भारत में कोविड-19 से लड़ाई के लिए जो टीकाकरण अभियान कल से
शुरू हुआ है, उसका प्रतीकात्मक महत्व है। यह दुनिया का, बल्कि इतिहास का सबसे बड़ा
अभियान है। भारत को श्रेय जाता है कि उसने न केवल त्वरित गति से वैक्सीन तैयार
किए, बल्कि उन्हें देश के कोने-कोने तक पहुँचाया। अभियान के पहले चरण में करीब तीन
करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा। यह टीकाकरण उस
‘भरोसे की वापसी’ है, जिसका पिछले दस महीनों से हमें इंतजार है। भारत केवल अपने लिए ही नहीं,
दुनियाभर के लिए टीके बना रहा है।
उम्मीद है कि इस साल के अंत तक देश की उस आबादी को टीका लग
जाएगा, जिसे इसकी सबसे पहले जरूरत है। इसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 3,600 केंद्र
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आपस में जुड़ेंगे। पहले चरण में हैल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स, 50 से अधिक उम्र के लोग
और कोमॉर्बिडिटी वाले लोगों को टीका लगाया जा रहा है। भारत के इस अभियान के कुछ
दिन पहले दुनिया में टीकाकरण का अभियान शुरू हुआ है। वैक्सीनेशन की
वैश्विक गणना करने वाली वैबसाइट के अनुसार 15 जनवरी तक तीन करोड़ 85 लाख से ज्यादा लोगों को कोविड-19 के टीके
लगाए जा चुके थे। भारत का अभियान शुरू होने के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ेगी।
भ्रामक प्रचार
इस सफलता के
बावजूद और टीकाकरण शुरू होने के पहले ही कुछ स्वार्थी तत्वों ने भ्रामक बातें
फैलानी शुरू कर दी हैं। उन बातों की कलई टीकाकरण शुरू होने के बाद खुलेगी, क्योंकि
अगले कुछ दिनों के भीतर लाखों व्यक्ति टीके लगवा चुके होंगे। चूंकि दुष्प्रचार यह
है कि राजनेता टीके लगवाने से बच रहे हैं, इसलिए उसका जवाब देना भी जरूरी है।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंस में कहा, जब भी आपका नंबर आए
वैक्सीन जरूर लें, लेकिन नियम न तोड़ें। उनका
आशय है कि वीआईपी होने का लाभ नहीं उठाएं। पर जब टीके को लेकर भ्रांत-प्रचार है,
तब प्रतीक रूप में ही सही कुछ नेता टीकाकरण में शामिल होते तो अच्छा था। इनमें
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और कुछ मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं।
इससे उन आशंकाओं को दूर करने में मदद मिलती, जो फैलाई जा रही हैं। संदेह दो प्रकार
के हैं। एक वैज्ञानिक और दूसरे राजनीतिक। बेशक वैज्ञानिक संदेहों को ही महत्व दिया
जाना चाहिए। वैक्सीन के साइड इफैक्ट क्या हैं और उनके जोखिम क्या हैं, उनपर भी बात
करनी चाहिए।