स्वभाव से जिज्ञासु और विज्ञानोन्मुखी आशुतोष उपाध्याय ऐसे लेखन पर नजर रखते हैं जो जानकारी के किसी नए दरवाजे को खोलता हो और विश्वसनीय भी हो. मैने इसके महले भी उनके अनूदित लेख अपने ब्लॉग पर डाले हैं। उन्होंने हाल में यह लेख भेजा है. इसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है कि मनुष्य में भाषा क्षमता के जन्म के बारे में एक विद्वान के कुछ दिन पूर्व प्रकाशित एक हैरतअंगेज लेख ने मुझे प्रेरित किया कि इस विषय पर हिंदी में कुछ तथ्यात्मक व विज्ञान सम्मत सामग्री जुटाई जाय. इस सिलसिले में भाषाविज्ञानी रे जैकेनडौफ के एक शुरुआती आलेख का अनुवाद आप सब के साथ शेयर कर रहा हूं. पसंद आये तो अन्य मित्रों तक भी पहुंचाएं.
कैसे शुरू हुई भाषा?
रे जैकेनडौफ
इस सवाल का मतलब क्या है? मनुष्य में भाषा सामर्थ्य के जन्म के बारे में पूछते हुए, सबसे पहले हमें यह स्पष्ट करना होगा कि असल में हम जानना क्या चाहते हैं? सवाल यह नहीं कि किस तरह तमाम भाषाएं समय के साथ क्रमशः विकसित होकर वर्तमान वैश्विक मुकाम तक पहुंचीं. बल्कि इस सवाल का आशय है कि किस तरह सिर्फ मनुष्य प्रजाति, न कि चिम्पैंजी और बोनोबो जैसे इसके सबसे करीबी रिश्तेदार, काल क्रम में विकसित होकर भाषा का उपयोग करने के काबिल बने.
और क्या विलक्षण विकास था यह! मानव भाषा की बराबरी कोई दूसरा प्राकृतिक संवाद तंत्र नहीं कर सकता. हमारी भाषा अनगिनत विषयों (जैसे- मौसम, युद्ध, अतीत, भविष्य, गणित, गप्प, परीकथा, सिंक कैसे ठीक करें... आदि) पर विचारों को व्यक्त कर सकती है. इसे न केवल सूचना के सम्प्रेषण के लिए, बल्कि सूचना मांगने (प्रश्न करने) और आदेश देने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अन्य जानवरों के तमाम संवाद तंत्रों के विपरीत, मानव भाषा में नकारात्मक अभिव्यक्तियां भी होती हैं यानी हम मना कर सकते हैं. हर इंसानी भाषा में चंद दर्जन वाक् ध्वनियों से निर्मित दसियों हजार शब्द होते हैं. इन शब्दों की मदद से वक्ता अनगिनत वाक्यांश और वाक्य गढ़ सकते हैं. इन शब्दों के अर्थों की बुनियाद पर वाक्यों के अर्थ खड़े किए जाते हैं. इससे भी विलक्षण बात यह है कि कोई भी सामान्य बच्चा दूसरों की बातें सुनकर भाषा के समूचे तंत्र को सीख जाता है.
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कैसे शुरू हुई भाषा?
रे जैकेनडौफ
इस सवाल का मतलब क्या है? मनुष्य में भाषा सामर्थ्य के जन्म के बारे में पूछते हुए, सबसे पहले हमें यह स्पष्ट करना होगा कि असल में हम जानना क्या चाहते हैं? सवाल यह नहीं कि किस तरह तमाम भाषाएं समय के साथ क्रमशः विकसित होकर वर्तमान वैश्विक मुकाम तक पहुंचीं. बल्कि इस सवाल का आशय है कि किस तरह सिर्फ मनुष्य प्रजाति, न कि चिम्पैंजी और बोनोबो जैसे इसके सबसे करीबी रिश्तेदार, काल क्रम में विकसित होकर भाषा का उपयोग करने के काबिल बने.
और क्या विलक्षण विकास था यह! मानव भाषा की बराबरी कोई दूसरा प्राकृतिक संवाद तंत्र नहीं कर सकता. हमारी भाषा अनगिनत विषयों (जैसे- मौसम, युद्ध, अतीत, भविष्य, गणित, गप्प, परीकथा, सिंक कैसे ठीक करें... आदि) पर विचारों को व्यक्त कर सकती है. इसे न केवल सूचना के सम्प्रेषण के लिए, बल्कि सूचना मांगने (प्रश्न करने) और आदेश देने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अन्य जानवरों के तमाम संवाद तंत्रों के विपरीत, मानव भाषा में नकारात्मक अभिव्यक्तियां भी होती हैं यानी हम मना कर सकते हैं. हर इंसानी भाषा में चंद दर्जन वाक् ध्वनियों से निर्मित दसियों हजार शब्द होते हैं. इन शब्दों की मदद से वक्ता अनगिनत वाक्यांश और वाक्य गढ़ सकते हैं. इन शब्दों के अर्थों की बुनियाद पर वाक्यों के अर्थ खड़े किए जाते हैं. इससे भी विलक्षण बात यह है कि कोई भी सामान्य बच्चा दूसरों की बातें सुनकर भाषा के समूचे तंत्र को सीख जाता है.