Sunday, January 8, 2023

विरोधी दलों को कितना जोड़ पाए राहुल?


राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण शुरू हो गया है। अब यात्रा का काफी छोटा हिस्सा शेष रह गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश की सीमा को तो वे छूकर ही चले गए हैं। यूपी से ज्यादा समय वे हरियाणा और पंजाब को दे रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के नगाड़े बजने लगे हैं। राहुल गांधी की यह यात्रा प्रकारांतर से लोकसभा-अभियान की शुरुआत है। उधर अमित शाह पूर्वोत्तर में चुनाव-अभियान शुरू कर चुके हैं। यह अभियान त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड को लेकर है, जहाँ अगले महीने चुनाव हैं। इसके बाद नवंबर में मिजोरम में चुनाव होंगे। पूर्वोत्तर में एक जमाने में बीजेपी का नामोनिशान नहीं था, पर अब वह उसका गढ़ बन गया है। अभी दोनों, तीनों तरफ के पत्ते फेंटे जा रहे हैं। राजनीति का पर्दा धीरे-धीरे खुलेगा।

तीन सवाल

कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजनीति के तीन सवाल उभर कर आ रहे हैं। भारत-जोड़ो यात्रा से कांग्रेस ने क्या हासिल किया? दूसरा सवाल है कि क्या विरोधी दल इसबार एक मोर्चा बनाकर बीजेपी का मुकाबला करेंगे? तीसरा सवाल है कि बीजेपी की रणनीति उपरोक्त दोनों सवालों के बरक्स क्या है? राहुल गांधी की यात्रा के उद्देश्य और निहितार्थ भी अब उतने महत्वपूर्ण नहीं रहे, जितना महत्वपूर्ण यह सवाल है कि कांग्रेस की रणनीति अब क्या होने वाली है? यात्रा का दूसरा चरण शुरू करने के पहले राहुल गांधी ने शनिवार 31 दिसंबर को दिल्ली में जो प्रेस कांफ्रेंस की, उससे कुछ संकेत मिलते हैं। इससे पता लग सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किस रणनीति के साथ उतरने वाली है। इस रणनीति में दूसरे विरोधी दलों के साथ कांग्रेस का समन्वय किस प्रकार से होगा और इस एकता का आधार क्या होगा?

विरोधी एकता

राहुल गांधी ने विरोधी दलों की एकता से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा एक, विपक्ष के तमाम नेता कांग्रेस से वैचारिक तौर पर जुड़े हैं। दो, ये अपने प्रभाव वाले राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती जरूर दे सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए वैचारिक चुनौती कांग्रेस ही खड़ी कर सकती है। तीन, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी कांग्रेस की ही है कि विरोधी दल न केवल आरामदेह महसूस करें बल्कि उन्हें उचित सम्मान मिले। इसमें तीसरा बिंदु सबसे महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी ने खासतौर से समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के एक बयान के संदर्भ में कहा कि उनकी विचारधारा उत्तर प्रदेश तक सीमित है, जबकि हम राष्ट्रीय विचारधारा के साथ हैं। यह बात गले से उतरती नहीं है। यह माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की रणनीति उत्तर प्रदेश केंद्रित है, पर वैचारिक आधार पर वह भी राष्ट्रीय होने का दावा कर सकती है। केंद्र में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी, वह इसी विचारधारा से जुड़ी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यात्रा में शामिल न होने के अखिलेश यादव और मायावती के फैसले को तूल न देते हुए बताया कि वे यात्रा में शामिल हों या न हों, विपक्ष की राजनीति में उनका अहम स्थान है। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के नेताओं को पत्र भी लिखा। वे भले ही यात्रा में शामिल नहीं हुए, पर मान लेते हैं कि राहुल गांधी ने अपने व्यवहार से उन्हें खुश किया होगा।

Saturday, January 7, 2023

बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के निहितार्थ


कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है,
 उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

बिहार में आज 7 जनवरी से जातिगत सर्वेक्षण का काम शुरू हो गया है। यह काम दो चरणों में होगा। 7 से 21 जनवरी ( पहले चरण ) तक घरों की गिनती होगी। दूसरे चरण में जातियों को गिना जाएगा। इस कार्यक्रम के अंतर्गत केवल जाति की गणना नहीं हो रही है, लोगों की आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण भी किया जाएगा। राज्य सरकार इसे पूरा करने के लिए अपने आकस्मिक कोष से 500 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। बिहार सरकार ने पिछले साल 2 जून को जातिगत सर्वेक्षण को मंज़ूरी दी थी। इस सर्वेक्षण में 12.7 करोड़ जनसंख्या, 2.58 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा जो 31 मई को पूरा होगा। इसे जातिगत जनगणना नहीं कहा गया है, लेकिन इसमें जाति संबंधी जानकारी जुटाई जाएगी। बीबीसी हिंदी में पढ़ें विस्तार से

भारत जोड़ो यात्रा पर योगेंद्र यादव का एक और लेख

भारत-जोड़ो यात्रा पर वैबसाइट दिप्रिंट में जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने एक और लेख लिखा है. इसके तीन गिन पहले भी उन्होंने इसी वैबसाइट पर एक और लेख लिखा था. नए लेख के स्वर पिछले लेख से कुछ अलग हैं, इसलिए दोनों लेखों को एकसाथ पढ़ना चाहिए. बहरहाल 7 जनवरी के नवीनतम लेख में उन्होंने लिखा है, क्या भारत जोड़ो यात्रा ने सांप्रदायिक गुस्से को कम किया है? मैंने किसी कार्य-कारण प्रभाव के दावे को साबित करने के लिए हमेशा से ठोस सबूत भी मांगा है. लेकिन यह प्रश्न कठिन सबूत को भी स्वीकार नहीं कर रहा है. कम से कम इतने कम समय में तो नहीं…तो, मैं इसे सावधानी से बता दूं. मैं केवल एक सवाल खड़ा कर रहा हूं, फाइनल जवाब नहीं दे रहा हूं. जैसा कि सामाजिक विज्ञान में कहते हैं न कि यह एक अवधारणा (हाइपोथीसिस) है जिसकी जांच की जानी है. साथ ही, मैं साम्प्रदायिकता के संगठित या पूर्व नियोजित कृत्यों जैसे दंगों, हिंसा और हेट क्राइम के बारे में नहीं बोल रहा. अगर इन कृत्यों को घृणा की राजनीति से प्रेरित समूहों द्वारा डिजाइन और अंजाम नहीं दिया गया है, जिसका कि यह यात्रा विरोध करना चाहती है, मैं उनके दिल में अचानक बदलाव की उम्मीद नहीं करता, और वह भी भारत जोड़ो यात्रा से. मुझे रोज़मर्रा के सांप्रदायिक तनाव में दिलचस्पी है जो कि अव्यक्त शत्रुता और अविश्वास, अपशब्द, अपमान, पड़ोस के विवाद में मौजूद है–मुझे इस बात में दिलचस्पी है कि क्या यात्रा ने सांप्रदायिक कट्टरता में आम लोगों के शामिल होने को कम किया है…मेरा अनुमान है कि यात्रा का संदेश जहां भी पहुंचा है, इसने स्थानीय सांप्रदायिक तनाव में कमी लाने की भरसक कोशिश की है.. यहाँ पढ़ें यह लेख

नेपाल में प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने से कितना ख़ुश है चीन?

नेपाल में नई सरकार के गठन के अगले ही दिननेपाल-चीन के बीच रेल संपर्क स्थापित करने के व्यावहारिक पहलू के अध्ययन के लिए चीन की एक तकनीकी टीम काठमांडू पहुंची। इसके एक दिन बादचीनी पक्ष ने रसुवागढी-केरुंग क्रॉसिंग को खोलने का फ़ैसला कियाजो कोविड-19 के समय से बंद था। हाल में चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने नेपाल को लेकर दो महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं। 3 जनवरी की एक टिप्पणी में कहा गया है कि चीन और नेपाल के सहयोग को लेकर भारत को ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। प्रचंड को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद 29 दिसंबर 2022 को 'घुसपैठ द्वारा काठमांडू को नियंत्रित करने का अमेरिकी प्रयास विफल' शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था।बीबीसी हिंदी में पढ़ें यह रिपोर्ट 

Friday, January 6, 2023

2024 में संभव है बीजेपी को हराना: डेरेक ओ’ब्रायन


कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 2024 में बीजेपी को हराया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि लोकसभा चुनाव को अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों को रूप में जोड़ा जाए। जब भी किसी इलाके की मजबूत पार्टी से बीजेपी को सामना करना पड़ा, तो वह कमज़ोर साबित हुई है। उन्होंने लिखा है कि मैं जानबूझकर क्षेत्रीय पार्टी (रीज़नल पार्टी) शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि बहुत सी पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता मिली हुई है। यदि आप हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश या तेलंगाना के चुनाव परिणामों को जोड़कर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करें, तो पाएंगे कि बीजेपी को 240 तक पहुँचने में भी मुश्किल होगी। मई, 2021 में पश्चिम बंगाल में क्या हुआ था? मोदी और अमित शाह दोनों ने ज़ोर लगा दिया, पर हार गए। पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

…और यह है बीजेपी की रणनीति

आज के इंडियन एक्सप्रेस में लिज़ मैथ्यूस की लंबी रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि 2024 के लिए बीजेपी की रणनीति क्या है। इसके अनुसार पार्टी ने अपने बूथ-स्तर के कार्यकर्ता से लेकर केंद्रीय मंत्रिस्तर के नेता तक को अपनी संगठनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा बनाया है। गृहमंत्री अमित शाह मानते हैं कि मजबूत संगठन के बगैर बीजेपी अपनी जीत को दोहरा नहीं पाएगी। पार्टी ने पिछले साल अपनी लोकसभा प्रवास योजना शुरू कर दी है, जिसके तहत मंत्रियों सहित पार्टी के नेताओं को उन मुश्किल चुनाव-क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी है, जहाँ 2019 में पार्टी दूसरे नंबर पर रही या बहुत मामूली अंतर से जीती थी। शुरू में ऐसे 144 चुनाव-क्षेत्र तय किए गए थे, जिनकी संख्या अब 160 हो गई है। 2019 में पार्टी ने 436 स्थानों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 303 पर उसे जीत मिली। इस प्रकार 133 पराजित और 11 मामूली अंतर से जीती गई सीटों के आधार पर 144 की संख्या बनी थी, जिसे अब 160 कर लिया गया है। पूरी रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

आसान नहीं है वैकल्पिक ऊर्जा की राह

अगर वर्ष 2022 ने दुनियाभर के नीति-निर्माताओं को कुछ सिखाया है तो वह यह कि उन्हें अपनी स्वच्छ ऊर्जा नीतियों को लेकर व्यावहारिक होना जरूरी था। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध सभी विकसित और विकासशील देशों के लिए एक कड़वे सच को पहचानने जैसा था, क्योंकि ये देश इस बात को लेकर बड़े आश्वस्त थे कि वे कोयले से बहुत ही जल्दी निजात पा लेंगे और हाइड्रोकार्बन पर अपनी निर्भरता को बड़ी तेजी से कम करने में सफल हो जाएंगे। मगर वर्ष ने कोयले की मांग और कीमत दोनों को और बढ़ा दिया।

विकसित देश जैसे अमेरिका और जर्मनी अब फिर से ईंधन की ओर रुख कर रहे हैं और कोयले के बंद पड़े संयंत्रों को फिर से शुरू कर रहे हैं। विशेष रूप से, पश्चिमी यूरोप इस बात को समझ गया है कि अगर इसे सस्ती दरों पर प्राकृतिक गैसों की आपूर्ति नहीं मिलती तो उसे सौर और पवन ऊर्जाओं से मदद नहीं मिलने वाली है। इसने यह भी पाया है कि पारंपरिक ऊर्जा आपूर्ति में रुकावट आने से लीथियम और निकल जैसे खनिजों की कीमतें बढ़ जाएंगी। बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें प्रसेनजित दत्ता का आलेख


Thursday, January 5, 2023

नैनो उर्वरकों की सफलता

 कतरनें

कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

नैनो यूरिया की सफलता के बाद, अब दूसरे सबसे अ​धिक खपत वाले उर्वरक डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) के नैनो संस्करण को जैव सुरक्षा और विषाक्तता परीक्षणों में मंजूरी मिल गई है और इसके साथ ही अगले खरीफ सत्र में इसे खेतों में इस्तेमाल करने की औपचारिक स्वीकृति का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है। ये नवाचारी और स्वदेशी तौर पर विकसित तरल उर्वरक फसलों के जरूरी पोषण के लिए किए जाने वाले आयात और सरकारी स​सब्सिडी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने वाले साबित हो सकते हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड का संपादकीय, जिसने मेरी जानकारी को बढ़ाया

जम्मू-क्षेत्र में फिर हत्याएं

जेहादियों द्वारा नए साल की सुबह राजौरी के छह निवासियों की हत्या ने, जो कि वर्षों में इस तरह की पहली सामूहिक हत्या है, आशंका जताई है कि जम्मू क्षेत्र में जानलेवा सांप्रदायिक युद्ध फिर से शुरू हो सकता है. तीस साल पहले किश्तवाड़ बस यात्रियों की हत्या ने भी, जो अपनी तरह की पहली घटना थी, इस हफ्ते की साम्प्रदायिक हत्याओं-और उससे पहले हुए कई नरसंहारों की तरह का खाका तैयार किया था. दिप्रिंट में प्रवीण स्वामी का आलेख

अल नस्र से नाता क्यों जोड़ा रोनाल्डो ने?

एक महीने से भी कम वक्त गुज़रा है, जब पुर्तगाल की फ़ुटबॉल टीम के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो क़तर में हो रहे विश्व कप के क्वॉर्टर फ़ाइनल में मोरक्को से 1-0 से हारने के बाद आंखों में आंसू लिए मैदान से बाहर जाते दिखे थे. पुर्तगाल को हराने के बाद मोरक्को वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुँचने वाला पहला अफ़्रीकी अरब देश बना था. विश्व कप जीतने का सपना टूटने के कुछ सप्ताह बाद अब पुर्तगाल के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने यूरोपीय फ़ुटबॉल क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड छोड़कर, सऊदी अरब के 'अल-नस्र' से नाता जोड़ लिया है. अल नस्र और रोनाल्डो के बीच हुआ क़रार अब तक का सबसे महंगा सौदा बताया जा रहा है. अल-नस्र 2025 तक हर साल रोनाल्डो को क़रीब 1800 करोड़ रुपये का भुगतान करेगा. सऊदी अरब की टीम रोनाल्डो पर इतना पैसा क्यों बहा रही है इसपर पढ़ें बीबीसीहिंदी की यह रिपोर्ट

 

Wednesday, January 4, 2023

जजों की नियुक्तियों से जुड़ा विवाद

 कतरनें
कतरनें यानी मीडिया में जो इधर-उधर प्रकाशित हो रहा है, उसके बारे में अपने पाठकों को जानकारी देना. ये कतरनें केवल जानकारी नहीं है, बल्कि विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए हैं.

न्यायाधीशों तथा निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सार्वजनिक विवाद चल रहा है। सरकार संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों के सहारे है और दलील दे रही है कि नियुक्तियों के निर्णय का अधिकार कार्यपालिका के पास है। जबकि इससे अलग नजरिया रखने वालों को संविधान की मूल भावना की चिंता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के 1993 और 1998 के निर्णयों पर आधारित है और यह चयन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का एक कॉलेजियम करता है जिसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास होती है। कार्यपालिका उनसे पुनर्विचार करने को कह सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम अपनी अनुशंसा पर टिका रहता है तो उसे स्वीकार करना होगा। हालांकि सरकार इन अनुशंसाओं को महीनों तक रोककर नियुक्तियों को लंबित रख सकती है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना को लेकर संसद ने एक कानून भी बनाया, जिसके पास उच्च न्यायालय की नियुक्तियों का अधिकार होता। इस आयोग की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश के पास होती और इसमें दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और दो ‘प्रतिष्ठित’ व्यक्ति शामिल होते, जिनकी सहमति मिलने पर ही नियुक्तियां होतीं। उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया। दलील दी गई कि यह न्यायिक स्वायत्तता के साथ समझौता करने जैसा है जबकि वह संविधान की विशेषताओं में से एक है जिसमें संसद संशोधन नहीं कर सकती। बिजनेस स्टैंडर्ड में नितिन देसाई का पूरा लेख पढ़ें यहाँ

ब्रेक्जिट का असर

ब्रिटिश साप्ताहिक इकोनॉमिस्ट ने इस असर को कुछ चार्टों और विशेषज्ञों के बातचीत से बताया है। मोटी राय है कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था की संवृद्धि, कारोबार और उससे जुड़ी सभी बातों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। पूरी रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

भारत-जोड़ो यात्रा

जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के संस्थापकों में से एक योगेंद्र यादव भी राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा के सहयात्री हैं। उन्होंने वैबसाइट द प्रिंट में एक लेख लिखा है, जिसमें कहा है कि संयोग देखिए कि यात्रा का देश की राजधानी में पहुंचना और देश के मानस में पैठ बनाना एक साथ हुआ है. और, जो ऐसा हुआ है तो शुक्रिया कहना बनता है मुख्यधारा की मीडिया के उस बड़े हिस्से का जिसने बड़ी देर और ना-नुकुर के बाद अब मान लिया है कि दिलों को जोड़ने के लिए देश में एक यात्रा हो रही है. उनका लेख पढ़ें यहाँ

हल्द्वानी में अतिक्रमण-आंदोलन

उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में रेलवे की जमीन पर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के विरोध में चार हजार से ज्यादा परिवार सड़कों पर आ गए हैं। इनमें ज्यादातर मुस्लिम परिवार है। यह विवाद 2007 से चल रहा है और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया है। अतिक्रमण हटाए जाने का विरोध करने वालों ने धरने और रास्ता जाम का सहारा लिया है। ऑपइंडिया की नूपुर जे शर्मा ने इस परिघटना के राजनीतिक पहलू को समेटते हुए जो रिपोर्ट लिखी है, उसे पढ़ें यहाँ