Sunday, November 29, 2020

लाठी से नहीं, प्रेम से बात करें

हरियाणा और दिल्ली में पुलिस के साथ हुए दो दिन के संघर्ष के बाद आखिरकार शुक्रवार को केंद्र सरकार ने किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करने और अपने आंदोलन-प्रदर्शन को जारी रखने की अनुमति दे दी। पर यह अनुमति बुराड़ी से आंदोलन चलाने की है। प्रदर्शनकारी बुराड़ी के बजाय रामलीला मैदान तक जाना चाहते हैं, जहाँ शहर की मुख्यधारा है। इस बीच गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि आप बुराड़ी चले जाएं, हम आपसे फौरन बात करने को तैयार हैं। इससे कुछ देर के लिए टकराव टल गया है, पर समस्या का समाधान नहीं निकला है। इस पेशकश पर किसानों की प्रतिक्रिया अभी मिली नहीं है। शायद आज आए। 

यह कहना ठीक नहीं होगा कि बीजेपी को राजनीति की सही समझ नहीं है, पर यह बात भी जाहिर हो रही है कि बीजेपी की राजनीति पंजाब में सफल नहीं है। गौर से देखें तो पाएंगे कि सन 2014 और 2019 में और बीच में हुए पंजाब के विधानसभा चुनावों में उत्तर भारत के दूसरे राज्यों के विपरीत पंजाब में मोदी की लहर नहीं चली। पहली नजर में लगता है कि केंद्र सरकार ने बहुत गलत मोड़ पर, गलत समय पर और गलत तरीके से किसान आंदोलन से निपटने की कोशिश की है। इसे जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि दिल्ली में शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति देने के केंद्र के कदम से यह संकेत मिलता है कि सरकार हमारी मांगें मानने के लिए भी तैयार होगी। किसान अब भी उद्वेलित हैं, पर कम से कम कहा जा सकता है कि उनकी भावनाओं का सम्मान किया गया।

Saturday, November 28, 2020

अहमद पटेल की जगह कौन?

ओपन मैग्ज़ीन के ह्विस्पर्स कॉलम में जयंत घोषाल ने लिखा है कि गत 25 नवंबर को अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के सामने यह सवाल खड़ा हुआ है कि अब अहमद पटेल की जगह कौन लेगा?  यानी कि राहुल गांधी का अहमद पटेल कौन बनेगा?

अहमद पटेल को लेकर वायर हिंदी ने भी एक लंबा आलेख प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि अहमद पटेल की सबसे ज़्यादा जरूरत आने वाले दिनों मे तब महसूस होगी, जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को शरद पवार, ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, लालू यादव, स्टालिन और असम के आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बद्रुद्दीन अजमल जैसे नेताओं से बात करने की ज़रूरत पड़ेगी।

ईरान के नाभिकीय वैज्ञानिक की हत्या


 ईरान के खुफिया परमाणु बम कार्यक्रम के अगुआ शीर्ष वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की शुक्रवार को तेहरान के निकट घात लगाकर हत्या कर दी गई। इस घटना से नाराज़ ईरान के सुप्रीम नेता आयतुल्ला अली खामनेई के सैन्य सलाहकार और कमांडर होसेन देहग़ान ने फ़ख़रीज़ादेह के हत्यारों पर कहर बरपाने की धमकी दी है। इससे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के आखिरी कुछ सप्ताह में ईरान और उसके शत्रुओं के बीच टकराव बढ़ने के आसार बनते दिख रहे हैं। 

Friday, November 27, 2020

अर्थव्यवस्था मंदी में, फिर भी आशा की किरण


तकनीकी लिहाज से जब अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही संकुचन दिखाएं, उस स्थिति को मंदी कहते हैं। तकनीकी दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी में है। इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी का संकुचन 7.5 प्रतिशत है, जो बहुत से अंदेशों से बेहतर है, पर है तो संकुचन। देश के ज्यादातर विशेषज्ञ मानकर चल रहे थे कि यह संकुचन आठ फीसदी या उससे ज्यादा होगा। रिजर्व बैंक का अनुमान 8.6 फीसदी का था। मूडीज़ ने 10.6, केयर रेटिंग ने 9.9, क्रिसिल ने 12, इक्रा ने 9.5% और एसबीआई रिसर्च ने 10.7% की गिरावट का अनुमान जताया था।

इस संकुचन को नकारात्मक रूप से देखने के बाद यदि अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से देखना चाहें, तो वह भी संभव है। चूंकि पहली तिमाही में संकुचन करीब 24 फीसदी था, इसलिए यह 7.5 फीसदी का संकुचन तेज रिकवरी की जानकारी भी देता है। केवल पिछली तिमाही से तुलना करें, तो यह रिकवरी 20 फीसदी से भी ज्यादा की है। कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के कारण बंद हुई अर्थव्यवस्था ने तेजी से अपनी वापसी शुरू की है।

जैसी आशा थी इस रिकवरी में सबसे बड़ी भूमिका खेती की है, जिसकी ग्रोथ 3.4 फीसदी की है। पर ज्यादा हैरत की बात है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र भी संकुचन के बाह निकल आया है और उसमें 0.6 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज हुई है, जबकि अंदेशा था कि उसमें 9 प्रतिशत का संकुचन होगा। यह बाउंसबैक उम्मीद से ज्यादा साबित हुआ है।

लद्दाख में फौजियों के विशेष आवास


लद्दाख में भारत और चीन की सेनाएं इसबार सर्दियों में भी आमने-सामने हैं। आठ दौर की बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकला है। चूंकि उस इलाके में तापमान माइनस 40 डिग्री तक चला जाता है, इसलिए दोनों देशों ने अपने सैनिकों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं। इन व्यवस्थाओं में आधुनिकतम तकनीकों का इस्तेमाल है। इन व्यवस्थाओं पर नजर डालने के बाद एक बात साबित होती है कि भारतीय सेना ने 1962 के बाद माउंटेन वॉरफेयर में महारत हासिल कर ली है और सियाचिन से लद्दाख तक ऊँची बर्फीली पहाड़ियों में ज़ीरो डिग्री से भी नीचे तापमान पर रहते हुए सीमा की रक्षा करने में उसका मुकाबला नहीं। 

भारत ने पहले अपनी विशेष बैरकों का प्रदर्शन किया, तो चीन ने भी अपने इन आवासों का वीडियो जारी किया है। इन्हें देखना अपने आप में रोचक है। सवाल यह भी है कि इतने दुर्गम क्षेत्र में तापमान को नियंत्रित करने वाली टेक्नोलॉजी के संचालन के लिए ऊर्जा कहाँ से आएगी। बताते हैं कि ज्यादा से ज्यादा सौर ऊर्जा का इस्तेमाल इसके लिए किया जा रहा है। चीन तो पूरा बिजलीघर ही सीमा के पास लगा रहा है।