अब जब राहुल गांधी का
पार्टी अध्यक्ष बनना तय हो गया है, पहला सवाल मन में आता है कि इससे भारतीय
राजनीति में क्या बदलाव आएगा? क्या उनके पास वह दृष्टि, समझ और चमत्कार है, जो 133 साल
पुरानी पार्टी को मटियामेट होने से बचा ले? क्या अब वे कांग्रेस को इस
रूप में तैयार कर पाएंगे जो बीजेपी को परास्त करे और फिर देश को तेजी से आगे लेकर
जाए? पिछले 13 साल
में राहुल की छवि बजाय बनने के बिगड़ी ज्यादा है। उन्होंने अपने नाम के साथ जाने-अनजाने
विफलताओं की लम्बी सूची जुड़ने दी। अब वे अपनी छवि को कैसे बदलेंगे?
राहुल गांधी उन राजनेताओं
में से एक हैं, जिन्हें मौके ही मौके मिले। माना कि 2004 में वे अपेक्षाकृत युवा
थे, पर उनकी उम्र इतनी कम भी नहीं थी। सचिन पायलट, जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य
सिंधिया जैसे उनके सहयोगी काफी कम उम्र में सक्रिय हो गए थे। सन 2004 से 2009 तक
उन्होंने काफी अनुभव भी हासिल किया। और लोकसभा चुनाव में चुनाव प्रचार भी किया।
फिर उन्होंने देर क्यों की?
यह भी सच है कि पिछले कुछ
महीनों से मीडिया में इस बात की चर्चा है कि उनकी छवि में सुधार हुआ है। उनका मजाक
कम बन रहा है। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता
में भी कमी आई है। इसके पीछे नोटबंदी, जीएसटी और अर्थ-व्यवस्था में गिरावट को
जम्मेदार बताया जा रहा है। पर ये बातें भी मीडिया ही बता रहा है। पर भारतीय
राजनीति का सबसे बड़ा बैरोमीटर चुनाव होता है। लाख टके का सवाल है कि क्या राहुल
गांधी चुनाव जिताऊ नेता साबित होंगे?