Wednesday, October 21, 2020

पाँच वजहें जो डोनाल्ड ट्रंप को फिर बना सकती हैं राष्ट्रपति

राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता कौन होंगे, इसका अनुमान लगाना एक चुनौती होता है. पिछली बार कुछ चुनावी सर्वे यही अनुमान लगाने में असफल साबित हुए.

डोनाल्ड ट्रंप को बिना कॉलेज डिग्री वाले गोरे अमरीकियों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था, जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया गया था.

हालाँकि, इस बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनुमान लगाया है कि बाइडन का मौजूदा मार्जिन उन्हें 2016 जैसी स्थिति से बचाएगा. लेकिन, 2020 में सर्वे करने वालों के सामने कुछ नई बाधाएँ हैं.

बीबीसी हिंदी पर पढ़ें पांच वजहें जो डोनाल्ड ट्रंप को फिर बना सकती हैं राष्ट्रपति

Tuesday, October 20, 2020

क्या पूरा होगा इलेक्ट्रॉनिक्स में सफलता का भारतीय सपना?

भारत में कई समाचार प्रतिष्ठानों ने रॉयटर्स का हवाला देते हुए ऐसे शीर्षक वाली खबरें जोर-शोर से चलाईं कि ऐपल अपने आईफोन विनिर्माण को चीन से हटाकर भारत ले जाने की योजना बना रही है। ऐपल की विनिर्माण साझेदार ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन के एक अरब डॉलर की लागत से चेन्नई के पास श्रीपेरुम्बदूर में लगाए जाने वाले संयंत्र में करीब 6,000 लोगों को रोजगार मिलने की बात भी कही गई।

हाल ही में आई एक और खबर में बताया गया कि भारत सरकार ने 10 मोबाइल फोन विनिर्माताओं समेत 16 इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की प्रोत्साहन योजना के तहत की गई इनाम की अर्जी को मंजूर कर लिया है। इस योजना के तहत इन कंपनियों को 40,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जाना है। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भले ही वैश्विक प्रभुत्व के लिए नहीं, कम-से-कम आत्म-निर्भरता के लिए ऐसे सपने देखना असल में भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। आजादी के कुछ साल बाद ही 1950 के दशक में मध्य में बेंगलूर में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज उपक्रमों की स्थापना की गई थी। 1980 के दशक के मध्य में सैम पित्रोदा आए और ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेंजों के माध्यम से समूचे देश को जोड़ने के लिए सरकार ने सी-डॉट का गठन किया।

किसी टेलीविजन सीरियल की तरह सपनों एवं आकांक्षाओं के इस अनवरत दोहराव, सुर्खियां बनने वाली घोषणाओं, फंड के व्यापक प्रवाह और घरेलू विनिर्माण प्रयासों से केवल यही नजर आता है कि ये सपने दूर छिटक जाते हैं जबकि उद्योग बाएं या दाएं मुड़कर किसी अन्य दिशा में जाने लगता है। यह प्रयासों में शिद्दत की कमी नहीं है और न ही लगन की कमी या नेतृत्व प्रतिभा की कमी ही है। फिर किस वजह से ऐसा होता है?

बिजनेस स्टैंडर्ड में विस्तार से पढ़ें अजित बालकृष्ण का यह आलेख

 

एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट’ से पाकिस्तान का फिलहाल निकल पाना मुश्किल

 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की 21 से 23 अक्तूबर को होने वाली सालाना आम बैठक के ठीक पहले लगता है कि पाकिस्तान इसबार भी न तो ग्रे लिस्ट से बाहर आएगा और न ब्लैक लिस्ट में डाला जाएगा। भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जिन 27 कार्य-योजनाओं की जिम्मेदारी दी थी, उनमें से केवल 21 पर ही काम हुआ है। शेष छह पर नहीं हुआ।

इसके पहले एफएटीएफ के एशिया प्रशांत ग्रुप की रिपोर्ट गत 30 सितंबर को जारी हुई थी, जिसमें पाकिस्तान को दिए गए कार्य और उस पर अमल करने के उपायों की समीक्षा की गई। इसका सारांश है कि पाकिस्तान फिलहाल प्रतिबंधित होने वाली सूची से तो बच सकता है, लेकिन उसे अभी निगरानी सूची में ही रहना होगा। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को गैरकानूनी वित्तीय लेन-देन, बाहर से आने वाली फंडिंग को रोकने, एनजीओ के नाम पर काम करने वाली एजेंसियों की गतिविधियों पर लगाम लगाने व पारदर्शिता लाने के लिए कार्यों की सूची सौंपी है।

पेरिस में क्या होगा?

पेरिस स्थित मुख्यालय में एफएटीएफ की 21-23 अक्टूबर को वर्च्युअल बैठक होगी। एफएटीएफ ने हाल के महीनों में पाकिस्तान सरकार की तरफ से उठाए गए कुछ कदमों की तारीफ भी की है। खासतौर पर जिस तरह से गैरसरकारी संगठनों की गतिविधियों को पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं, उनकी तारीफ की गई है। पाकिस्तान में नई व्यवस्था लागू की गई है, जिससे हजारों एनजीओ की फंडिंग की निगरानी संभव हो सकेगी।

Monday, October 19, 2020

इस महामारी ने हमें कुछ दिया भी है

कोई आपसे पूछे कि इस महामारी ने आपसे क्या छीना, तो आपके पास बताने को काफी कुछ है। अनेक प्रियजन-परिजन इस बीमारी ने छीने, आपके स्वतंत्र विचरण पर पाबंदियाँ लगाईं, तमाम लोगों के रोजी-रोजगार छीने, सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों पर रोक लगाई, खेल के मैदान सूने हो गए, सिनेमाघरों में सन्नाटा है, रंगमंच खामोश है। शायद आने वाली दीवाली वैसी नहीं होगी, जैसी होती थी। तमाम लोग अपने-अपने घरों में अकेले बैठे हैं। अवसाद और मनोरोगों का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है, जिसका दुष्प्रभाव इस बीमारी के खत्म हो जाने के बाद भी बना रहेगा। जो लोग इस बीमारी से बाहर निकल आए हैं, उनके शरीर भी अब कुछ नए रोगों के घर बन चुके हैं।

यह सूची काफी लम्बी हो जाएगी। इस बात पर वर्षों तक शोध होता रहेगा कि इक्कीसवीं सदी की पहली वैश्विक महामारी का मानवजाति पर क्या प्रभाव पड़ा। सवाल यह है कि क्या इसका दुष्प्रभाव ही महत्वपूर्ण है? क्या इस बीमारी ने हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी नहीं दिया? बरसों से दुनिया मौसम परिवर्तन की बातें कर रही है। प्राकृतिक दुर्घटनाओं की बातें हो रही हैं, पर ऐसी कोई दुर्घटना हो नहीं रही थी, जिसे दुनिया इतनी गहराई से महसूस करे, जिस शिद्दत से कोरोना ने महसूस कराया है। विश्व-समुदाय की भावना को अब हम कुछ बेहतर तरीके से समझ पा रहे हैं, भले ही उसे लागू करने के व्यावहारिक उपकरण हमारे पास नहीं हैं।

कराची में पाकिस्तानी विपक्ष का भारी जलसा

 पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन ज़ोर पकड़ता जा रहा है। भारतीय मीडिया इस आंदोलन की खास कवरेज नहीं कर रहा है, क्योंकि उसकी दिलचस्पी स्थानीय मसलों में ज्यादा है। इस वक्त पाकिस्तान पर नजर रखने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि अभी जो कुछ हो रहा है उसका असर भविष्य में भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर पड़ेगा। पाकिस्तान की कवरेज के लिए मैं बीबीसी का सहारा लेता हूँ या फिर डॉन और एक्सप्रेस ट्रिब्यून का। नीचे मैंने पहले बीबीसी की हिंदी वैबसाइट से छोटा सा अंश लिया है। आप विस्तार से पढ़ना चाहें, तो वैबसाइट पर जाएं, जिसका लिंक साथ में है। मेरी दिलचस्पी उस शब्दावली में है, जो पाकिस्तान में इस्तेमाल हो रही है। वह बीबीसी की उर्दू सेवा में सुनने को मिलती है। मैंने बीबीसी उर्दू की रिपोर्ट का देवनागरी में लिप्यंतरण करके अपेक्षाकृत विस्तार से लगाया है। लिप्यंतरण करते समय मैंने सब कुछ वैसे ही रहने दिया है, जैसी ध्वनि मूल आलेख से आ रही है। मसलन मरियम नवाज शरीफ को मर्यम लिखा गया है, तो मैंने वैसा ही रहने दिया है। पहले पढ़ें बीबीसी हिंदी की खबर का अंश:

इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ कराची में विपक्ष का जलसा, कुछ बदलेगा?

पाकिस्तान में इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ 11 पार्टियाँ संयुक्त मोर्चे पीडीएम (ऑल पार्टीज़ डेमोक्रेटिक मूवमेंट) के तहत गुजरांवाला में हुए पहले बड़े प्रदर्शन के बाद रविवार को कराची के जिन्ना-बाग़ में जलसा कर रही हैं. इस रैली में शामिल होने मरियम नवाज़, बिलावल भुट्टो समेत अन्य कई नेता पहुंचे हैं. मरियम नवाज़ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की बेटी हैं और बिलावल भुट्टो पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के बेटे हैं. मरियम नवाज़ हवाई मार्ग से कराची पहुँचीं और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मज़ार पर भी गईं.

विस्तार से पढ़ना चाहें, तो बीबीसी हिंदी की वैबसाइट पर जाएं

 अब पढ़ें बीबीसी उर्दू की खबर के लिप्यंतरण का संपादित अंश

 जो अवाम के वोटों को बूटों के नीचे रौंदता है हम उसे सलाम नहीं करते- मर्यम नवाज़

ग्यारह जमाती हुकूमत मुख़ालिफ़ इत्तिहाद, पीडीएम का जलसा कराची के जिनाह बाग़ में मुनाक़िद हुआ और इस मौके़ पर मर्यम नवाज़ ने कहा कि हम हलफ़ की पासदारी करने वाले फ़ौजीयों को सलाम करते हैं लेकिन जो अवाम के वोटों को बूटों के नीचे रौंदता है उसे सलाम नहीं करते।

इस जलसे से पीटीएम के मुहसिन दावड़, डाक्टर अबदुलमालिक बलोच, महमूद ख़ान अचकज़ई और अख़तर मीनगल समेत दीगर सयासी रहनुमाओं ने भी ख़िताब किया।