Thursday, July 9, 2015

अमेरिका के बाद अब रूस-चीन दोस्ती

आज उफा में भारत और पाकिस्तान के एकसाथ शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने की घोषणा होगी. रूस और चीन दोनों का आग्रह और समर्थन इनकी सदस्यता को लेकर है. मई की चीन यात्रा के बाद से घटनाक्रम काफी बदला है. खासतौर से पाकिस्तान के बरक्स चीन और रूस दोनों के रिश्तों में बदलाव आया है. शायद वैश्विक राजनीति की धारा बदल रही है, पर देखना यह है कि भारत एक ओर अमेरिका और जापान के साथ और दूसरी ओर रूस-चीन के साथ रिश्तों का मेल किस तरह बैठाएगा. हालांकि अभी काफी बातें साफ नहीं हैं, पर लगता है कि रूस और चीन की धुरी बन रही है. देखते ही देखते चीन का रूस से पेट्रोलियम आयात कहाँ से कहाँ पहुँच गया है. दोनों देश अब मध्य एशिया में सक्रिय हो रहे हैं. अफगानिस्तान में भी दोनों की दिलचस्पी है.  शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. यह संगठन वैश्विक आर्थिक-राजनीतिक गतिविधियों का नया केंद्र बनेगा. इसे पूरी तरह रूस-चीन धुरी का केंद्र नहीं कह सकते, पर इसके तत्वावधान में बन रहा विकास बैंक  एक नई समांतर व्यवस्था के रूप में जरूर उभरेगा. उधर चीन ने एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) की आधारशिला डालकर एशिया विकास बैंक और अमेरिकी-जापानी प्रभुत्व को चुनौती दे दी है. इन व्यवस्थाओं से लाभ यह होगा कि विकासशील देशों में पूँजी निवेश बढ़ेगा और खासतौर से आधार ढाँचा मजबूत होगा, पर सामरिक टकराव भी बढ़ेंगे.  भारतीय विदेश नीति में 'एक्ट ईस्ट' के बाद 'कनेक्ट सेंट्रल एशिया' की योजना भी नरेंद्र मोदी की इस विदेश-यात्रा के दौरान सामने आई है.

वैश्विक राजनीति और अर्थ-व्यवस्था में तेजी से बदलाव आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्य एशिया और रूस की इस यात्रा पर गौर करें तो इस बदलाव की झलक देखने को मिलेगी. इस यात्रा के तीन अलग-अलग पहलू हैं, जिनका एक-दूसरे से सहयोग का रिश्ता है और आंतरिक टकराव भी हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण आज 9 जुलाई को रूस के उफा शहर में देखने को मिलेगा, जहाँ शंघाई (शांगहाई) सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन है. इसमें भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्य का दर्जा मिलने वाला है. यह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक सहयोग का संगठन है. इसमें भारत और पाकिस्तान का एकसाथ शामिल होना निराली बात है. इसके बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन है. ब्रिक्स देश एक नई वैश्विक संरचना बनाने में लगे हैं, जो पश्चिमी देशों की व्यवस्था के समांतर है.

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के समांतर एक नई व्यवस्था कायम होने जा रही है. यह व्यवस्था ऐसे देश कायम करने जा रहे हैं, जिनकी राजनीतिक और आर्थिक संरचना एक जैसी नहीं है और सामरिक हित भी एक जैसे नहीं हैं, फिर भी वे सहयोग का सामान इकट्ठा कर रहे हैं. यह व्यवस्था पश्चिमी देशों के नियंत्रण वाली व्यवस्था के समांतर है, बावजूद इसके यह उसके विरोध में नहीं है. ब्रिक्स में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की राजनीतिक व्यवस्था पश्चिमी देशों के तर्ज पर उदार है, वहीं चीन और रूस की व्यवस्था अधिनायकवादी है. बावजूद इसके सहयोग के नए सूत्र तैयार हो रहे हैं. इससे जुड़े कुछ संशय भी सामने हैं.

Wednesday, July 8, 2015

इस मौके का कितना फायदा उठा पाएगी कांग्रेस?

भाजपा को घेरने में कांग्रेस सफल हो पाएगी ?

  • 2 घंटे पहले
नरेंद्र मोदी और सोनिया गांधी
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने व्यापमं मामले की सीबीआई जाँच की माँग को मंज़ूर करके फ़िलहाल अपने ऊपर बढ़ते दबाव को कम कर दिया है.
इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलों के कम होने के बजाय बढ़ने के ही आसार हैं.
व्यापमं मामला हाई कोर्ट में है. मुख्यमंत्री ने अदालत को सीबीआई जांच के लिए पत्र लिखने की घोषणा की है.
इस हफ्ते यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी आएगा. राज्य सरकार वहाँ भी सीबीआई जाँच की माँग करेगी.

पढ़ें विस्तार से

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ऐसा लग रहा है कि अचानक भाजपा के घोटालों की वर्षा होने लगी है. चार राज्यों के भाजपा मुखिया कांग्रेस के निशाने पर हैं.
इनमें शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह पर सीधे आरोप हैं. वहीं महाराष्ट्र के देवेंद्र फड़नवीस को पंकजा मुंडे और विनोद तवाड़े के कारण घेरा गया है.
21 जुलाई से संसद का सत्र शुरू हो रहा है. सरकार के सामने भूमि अधिग्रहण और जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों को पास कराने की ज़िम्मेदारी है.
लेकिन लगता है कि घोटालों का शोर बड़ा होगा.

भाजपा का सूर्यास्त?

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क्या भाजपा के पराभव और कांग्रेस के उदय का समय आ गया है? क्या इतने सुनहरे मौके का कांग्रेस फायदा उठाएगी?
भाजपा की गिरती छवि पर संशय नहीं, कांग्रेस की क़ाबलियत पर शक ज़रूर है. फ़िलहाल राज्यों के सहारे केंद्र सरकार पर दबाव बनाने में कांग्रेस पार्टी काफी हद तक सफल हुई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मनमोहन सिंह से ज़्यादा मौन हैं, बल्कि विदेश यात्रा पर निकल गए हैं. दूसरी ओर सोनिया और राहुल सामने नहीं आते.
यह काम दिग्विजय सिंह, रणदीप सुरजेवाला, चिदम्बरम, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जयराम रमेश वगैरह को सौंपा गया है.

खास मौकों पर सन्नाटा

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क्या वजह है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका महत्वपूर्ण मौकों पर नेपथ्य में चले जाते हैं? विश्व योग दिवस पर ये तीनों अज्ञातवास पर थे.
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में सोनिया, प्रियंका और राहुल को पार्टी पीछे रखती है. गरीबी, धर्म निरपेक्षता और पूँजीवाद के सैद्धांतिक प्रसंगों पर ही वे बोलते हैं.
वजह शायद यह है कि वे जैसे ही भाजपा के ‘भ्रष्टाचार’ शब्द का उच्चारण करते हैं, उनपर पलटवार होता है. इससे बचने की यह रणनीति है.
व्यापमं घोटाले को मध्य प्रदेश के गलियारों से निकाल कर दिल्ली तक लाने के अलावा भी कांग्रेस ने होमवर्क किया है.

Monday, July 6, 2015

अकेले टेक्नोलॉजी नहीं है स्कूलों की बीमारी का इलाज

केंटारो टोयामा 
भारत में हम उन स्कूलों को प्रगतिशील मानते हैं, जहाँ शिक्षा में तकनीक का इस्तेमाल होता है. मसलन कम्प्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी का.  ऊँची फीस वाले स्कूल ऊँची तकनीक के इस्तेमाल का दावा करते हैं। ई-मेल, लैपटॉप और स्मार्टफोन से लैस छात्र प्रगतिशील माने जाते हैं। कम्प्यूटर साइंटिस्ट केटारो टोयामा तकनीक और विकास के रिश्तों पर रिसर्च करते हैं. वे तकनीक के महत्व को स्वीकार करते हैं, पर मानते हैं कि तकनीक ही साध्य नहीं है, केवल साधन है। इस लिहाज से बोस्टन रिव्यू फोरम में प्रकाशित उनका लेख क्या तकनीक गरीबी दूर कर सकती है?  पठनीय है. आशुतोष उपाध्याय उनका एक और लेख खोजकर लाए हैं, जो शिक्षा के बाबत उनके विचारों का प्रतिपादन करता है. 

सन 2013 के बसंत में मैंने एक महीने तक अपनी सुबहें लेकसाइड स्कूल में बिताईं. यह सिआटल का एक  प्राइवेट स्कूल है जहां प्रशांत उत्तरपश्चिम में रहने वाले भद्रलोक के बच्चे पढ़ते हैं. लाल ईंटों से बना स्कूल का आलीशान परिसर किसी आईवी लीग कॉलेज जैसा भव्य दिखाई देता है और इसकी फीस भी उन्हीं जैसी है. इस स्कूल में गिल गेट्स ने पढ़ा है और यहां अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट के अफसरों के बच्चे पढ़ने आते हैं. जाहिर है स्कूल में टेक्नोलॉजी की कोई कमी नहीं: शिक्षक स्कूल के इन्टरनेट पर एसाइनमेंट्स पोस्ट करते हैं; ई-मेल से कक्षाओं को निर्देश देते हैं; और हर बच्चा लैपटॉप (अनिवार्यतः) और स्मार्टफोन (अनिवार्य नहीं) लेकर स्कूल पहुंचता है.

Sunday, July 5, 2015

तकनीकी क्रांति की सौगात

नरेंद्र मोदी सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम की उपयोगिता पर राय देने के पहले यह जानकारी देना उपयोगी होगा कि सरकार प्राथमिक कृषि उत्पादों के लिए एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल शुरू करने की कोशिश कर रही है। यह पोर्टल शुरू हुआ तो एक प्रकार से एक अखिल भारतीय मंडी या बाजार की स्थापना हो जाएगी, जिसमें किसान अपनी फसल देश के किसी भी इलाके के खरीदार को बेच सकेगा। ऐसे बाजार का संचालन तकनीक की मदद से सम्भव है। ऐसे बाजार की स्थापना के पहले सरकार को कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) कानून में बदलाव करना होगा।

Saturday, July 4, 2015

‘डिजिटल इंडिया’ के लिए क्या हम तैयार हैं?

मोबाइल फोन की वजह से भारत में कितना बड़ा बदलाव आया?  हमने इसे अपनी आँखों से देखा है।  पर इस बदलाव के अंतर्विरोध भी हैं। पिछले दिनों हरियाणा की दो लड़कियों के साथ एक बस में कुछ लड़कों की मारपीट हुई। इसका किसी ने अपने मोबाइल फोन में वीडियो बना लिया। उस वीडियो से लड़कों पर आरोप लग रहे थे तो एक और वीडियो सामने आ गया। जब सारे पहलुओं पर गौर किया जाए तो कुछ निष्कर्ष बदले। ऐसा ही एक वीडियो दिल्ली में एक ट्रैफिक पुलिस कर्मी और एक स्कूटर सवार महिला के बीच झगड़े का नमूदार हुआ। वीडियो के जवाब में एक और वीडियो आया। पूरे देश में सैकड़ों, हजारों ऐसे वीडियो हर समय बनने लगे हैं। सिर्फ झगड़ों के ही नहीं। सैर-सपाटों, जन्मदिन, समारोहों, जयंतियों, मीटिंगों और अपराध के।

सॉफ्टवेयर के मामले में भारत दुनिया का नम्बर एक देश कब और कैसे बन गया, इसके बारे में आपने कभी सोचा? पिछले तीन-साढ़े तीन दशक में भारी बदलाव आया है। सन 1986 में सेंटर फॉर रेलवे सिस्टम (सीआरआईएस-क्रिस) की स्थापना हुई, जिसने यात्रियों के सीट रिज़र्वेशन की प्रणाली का विकास किया। हालांकि इस सिस्टम को लेकर अब भी शिकायतें हैं, पर इसमें दो राय नहीं कि तीन दशक पहले की और आज की रेल यात्रा में बुनियादी बदलाव आ चुका है। पूरे देश में यात्रियों का आवागमन कई गुना बढ़ा है। यह आवागमन बढ़ता ही जा रहा है। ऐसी क्रांति दुनिया में कहीं नहीं हुई। पिछले साल दीवाली के मौके पर अचानक ई-रिटेल के कारोबार ने दस्तक दी। इसके कारण केवल सेवा का विस्तार ही नहीं हुआ है, नए किस्म के रोजगार भी तैयार हुए हैं।