Monday, December 24, 2018

राजनीतिक अखाड़े में कर्ज-माफी

इस बारे में दो राय नहीं हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में दशा खराब है, यह भी सच है कि बड़ी संख्या में किसानों को आत्महत्या करनी पड़ रही है, पर यह भी सच है कि इन समस्याओं का कोई जादुई समाधान किसी ने पेश नहीं किया है। इसकी वजह यह है कि इस संकट के कारण कई तरह के हैं। खेती के संसाधन महंगे हुए हैं, फसल के दाम सही नहीं मिलते, विपणन, भंडारण, परिवहन जैसी तमाम समस्याएं हैं। मौसम की मार हो तो किसान का मददगार कोई नहीं, सिंचाई के लिए पानी नहीं, बीज और खाद की जरूरत पूरी नहीं होती।

नब्बे के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद से खासतौर से समस्या बढ़ी है। अचानक नीतियों में बदलाव आया। कई तरह की सब्सिडी खत्म हुई, विदेशी कम्पनियों का आगमन हुआ, खेती पर न तो पर्याप्त पूँजी निवेश हुआ और तेज तकनीकी रूपांतरण। वामपंथी अर्थशास्त्री सारा देश वैश्वीकरण के मत्थे मारते हैं, वहीं वैश्वीकरण समर्थक मानते हैं कि देश में आर्थिक सुधार का काम अधूरा है। देश का तीन चौथाई इलाका खेती से जुड़ा हुआ था। स्वाभाविक रूप से इन बातों से ग्रामीण जीवन प्रभावित हुआ। राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था में अचानक खेती की हिस्सेदारी कम होने लगी। ऐसे में किसानों की आत्महत्या की खबरें मिलने लगीं। 

Sunday, December 23, 2018

कश्मीर पर राजनीतिक आमराय बने


फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि यदि हमारी पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ हुई, तो 30 दिन के भीतर हम क्षेत्रीय स्वायत्तता सुनिश्चित कर देंगे. नेशनल कांफ्रेंस की पिछली सरकार ने राज्य में जम्मू, लद्दाख और घाटी को अलग-अलग स्वायत्त क्षेत्र बनाने की पहल की थी. क्या यह कश्मीर समस्या का समाधान होगा? पता नहीं इस पेशकश पर कश्मीर और देश की राजनीति का दृष्टिकोण क्या है, पर हमारी ढुलमुल राजनीति का फायदा अलगाववादी उठाते हैं. जम्मू और लद्दाख के नागरिक भारत के साथ पूरी तरह जुड़े हुए हैं, पर घाटी में काफी लोग अलगाववादियों के बहकावे में हैं.

कश्मीर में जब भी कोई घटना होती है, देश के लोगों के मन में सवाल उठने लगते हैं. हाल में पुलवामा के उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाबलों को गोली चलानी पड़ी, जिसमें सात नागरिकों की मौत हो गई. मुठभेड़ में एक जवान भी शहीद हुआ और तीन उग्रवादी भी मारे गए. इस घटना पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा, हमारी माँग है कि संरा सुरक्षा परिषद जनमत-संग्रह की प्रतिबद्धता को पूरा करे. पाकिस्तानी आजकल बात-बात पर यह माँग करते हैं. पर सच यह है कि सुरक्षा परिषद में कश्मीर पर अंतिम विमर्श पचास के दशक में कभी हुआ था. उसके बाद से वहाँ यह सवाल उठा ही नहीं.

Saturday, December 22, 2018

कर्ज-माफी का राजनीतिक जादू

उत्तर भारत के तीन राज्यों में बनी कांग्रेस सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणाएं की हैं। उधर भाजपा शासित गुजरात में 6.22 लाख बकाएदारों के बिजली-बिल और असम में आठ लाख किसानों के कर्ज माफ कर दिए गए हैं। इसके पहले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब और कर्नाटक में किसानों के कर्ज माफ किए गए। अचानक ऐसा लग रहा है कि कर्ज-माफी ही किसानों की समस्या का समाधान है। गुजरात और असम सरकार के फैसलों के जवाब में राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि कांग्रेस गुजरात और असम के मुख्यमंत्रियों को गहरी नींद से जगाने में कामयाब रही है, लेकिन प्रधानमंत्री अभी भी सो रहे हैं। हम उन्हें भी जगाएंगे।
मोदीजी भी सोए नहीं हैं, पहले से जागे हुए हैं। उनकी पार्टी ने घोषणा की है कि यदि हम ओडिशा में सत्ता में आए तो किसानों का कर्ज माफ कर देंगे। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। एक तरफ उनके नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा है कि कृषि-क्षेत्र की बदहाली का इलाज कर्ज-माफी नहीं है, वहीं उनकी पार्टी कर्ज-माफी के हथियार का इस्तेमाल राजनीतिक मैदान में कर रही है।

Tuesday, December 18, 2018

राजनीतिक दलदल में ‘राफेल’


राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विवाद बजाय खत्म होने के बढ़ गया है. अदालती फैसले के एक पैराग्राफ को लेकर कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर नए आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. इससे मूल विवाद के अलावा कुछ नए आरोप और जुड़ गए हैं. शुक्रवार को अदालत ने जो फैसला सुनाया था, उससे सरकारी पक्ष मजबूत हो गया था, पर फैसले की भाषा के कारण लगता है कि यह विवाद अभी तबतक चलेगा, जबतक सुप्रीम कोर्ट उसे और स्पष्ट न करे.

शनिवार को सरकार ने हलफनामा दाखिल करके कहा कि सरकार ने सीलबंद लिफाफों में अदालत को जानकारी दी थी, उसमें यह नहीं लिखा गया था कि इस मामले में सीएजी रिपोर्ट आ गई है और उसे लोकलेखा समिति (पीएसी) को दिखा दिया गया है. सरकार ने केवल यह बताया था कि इस प्रकार के सौदों की जानकारी संसद के सामने लाने की प्रक्रिया क्या है. अदालती फैसले की भाषा से लगता है कि यह प्रक्रिया पूरी हो गई है. ऐसा नहीं है और सीएजी रिपोर्ट अभी दाखिल नहीं हुई है.

Sunday, December 16, 2018

फैसले और उसकी भाषा पर भ्रम

राफेल रक्षा सौदे के बारे में सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से विवाद को शांत हो जाना चाहिए था, पर लगता है कि ऐसा होगा नहीं। इसकी वजह इस मामले की राजनीतिक प्रकृति है। अदालत ने इस सौदे पर उठाए गए प्रक्रियात्मक सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि उसे कोई दोष नजर नहीं आया। अब जो सवाल हैं, उनकी प्रकृति राजनीतिक है। अदालती फैसले का एक पहलू सीएजी की रिपोर्ट से जुड़ा हुआ था, जो शुक्रवार की शाम से ही चर्चा में था। वह यह कि क्या सीएजी रिपोर्ट में कीमत का विवरण है और क्या यह रिपोर्ट लोकलेखा समिति ने देखी है। शनिवार को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में हलफनामा दाखिल करके कहा कि इसके पहले दाखिल हलफनामे में केवल उस प्रक्रिया को बताया गया है कि इस प्रकार की सूचनाओं की प्रक्रिया क्या है। 

अदालती फैसले की भाषा से लगता है कि यह प्रक्रिया पूरी हो गई है। ऐसा नहीं है और सीएजी रिपोर्ट अभी दाखिल नहीं हुई है। उम्मीद है कि सोमवार को अदालत इस मामले में कोई निर्देश देगी, पर खबरें यह भी हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं और अब 2 जनवरी के बाद ही इस मामले में कुछ हो पाएगा। जो भी है सोमवार को स्थिति कुछ स्पष्ट होगी। उधर लोकलेखा समिति के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि हम सीएजी और अटॉर्नी जनरल को बुलाकर जवाब तलब करेंगे।