मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए जा रहे हैं। सरकार के कामकाज पर निगाह डालने के साथ यह जानना भी जरूरी है कि इस दौरान विपक्ष की क्या भूमिका रही। पिछले तीन साल में मोदी सरकार के खिलाफ चले आंदोलनों, संसद में हुई बहसों और अलग-अलग राज्यों में हुए चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि विरोध या तो जनता की अपेक्षाओं से खुद को जोड़ नहीं पाया या सत्ताधारी दल के प्रचार और प्रभाव के सामने फीका पड़ गया। कुल मिलाकर वह बिखरा-बिखरा रहा।
सरकार और विरोधी दलों के पास अभी दो साल और हैं। सवाल है कि क्या अब कोई चमत्कार सम्भव है? सरकार-विरोधी एक मित्र का कहना है कि सन 1984 में विशाल बहुमत से जीतकर आई राजीव गांधी की सरकार 1989 के चुनाव में पराजित हो गई। उन्हें यकीन है कि सन 2018 में ऐसा कुछ होगा कि कहानी पलट जाएगी। मोदी सरकार को लगातार मिलती सफलताओं के बाद विरोधी दलों की रणनीति अब एकसाथ मिलकर भाजपा-विरोधी ‘महागठबंधन’ जैसा कुछ बनाने की है।
सरकार और विरोधी दलों के पास अभी दो साल और हैं। सवाल है कि क्या अब कोई चमत्कार सम्भव है? सरकार-विरोधी एक मित्र का कहना है कि सन 1984 में विशाल बहुमत से जीतकर आई राजीव गांधी की सरकार 1989 के चुनाव में पराजित हो गई। उन्हें यकीन है कि सन 2018 में ऐसा कुछ होगा कि कहानी पलट जाएगी। मोदी सरकार को लगातार मिलती सफलताओं के बाद विरोधी दलों की रणनीति अब एकसाथ मिलकर भाजपा-विरोधी ‘महागठबंधन’ जैसा कुछ बनाने की है।