Wednesday, February 17, 2021

जाट-बेल्ट की 40 लोकसभा सीटों को लेकर बीजेपी की चिंताएं


मंगलवार 16 फरवरी को दो खबरें एक साथ मिलीं। एक थी पुदुच्चेरी की उप-राज्यपाल किरण बेदी का हटाया जाना और दूसरी थी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह की राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट-बेल्ट के सांसदों, विधायकों और स्थानीय नेताओं से मुलाकात। पुदुच्चेरी में स्थानीय स्तर पर किरण बेदी का काफी विरोध हो रहा था, पर वहाँ राजनीतिक तोड़-फोड़ भी चल रही है। वहाँ कांग्रेस के चार विधायक अबतक पार्टी छोड़ चुके हैं और अब जल्द ही कांग्रेस सरकार के अल्पमत में हो जाने का अंदेशा है। यानी वहाँ किसी भी समय राजनीतिक गतिविधियाँ तेज होने वाली हैं। शायद उसी की पेशबंदी में किरण बेदी को हटाकर उनकी जिम्मेदारियाँ फिलहाल तेलंगाना के राज्यपाल के सिपुर्द कर दी गई हैं।

राजनीतिक रूप से बीजेपी की चिंता जाट-बेल्ट को लेकर हैं, जहाँ तीनों राज्यों की 40 लोकसभा सीटें किसान-आंदोलन से प्रभावित हो रही हैं। इस इलाके में इन दिनों महापंचायतें और खाप पंचायतें चल रही हैं, जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार की किसान-आंदोलन को लेकर नीतियों को चुनौती दे रही हैं। जेपी नड्डा और अमित शाह ने यह बैठक एक तो जमीनी हालात की टोह लेने के लिए और अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश देने के लिए बुलाई थी। इस बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और कृषि राज्यमंत्री संजीव बालियान भी उपस्थित थे।

बताया जाता है कि बैठक में अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे किसानों को तीनों कानूनों के लाभ समझाएं और इस बात को सुनिश्चित करें कि जो लोग किसानों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें उचित उत्तर मिले। दूसरी तरफ स्थानीय नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को जानकारी दी कि यदि आंदोलन जारी रहा और सरकार की ओर से उसे खत्म करने के प्रयास नजर नहीं आए, तो चिंता की बात होगी। इस इलाके की 40 लोकसभा सीटें इस आंदोलन से प्रभावित होंगी, इसलिए कोशिश होनी चाहिए कि आंदोलन का विस्तार नहीं होने पाए। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि वामपंथी प्रोफेशनल आंदोलनकारी इस इलाके में आंदोलन को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। उनका शिद्दत से जवाब दिया जाना चाहिए।

Tuesday, February 16, 2021

दिशा रवि मामले की पृष्ठभूमि

निकिता जैकब, दिशा रवि और ग्रेटा थनबर्ग

बेंगलुरु की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को 14 फरवरी को दिल्ली की एक अदालत ने पांच दिनों की पुलिस-रिमांड में भेज दिया है। दिल्ली पुलिस ने उन्हें टूलकिट केस में गिरफ्तार किया था। दिशा पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। उसकी गिरफ्तारी का अब देशभर में विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया पर लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी दिशा की गिरफ्तारी की आलोचना की है और कहा है कि जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि राष्ट्र के लिए खतरा बन गई है
, तो इसका मतलब है कि भारत बहुत ही कमजोर नींव पर खड़ा है। गिरफ्तारी का समर्थन करने वालों की संख्या भी काफी बड़ी है। कोई नहीं चाहेगा कि लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठाने वालों का दमन किया जाए, पर यह तो समझना ही होगा कि उन्हें गिरफ्तार करने के पीछे के कारण क्या हैं। 

यह हैरान करने वाली घटना है। पर्यावरण से जुड़े मसलों पर काम करने वाली दिशा ने रुंधे गले से अदालत को कहा कि मैं किसी साजिश में शामिल नहीं थी और कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में किसानों का सिर्फ समर्थन कर रही थी। दिल्ली पुलिस का आरोप है कि दिशा टूलकिट में संपादन करके खालिस्तानी ग्रुप को मदद कर रही थी। कुछ और गिरफ्तारियाँ हो रही हैं। अंततः अदालत के सामने जाकर बातें साफ होंगी। केवल आंदोलन का समर्थन करने या प्रचार सामग्री का प्रसारण किसी को देशद्रोही साबित नहीं करता, पर यह भी साफ है कि किसी अलगाववादी आंदोलन को लाभ पहुँचाने की मंशा से कोई काम किया गया है, तो पुलिस कार्रवाई करेगी। पुलिस कार्रवाई हमेशा सही होती रही हों, ऐसा भी नहीं, पर वह गलत ही होगी ऐसा क्यों माना जाए।

तमाम सम्भावनाएं हैं। हो सकता है कि दिशा रवि या ग्रेटा थनबर्ग को इस बात का अनुमान ही नहीं हो कि वे किसके हित साध रही हैं। हो सकता है कि यह सब गलत हो। दिशा को ज्यादा-से-ज्यादा सरकारी नीतियों का विरोधी माना जा सकता है, लेकिन सरकार का विरोध करना देशद्रोह नहीं होता। उसकी गिरफ्तारी और हिरासत में रखने की प्रक्रिया को लेकर भी आरोप हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट या दिल्ली हाई कोर्ट को इस बात का परीक्षण करना चाहिए कि उनकी गिरफ्तारी के सिलसिले में सारी प्रक्रियाएं पूरी की गई थी या नहीं। सरकारी मशीनरी के मुकाबले देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की भी पूरी मशीनरी है। वह भी अदालती कार्रवाई कर ही रही होगी। इस मामले में मुम्बई की वकील निकिता जैकब और शांतनु मुलुक ने मुम्बई हाईकोर्ट की शरण ली है, जो उनकी अर्जी पर 17 फरवरी को फैसला सुनाएगी। 

Monday, February 15, 2021

अमेरिका के ‘मानवीय चेहरे’ की वापसी, भारत से सहयोग जारी रहेगा

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गत 4 फरवरी को अपने विदेशमंत्री और विदेश विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच जो पहला बयान दिया है, उसे काफी लोग उनका विदेश-नीति वक्तव्य मान रहे हैं। एक मायने में वह है भी, क्योंकि उसमें उन्होंने अपनी विदेश-नीति की कुछ वरीयताओं का हवाला दिया है, पर इसे विस्तृत बयान नहीं माना जा सकता। करीब 20 मिनट के भाषण में ऐसा संभव भी नहीं है।

भारत के संदर्भ में पर्यवेक्षक कुछ बातों पर ध्यान दे रहे थे। डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी, 2016 को शपथ लेने के बाद सबसे पहले जिन छह शासनाध्यक्षों से फोन पर बात की थी, उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे, पर जो बाइडेन ने उनसे बात करने में कुछ देरी की। अपने राजनयिकों के सामने उन्होंने जिन पहले नौ देशों के शासनाध्यक्षों से बातचीत का हवाला दिया था, उनमें भारत का नाम नहीं था। बहरहाल उन्होंने भारत का ध्यान रखा और सोमवार 8 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी उनकी फोन-वार्ता हो गई।

इस वार्ता के बारे में प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा, मैं और राष्ट्रपति जो बाइडेन दुनिया में नियम-कानून आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पक्षधर हैं। हम हिन्द प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए अपनी रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की ओर देख रहे हैं। उधर ह्वाइट हाउस की ओर से जारी बयान में भी दोनों देशों के आपसी सहयोग को बढ़ाने की बात कही गई है।

इसके पहले विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन, रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन तथा सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवन की भारत के क्रमशः विदेशमंत्री, रक्षामंत्री और रक्षा सलाहकार से फोन वार्ताएं हो चुकी थीं। उनकी मैत्री-कामना का संदेश भारत तक पहुँच चुका है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पाकिस्तान के साथ बाइडेन प्रशासन का इस किस्म का संवाद अभी तक नहीं हो पाया है। विदेशमंत्री ब्लिंकेन की एक शिकायती कॉल केवल पर्ल हत्याकांड के अभियुक्त की रिहाई के संदर्भ में गई है।

मित्र और प्रतिस्पर्धी

बाइडेन ने अपने वक्तव्य में कहा, ‘पिछले दो सप्ताह में मैंने अपने सबसे करीबी मित्रों से बात की।’ उन्होंने जिन देशों के नाम लिए वे हैं कनाडा, मैक्सिको, यूके, जर्मनी, फ्रांस, नेटो, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया। ये देश अमेरिका के परंपरागत मित्र हैं और उसके साथ कई तरह की संधियों से जुड़े हैं। उन्होंने अपने कुछ प्रतिस्पर्धियों के नाम भी लिए। चीन का उल्लेख उन्होंने पाँच बार किया और उसे अमेरिका का ‘सबसे गंभीर प्रतिस्पर्धी’ बताया। रूस का नाम आठ बार लिया और उसे ‘अमेरिकी लोकतंत्र को नष्ट करने पर उतारू देश’ बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि हम इन दोनों देशों के साथ मिलकर काम करना चाहेंगे।

Sunday, February 14, 2021

अमर्यादित राजनीतिक कबड्डी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में राज्यसभा में एक नए शब्द का ज़िक्र करते हुए कहा, पिछले कुछ समय से देश में एक नई ‘आंदोलनजीवी’ बिरादरी सामने आई है। यह पूरी टोली आंदोलन के बिना जी नहीं सकती और ये लोग आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं। प्रतिक्रिया में मोदी-विरोधियों ने भी कुछ नए शब्द गढ़े हैं। यह प्रक्रिया अभी चल ही रही है। किसान आंदोलन और दूसरी तरफ पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की उपस्थिति के कारण पिछले कुछ महीनों से देश की राजनीति में तल्खी कुछ ज्यादा ही है।

बजट सत्र का महत्त्व

राजनीतिक कबड्डी इतनी तेज है कि संसद के बजट सत्र पर हमारा ध्यान ही नहीं है। सत्र का पहला चरण कल 15 फरवरी को पूरा होगा। फिर 8 मार्च तक 20 दिन का ब्रेक रहेगा और फिर 8 अप्रैल तक सत्र का महत्वपूर्ण दौर चलेगा, जिसमें गंभीर चर्चा की जरूरत होगी। दोनों चरणों के अंतराल में संसद की स्थायी समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर विचार करेंगी। क्या आपको यकीन है कि इस चर्चा के लिए राजनीतिक दल होमवर्क कर रहे होंगे?

बजट सत्र हमारी संसद का सबसे महत्त्वपूर्ण सत्र होता है और इसीलिए यह सबसे लंबा चलता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और बजट प्रस्तावों के बहाने महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर जन-प्रतिनिधियों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका मिलता है। ऐसे मौके पर जब देश पर महामारी का साया है और अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने की चुनौती है, राजनीति से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह मर्यादा रेखाओं का ध्यान रखे। दुर्भाग्य से मर्यादा-रेखाएं धुँधला रही हैं और संसदीय विमर्श पर शोर हावी हो रहा है।

Saturday, February 13, 2021

गलवान में चीनी सैनिकों की मौत की पुष्टि और लद्दाख में भारत को मिली सफलता


रूसी समाचार एजेंसी तास ने जानकारी दी है कि पिछले साल जून में गलवान घाटी में हुए संघर्ष में 45 चीनी सैनिक मारे गए थे। तास के अनुसार उस झड़प में कम से कम 20 भारतीय और 45 चीनी सैनिक मारे गए थे।’ भारत ने अपने 20 सैनिकों की सूचना को कभी छिपाया नहीं था, पर चीन ने आधिकारिक रूप से कभी नहीं बताया था कि उसके कितने सैनिक उस टकराव में मरे थे। अलबत्ता उस समय भारतीय सूत्रों ने जानकारी दी थी कि चीन के 43 सैनिक मरे हैं। उस वक्त चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा था, ‘मैं यक़ीन के साथ आपसे कह सकता हूं, कि ये फेक न्यूज़ है।’ उन्हीं दिनों अमेरिकी इंटेलिजेंस के हवाले से भी चीन के 34 सैनिक मरने की एक खबर आई थी।

15 जून को गलवान घाटी में झड़प के बाद से, चीन अपने मृतकों की संख्या पर, टिप्पणी करने से लगातार इनकार करता रहा है। जब एक वेबिनार में दिल्ली स्थित चीनी राजदूत सन वीदांग पूछा गया कि अमेरिकी इंटेलिजेंस की ख़बरों के मुताबिक़, चीनी सेना के 34 सैनिक मारे गए हैं, तो उन्होंने सवाल का जवाब नहीं दिया था। उन्होंने कहा था कि इससे स्थिति को सुधारने में मदद नहीं मिलेगी। ख़बरों में कहा गया था, कि मारे जाने वालों में, चीनी सेना का एक कमांडिंग ऑफिसर भी शामिल था। कुछ ख़बरों में, चीन की ओर से मारे गए सैनिकों की संख्या भी बताई गई थी।

बहरहाल तासकी सूचना न केवल उन खबरों की पुष्टि कर रही है, बल्कि चीन की खामोशी का पर्दाफाश भी कर रही है। गौर करने वाली बात यह भी है कि चीन सरकार ने तास की खबर का खंडन नहीं किया है। संयोग है कि तास ने यह खबर तब दी है, जब पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील के पास से दोनों देशों की सेनाओं की वापसी का समझौता होने की खबरें आई हैं।

पैंगोंग झील पर समझौता

बुधवार 10 फरवरी को प्रकाशित एक लेख में तास ने पैंगोंग त्सो के पास की सरहद से, चीन और भारत के सैनिकों की वापसी के बारे में, चीनी रक्षा मंत्रालय के बयान का विस्तार से हवाला दिया है। इसी लेख में तास ने लिखा, मई और जून 2020 में, उस इलाक़े में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हुई थी, जिसमें कम से कम 20 भारतीय और 45 चीनी सैनिकों की मौत हुई थी।’