पंजाब में जो राजनीतिक बदलाव हुआ है, उसका श्रेय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को दिया जा रहा है। पिछले कुछ समय से दोनों पार्टी को दिशा दे रहे हैं, इसलिए आने वाले समय में इन दोनों की परीक्षा होगी। पंजाब में नेतृत्व का सवाल हल होने के बाद चुनाव और उसके बाद की परिस्थितियों से जुड़े फैसले अब उन्हें ही करने होंगे। उसके साथ-साथ पर्यवेक्षक यह भी कह रहे हैं कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मसले भी सिर उठाएंगे।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस हाईकमान सबसे पहले
अपने ऊपर लगे ‘कमजोर-नेतृत्व’ के विशेषण को हटाना चाहती है। इसके
लिए जरूरी है कि फैसले होने चाहिए। सही या गलत का निर्णय समय करेगा। पंजाब के
फैसले को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर बहस शुरू हो गई है, पर ज्यादातर लोग मानते
हैं कि राहुल और प्रियंका ने अपनी उपस्थिति को दिखाना शुरू किया है। एक तरह से यह
जी-23 के नाम भी संदेश है।
लगता यह भी है कि पार्टी ने होमवर्क किए बगैर
अमरिंदर को हटाने का फैसला कर लिया गया है। अन्यथा अबतक नए मुख्यमंत्री का नाम सामने आ
जाता। तार्किक रूप से नवजोत सिद्धू को यह पद दिया जाना चाहिए।
राजनीतिक दृष्टि
नेतृत्व की उपस्थिति साबित होने के अलावा देखना
यह भी होगा कि इसके पीछे की राजनीतिक-दृष्टि क्या है और दूरगामी विचार क्या है।
बताते हैं कि कांग्रेस के महामंत्री अजय माकन ने चंडीगढ़ में पार्टी के ऑब्ज़र्वर
के रूप में जाने के पहले शुक्रवार की शाम को राहुल गांधी से भेंट की।
इसके बाद वे अभिषेक सिंघवी से भी मिले और यह जानकारी ली कि यदि अमरिंदर सिंह विधानसभा भंग करने की सिफारिश करें या केंद्रीय नेतृत्व का निर्देश मानने के बजाय इस्तीफा देने से इनकार कर दें, तब क्या होगा। उस समय तक 60 से ज्यादा विधायकों के हस्ताक्षरों से एक पत्र हाई कमान के पास आ चुका था। यानी पार्टी ने कानूनी व्यवस्थाएं भी कर ली थीं।