Tuesday, February 1, 2022

बदहवास इमरान को चीन में कुछ भी हासिल नहीं होगा


लगातार अलोकप्रिय होते जा रहे इमरान खान को लेकर पाकिस्तान में अनिश्चय बढ़ता जा रहा है। पर्यवेक्षक वर्तमान व्यवस्था को बदलने का सुझाव देने लगे हैं। हालांकि उनका कार्यकाल अगले साल अगस्त तक है, पर उसके पहले ही उनके हटने की बातें हो रही हैं। नवंबर में सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल खत्म हो रहा है, जिसे इमरान सरकार ने खींचकर बढ़ाया था। बाजवा का कार्यकाल बढ़ने से जो अंतर्विरोध पैदा हुए हैं, वे भी इमरान के गले की हड्डी हैं। तालिबान के काबिज होने के बावजूद अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तानी मुराद पूरी नहीं हुई है। आर्थिक-संकट सिर पर है, और अंदरूनी राजनीति हिचकोले खा रही है। इन हालात में वे 3 फरवरी को चीन जा रहे हैं।

इमरान-समर्थक साबित करने में लगे हैं कि बस वक्त बदलने ही वाला है। चीन-रूस-पाकिस्तान की धुरी बनने वाली है, चीनी उद्योग सीपैक में आने वाले हैं, स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनेंगे और पाकिस्तान स्टील मिल्स का उद्धार चीनी कंपनियाँ करेंगी वगैरह-वगैरह। इमरान खान चीन में हो रहे विंटर ओलिम्पिक्स के उद्घाटन समारोह में हाजिरी देने जा रहे हैं। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इस आयोजन का राजनयिक बहिष्कार करने की घोषणा की है। बहरहाल पाकिस्तान में इस चीन-यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके लिए सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने उन्हें विशेष ब्रीफिंग दी। इमरान के करीबी पर्यवेक्षक शगूफे छोड़ रहे हैं कि नए ध्रुवीकरण का केंद्र पाकिस्तान बनने जा रहा है। चीन में न केवल राष्ट्रपति पुतिन के साथ इमरान खान की मीटिंग होगी, बल्कि एक त्रिपक्षीय-मुलाकात भी होगी, जिसमें चीन-रूस और पाकिस्तान के शासनाध्यक्ष होंगे।

उम्मीद पर पानी फिरा

रूस-सरकार ने इन शिगूफों पर पानी डाल दिया है और स्पष्ट किया है कि पुतिन की केवल चीनी के राष्ट्रपति से भेंट होगी, किसी और के साथ नहीं। त्रिपक्षीय तो दूर की बात है, पुतिन से द्विपक्षीय बात भी होने वाली नहीं है। बात होने या नहीं होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है पाकिस्तान की घटती साख। चीन के साथ हिमालय से ऊँची और समुद्र से गहरी दोस्ती की असलियत से भी पाकिस्तान इस समय रूबरू है। इमरान खान की यात्रा के ठीक पहले पाकिस्तान ने पिछले साल आतंकवादी हमले में हताहत दासू बिजली परियोजना से जुड़े 36 चीनी नागरिकों को मुआवजा देने का फैसला किया है।  

Sunday, January 30, 2022

ग्रोथ के इंजन को चलाने की चुनौती


दो दिन बाद पेश होने वाले आम बजट से देश के अलग-अलग वर्गों को कई तरह की उम्मीदें हैं। महामारी से घायल अर्थव्यवस्था को मरहम लगाने, बेहोश पड़े उपभोक्ता उद्योग को जगाने, गाँवों से बाहर निकलती आबादी को रोजगार देने और पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को तैयार करने की चुनौती वित्तमंत्री के सामने है। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में संवृद्धि 9.2 प्रतिशत रहेगी। नॉमिनल संवृद्धि 18 प्रतिशत के आसपास रहेगी, जबकि पिछले बजट में 14 प्रतिशत का अनुमान था। इस साल का कर-संग्रह भी अनुमान से कहीं बेहतर हुआ है। इन खुश-खबरों के बावजूद अर्थव्यवस्था के बुनियादी सुधार के सवाल सामने हैं।

गरीबों को संरक्षण

पहली निगाह ग्रामीण और सोशल सेक्टर पर रहती है। एफएमसीजी सेक्टर चाहता है कि सरकार लोगों के हाथों में पैसा देना जारी रखे, खासकर गाँवों में। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को अभी 6 हजार रुपये सालाना रकम दी जाती है। संभव है कि इस राशि को बढ़ा दिया जाए। मनरेगा और खेती से जुड़ी योजनाओं के लिए आबंटन बढ़ सकता है, जो ग्रामीण उपभोक्ताओं का क्रय-शक्ति बढ़ाएगा। महामारी से शहरी गरीब ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लॉकडाउन ने कामगारों की रोजी छीन ली। रेस्तरां, दुकानों, पार्लरों, भवन निर्माण आदि से जुड़े कामगारों की सबसे ज्यादा। छोटी फ़र्मों और स्वरोजगार वाले उपक्रमों में रोजगार खत्म हुए हैं। संभव है कि सरकार शहरी गरीबों के लिए पैकेज की घोषणा करे। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, कौशल विकास, रोजगार-वृद्धि, मझोले और छोटे उद्योगों की सहायता उपभोक्ता-सामग्री की माँग बढ़ाने जैसी घोषणाएं इस बजट में हो सकती हैं।

मध्यवर्ग की उम्मीदें

मध्यवर्ग को आयकर से जुड़ी उम्मीदें रहती हैं। वे स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग घर से काम कर रहे है। उनका बिजली, इंटरनेट, मकान किराए, फर्नीचर आदि का खर्च बढ़ गया है। वे किसी रूप में टैक्स छूट की उम्मीद कर रहे हैं। जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी सुविधाएं और उसपर जीएसटी कम करने की माँग भी है। पीपीएफ में निवेश की अधिकतम सीमा को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने का सुझाव भी है। ग्रोथ के इंजन को चलाए रखने में मध्यवर्ग की सबसे बड़ी भूमिका है। क्या सरकार उसे खुश कर पाएगी?

बदला माहौल

वैक्सीनेशन की गति बढ़ने से माहौल बदला है और उपभोक्ता की दिलचस्पी भी बढ़ी है। उम्मीद से ज्यादा कर-संग्रह हुआ है, जो कर-दायरा बढ़ाने से और ज्यादा हो सकता है। जीडीपी-संवृद्धि बेहतर होने से आने वाले वर्ष में कर-संग्रह और बेहतर होगा। पिछले दो साल से पेट्रोलियम के सहारे सरकार ने कर-राजस्व के लक्ष्य हासिल जरूर किए, पर इससे मुद्रास्फीति बढ़ी। यह बात अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है। साबित यह भी हुआ है कि सरकारी विभागों की व्यय-क्षमता कमजोर है, तमाम विभागों को आबंटित धनराशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया। इससे संवृद्धि प्रभावित हुई। राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइपलाइन, 4जी तकनीक, डिजिटल इंडिया मिशन, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर में रियायत की योजना तथा जल जीवन मिशन में लक्ष्य से कम खर्च हुआ। संभव है कि अंतिम तिमाही में व्यय बढ़े, पर सरकारी विभागों को अपने कार्यक्रमों के लिए आबंटित धनराशि को खर्च न कर पाने की समस्या का समाधान खोजना होगा।

Thursday, January 27, 2022

श्रीलंका को आर्थिक-संकट से बचाने में भारत की भूमिका


हिंद महासागर के दो पड़ोसी देशों, श्रीलंका और मालदीव के घटनाक्रम में कुछ बातें भारत की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अपने पड़ोसियों, खासतौर से हिंद महासागर के देशों की, अनदेखी भारी पड़ सकती है। यह बात श्रीलंका के ताजा आर्थिक-संकट और चीन के विदेशमंत्री वांग यी के इन दोनों देशों के दौरे से रेखांकित हुई। दोनों देशों में हाल के वर्षों तक चीन का काफी प्रभाव रहा है, जो अब कम हो गया है। मालदीव में 2018 के चुनाव के बाद चीन समर्थक-समर्थक सरकार चली जरूर गई है, पर कुछ समय से चल रहे भारत-विरोधी अभियान इंडिया-आउट पर ध्यान देने की जरूरत है।

श्रीलंका और मालदीव दोनों चीन के कर्जे में दबे हैं, पर इस समय श्रीलंका की दशा ज्यादा खराब है। वह विदेशी देनदारी में डिफॉल्ट की स्थिति में पहुँच गया है। विदेशी-मुद्रा कोष के क्षरण के कारण डिफॉल्ट की स्थिति पैदा हुई है। वहाँ जरूरी चीजों का संकट पैदा होने लगा है। इस संकट के पीछे उसका चीनी कर्ज में दबा होना भी एक बड़ा कारण है, फिर भी उसे चीन से मदद माँगने जाना पड़ा।  

चीन से मदद

चीन से मदद माँगे जाने में हैरत नहीं है। सत्तारूढ़ राजपक्ष परिवार चीनी प्रशासन के करीब रहा है, इसलिए वे चीन के पास गए। साथ ही लगता है कि भारत ने देरी की। पिछले साल उन्होंने भारत की तरफ भी हाथ बढ़ाया था, पर भारत ने अनदेखी की या उसकी गंभीरता को कुछ देर से समझा। बहरहाल शनिवार 15 जनवरी को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका के वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे के साथ बातचीत की, जिससे स्थिति बिगड़ने से बची है।

Sunday, January 23, 2022

विषमता के चक्रव्यूह की चुनौती


जनवरी के तीसरे हफ्ते में वैश्विक महत्व की दो महत्वपूर्ण आर्थिक घटनाएं हर साल होती हैं। पहले, ऑक्सफ़ैम की वैश्विक विषमता रिपोर्ट और उसके बाद स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम का सम्मेलन। दुनिया में नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए विश्व आर्थिक फोरम की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। यह कारोबारी संस्था है, जो कॉरपोरेट दुनिया को साथ लेकर चलती है, पर नब्बे के दशक से शुरू हुए वैश्वीकरण अभियान के बाद से दुनिया की सरकारों की भागीदारी दावोस में बढ़ी है। असमानता के कई रूप हैं, उनमें आर्थिक असमानता सबसे प्रमुख है, जो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है।  

ऑक्सफ़ैम क्या है?

ऑक्सफोर्ड कमेटी फॉर फ़ैमीन यानी ऑक्सफ़ैम, वैश्विक-गरीबी को दूर करने के इरादे से गठित ब्रिटिश संस्था 1942 से काम कर रही है। इसके साथ 21 संस्थाएं और जुड़ी हैं। यह संस्था दुनियाभर में मुफलिसों और ज़रूरतमंदों की सहायता करती है और भूकंप, बाढ़ या अकाल जैसी आपदाओं के मौके पर राहत पहुँचाती है। वैश्विक असमानता पर केवल ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट ही नहीं आती। पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब भी इस सिलसिले में शोध-कार्य करती है। इस लैब ने 7 दिसंबर 2021 को वर्ल्ड इनइक्वैलिटीरिपोर्ट-2022 जारी की थी। इसे तैयार करने में लुकाच चैंसेल, टॉमस पिकेटी, इमैनुएल सेज़ और गैब्रियल जुचमैन ने करीब चार साल तक मेहनत की थी।

जानलेवा विषमता

17 जनवरी को ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट जारी हुई और 17-21 जनवरी तक दावोस सम्मेलन हुआ। ऑक्सफ़ैम-रिपोर्ट का शीर्षक है ‘इनइक्वैलिटीकिल्स यानी जानलेवा विषमता।’ हालांकि इसमें वैश्विक-संदर्भ हैं, पर हमारी दिलचस्पी भारत में ज्यादा है। इसमें कहा गया है कि 2021 में भारत के 84 फीसदी परिवारों की आय घटी है, पर इसी अवधि में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। मार्च 2020 से 30 नवंबर, 2021 तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये (313 अरब डॉलर) से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये (719 अरब डॉलर) हो गई है, जबकि 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक देशवासी आत्यंतिक गरीबी-रेखा के दायरे में आ गए।

अरबपतियों की चाँदी

वैश्विक संदर्भ में रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी के दौर में दुनिया ने अरबपतियों की संपदा में अभूतपूर्व वृद्धि होते देखी है। कोविड-19 के संक्रमण के बाद से हरेक 26 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हुआ है। दुनिया के 10 सबसे अमीर व्यक्तियों की इस दौरान संपत्ति दोगुनी हो गई, जबकि मार्च, 2020 से नवंबर, 2021 के बीच, कम से कम 16 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है, जहां अरबपतियों की संख्या सबसे अधिक है। फ्रांस, स्वीडन और स्विट्जरलैंड की तुलना में 2021 में भारत में अरबपतियों की संख्या में 39 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब भारत में बेरोजगारी दर शहरी इलाकों में 15 फीसदी तक है और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरा रही है। कोरोना संक्रमण के दौर में देश के स्वास्थ्य बजट में 2020-21 के संशोधित अनुमान से 10 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। शिक्षा के आवंटन में 6 फीसदी की कटौती की गई, जबकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन कुल बजट के 1.5 फीसदी से 0.6 हो गया। इस असमानता को आर्थिक हिंसा करार दिया गया है, जो तब होती है, जब सबसे अमीर और ताकतवर लोगों के लिए सहूलियत वाली ढांचागत नीतियां बनाई जाती हैं।

Tuesday, January 18, 2022

कोरोना संकट के दौरान भारत ने दुनिया को दिया ‘उम्मीदों का गुलदस्ता’


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि कोरोना संक्रमण काल में भारत ने पूरी दुनिया को ‘उम्मीदों के गुलदस्ते’ जैसा एक खूबसूरत उपहार दिया है, जिसमें भारतीयों का लोकतंत्र पर अटूट विश्वास, 21वीं सदी को सशक्त करने वाली प्रौद्योगिकी, भारतीयों का मिजाज और उनकी प्रतिभा शामिल है। विश्व आर्थिक मंच के दावोस एजेंडा में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से ‘विश्व की वर्तमान स्थिति’ (स्टेट ऑफ द वर्ल्ड) पर अपने विशेष संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कोरोना के इस समय में भारत ‘वन अर्थ, वन हैल्थ’’ की दृष्टि पर चलते हुए अनेक देशों को जरूरी दवाइयां और टीके देकर करोड़ों जीवन बचा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि जब से कोरोना महामारी की शुरुआत हुई तब से भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में भोजन दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘शायद दुनिया में इस प्रकार का यह सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। हमारी कोशिश है कि संकट के कालखंड में गरीब से गरीब की चिंता सबसे पहले हो। इस दौरान हमने सुधार पर भी जोर दिया। सुधार के लिए हमारे कदमों को लेकर दुनिया के अर्थशास्त्री भी भरपूर सराहना कर रहे हैं। भारत बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहा है।’

व्यवधान पर राजनीतिक-तंज

कोरोना महामारी के कारण वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक वर्चुअल हो रही है। भाषण के दौरान कुछ देर व्यवधान हुआ जिसे लेकर विरोधी दल कांग्रेस और कुछ अन्य लोगों ने तंज कसना शुरू कर दिया। मोदी के दिए भाषण के वीडियो में नजर आता है कि एक जगह वे बार-बार अपनी बाईं ओर देखते हैं, और कुछ सेकेंड की चुप्पी के बाद फ़ोरम के अध्यक्ष क्लॉस श्वाब से पूछते हैं कि क्या उनकी और उनके दुभाषिए की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है? इसके बाद वे अपना भाषण दोबारा देने लगते हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि बीबीसी हिंदी की वैबसाइट ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भाषण को कवर किया है, नरेंद्र मोदी के भाषण को नहीं। वैबसाइट ने मोदी के भाषण के टेलीप्रॉम्प्टर प्रसंग को जरूर कवर किया है, पर उन्होंने क्या कहा, इसे कवर करने की जरूरत नहीं समझी।