने तत्काल इस कानून के कार्यान्वयन पर स्थगनादेश जारी नहीं किया. उसने सरकार को नोटिस जारी किया है और अब अगली सुनवाई 9 अप्रेल को होगी.

वस्तुतः नागरिकता कानून को लागू करने से जुड़ी व्यवस्थाएं भी अभी पूरी नहीं हुई हैं, इसलिए तत्काल इस दिशा में ज्यादा कुछ होने की संभावना नहीं है. उम्मीद है कि अदालत आम लोगों की चिंताओं का निराकरण करेगी. अलबत्ता कुछ विदेशी-प्रतिक्रियाओं पर भी ध्यान देना चाहिए.  

Tuesday, March 19, 2024

एक-दूसरे को नई पहचान दी, वाराणसी व मोदी ने


वाराणसी को आप देश की सबसे प्रमुख लोकसभा सीट मान सकते हैं. वहाँ से नरेंद्र मोदी दो बार जीतकर प्रधानमंत्री बने हैं. मोदी के जीवन में वाराणसी की और वाराणसी नगर के आधुनिक इतिहास में, मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका है.

दुनिया प्राचीनतम नगरों में एक शिव की यह नगरी हिंदुओं के महत्वपूर्ण तार्थस्थलों में एक है. देश के हरेक कोने से तीर्थयात्री यहाँ आते हैं. अब यह भारत की राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र है.

2014 के चुनाव में मोदी ने इस चुनाव-क्षेत्र को अपनाया, तो इसके अनेक मायने थे. देश और विदेश का हिंदू समाज वाराणसी की ओर देखता है. इसे सामाजिक-मोड़ दिया जा सकता है. माँ गंगा और बाबा विश्वनाथ के उद्घोष से एक नई सांस्कृतिक चेतना जगाई जा सकती है.

2014 के चुनाव परिणाम आने के पहले तक अनेक पर्यवेक्षकों को लगता था कि त्रिशंकु संसद भी बन सकती है. हालांकि ज्यादातर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण यह भी कह रहे थे कि एनडीए को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी, पर पूर्ण बहुमत का अनुमान बहुत कम को था.

उत्तर प्रदेश की भूमिका

एनडीए और खासतौर से बीजेपी को मिली जीत अप्रत्याशित थी. इसमें सबसे बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश की थी, जहाँ की 80 में से 73 सीटें एनडीए को मिलीं. इनमें से 71 बीजेपी के नाम थीं. उत्तर प्रदेश की इस ऐतिहासिक सफलता ने राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा उलट-फेर कर दिया.

जून 2013 में गोवा में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे. इसके पहले पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अमित शाह को पार्टी का महामंत्री बनाया और उत्तर प्रदेश का प्रभारी.

अमित शाह को अच्छा चुनाव प्रबंधक माना जाता था, पर उस समय तक उनका अनुभव केवल गुजरात का था. यूपी गुजरात के मुकाबले बड़ा प्रदेश तो था ही, साथ में वहाँ के पार्टी संगठन की दिलचस्पी नरेंद्र मोदी में कम थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी को उत्तर प्रदेश में प्रचार के लिए बुलाया भी नहीं गया. उस चुनाव में बीजेपी को भारी विफलता का सामना करना पड़ा था.

Thursday, March 14, 2024

अलग राजनीतिक मिज़ाज का शहर लखनऊ


लोकसभा क्षेत्र: 
लखनऊ  

रायबरेली और अमेठी क अलावा मध्य उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में लखनऊ को वीआईपी सीट माना जाता है. यहाँ से चुने गए ज्यादातर राजनेताओं की पहचान राष्ट्रीय-स्तर पर होती रही है. इनमें विजय लक्ष्मी पंडित, हेमवती नंदन बहुगुणा, अटल बिहारी वाजपेयी और राजनाथ सिंह जैसे नाम शामिल हैं.

इस शहर की खासियत है कि वह जब किसी में कुछ खास बात देख लेता है, तो उसका मुरीद हो जाता है. नवाबी दौर में उसने तमाम मशहूर शायरों, गायकों, संगीतकारों और यहाँ तक कि खान-पान विशेषज्ञों तक को अपने यहाँ बुलाकर रखा. पिछले 72 साल में इस चुनाव-क्षेत्र ने जिन 12 प्रत्याशियों को लोकसभा भेजा है, उन सबमें कोई खास बात उसने देखी, तभी उन्हें चुना.

आनंद नारायण मुल्ला

सच है कि राजनीति के मैदान में तमाम फैक्टर काम करते हैं, फिर भी लखनऊ का लोकतांत्रिक अंदाज़े बयां कुछ और है. यह बात मैंने 1967 के लोकसभा चुनाव में देखी, जो इस शहर के लोकतांत्रिक-मिजाज के साथ मेरा पहला अनुभव था. उस साल यहाँ से निर्दलीय प्रत्याशी आनंद नारायण मुल्ला जीते, जो हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रह चुके थे और अपने दौर के नामचीन शायर थे.   

1967 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के वीआर मोहन और जनसंघ के आरसी शर्मा को हराया. उनके सामने खड़े दोनों प्रत्याशियों के पास संगठन-शक्ति थी, साधन थे. मुल्ला के पास जनता का समर्थन था. लखनऊ की खासियत है उसका गंगा-जमुनी मिजाज.

लंबे अरसे से लखनऊ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों को जिताकर लोकसभा में भेज रहा है, पर जीतने वाले कट्टर हिंदूवादी नहीं हैं. और यह लखनऊ की सिफत है कि यहाँ के मुसलमान मतदाताओं का एक बड़ा तबका अटल बिहारी वाजपेयी, लालजी टंडन और राजनाथ सिंह को वोट देता रहा है.

Wednesday, March 13, 2024

अफ़ग़ान-प्रशासन के साथ जुड़ते भारत के तार

 


देस-परदेस

अरसे से हमारा ध्यान अफ़ग़ानिस्तान की ओर से हट गया है, पर पिछले गुरुवार 7 मार्च को एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की, तो एकबारगी नज़रें उधर गई हैं. चीन, रूस, अमेरिका और पाकिस्तान समेत विश्व समुदाय के साथ तालिबान के संपर्कों को लेकर भी उत्सुकता फिर से जागी है.

तालिबानी सत्ता क़ायम होने के बाद भारत ने अफ़ग़ान नागरिकों को वीज़ा जारी करना बंद कर दिया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में उसने आश्चर्यजनक तरीके से काबुल के साथ संपर्क स्थापित किया है.

अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबानी शासन की स्थापना के बाद पिछले दो-ढाई साल में भारतीय अधिकारियों के दो शिष्टमंडल अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा कर चुके हैं. जून, 2022 में काबुल में भारत का तकनीकी मिशन खोला गया, जो मानवीय कार्यक्रमों का समन्वय करता है.

पिछले गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी जेपी सिंह ने तालिबान के विदेशी मामलों को प्रभारी (वस्तुतः विदेशमंत्री) आमिर खान मुत्तकी तथा अन्य अफ़ग़ान अधिकारियों के साथ बातचीत की. प्रत्यक्षतः यह मुलाकात मानवीय सहायता के साथ-साथ अफ़ग़ान व्यापारियों द्वारा चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल पर भी हुई.

कंधार दफ्तर खुलेगा?

तालिबान-प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि ने अफ़ग़ान व्यापारियों को वीज़ा जारी करने के लिए जरूरी व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है. इससे क़यास लगाया जा रहा है कि कंधार में भारत अपना वाणिज्य दूतावास खोल सकता है. अफ़ग़ानिस्तान ने कारोबारियों, मरीज़ों और छात्रों को भारत का वीज़ा देने का अनुरोध किया है.

कांग्रेस के सीने पर अमेठी का जख़्म


लोकसभा क्षेत्र: अमेठी

रायबरेली से सोनिया गांधी के हट जाने के बाद दूसरा बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी भी अमेठी को छोड़ेंगे?  2019 के चुनाव से इतना स्पष्ट जरूर हो गया था कि पार्टी को अब अमेठी पर पूरा भरोसा नहीं है, इसीलिए राहुल के लिए केरल की वायनाड सीट खोजी गई. स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी में मिली हार ने पार्टी का मनोबल तोड़कर रख दिया है.

सोमवार 19 फरवरी को राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों अमेठी में थे. उस मौके पर स्मृति ईरानी ने कहा कि 2019 में राहुल ने अमेठी को छोड़ा था, आज अमेठी ने उन्हें छोड़ दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि वे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं तो वायनाड जाए बिना अमेठी से (चुनाव) लड़कर दिखाएं.

संभव है कि राहुल गांधी सामना करने को तैयार भी हो जाएं, पर वे वायनाड या किसी दूसरी सेफ सीट के बगैर ऐसा नहीं करेंगे. संभव है परिवार का कोई सदस्य यहाँ से चुनाव लड़े. राहुल गांधी की भारत-जोड़ो न्याय-यात्रा अमेठी से भी होकर गुज़री है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि यहाँ के लोग रायबरेली और अमेठी से केवल परिवार के ही किसी सदस्य को देखना चाहते हैं. वे 2019 की गलती को सुधारना चाहते हैं.

दूसरी ओर स्मृति ईरानी दुगने उत्साह के साथ मैदान में हैं. जिस दिन राहुल गांधी की यात्रा अमेठी पहुँची, उसी रोज उन्होंने भी अपना कार्यक्रम यहाँ रखा. वे चार दिन अमेठी में रहीं. यहाँ से चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी अपने नए संसदीय क्षेत्र वायनाड तो कई बार गए हैं, लेकिन उन्होंने अमेठी आना छोड़ दिया. दूसरी तरफ भाजपा ने तेजी से अपने संगठन का विस्तार किया है. स्मृति ईरानी अपने कार्यकर्ताओं के संपर्क में लगातार बनी रहती हैं.