Saturday, October 23, 2021

अमेरिकी से समझौता करेगा पाकिस्तान, चाहता है भारत से रिश्ते सुधारने में मदद

पिछले कुछ समय से पाकिस्तान सरकार इस बात को लेकर बेचैन है कि अमेरिका उससे नाराज है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अभी तक प्रधानमंत्री इमरान खान से फोन पर बात नहीं की है। इस परेशानी की वजह अफगानिस्तान है। अमेरिका को लगता है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में डबल गेम खेला है। लगता यह है कि यह डबल गेम अब भी चल रहा है। इसका नवीनतम उदाहरण अमेरिकी वायुसेना को अफगानिस्तान में कार्रवाई करने के सिलसिले में अपनी हवाई सीमा के इस्तेमाल से जुड़ा है।

अमेरिका ने अफगानिस्तान से जाते-जाते अफगानिस्तान में कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तानी हवाई अड्डे का इस्तेमाल करने की अनुमति माँगी थी, जिसे देने से पाकिस्तान सरकार ने न केवल इनकार किया, बल्कि बड़े गर्व से इसकी घोषणा की थी। अब सीएनएन ने खबर दी है कि पाकिस्तान ने अपनी हवाई सीमा का इस्तेमाल करने पर हामी भर दी है, जिसका औपचारिक समझौता जल्द हो जाएगा।

सीएनएन के अनुसार बाइडेन प्रशासन ने अपने सांसदों को बताया कि इस आशय का औपचारिक समझौता होने वाला है। अमेरिकी प्रशासन ने शुक्रवार को सांसदों को सूचित किया कि उनका अफगानिस्तान में सैन्य और खुफिया अभियानों के संचालन के लिए पाकिस्तान से उसके हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल के लिए पाकिस्तान के साथ एक समझौते को औपचारिक रूप देने के करीब है। सीएनएन ने कांग्रेस के सदस्यों के साथ खुफिया ब्रीफिंग के विवरण से परिचित तीन स्रोतों का हवाला देते हुए इसकी जानकारी दी। उधर पाकिस्तान सरकार के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि ऐसा कोई समझौता नहीं होने वाला है।

अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद विरोधी अपने अभियान और भारत के साथ रिश्ते सुधारने में मदद करने की शर्त पर अमेरिका के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर करने की इच्छा व्यक्त की है। यह बात सीएनएन ने अपने एक स्रोत के माध्यम से बताई है। एक दूसरे स्रोत ने बताया कि बातचीत अभी चल रही है और शर्तें अभी तय नहीं हैं। शर्तें बदल भी सकती हैं।

पश्चिमी क्वॉड यानी भारत की ‘एक्ट-वेस्ट पॉलिसी’


भारत, इसराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की हाल में हुई एक वर्चुअल बैठक के दौरान एक नए चतुष्कोणीय फोरम की पेशकश को पश्चिम एशिया में एक नए सामरिक और राजनीतिक ध्रुव के रूप में देखा जा रहा है। राजनयिक क्षेत्र में इसे 'न्यू क्वॉड' या नया 'क्वॉडिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग' कहा जा रहा है। गत 18 अक्तूबर को यह बैठक उस दौरान हुई, जब भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर, इसराइल के दौरे पर थे।

इस बैठक में वे इसराइल के विदेशमंत्री येर लेपिड के साथ यरुसलम में साथ-साथ बैठे। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायेद अल नाह्यान वर्चुअल माध्यम से इसमें शामिल हुए। बैठक में  एशिया और पश्चिम एशिया में अर्थव्यवस्था के विस्तार, राजनीतिक सहयोग, व्यापार और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। कुल मिलाकर इस समूह का कार्य-क्षेत्र बहुत व्यापक है।

जिस समय जयशंकर इसराइल की यात्रा पर थे, उसी समय इसराइल में 'ब्लू फ्लैग 2021' बहुराष्ट्रीय हवाई युद्धाभ्यास चल रहा था। इसराइल के अब तक के सबसे बड़े इस एयर एक्सरसाइज़ में भारत समेत सात देशों की वायु सेनाओं ने भाग लिया। इनमें जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, फ़्रांस, ग्रीस और अमेरिका की वायु सेनाएं भी शामिल थीं। भारतीय वायुसेना के कुछ दस्ते मिस्र के अड्डे पर उतरे थे। इस युद्धाभ्यास और नए क्वॉड के आगमन को आने वाले समय में पश्चिम एशिया की नई सुरक्षा-प्रणाली के रूप में देखना चाहिए।

पश्चिम पर निगाहें

एक अरसे से भारतीय विदेश-नीति की दिशा पूर्व-केन्द्रित रही है। पूर्व यानी दक्षिण-पूर्व और सुदूर पूर्व, जिसे पहले लुक-ईस्ट और अब एक्ट-ईस्ट पॉलिसी कहा जा रहा है। पिछले कुछ समय से भारत ने पश्चिम की ओर देखना शुरू किया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी हमारे पश्चिम में हैं। वैदेशिक-संबंधों के लिहाज से यह हमारा समस्या-क्षेत्र रहा है। बहुसंख्यक इस्लामी देशों के कारण कई प्रकार के जोखिम रहे हैं। एक तरफ इसराइल और अरब देशों के तल्ख-रिश्तों और दूसरी तरफ ईरान और सऊदी अरब के अंतर्विरोधों के कारण काफी सावधानी बरतने की जरूरत भी रही है।

भारतीय विदेश-नीति को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि हमने सबके साथ रिश्ते बनाकर रखे। पाकिस्तान की नकारात्मक गतिविधियों के बावजूद। खासतौर से मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी में पाकिस्तान ने भारत के हितों पर चोट करने में कभी कसर नहीं रखी। भारतीय नजरिए से पश्चिम एशिया समस्या-क्षेत्र रहा है। एक वजह यह भी थी कि भारत और अमेरिका के दृष्टिकोण में साम्य नहीं था। अमेरिका ने भी पश्चिम-एशिया में भारत को अपने साथ नहीं रखा। पर अब हवा का रुख बदल रहा है। पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्वॉड में भारत और अमेरिका साथ-साथ हैं।

Thursday, October 21, 2021

पाकिस्तानी विदेशमंत्री काबुल क्यों गए?

पाकिस्तानी विदेशमंत्री का काबुल में स्वागत

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी एक दिन की तालिबान यात्रा पर गुरुवार को क़ाबुल पहुंचे। ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख जनरल फ़ैज़ अहमद भी इस दौरे पर कुरैशी के साथ गए हैं। अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद किसी पाकिस्तानी मंत्री का यह पहला अफ़ग़ानिस्तान दौरा है, पर जनरल फ़ैज़ का यह दूसरा दौरा है।

क्या वजह है इस दौरे की? खासतौर से जब मॉस्को में तालिबान के साथ रूस की एक बैठक चल रही है? इसे 'मॉस्को फॉर्मेट' नाम दिया गया है। इस बैठक में चीन और पाकिस्तान समेत 10 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं लेकिन अमेरिका इसमें हिस्सा नहीं ले रहा है। भारत ने इसमें हिस्सा लिया है और कहा है कि हम मानवीय सहायता देने को तैयार हैं, पर सम्भवतः भारत भी तालिबान सरकार को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है।

पाकिस्तानी विदेशमंत्री का दौरा ऐसे समय पर हुआ है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई नेता तालिबान से एक समावेशी सरकार बनाने और महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने की अपील कर रहे हैं। क्या पाकिस्तानी विदेशमंत्री तालिबानियों को समझाने गए हैं कि अपने तौर-तरीके बदलो?

पंजशीर-प्रतिरोध

फिलहाल मुझे एक बात समझ में आती है। पंजशीर में प्रतिरोध तेज हो गया है और काफी बड़े इलाके से तालिबानियों को खदेड़ दिया गया है। पिछली बार जब जनरल फ़ैज़ वहाँ गए थे, तब भी पंजशीर का मसला खड़ा था। उसके बाद कहा गया कि पाकिस्तानी सेना ने पंजशीर पर कब्जे के लिए तालिबान की मदद की थी। अगले कुछ दिन में बातें ज्यादा साफ होंगी। तालिबान की ताकत घटती जा रही है। उसके सामने एक तरफ आईसिस का खतरा है, दूसरी तरफ पंजशीर में उसके पैर उखड़ रहे हैं।

इन सब बातों के अलावा अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक चुनौतियां आने वाले दिनों में और भी गंभीर हो सकती हैं। अमेरिका ने फिर साफ़ कर दिया है कि उसका तालिबान के 'फ़्रीज़ फंड' को रिलीज़ करने का कोई इरादा नहीं है। अमेरिका ने मॉस्को वार्ता में हिस्सा भी नहीं लिया। बेशक अफगानिस्तान की जनता की परेशानियाँ बढ़ गई हैं, उनके भोजन और स्वास्थ्य के बारे में दुनिया को सोचना चाहिए, पर जिन देशों ने तालिबान को बढ़ने का मौका दिया, उनकी भी कोई जिम्मेदारी है। पाकिस्तान, चीन और रूस को सबसे पहले मदद के लिए आगे आना चाहिए।

आर्थिक संकट

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि अफ़ग़ानिस्तान को तुरंत सहायता नहीं मिली तो स्थिति 'बेहद गंभीर' हो जाएगी। अफ़ग़ानिस्तान के आर्थिक संकट का असर पाकिस्तान, ताजिकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से लेकर तुर्की और यूरोप तक की मुश्किल बढ़ा देगा। अफ़ग़ानिस्तान को बड़ी मात्रा में विदेशी सहायता मिलती थी। ब्रिटेन की सरकार का अनुमान है कि ओईसीडी (ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) देशों ने साल 2001 से 2019 के बीच अफ़ग़ानिस्तान को 65 अरब अमेरिकी डॉलर का दान किया था।

Wednesday, October 20, 2021

अफगान महिला खिलाड़ी का सिर कलम

घेरे में अफ़ग़ान महिला खिलाड़ी माहज़बीं

खबर है कि तालिबान हुक्मरां के आदेश से अफगानिस्तान की जूनियर महिला वॉलीबॉल टीम की खिलाड़ी माहज़बीं हकीमी का सिर कलम कर दिया गया है। यह खबर टीम के कोच को उधृत करते हुए इंडिपेंडेंट अखबार के फारसी संस्करण ने दी है। यह काम इसी महीने कुछ समय पहले हुआ है। महाज़बीं हकीमी अपने देश की जूनियर वॉलीबॉल टीम की ओर से खेल चुकी हैं। टीम के कोच के अनुसार यह खबर दुनिया तक इसलिए नहीं पहुँची, क्योंकि हत्या करने वालों ने उनके परिवार के सदस्यों को धमकी दी थी कि इसके बारे में कोई बात कही तो उनके लिए खराब होगा। अशरफ ग़नी प्रशासन के पतन के पहले तक महाज़बीं काबुल म्युनिसिपैलिटी वॉलीबॉल क्लब की ओर से खेलती थीं।

कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर उनके कटे हुए सिर की फोटो वायरल हुई थी। अब टीम के कोच ने, जिनके नाम को छिपाया गया है, कहा कि हत्या माहज़बीं की हुई थी। वैबसाइट ने कोच का नाम सुरैया अफ़ज़ली लिखा है, साथ ही यह भी लिखा है कि यह असली नाम नहीं है। कोच ने यह भी बताया कि टीम की केवल दो सदस्य ही देश से बाहर जा पाईं थीं। महाज़बीं उन अभागी खिलाड़ियों में शामिल थीं, जो देश में ही रह गईं।

प्रशासन पर कब्जा करने के बाद से तालिबान ने देश की महिला खिलाड़ियों की तलाश शुरू कर दी है। उन्होंने खासतौर से वॉलीबॉल टीम की खिलाड़ियों की तलाश की, जो देश के बाहर जाकर खेल चुकी हैं और मीडिया के कार्यक्रमों में भी शामिल हुई हैं। कोच के अनुसार देश में महिला खिलाड़ियों की दशा खराब है। या तो वे देश छोड़कर भाग रही हैं या छिप रही हैं।

अफगानिस्तान की राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम 1978 में बनी थी। देश में लड़कियों के सशक्तीकरण में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अफगान खिलाड़ियों की सहायता के लिए पर्याप्त वैश्विक समर्थन तैयार नहीं हो पाया है। पिछले सप्ताह फुटबॉल के अंतरराष्ट्रीय संगठन फीफा और कतर सरकार ने करीब 100 महिला फुटबॉल खिलाड़ियों को देश से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की है। इनमें राष्ट्रीय टीम की खिलाड़ी और उनके परिवारजन शामिल हैं। देश में महिला खेल पूरी तरह बन्द हैं। माध्यमिक विद्यालयों तक में लड़कियों की शिक्षा बन्द है।

 

 

क्या उत्तर प्रदेश के वोटर को पसंद आएगी प्रियंका गांधी की ‘नई राजनीति’?

उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कुछ अलग नजर आने और चुनाव के मुद्दों को विस्तार देने के इरादे से उतर रही है। पार्टी ने मंगलवार को घोषणा की कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव पार्टी के 40 फीसदी टिकट महिला उम्मीदवारों को दिए जाएंगे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस बात की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि पार्टी टिकट पाने के आवेदन के लिए तारीख 15 नवम्बर तक बढ़ा दी गई है। इस चुनाव में पार्टी का नारा है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’

कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन वापस लेने की शिद्दत से तलाश है। सन 2017 के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई थी और राज्य में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की पूरी कोशिश कर रही है। वह भी तब, जब उत्तर प्रदेश के चुनाव में ‘जाति’ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कांग्रेस यह कदम उठा कर महिला मतदाताओं को अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है। उसके पहले 2012 के चुनाव में पार्टी को बहुत उम्मीदें थीं। तब राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा किया गया था।

सन 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की सफलता से प्रेरित कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सफलता की आशा थी। उस वक्त समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव के भीतर राज्य के वोटर को नई ऊर्जा दिखाई पड़ी थी। कांग्रेस को लगता था कि 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के कारण सफलता मिली है। वस्तुतः कांग्रेस की सफलता के पीछे उसे प्राप्त हमदर्दी थी, जो वाममोर्चा के हाथ खींचने के कारण पैदा हुई थी।

प्रियंका गांधी मानती हैं कि महिलाएं नफरत की राजनीति का विकल्प प्रदान करेंगी। महिलाओं को राजनीति का केन्द्रीय विषय बनाने का विचार अपने आप में रोचक और प्रभावशाली है। लोकसभा के पिछले दो चुनावों से यह बात साबित हुई है कि देश में महिला वोटर निर्णायक भूमिका निभाती हैं। बावजूद इसके सवाल है कि कांग्रेस पार्टी के पास क्या यूपी में दो सौ के आसपास ऐसी महिला प्रत्याशी हैं, जो मजबूती के साथ उतर सकें। यदि हैं भी, तो क्या वे पुराने कांग्रेसी नेताओं के परिवारों से आएंगी या अपनी सामर्थ्य पर राजनीति में उतरी महिलाएं होंगी?