Tuesday, January 27, 2015

गणतंत्र दिवस पर मोदी की छाप

गणतंत्र दिवस परेड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छाप सायास या अनायास दिखाई पड़ी। जिनमें से कुछ हैं:-

मेक इन इंडिया का मिकेनिकल शेर
प्रधानमंत्री जन-धन योजना की झाँकी
बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ झाँकी
गुजरात की झाँकी में पटेल की प्रतिमा
आयुष मंत्रालय की झाँकी
बुलेट ट्रेन की प्रतिकृति
स्वच्छ भारत की अपील करता स्कूली बच्चों का समूह नृत्य
कार्यक्रम में बराक ओबामा सहित तमाम अतिथि अपने हाथों में छाते छामे नजर आए। किसी को पहले से इस बात का अंदेसा नहीं था। शायद अगले साल से विशिष्ट अतिथियों के मंच के ऊपर शीशे की छत लगेगी।

आज दिल्ली के कुछ  अखबार प्रकाशित हुए हैं जिनसे कार्यक्रम की रंगीनी के अलावा मीडिया की दृष्टि भी नजर आती है। आज की कुछ कतरनें

नवभारत टाइम्स


इंडियन एक्सप्रेस





Monday, January 26, 2015

यह ‘परेड-डिप्लोमेसी’ कुछ कहती है


बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस की परेड का मुख्य अतिथि बनाने का कोई गहरा मतलब है? एक ओर सुरक्षा व्यवस्था का दबाव पहले से था, ओबामा की यात्रा ने उसमें नाटकीयता पैदा कर दी. मीडिया की धुआँधार कवरेज ने इसे विशिष्ट बना दिया है. यात्रा के ठीक पहले दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर डील के पेचीदा मसलों का हल होना भी सकारात्मक है. कई लिहाज से यह गणतांत्रिक डिप्लोमेसी इतिहास के पन्नों में देर तक याद की जाएगी.    

दोनों के रिश्तों में दोस्ताना बयार सन 2005 से बह रही है, पर पिछले दो साल में कुछ गलतफहमियाँ भी पैदा हुईं. इस यात्रा ने कई गफलतों-गलतफहमियों को दूर किया है और आने वाले दिनों की गर्मजोशी का इशारा किया है. पिछले 65 साल में अमेरिका को कोई राजनेता इस परेड का मुख्य अतिथि कभी नहीं बना तो यह सिर्फ संयोग नहीं था. और आज बना है तो यह भी संयोग नहीं है. वह भी भारत का एक नजरिया था तो यह भी हमारी विश्व-दृष्टि है. ओबामा की यह यात्रा एक बड़ा राजनीतिक वक्तव्य है.

Sunday, January 25, 2015

आपके हाथ में है बदलाव की डोर

कुछ साल पहले एक नारा चला था, सौ में 98 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान। इस नारे में तकनीकी दोष है। सौ में 98 बेईमान हैं ही नहीं। सौ में 98 ईमानदार हैं और ईमानदारी से व्यवस्था को कायम करना चाहते हैं। सच यह है कि हम सड़कों पर पुलिस वालों को वसूली करते, गुंडों-लफंगो को उत्पात मचाते, दफ्तरों में कामचोरी होते देखते हैं। हम सोचते हैं कि इनपर काबू पाने की जिम्मेदारी किसी और की है। हमने खुद को भी बेईमान मान लिया तो शिकायत किससे करेंगे? यह व्यवस्था आपकी है।

Thursday, January 22, 2015

पत्रकार की नौकरी और स्वतंत्रता

पंकज श्रीवास्तव की बर्खास्तगी के बाद मीडिया की नौकरी और कवरेज को लेकर कुछ सवाल उठेंगे। ये सवाल एकतरफा नहीं हैं। पहला सवाल यह है कि मीडिया हाउसों की कवरेज कितनी स्वतंत्र और निष्पक्ष है? दूसरा यह कि किसी पत्रकार की सेवा किस हद तक सुरक्षित है? तीसरा यह कि सम्पादकीय विभाग के कवरेज से जुड़े निर्णय किस आधार पर होते हैं? यह भी पत्रकार के व्यक्तिगत आग्रहों और चैनल की नीतियों में टकराव होने पर क्या होना चाहिए? संयोग से इसी चैनल के एक पुराने एंकर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए और लोकसभा चुनाव भी लड़ा। पंकज श्रीवास्तव ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वे राजनीति में आना चाहते हैं। वे मानते है कि उनके चैनल की कवरेज असंतुलित है। चैनल क्या इस बात को जानता नहीं? बेशक वह सायास झुकाव के लिए भी स्वतंत्र है। चैनलो से उम्मीद की जाती है कि वे तटस्थ होकर काम करेंगे। पर क्या यह तटस्थता व्यावहारिक रूप से सम्भव है? खासतौर से तब जब पत्रकार की अपनी राजनीतिक धारणाएं हैं और दूसरी ओर चैनल के व्यावसायिक हित हैं।

Tuesday, January 20, 2015

स्वास्थ्य का अधिकार देंगे, पर कैसे?

सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2015 के जिस मसौदे पर जनता की राय मांगी है उसके अनुसार आने वाले दिनों में चिकित्सा देश के नागरिकों का मौलिक अधिकार बन जाएगी। यानी स्वास्थ्य व्यक्ति का कानूनी अधिकार होगा। सिद्धांततः यह क्रांतिकारी बात है। भारतीय राज-व्यवस्था शिक्षा के बाद व्यक्ति को स्वास्थ्य का अधिकार देने जा रही है। इसका मतलब है कि हमारा समाज गरीबी के फंदे को तोड़कर बाहर निकलने की दिशा में है। पर यह बात अभी तक सैद्धांतिक ही है। इसे व्यावहारिक बनने का हमें इंतजार करना होगा। पर यह भी सच है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे यहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर चेतना बढ़ी है।