इस सप्ताह जिस मॉनसून-सत्र का समापन हुआ है, उसे पिछले दो दशक में लोकसभा के तीसरे सबसे कम और राज्यसभा में आठवें सबसे कम उत्पादक सत्र के रूप में याद किया जाएगा। संसदीय-कर्म के इस विचलन और विद्रूप के पीछे सरकार और विरोधी-दलों दोनों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। यानी मोटे तौर पर यह भारतीय-राजनीति का विद्रूप है, जो अक्सर दिखाई पड़ता है। सत्र समापन के बाद दोनों पक्षों के राजनेताओं का मुस्कराते हुए नजर आना क्या कहता है?
Thursday, August 12, 2021
संसदीय कर्म का ह्रास, जिम्मेदार कौन?
इस सप्ताह जिस मॉनसून-सत्र का समापन हुआ है, उसे पिछले दो दशक में लोकसभा के तीसरे सबसे कम और राज्यसभा में आठवें सबसे कम उत्पादक सत्र के रूप में याद किया जाएगा। संसदीय-कर्म के इस विचलन और विद्रूप के पीछे सरकार और विरोधी-दलों दोनों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। यानी मोटे तौर पर यह भारतीय-राजनीति का विद्रूप है, जो अक्सर दिखाई पड़ता है। सत्र समापन के बाद दोनों पक्षों के राजनेताओं का मुस्कराते हुए नजर आना क्या कहता है?
Wednesday, August 11, 2021
कुंदूज हवाई अड्डे और वहाँ खड़े एमआई-35 हेलीकॉप्टर पर तालिबान का कब्जा
इन तनावपूर्ण हालात में राष्ट्रपति अशरफ गनी मजार-ए-शरीफ के दौरे पर पहुंचे हैं जहां उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के बूढ़े शेर कहे जाने वाले अब्दुल रशीद दोस्तम से मुलाकात की है। तालिबान ने पहले ही देश के ग्रामीण इलाकों पर कब्जा कर लिया है और अब उसने शहरों पर कब्जा तेज कर दिया है। सुरक्षा बल तालिबानी हमलों के सामने बेबस नजर आ रहे हैं।
तालिबान के खिलाफ विफल क्यों हो रही है अफगानिस्तान की सेना?
पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान के सात सूबों की राजधानियों
पर कब्जा कर लिया है। उत्तर में कुंदुज, सर-ए-पोल
और तालोकान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया। ये शहर
अपने ही नाम के प्रांतों की राजधानियां हैं। दक्षिण में ईरान की सीमा से लगे निमरोज़
की राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया है। उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान
सीमा से लगे नोवज्जान प्रांत की राजधानी शबरग़ान पर भी तालिबान का कब्जा हो
गया है। मंगलवार की शाम को उत्तर के बागलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-खुमरी
पर तालिबान का कब्जा हो गया। ईयू के एक प्रवक्ता के अनुसार देश के 65% हिस्से पर
या तो तालिबान
का कब्जा है या उसके साथ लड़ाई चल रही है।
उधर खबरें यह भी हैं कि अफगान सुरक्षा बलों ने पिछले
शुक्रवार को हेरात प्रांत के करुख जिले पर जवाबी कार्रवाई करते हुए फिर से कब्जा
कर लिया। तालिबान ने पिछले एक महीने में हेरात प्रांत के एक दर्जन से अधिक जिलों
पर कब्जा कर लिया था। हेरात में इस्माइल खान का ताकतवर
कबीला सरकार के साथ है। उसने तालिबान को रोक रखा है। फराह प्रांत
में अफगान वायुसेना ने तालिबान के ठिकानों पर बम गिराए। अमेरिका के बम वर्षक विमान
बी-52 भी इन हवाई हमलों में अफगान सेना की मदद कर
रहे हैं। तालिबान ने इन हवाई हमलों को लेकर कहा
है, कि इनके माध्यम से आम अफगान लोगों को निशाना
बनाया जा रहा है। उधर अमेरिका का कहना है कि हमारा सैनिक अभियान 31 अगस्त को
समाप्त हो जाएगा। उसके बाद देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी अफगान सेना की है। अमेरिका के
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अफगानिस्तान के नेताओं को अपनी भूमि
की रक्षा के लिए अब निकल कर आना चाहिए।
हवाई हमलों के बावजूद तालिबान की रफ्तार थमी नहीं है। इस दौरान सवाल उठाया जा रहा है कि अफगान सेना तालिबान के मुकाबले लड़ क्यों नहीं पा रही है? कहा यह भी जा रहा है कि अमेरिकी सेना को कम से कम एक साल तक और अफगानिस्तान में रहना चाहिए था। कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमेरिकी सेना को हटना ही था, तो पहले देश में उन कबीलों के साथ मोर्चा बनाना चाहिए था, जो तालिबान के खिलाफ खड़े हैं।
Tuesday, August 10, 2021
कहाँ से मिल रही है तालिबान को मदद?
9 अगस्त तक अफगानिस्तान में तालिबान बढ़त की स्थिति |
अमेरिकी सेना की वापसी की तारीख़ की घोषणा के बाद से ही अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान लड़ाकों और सरकारी सैनिकों के बीच संघर्ष तेज़ हो गया था, लेकिन बीते कुछ हफ़्तों में जिस गति से तालिबान आगे बढ़ रहे हैं उससे अफ़ग़ानिस्तान के भीतर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या तालिबान को मिल रही जीत के पीछे किसी बाहरी ताक़त का हाथ है? तालिबान को इतनी तेजी से मिल रही सफलता के बावजूद पश्चिमी पर्यवेक्षकों का कहना है कि इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाल लेना चाहिए कि उनकी निर्णायक जीत हो जाएगी। वे कहते हैं कि इंतजार कीजिए, हालात बदलेंगे।
बीबीसी ने 9 अगस्त तक का जो नक्शा जारी किया
है, उसे देखते हुए लगता है कि पिछले दो महीने में तालिबान ने जितनी बढ़त बनाई है,
उतनी पिछले 20 साल में नहीं बनाई थी। कहाँ से उन्हें मिल रहे हैं हथियार? कहाँ से आ रहे हैं वहाँ लड़ने वाले सिपाही?
अफगान सेना हालांकि आतंकियों से लोहा ले रही है,
जिसमें अमेरिका भी लगातार उनकी मदद कर रहा है, पर कहानी उतनी अच्छी
नहीं है, जितनी होनी चाहिए। खबर है कि अफगान सेना के जवानों को सोमवार (9 अगस्त)
रात बड़ी कामयाबी मिली। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हवाई
हमले में 85 तालिबानी आतंकवादियों को मार गिराया और मंगलवार को भी अभियान जारी था।
अफ़ग़ानिस्तानी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता
फवाद अमान ने मंगलवार (10 अगस्त)) को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने लिखा,
”सोमवार रात सैयद करम और अहमद अबाद जिलों और पक्तिका प्रांत राजधानी
के आसपास के इलाकों पर हवाई हमला किया गया, जिसमें
85 तालिबानी आतंकवादी मारे गए।”
उन्होंने इसके बाद एक और ट्वीट किया, ”अमेरिकी वायुसेना ने मंगलवार को कपिसा प्रांत के निजरब जिले में तालिबानी आतंकियों के गढ़ों को निशाना बनाया। इसमें दो पाकिस्तानियों सहित 12 तालिबानी मारे गए। हवाई हमले में उनका एक टैंक और एक वाहन भी नष्ट हो गया है।”
राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कपिल सिब्बल के घर हुई बैठक के मायने
सोमवार 9 अगस्त को कपिल सिब्बल के घर पर विरोधी-नेताओं की बैठक चर्चा का विषय बन गई है। 15 पार्टियों के क़रीब 45 नेता रात्रिभोज के लिए कपिल सिब्बल के घर पर जमा हुए। इनमें कुछ सांसद भी थे। इसके एक दिन पहले ही कपिल सिब्बल का 73वाँ जन्मदिन मनाया गया था। माना जाता है कि सोनिया गांधी को लिखे गए 23 नेताओं के पत्र के पीछे कपिल सिब्बल प्रमुख प्रस्तावक थे। उन्हें उन नेताओं में शुमार किया जाता है जो राहुल गांधी के तौर-तरीकों से असहमत हैं। इस बैठक के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर सुगबुगाहट है कि इस तरह से बैठक बुलाना क्या सही था?
हर रंग के विरोधी
बैठक में शामिल नेताओं में लालू यादव, शरद पवार, अखिलेश यादव, पी
चिदंबरम, डेरेक ओ’ब्रायन, कल्याण बनर्जी, सीताराम येचुरी, डी
राजा और संजय राउत, डीएमके के तिरुचि शिवा, जयंत
चौधरी, उमर अब्दुल्ला शामिल थे। इनके अलावा बीजेडी के पिनाकी मिश्रा, अकाली दल के नरेश गुजराल, और आम आदमी
पार्टी के संजय सिंह भी शामिल हुए। टीडीपी, टीआरएस
और वाईएसआर कांग्रेस और आरएलडी के नेता भी इनमें थे। इनमें वे पार्टियां शामिल
हैं, जो अमूमन विरोधी-दलों बैठकों बुलाई नहीं जातीं या फिर आती नहीं हैं। हाल में
राहुल गांधी ने नाश्ते पर बुलाया था तो आम आदमी पार्टी शामिल नहीं हुई थी और
बीजेडी, टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस को बुलाया नहीं गया था।
राहुल गांधी सोमवार को ही दो दिवसीय दौरे पर कश्मीर गए हैं और इस बीच ये डिनर हुआ है। इतने महत्वपूर्ण नेताओं की बैठक में उनकी अनुपस्थिति अटपटी लगती है। इस डिनर में कांग्रेस के जी-23 के कुछ सदस्य भी शामिल हुए, जिनमें गुलाम नबी आज़ाद, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चह्वाण और संदीप दीक्षित के नाम प्रमुख हैं। पी चिदंबरम भी मौजूद थे, हालांकि उनकी गिनती जी-23 में नहीं होती।