राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण शुरू हो गया है। अब यात्रा का काफी छोटा हिस्सा शेष रह गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश की सीमा को तो वे छूकर ही चले गए हैं। यूपी से ज्यादा समय वे हरियाणा और पंजाब को दे रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के नगाड़े बजने लगे हैं। राहुल गांधी की यह यात्रा प्रकारांतर से लोकसभा-अभियान की शुरुआत है। उधर अमित शाह पूर्वोत्तर में चुनाव-अभियान शुरू कर चुके हैं। यह अभियान त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड को लेकर है, जहाँ अगले महीने चुनाव हैं। इसके बाद नवंबर में मिजोरम में चुनाव होंगे। पूर्वोत्तर में एक जमाने में बीजेपी का नामोनिशान नहीं था, पर अब वह उसका गढ़ बन गया है। अभी दोनों, तीनों तरफ के पत्ते फेंटे जा रहे हैं। राजनीति का पर्दा धीरे-धीरे खुलेगा।
तीन सवाल
कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजनीति के तीन सवाल उभर
कर आ रहे हैं। भारत-जोड़ो यात्रा से कांग्रेस ने क्या हासिल किया? दूसरा सवाल है कि क्या विरोधी दल इसबार एक मोर्चा बनाकर बीजेपी का
मुकाबला करेंगे? तीसरा सवाल है कि बीजेपी की रणनीति उपरोक्त
दोनों सवालों के बरक्स क्या है? राहुल गांधी की यात्रा के उद्देश्य और
निहितार्थ भी अब उतने महत्वपूर्ण नहीं रहे, जितना महत्वपूर्ण यह सवाल है कि
कांग्रेस की रणनीति अब क्या होने वाली है? यात्रा
का दूसरा चरण शुरू करने के पहले राहुल गांधी ने शनिवार 31 दिसंबर को दिल्ली में जो
प्रेस कांफ्रेंस की, उससे कुछ संकेत मिलते हैं। इससे पता लग सकता है कि 2024 के लोकसभा
चुनाव में कांग्रेस किस रणनीति के साथ उतरने वाली है। इस रणनीति में दूसरे विरोधी
दलों के साथ कांग्रेस का समन्वय किस प्रकार से होगा और इस एकता का आधार क्या होगा?
विरोधी एकता
राहुल गांधी ने विरोधी दलों की एकता से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा एक, विपक्ष के तमाम नेता कांग्रेस से वैचारिक तौर पर जुड़े हैं। दो, ये अपने प्रभाव वाले राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती जरूर दे सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए वैचारिक चुनौती कांग्रेस ही खड़ी कर सकती है। तीन, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी कांग्रेस की ही है कि विरोधी दल न केवल आरामदेह महसूस करें बल्कि उन्हें उचित सम्मान मिले। इसमें तीसरा बिंदु सबसे महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी ने खासतौर से समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के एक बयान के संदर्भ में कहा कि उनकी विचारधारा उत्तर प्रदेश तक सीमित है, जबकि हम राष्ट्रीय विचारधारा के साथ हैं। यह बात गले से उतरती नहीं है। यह माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की रणनीति उत्तर प्रदेश केंद्रित है, पर वैचारिक आधार पर वह भी राष्ट्रीय होने का दावा कर सकती है। केंद्र में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी, वह इसी विचारधारा से जुड़ी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यात्रा में शामिल न होने के अखिलेश यादव और मायावती के फैसले को तूल न देते हुए बताया कि वे यात्रा में शामिल हों या न हों, विपक्ष की राजनीति में उनका अहम स्थान है। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के नेताओं को पत्र भी लिखा। वे भले ही यात्रा में शामिल नहीं हुए, पर मान लेते हैं कि राहुल गांधी ने अपने व्यवहार से उन्हें खुश किया होगा।