Sunday, October 18, 2020

देश के भविष्य से जुड़ी खाद्य सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की 75वीं वर्षगांठ और ‘विश्व खाद्य दिवस’ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, आंगनबाड़ी-आशा कार्यकर्ताओं वगैरह को बधाई दी। महामारी के इस दौर में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि है हमारा अन्न भंडार। दूसरी उपलब्धि है देश का खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम, जो हर नागरिक को वहनीय मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता के अन्न की पर्याप्त मात्रा पाने का अधिकार देता है।

पहली नजर में ‘विश्व खाद्य दिवस’ एक औपचारिक कार्यक्रम है। गहराई से देखें, तो यह हमारी बुनियादी समस्या से जुड़ा है। चाहे व्यापक वैश्विक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें या निजी जीवन में। संयोग से कोरोना-काल में हमने मजबूरन अपने आहार-व्यवहार पर ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जब विश्व कोविड महामारी से जूझ रहा था तो सरकार ने 80 करोड से अधिक लोगों के लिए पौष्टिक आहार उपलब्‍ध कराया। प्रधानमंत्री ने नवंबर तक देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की घोषणा की थी। यह कार्यक्रम अभी जारी है। इसे आगे बढ़ाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।

Saturday, October 17, 2020

विवाद का विषय क्यों बनीं रुक्मिणी कैलीमाची की 'कैलीफैट' रिपोर्ट

न्यूयॉर्क टाइम्स की प्रसिद्ध रिपोर्टर रुक्मिणी कैलीमाची को अलकायदा और इस्लामिक स्टेट की जबर्दस्त रिपोर्टिंग के कारण ख्याति मिली है। ये रिपोर्ट पॉडकास्टिंग पत्रकारिता के मील का पत्थर साबित हुई हैं। अब कनाडा में इन जानकारियों के एक सूत्रधार की गिरफ्तारी के बाद रुक्मिणी विवाद के घेरे में आ गई हैं। विवाद उनकी रिपोर्टिंग या जानबूझकर की गई किसी गलती के कारण नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति की धोखाधड़ी से जुड़ा है, जिसकी बातों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई थीं। इन जानकारियों के आधार पर रुक्मिणी की इन रिपोर्टों को पिछले एक दशक के सबसे उल्लेखनीय पत्रकारीय कर्म में शामिल किया गया है। साथ ही रुक्मिणी की साख बेहद विश्वसनीय रिपोर्टर के रूप में स्थापित हो गई थी। फिलहाल दोनों पर सवालिया निशान हैं और अब इस बात की पड़ताल हो रही है कि ऐसा हो कैसे गया। 

Friday, October 16, 2020

क्या हम बांग्लादेश से भी गरीब हो गए हैं?

सोशल मीडिया को पढ़ें, तो कुछ लोगों का ऐसा ही निष्कर्ष है। यह निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के नवीनतम वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक से निकाला गया है। जीडीपी से जुड़े आँकड़ों के प्रति व्यक्ति औसत के आधार पर ऐसा निष्कर्ष निकाला जरूर जा सकता है, पर उसके साथ कुछ बातों को समझने की जरूरत भी है। 

एक तो यह कि जीडीपी की गणना नॉमिनल और पर्चेजिंग पावर पैरिटी (पीपीपी) दो तरह से की जाती है। दोनों लिहाज से भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश के मुकाबले कई गुना बड़ी है। जो आँकड़े हम देख रहे हैं, वे नॉमिनल आधार पर प्रति व्यक्ति औसत पर आधारित हैं। पीपीपी के आधार पर वह भी नहीं है। दूसरे ऐसा अनुमान है। अभी इस साल के करीब साढ़े पाँच महीने बाकी हैं। उनमें क्या होगा, कहना मुश्किल है। आईएमएफ के दूरगामी परिणामों पर नजर डालें, तो भारत और बांग्लादेश दोनों का भविष्य अच्छा है। बेशक हम गरीब हैं और ऊपर उठने का प्रयास कर रहे हैं।

Thursday, October 15, 2020

क्या हम पाकिस्तानी हरकतों को भूल जाएं?

 

फ्राइडे टाइम्स से साभार

इमरान खान के सुरक्षा सलाहकार मोईद युसुफ के भारतीय पत्रकार करन थापर से साक्षात्कार को न तो भारतीय मीडिया ने महत्व दिया और न भारत सरकार ने। इस खबर को सबसे ज्यादा महत्व पाकिस्तानी मीडिया में मिला। इसके अलावा भारत के कश्मीरी अखबारों में इस इंटरव्यू का उल्लेख हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अल जजीरा के अलावा किसी उल्लेखनीय प्लेटफॉर्म पर यह खबर देखने को नहीं मिली।

सोशल मीडिया पर जरूर इसका उल्लेख हुआ है, पर ज्यादातर पाकिस्तानी हैंडलों के मार्फत। रेडिट पाकिस्तान में मोईद युसुफ की तारीफ से जुड़ी कुछ टिप्पणियाँ देखने को मिली हैं। पाकिस्तानी अखबारों में सम्पादकीय टिप्पणियाँ भी जरूर होंगी। मैंने डॉन की टिप्पणी को देखा है, जिसमें वही घिसी-पिटी बातें हैं, जो अक्सर पाकिस्तान से सुनाई पड़ती हैं। इनमें सबसे ज्यादा महत्व इस बात को दिया गया है कि भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की पेशकश की है। गुरुवार को भारतीय विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि भारत की ओर से ऐसा कोई संदेश नहीं भेजा गया है। 

मान लिया कि ऐसी कोई पेशकश है भी तो यह कम से कम औपचारिक रूप से नहीं है। यदि यह बैकरूम गतिविधि है, तो मोईद साहब ने इसकी खबर देने की जरूरत क्यों समझी? यह किसी संभावना को खत्म करने की कोशिश तो नहीं है? इस बात को कैसे भुलाया जा सकता है कि नवाज शरीफ ने बातचीत के पेशकश की थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने न केवल अड़ंगा लगाया, बल्कि नवाज शरीफ के खिलाफ इमरान खान को खड़ा किया। इस वक्त उनका कठपुतली नरेश राजनीतिक संकट में है और लगता यही है कि इस खबर के बहाने पाकिस्तानी जनता का ध्यान कहीं और ले जाने की कोशिश है। फिर भी मोईद साहब की बातों पर गौर करने की जरूरत भी है।

अबतक क्या हुआ?

द वायर ने इस इंटरव्यू का वीडियो जारी करने के पहले करन थापर का लिखा एक कर्टेन रेज़र जारी किया था, जिसमें पहला वाक्य था कि पाकिस्तानी एनएसए ने यह रहस्योद्घाटन किया है कि भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की पेशकश की है। साथ ही यह भी कहा कि हम तो बात तभी करेंगे, जब कश्मीरियों को तीसरे पक्ष के रूप में शामिल किया जाएगा। यहाँ यह याद दिलाना बेहतर होगा कि 2014 में जब नवाज शरीफ नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आए थे, तब उन्होंने कश्मीरी प्रतिनिधियों से बात नहीं की थी। उसके बाद सुषमा स्वराज और सरताज अजीज की प्रस्तावित बात इसीलिए नहीं हो पाई थी, क्योंकि सरताज अजीज कश्मीरियों से बात करने के बाद ही उस वार्ता में शामिल होना चाहते थे।

Wednesday, October 14, 2020

करन थापर के मार्फत मोईद युसुफ पाकिस्तानी मंशा और खबरें ‘प्लांट’ कर गए

 


मंगलवार 13 अक्तूबर को भारतीय मीडिया हाउस द वायर ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार मोईद युसुफ के साथ भारतीय पत्रकार करन थापर का एक इंटरव्यू प्रसारित किया, जिसे लेकर पाकिस्तान में जितनी चर्चा है, उतनी भारत में नहीं है। इंटरव्यू के प्रसारण के कुछ समय बाद ही पाकिस्तानी ट्विटर हैंडलों पर इसकी सूचनाएं प्रसारित होने लगीं। सामान्यतः खबरों की पाकिस्तानी वैबसाइट्स देर में अपडेट होती हैं, पर डॉन और ट्रिब्यून जैसी वैबसाइट में यह खबर फौरन लगी और लीड के रूप में लगी। अगली सुबह यानी आज डॉन के मुद्रित संस्करण में यह खबर लीड है। पाकिस्तानी मीडिया ने इस बात को उछाला कि भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की पेशकश की है, पर पाकिस्तान सरकार ने इस प्रस्ताव को यह कहकर नामंजूर कर दिया है कि जब तक कश्मीरियों को इस बातचीत में शामिल नहीं किया जाता, हम बात नहीं करेंगे।