Wednesday, November 3, 2021

अमरिंदर ने कांग्रेस छोड़ी और पंजाब लोक कांग्रेस नाम से नई पार्टी बनाई


पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अंततः औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया है। मंगलवार को उन्होंने औपचारिक तौर पर कांग्रेस को छोड़ने और नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस को बनाने की घोषणा की। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे 7 पन्नों के इस्तीफे में उन्होंने अपने पूरे सियासी सफर का जिक्र किया है। अमरिंदर ने कांग्रेस हाईकमान के साथ नवजोत सिद्धू पर भी सवाल खड़े किए। दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू और नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है।

अमरिंदर ने 18 सितंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। इसके बाद ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी थी। मंगलवार को उन्होंने अपनी नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस की घोषणा कर दी। अमरिंदर पहले ही राज्य की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। इसके लिए पहले किसान आंदोलन का हल निकलवाएंगे, फिर भाजपा और अकाली दल के बागी नेताओं से गठजोड़ करेंगे। खबर है कि कांग्रेस ने कैप्टन को मनाने की कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं माने।

अमरिंदर ने नवजोत सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रधान बनाने पर भी बड़े सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मेरे और पंजाब के सभी सांसदों के विरोध के बावजूद सिद्धू को जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने सिद्धू को पाक-परस्त करार देते हुए कहा कि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान के आर्मी चीफ और प्रधानमंत्री इमरान खान को गले लगाया। यह दोनों ही भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं।

चन्नी-सिद्धू के बीच ठनी

पंजाब में नवजोत सिंह की नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से फिर ठन गई है। पंजाब सरकार पर सिद्धू के हमले जारी हैं। हाल में सिद्धू की आलोचना के कारण राज्य के एडवोकेट जनरल एपीएस देओल ने इस्तीफा दे दिया था, जिसे मुख्यमंत्री ने नामंजूर कर दिया है। सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि नवजोत सिद्धू ने जिस तरह से अपनी ही पार्टी की सरकार पर फिर से हमला बोला है उसी के जवाब में मुख्यमंत्री ने यह क़दम उठाया है।

महामारी ने वैश्विक-अर्थशास्त्र को दी ‘तीसरी लहर’


महामारी ने हमें क्या दिया? सोशल डिस्टेंसिंग, लॉक डाउन, क्वारंटाइन, सैनिटाइज़ेशन, वैक्सीनेशन वगैरह-वगैरह। इसके अलावा वर्क फ्रॉम होम, संयुक्त राष्ट्र से लेकर क्वॉड तक की वर्चुअल बैठकें, यार-दोस्तों और परिवारों की ज़ूम मुलाकातें, ऑनलाइन स्कूल, ऑनलाइन पेमेंट, ऑनलाइन फूड, मनोरंजन के ओटीटी प्लेटफॉर्म, ई-कॉमर्स वगैरह-वगैरह। पिछले एक-डेढ़ साल में दुनिया की कार्य-संस्कृति में ज़मीन-आसमान का फर्क आ गया है।

जिन्दगी में एक महत्वपूर्ण ट्विस्ट और अर्थशास्त्र जैसे संजीदा विषय में रोचक मोड़ आया है, जिसकी तरफ जिन्दगी में एक महत्वपूर्ण ट्विस्ट और अर्थशास्त्र जैसे संजीदा विषय में रोचक मोड़ आया है, जिसकी तरफ साप्ताहिक इकोनॉमिस्ट के 23 अक्तूबर के अंक ने ध्यान खींचा है। पत्रिका ने अपनी सम्पादकीय टिप्पणी में कहा है कि इस महामारी के दौरान मैक्रो-इकोनॉमिक्स जैसे भारी-भरकम विषय की जगह एक नए रियल टाइम अर्थशास्त्र ने ले ली है। इसे उसने अर्थशास्त्र की तीसरी लहर बताया है। यह डेटा-क्रांति इंटरनेट के आगमन के साथ ही हो गई थी, पर महामारी ने डेटा के नए स्रोतों और तुरंता विश्लेषण के दरवाजे खोल दिए हैं, जिसके परिणाम आने लगे हैं और अब आएंगे।

तुरंता-विश्लेषण

पत्रिका ने लिखा है कि क्या किसी को समझ में आ रहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में क्या हो रहा है?

महामारी ने तमाम पर्यवेक्षकों को हैरत में डाल दिया है। शायद ही किसी को उम्मीद थी कि तेल की कीमतें 80 डॉलर पार करेंगी, अमेरिका और चीन के बंदरगाहों में खाली कंटेनर पोतों की कतारें लगी होंगी। पिछले साल जब कोविड-19 अपने पंखा फैला रहा था, अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि साल के अंत तक बेरोजगारी कितनी जबर्दस्त होगी। आज कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और किसी को पता नहीं है कि मुद्रास्फीति कहाँ पहुँचेगी। परम्परागत-अर्थशास्त्री अपने पत्रे खोले बैठे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि कौन सी नीतियाँ रोजगार बढ़ाएंगी।

दूसरी तरफ अर्थशास्त्र में रियल टाइम रिवॉल्यूशन है। एमेज़ॉन से लेकर नेटफ्लिक्स जैसी बड़ी कम्पनियाँ रियल टाइम डेटा की मदद से फौरन पता कर ले रही हैं कि ग्रोसरी-डिलीवरी की हालत क्या है और कितनी बड़ी संख्या में लोग दक्षिण कोरिया के ड्रामा स्क्विड गेम को देख रहे हैं। महामारी की देन है कि देशों की सरकारें और उनके केंद्रीय बैंक रेस्तराँ-बुकिंग और कार्ड-पेमेंट से अर्थव्यवस्था की गति का अनुमान लगा रहे हैं।

गूगल कम्युनिटी मोबिलिटी रिपोर्ट से पता लग जाता है कि लोग अपने घरों से कितना बाहर निकल रहे हैं। यह व्यवस्था कोविड-19 की देन है। यह सब आपके मोबाइल फोन की मदद से हो रहा है। वैसे ही जैसे आपको गूगल मैप से पता लग जाता है कि राजमार्ग पर कितना ट्रैफिक है। गूगल ने कैमरे नहीं लगा रखे हैं, बल्कि आपके मोबाइल फोनों के जीपीएस से तुरंत पता लग जाता है कि ट्रैफिक की स्थिति क्या है।

Tuesday, November 2, 2021

2070 होगा भारत का नेट-ज़ीरो लक्ष्य


अंततः भारत ने नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लिए अपनी समय-सीमा दुनिया को बता दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (कॉप 26) में कहा कि हम 2070 तक नेट-ज़ीरो के लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। इसके अलावा भारत, 2030 तक ऊर्जा की अपनी 50 प्रतिशत जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी करेगा।

मोदी की इस घोषणा से बहुत से विशेषज्ञों को हैरत हुई है, क्योंकि अभी तक भारत कहता रहा है कि नेट-ज़ीरो लक्ष्य इस समस्या का समाधान नहीं है और भारत इस मामले में किसी के दबाव में नहीं आएगा। हालांकि यह लक्ष्य अमीर देशों द्वारा घोषित लक्ष्य से पीछे है, पर दुनिया के उन विशेषज्ञों के अनुमान के करीब है, जो भारत के संदर्भ में इसे व्यावहारिक मानते हैं। हाल में भारत के एक थिंकटैंक कौंसिल ऑन इनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्लू) ने अनुमान लगाया था कि भारत के लिए 2070 से 2080 के बीच का लक्ष्य रखना व्यावहारिक होगा। दूसरे विकसित देशों और चीन की तुलना में भी भारत अपने औद्योगिक विकास के शिखर से कई दशक दूर है। अभी यहाँ ऊर्जा का उपभोग काफी बढ़ेगा। भारत में इस समय जरूरत की 70 फीसदी ऊर्जा कोयले से उत्पन्न हो रही है।

हालांकि भारत में दुनिया की सबसे सस्ती सौर-ऊर्जा तैयार हो रही है, पर अभी इसे ग्रिड से जोड़ने की तकनीक विकसित नहीं हो पाई है। इसके अलावा भारत को हाइड्रोजन और उसके भंडारण की तकनीक विकसित करने में समय लगेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह काम 2040 तक हो पाएगा। भारत के पास इतनी पूँजी भी नहीं है कि वह तेजी से इन सब की व्यवस्था कर सके। इसीलिए भारत जो व्यावहारिक है उसे करने यानी क्लाइमेट जस्टिस की बात कर रहा है।

चार अल्पकालिक लक्ष्य

प्रधानमंत्री मोदी ने चार अल्पकालिक लक्ष्य और बताए हैं। नेट-जीरो लक्ष्य का मतलब है कि उसे तय करने वाला देश वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन उस सीमा से ज्यादा नहीं होने देगा, जिस सीमा तक इन गैसों को प्रकृति यानी वनस्पतियाँ और दुनिया भर में विकसित हो रही तकनीकें सोख लें।  

पिछले कुछ वर्षों में कुछ देशों ने अपने लक्ष्य घोषित किए हैं। अमेरिका, यूके, जापान और अन्य अमीर देशों ने इसके लिए सन 2050 को अपना लक्ष्य वर्ष घोषित किया है। दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक चीन ने 2060 का लक्ष्य रखा है। रूस और सऊदी अरब ने भी 2060 का लक्ष्य तय किया है।

पाँच अमृत तत्व

नरेंद्र मोदी के इस भाषण में जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत की प्रशासनिक-नीतियों के अलावा परंपरागत समझ भी झलकती है। उन्होंने सम्मेलन में भारत की ओर से पांच वायदे किए। उन्होंने कहा, जलवायु परिवर्तन पर इस वैश्विक मंथन के बीच, मैं भारत की ओर से, इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं, पंचामृत की सौगात देना चाहता हूं। पहला- भारत, 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक पहुंचाएगा। दूसरा-हम 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा आवश्यकताओं में से 50 फीसदी अक्षय-ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने लगेंगे। तीसरा- अब से लेकर 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में हम एक अरब टन की कमी करेंगे। चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा। और पाँचवाँ- वर्ष 2070 तक भारत, नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

Monday, November 1, 2021

कॉप26 शुरू, भारत की दुविधा और जी-20 का कोई वायदा नहीं

 ग्लासगो में कॉप26 के उद्घाटन के अवसर पर कॉप के अध्यक्ष आलोक शर्मा से हाथ मिलाते हुए संरा महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद। सम्मेलन की कार्यकारी सचिव पैट्रीशिया ऐस्पिनोसा (बाएं से दूसरी) और सम्मेलन की निवृत्तमान अध्यक्ष चिली की पर्यावरण मंत्री कैरलीना श्मिट भी चित्र में हैं।  

रविवार
, 31 अक्टूबर, को स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में संयुक्त राष्ट्र के कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (कॉप26) की शुरुआत हुई। 12 नवम्बर तक चलने वाले इस सम्मेलन में सभी मोर्चों पर महत्वाकांक्षा बढ़ाने और सन 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को कारगर ढंग से लागू करने के लिए दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने पर चर्चा होगी। सम्मेलन में ब्रिटेन की 95 वर्षीय महारानी एलिज़ाबेथ के आगमन की संभावना थी, पर शारीरिक असमर्थता के कारण वे नहीं आ पाईं। उनके स्थान पर सोमवार को राजकुमार चार्ल्स आने वाले हैं।

सम्मेलन से ठीक पहले अनेक रिपोर्टें और अध्ययन जारी किए गए हैं, जिनके निष्कर्षों में मौजूदा जलवायु कार्रवाई को अपर्याप्त क़रार दिया गया है। इन अध्ययनों में, पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1।5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक सीमित रखने के लिये महत्वाकांक्षी जलवायु संकल्पों की अहमियत को रेखांकित किया गया है।

कार्यकारी सचिव पैट्रीशिया ऐस्पिनोसा ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में, दुनिया एक अहम पड़ाव पर खड़ी है। उन्होंने कॉप26 में सफलता को पूर्ण रूप से सम्भव बताते हुए अपने आशावादी रुख़ की वजह बताई। उन्होंने कहा, मेरे विचार में हम जो समझ व देख रहे हैं, हम जानते हैं कि यह रूपांतरकारी बदलाव हो सकता है। यहाँ औज़ार हैं, यहाँ उपकरण हैं, यहाँ समाधान हैं। भिन्नताएँ हैं, पर यह बात भरोसा दिलाती है कि उद्देश्यों को लेकर एकता है।

‘अस्तित्व पर संकट’

यूएन महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान कहा कि मानवता के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। हमारे पास इस संकट को हल करने के लिए क्षमता और संसाधन मौजूद हैं, पर हम पर्याप्त क़दम नहीं उठा रहे हैं। उन्होंने पुख़्ता जलवायु कार्रवाई के लिये अक्षय ऊर्जा टेक्नोलॉजी और नवाचारों को सभी देशों तक पहुँचाने के प्रयासों में तेज़ी लाने, निजी सेक्टर द्वारा नेट-शून्य उत्सर्जन संकल्पों को प्राथमिकता देने, उन्हें स्पष्ट व ज़्यादा असरदार बनाने का आग्रह किया।

Sunday, October 31, 2021

त्रिपुरा की हिंसा के राजनीतिक निहितार्थ


हाल में बांग्लादेश में मंदिरों पर हमलों के बाद देश के पूर्वोत्तर के राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा हुई है। इसमें भी सबसे ज्यादा गंभीर खबरें त्रिपुरा से आ रही हैं। राज्य सरकार का कहना है कि बाहर से आए कुछ तत्व राज्य में हिंसा भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। गत 15 अक्तूबर को बांग्लादेश में कुछ दुर्गापूजा पंडालों और मंदिरों पर हमले हुए थे। उसकी प्रतिक्रिया पूर्वोत्तर में हुई है। त्रिपुरा में भी बांग्लादेश की हिंसा के विरोध में रैलियाँ हुई हैं। अब सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से अफवाहें फैलाई जा रही हैं।

हालांकि बांग्लादेश सरकार ने तेजी से कार्रवाई करके अपने यहाँ हिंसा को दबा दिया और इसकी साजिश रचने वालों की गिरफ्तारियाँ की हैं, पर पूर्वोत्तर भारत में इसकी प्रतिक्रिया हुई है। सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग ने हिंसा के विरोध में रैलियां निकालीं। मीडिया रिपोर्टों में सामने आया है कि बांग्लादेश पुलिस ने 693 लोगों को हिरासत में लिया है। भारत में विश्व हिंदू परिषद ने इन घटनाओं को बांग्लादेश में हिंदुओं का नरसंहार बताते हुए, इसे रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र को भी चिट्ठी लिखी है। त्रिपुरा की रैली भी इसी अभियान का एक हिस्सा थी।

शेष भारत में भी इस हिंसा के राजनीतिक निहितार्थ हैं। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम पर हिंसा भड़काने के आरोप लगाए हैं। वहीं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है, हमारे मुसलमान भाइयों के साथ त्रिपुरा में हिंसा की जा रही है। हिंदू होने के नाम पर हिंसा और नफ़रत फैलाने वाले लोग हिंदू नहीं हैं। सरकार कब तक नहीं देखने और सुनने का नाटक करती रहेगी।

राजधानी अगरतला से अरीब 155 किलोमीटर दूर स्थित पानीसागर इलाके में विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को एक रैली निकाली। रैली के दौरान कुछ मुस्लिम व्यापारियों के घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई और फिर उन्हें जला दिया गया। आरोप है कि एक मस्जिद में भी तोड़फोड़ की गई। स्थानीय पुलिस का कहना है कि विश्व हिंदू परिषद की रैली में करीब 3,500 कार्यकर्ता शामिल थे। हिंसा के संबंध में दो मामले दर्ज किए हैं लेकिन अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

पत्रकार समृद्धि सकुनिया ने एक ट्वीट में बताया कि पिछले एक हफ्ते में पूरे राज्य में नफरती अपराधों के कम से कम 21 मामलों की पुष्टि हुई है। इनमें से 15 मामले अलग-अलग मस्जिदों के तोड़ फोड़ के थे। त्रिपुरा पुलिस का कहना है कि सोशल मीडिया पर झूठी खबरें, तस्वीरें और वीडियो फैला कर मामले को और भड़काने की कोशिश की जा रही है। पुलिस ने कहा है कि झूठी खबरों को फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

उत्तर त्रिपुरा ज़िले में गुरुवार 28 अक्तूबर को फिर सांप्रदायिक हिंसा की खबर है। यह हमला उस जगह से थोड़ी ही दूर पर हुआ जहां 48 घंटे पहले एक मस्जिद तोड़ दी गई थी, दुकानें जला दी गईं थीं और अल्पसंख्यकों के घरों में तोड़फोड़ की गई थी। इस हमले के लिए विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। उत्तर त्रिपुरा ज़िले के एसपी भानुपाड़ा चक्रवर्ती ने कहा कि पानीसागर इलाके में मस्जिद के जलाए जाने की ग़लत ख़बर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है।